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खेल नहीं है विवाह पूर्व शारीरिक संबंध

संजय कुमार सिंहनिरूपमा हत्याकांड ने नया मोड़  ले लिया है और इससे साबित  हो गया है कि स्वच्छंद जीवन की वकालत करने वाले लोग फंस सकते हैं। शुरू में खबर यह थी कि ब्राह्मण परिवार की निरूपमा कथित नीची जाति के युवक से प्रेम करती थी और उसी से विवाह करना चाहती थी जो उसके परिवार वालों को मंजूर नहीं था और इसलिए उसकी हत्या कर दी गई। हत्या के मामले में पुलिस ने निरूपमा की मां को गिरफ्तार भी कर लिया पर अब निरूपमा की मां की शिकायत पर उसके प्रेमी प्रियभांशु रंजन से पूछताछ हो रही है और कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर उसे गिरफ्तार कर आगे की कार्रवाई के लिए कोडरमा /  तिलैया ले जाया जाए। वयस्क युवक युवती को किसी से भी प्रेम करने और किसी के भी साथ रहने तथा इच्छा हो तो शारीरिक संबंध बनाने की वकालत करने वाले लोग तकरीबन चुप हैं। चलिए, मान लेते हैं कि प्रियभांशु को फंसाया गया है पर निरूपमा की मां ने हत्या की या कराई है यह भी साफ नहीं है। इसलिए, यह भी मान लेते हैं कि निरूपमा ने खुदकुशी ही की है।

संजय कुमार सिंह

संजय कुमार सिंहनिरूपमा हत्याकांड ने नया मोड़  ले लिया है और इससे साबित  हो गया है कि स्वच्छंद जीवन की वकालत करने वाले लोग फंस सकते हैं। शुरू में खबर यह थी कि ब्राह्मण परिवार की निरूपमा कथित नीची जाति के युवक से प्रेम करती थी और उसी से विवाह करना चाहती थी जो उसके परिवार वालों को मंजूर नहीं था और इसलिए उसकी हत्या कर दी गई। हत्या के मामले में पुलिस ने निरूपमा की मां को गिरफ्तार भी कर लिया पर अब निरूपमा की मां की शिकायत पर उसके प्रेमी प्रियभांशु रंजन से पूछताछ हो रही है और कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर उसे गिरफ्तार कर आगे की कार्रवाई के लिए कोडरमा /  तिलैया ले जाया जाए। वयस्क युवक युवती को किसी से भी प्रेम करने और किसी के भी साथ रहने तथा इच्छा हो तो शारीरिक संबंध बनाने की वकालत करने वाले लोग तकरीबन चुप हैं। चलिए, मान लेते हैं कि प्रियभांशु को फंसाया गया है पर निरूपमा की मां ने हत्या की या कराई है यह भी साफ नहीं है। इसलिए, यह भी मान लेते हैं कि निरूपमा ने खुदकुशी ही की है।

स्वच्छंद जीवन जीने के खतरे यहीं सामने आते हैं। अगर निरूपमा गर्भवती नहीं होती तो क्या किसी नीची जाति के युवक से प्रेम करना और अभिभावकों से उसी से शादी करने की जिद करना निरूपमा के लिए उतना ही गंभीर मसला होता? मेरे ख्याल से बिल्कुल नहीं। इसी तरह, अगर निरूपमा गर्भवती नहीं होती तो प्रियभांशु पर लगाए गए निरूपमा की मां के आरोप पर क्या अदालत उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई करने जैसा आदेश देती? मेरे ख्याल से बिल्कुल नहीं। इसमें खास बात यह भी है कि जाति अब इस पूरे मामले में गौण हो गई है। प्रियभांशु पर लगी आईपीसी की धाराओँ का जाति से कोई मतलब नहीं है और ब्राह्मण निरूपमा की जान उसके ऊंची जाति से होने पर भी नहीं बच पाई। ऐसे में एक चीज स्पष्ट है – जो गलत है वह गलत ही रहेगा। यह जरूर संभव है कि आप उसे गलत न मानें या न मानते हों। पढ़े-लिखे आधुनिक समाज में विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बनाना बुरा नहीं माना जाता है। इसके पक्ष में तमाम दलीलें दी जाती हैं, दी जा सकती हैं। पर जो बुजुर्ग और पुराने लोग अनुभव के आधार पर इसे गलत बताते हैं वे इन्हीं कारणों से ऐसी राय रखते हैं। शारीरिक संबंध बनाने के बावजूद गर्भ न ठहरे इसके कई उपाय हैं और गर्भ ठहर गया है इसे जानना-समझना भी कोई मुश्किल नहीं है। अगर ऐसा हो ही जाए तो महानगरों में रहने वाले पढ़े-लिखे समाज के लिए समय रहते इससे छुटकारा पाना भी कोई मुश्किल नहीं है। पर निरूपमा और प्रियभांशु क्या इन परेशानियों से बच पाए? नहीं ना।

आप विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बनाएं, गर्भ न ठहरे इसकी पर्याप्त व्यवस्था कर लें और गर्भ ठहर जाए तो किसी को कानों-कानों खबर हुए बगैर गर्भपात करा लें और लड़की शादी करने की जिद्द न करे और आप इससे निपटने का झंझट न झेलें तथा साफ बच जाएं – यह असंभव नहीं तो बहुत आसान भी नहीं है। अगर ऐसा है तो इस झंझट में क्यों  फंसना। सिर्फ आधुनिक कहलाने के लिए या लीक से हटकर चलने वाला दिखने के लिए यह सब करने का जोखिम बहुत ज्यादा है। खासकर लड़कियों के लिए। आजकल लड़कियों को लड़कों के बराबर या किसी भी मायने में पीछे न होने की बात की जाती है। ज्यादातर मामलों में यह सही भी है। हो सकता है कुछ लड़कियां मिलकर किसी युवक का बलात्कार भी कर दें पर बलत्कृत युवक को गर्भ नहीं ठहरेगा और उसके मां-बाप नहीं कहेंगे कि नाक कट गई। हो सकता है आप इसे प्रकृति का अन्याय कहें। पर फिलहाल सच यही है। इसलिए बचना लड़कियों को ही होगा। इसमें इस बात का कोई मतलब नहीं है कि शादी उसी से करनी है और कुछ दिन बाद शादी हो ही जाएगी तो पहले शारीरिक संबंध बनाने में कोई नुकसान नहीं है।

मान लीजिए, पुलिस की आशंका सही है कि गर्भ ठहरने के बाद निरूपमा शादी की जिद कर रही थी और प्रियभांशु उससे पीछा छुड़ाना चाहता था तो भी यह दोनों के लिए परेशानी तो थी ही। दूसरी ओर, निरूपमा अगर आत्महत्या नहीं करती और प्रियभांशु के बच्चे की अविवाहित मां बनकर उससे बदला लेने का निर्णय लेती (जिसकी संभावना बहुत कम है) तो प्रियभांशु को विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बनाने की क्या कीमत चुकानी पड़ती इसका अंदाजा भी आसानी से लगाया जा सकता है।

शादी-शुदा लोग विवाह पूर्व यौन संबंध को ठीक बताएं तो कहा जा सकता है कि उन्हें उसकी मुश्किल का अंदाजा ही नहीं है और अविवाहित लोग कहें कि इसमें क्या गलत है तो उन्हें यह जान लेना चाहिए कि गलतियां कानूनी ही नहीं नैतिक भी होती हैं। निरूपमा-प्रियभांशु मामले को उदाहरण मानें तो नोट कर लीजिए कि एक की जान जा चुकी है पूरा परिवार हत्या और हत्या के प्रयास के मामले झेलेगा और दूसरा आत्महत्या के लिए प्रेरित या मजबूर करने का मामला। हिन्दुस्तानी न्याय व्यवस्था में निर्दोष साबित होने से पहले भी आप काफी कुछ झेल चुके होते हैं यह किसी से छिपा नहीं है। इसके बावजूद अगर किसी को लगे विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बनाना बच्चों का खेल है तो उन्हें कोई रोक नहीं सकता। मेरे हिसाब से ऐसे सारे काम गलत हैं जो आप करें या करते हों पर सार्वजनिक रूप से स्वीकार न कर सकें। इसलिए मेरा फार्मूला सीधा है – वही काम करो जो डंके की चोट पर कह सको कि करता हूं / किया है।

लेखक संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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0 Comments

  1. tau

    May 8, 2010 at 8:54 am

    Sanjay ji, Thanks alot for making balanced comment.
    Nirupama issue is being blown out of proportion. Some of the so called protagonists are siding with Nirupama. But can they allow any ‘Priyabhanshu’ to do the same with their daughters what he did with Nirupama. Certainly, they won’t. So, they must stop preaching. Dear protagonists, Nirupama was not only a journalist but also a daughter and a sister. You, altogether, can’t feel the pain what their parents suffered. Must remember, there is huge difference between real life and reel life.

  2. raj haritwal

    May 8, 2010 at 9:34 am

    जी , संजय जी अब इन लोगों की अक्ल ठिकाने आने लगी है जो इतने दिन से सिर्फ निरूपमा के घरवालों को ही कोस रहे थे। आखिर कानून और पुलिस अपने तरीके से काम करते है वो भावना में बहकर पानी पी पीकर गाली नहीं देते। जितना बड़ा पत्रकारों का एक गुट नीरू के घरवालों के खिलाफ खड़ा हुआ था…बिना सोचे समझे मामले की तह तक जाने बिना ..उतने ही पत्रकार बंधु दूसरा पक्ष भी देख रहे थे। अब उन लोगों की अक्ल ठिकाने आ गई होगी जो स्वच्छंदता,प्यार को ईश्वर बनाकर पेश कर रहे थे। उस लड़के को अब पुलिस कभी भी अरेस्ट कर सकती है क्योंकि उसके खिलाफ कोर्ट ने कई धाराओं के तहत मामला दर्ज करने के आदेश दिए है जो गैर जमानती है। उस लड़के को सभी प्यार का देवता बनाकर पेश कर रहे थे।

  3. Sanjay Mishra

    May 8, 2010 at 9:40 am

    वाकई खेल नहीं है विवाह पूर्व शारीरिक सम्बन्ध बनाना..बिना विवाह किये शारीरिक सम्बन्ध बनाना बलात्कार जैसी अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने जैसा है…आज भी मुंबई के आर्थर रोड जेल में कई ऐसे अंडर ट्रायल कैदी हैं जिन्होंने अपने माशूका की रजामंदी से शारीरिक सम्बन्ध बनाये और उनके खिलाफ धारा ३६३,३६६, और ३७६ भा.द.वि के तहत अपराधिक मामला दर्ज कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया गया जिसकी वजह से १०-१० महीनो से वे जेल में न्यायाधीन बंदी के तहत बद से बदतर जिंदगी गुजार रहे हैं.

  4. Rahul Chauhan

    May 8, 2010 at 9:41 am

    Ye Khel hi hai. youth ki nazar se dekho.

  5. Sarvesh Upadhyay

    May 8, 2010 at 9:41 am

    yahee to dikkat hai rahul ji youth ka chola odhkar har cheez khel me le lete ho….to aap ke wichar se niru ki jaan khel khel me chali gayee, kyu? tark rahit baat achhi nahee lagti

  6. Sanjay Mishra

    May 8, 2010 at 9:42 am

    kanoon ke shikhanjo se kisko sambhalte dekha, achhe achhon ko yahan fisalte dekha…

  7. ajay

    May 8, 2010 at 10:31 am

    nirupma ko yadi bahan aur beti mankar soche to apne ap pata chal jayega ki doshi kaun hai?

  8. Shashank

    May 8, 2010 at 11:33 am

    संजय जी मुझे आपके सोच और विश्लेष्ण पर आश्चर्य है की आपको पूरे मामले में केवल एक ही पहलू ‘शारीरिक सबंध’ नज़र आया| अगर निरुपमा गर्भवती नहीं होती तो क्या दोनों के माँ – बाप इनकी शादी के लिए तैयार हो जाते, क्या तब जाती एक बहुत बड़ा विषय नहीं होता, क्या माता-पिता तब मरने-मारने की धमकी नहीं देते?

  9. gulshan

    May 8, 2010 at 11:57 am

    sararik sambhandho me savdhani ki avasyakta hoti hai.jisko nirupma ne nazar andaz kiya tha shayad yahi vazah hai ke parinaam uchit nahi hai nirupma case ka

  10. Chandan

    May 8, 2010 at 1:19 pm

    Vilkul sahi sahi kah rhe hai sanjay ji. Ab lagne laga hai ki ptrakarita me naetikta ki baat karne wale kuch log to hai. Sir media line andar se bhrasht to hai hi lekin kai dino se bade-bade ptrakar apna nangai b4m pr v sarvjanik taur pr dikha rhe the, free sex ki vakalat karne lage the, jaise niru ki maut billi ki bhagy se chhinka toot gya ho. Aapka dhanybad sachai likhne ke liye.

  11. Devang Rathore

    May 8, 2010 at 4:10 pm

    Respected Singh ji aap ne bilkul theek likha hain.
    Devang Rathore
    09456400009

  12. संजय कुमार सिंह

    May 8, 2010 at 6:41 pm

    शशांक जी, मेरी सोच और विश्लेशण पर आपको आश्चर्य होना जायज है। जो लोग तात्कालिक लाभ, निजी स्वार्थ और क्षणिक सुख में यकीन करते हैं वे दूर की नहीं सोचते। और जो हो जाता है उसके छोड़कर आगे भी बढ़ते जाते हैं। आज समाज को ऐसे लोगों की भी जरूरत है। सभी लोग घर का खाना खाएंगे तो रेस्त्रां कैसे चलेंगे?
    आपके सवाल के जवाब में यही कहूंगा कि निरूपमा गर्भवती नहीं होती तो अपने मां-बाप से लड़ने के नजरिए से कई गुना ज्यादा मजबूत होती। कथित रूप से नीची जाति के युवक से प्रेम करके उसने ऐसा गुनाह नहीं किया था कि उसके मां-बाप और परिवार वाले उसकी हत्या का जोखिम उठाते। ना ही वह इतनी कमजोर पड़ती कि उसे आत्महत्या के बारे में सोचना भी पड़ता। निरूपमा आज अगर इस दुनिया में नहीं है तो इसीलिए कि उसने खुदखुशी कर ली है या उसके परिवार वालों ने उसे मार / मरवा दिया है। इसका कारण आपको कुछ और दिखे तो देखिए मैं तो यही मानता हूं कि गर्भवती होकर (शारीरिक संबंध बनाकर नहीं) उसने खुद को काफी कमजोर कर लिया था। और चूंकि शारीरिक संबंध बनाने पर गर्भ धारण करने का खतरा रहता है और तमाम उपाय उपलब्ध होने के बावजूद निरूपमा चूक गई इसीलिए मैंने लिखा है कि यह बच्चों का खेल नहीं है। अगर आप ऐसा नहीं मानते तो न मानिए।

  13. राजीव

    May 9, 2010 at 9:27 am

    बहुत खूब संजय जी…

  14. कमल शर्मा

    May 9, 2010 at 12:03 pm

    संजय जी, बेहद सटीक विश्‍लेषण और रिपोर्ट लिखी है आपने। लीव इन रिलेशनशीप जैसे इस तरह के संबंधों में दिक्‍कतें तो आएंगी ही और जो लोग इन सब को बेहद हल्‍के स्‍तर पर लेते हैं वह गलत है। इसकी माया तो वही जानता है जो इसमें फंसता है।

  15. jaatak

    May 9, 2010 at 1:57 pm

    अनुवादक के कार्य में नवीनता तो हो सकती है पर मौलिकता नहीं. अनुवाद मस्तिष्क का कार्य है, जीवन को जानना, प्रेम को समझना ह्रदय के कार्य है. अनुवादक प्रारंभ से लेकर अंत तक एक ही किस्म का जीव होता है. सतही. उथला. छिछला. जिस प्रकार गधे को घास चाहिए, उसी प्रकार अनुवादक को कृतियाँ. धर्मोपदेशको, साहित्यकारों, चिंतको, वैज्ञानिको, नेताओं आदि के कार्यो से घिरा अनुवादक विद्वान प्रतीत हो सकता है. परन्तु ऐसी प्रतीति भ्रामक होती है. इससे बचना चाहिए.
    जिसने जान लिया समझ लिया वो फिर अनुवादक नहीं रहेगा. उसकी सोंच में मौलिकता होगी. जीवन को समग्रता में समझने का आग्रह होगा. अब चीज़ें सरल है. सहज है. साफ़ हैं. अनुवाद नहीं. अनुनाद नहीं. उदघोष है.

    संजय कुमार जी बड़े अनुवादक है. उनके पुराने परिचयों में शामिल रहा है के वे अनुवाद का काम बड़े स्तर पर कर रहे है.
    अपने इस सनातनी विचारधारी लेख में वे न तो ये बताते है के प्रेम क्या है और न ही ये स्पष्ट करते है के शारीरिक सम्बन्ध के मायने क्या हैं. हाँ भय का सृजन वे ज़रूर करते है. उनके तर्कों की घामड़ता विस्मयकारी है.
    जैसा के पूर्व में कहा गलती इनकी नहीं है. अगर ऐसे लोग ये विश्वास न पालें ऐसे भय न फैलाएं तो इन लोगो का ऑफिस में काम करना मुश्किल हो जाएगा. सुबह १० बजे घर से निकलते है तो ये मान के अब ये सांकल शाम ५ बजे ही खुलेगी इनके आने पर. जानवर तो साल में कुछ समय ही कामवासना ग्रस्त होते है, पर ऐसे मनुष्य २४ घंटे कामवासना से ग्रस्त रहते है. ये यौनिकता से हट के स्त्री के सम्बन्ध में कुछ और नहीं सोंच सकते.
    नीरू पर अपन कुछ नहीं कहेंगे वो तो अपना पक्ष रखने के लिए अब इस दुनिया में है नहीं. दो नादाँ लोगो की बेवकूफी भरी प्रेम कहानी का दुखद अंत हुआ, इसका मुझे दुःख है….दोषी कैन है कौन नहीं बहस जारी रहेगी. रही बात नैतिकता की तो पत्रकार इसकी दुहाई न दें तो बेहतर होगा.

  16. dilzala

    May 9, 2010 at 3:16 pm

    ji theek farmaya aap ne. en ko kon samjhay ke aag kewal khana he nahi banati ghar bhi zala deti hai. hindustan u.k. nahi hai jahaan sex masti ke liye ho, yahaan sex zimmaidari ke saath samaaz main kabool hai bus. haan yadi hum marad hain or kisi ko fansaa ke mazai le rahi hain to hum aadhunikta ke pakshdhar hain, laikin yadi koi hamari behan beti ke saath kathit aadhunikta dikhata hai to hum riwaazon ke pakashdhar hain…aap bhi main bhi…hum sabhi. ye hindustaan ke taanybaanye ke anusaar theek hai. hindustan main muthi bhar log yadi gair prakritik cheejon ko branai main lagai hain to MEDIA es ka zimmadaar hai. aazadi ZIMAIDARI ka he doosra naam hai.

  17. kundan sahoo

    May 9, 2010 at 4:39 pm

    sanjay sahab ,aapne jo falsafa rakha hai, kinchit hi wo sahi sabit hoga, aap jaise apariwartansheel sochwale tathakathit buddhijeeviyoun ke karan hi 21 vi sadi mein hum unhi puratanpanthi vicharshaili ko apnaaye hue hai. aur aap jaise logo ki badaulat hi shayad ‘jaati aur sex’ jaise masle chirayu bane hue hain. zaroorat hai, aap apne rakhe gaye vicharon ka shanshodhan kare ! waise aapke is halke kism ke vicharon ke liye raai dena bhi khud ko bahut achchha nahi lag raha , lekin aapki tasveer is lekh mein dekh kar aap umrdaraz lage, isiliye ye likha hai. pichhdepan ki soch ko tyag dein, sahi leek ko pakdein. dil pe haath rakh kar poochhiyega, aapne jo likha kya wo sab aapne tatasth ho kar likha ?

    sath hi 1 aur prashna hai aapse aur aapse sanmati rakhnewale samvichari logon se , kya manu aur ida ya kahein adam aur hauua ne pahle sambhog khiya hoga ya naa dikhai dene wale apne buzurgonse izazat li hogi ? ya shadi kar ke hi sex kiya hoga? ye nirnay bhi manu aur ida ke liye utna hi sahaj raha hoga jitna, aaj ! vivah samajik mein naitik sex ki anumati dene ke liye banai gayi ek sanstha hai. aap khud ko samajik samjhein ya mahaj ek prani, ye aap ki samajh par par nirbhar karta hai…

  18. prashant hindustani

    May 10, 2010 at 4:01 pm

    everything in your article is right… we are youth so keep in mind such type of mistake must not be happened in life which call you and your family rubbish…

  19. VIVEK KUMAR

    May 14, 2010 at 5:37 pm

    sanjay ji
    sir aap nirupama ke premi ko kathith nichi jati ka bata rahe hai wo kaysth jati se hai aur kaysth agar nichi jati hai to government sc/obc/st/ etc catagery me reservation kyu nahi de rahi hai. hamare samaj me rajpoot, bramhin, kayesth, vaisya ye sabhi savarn hai ise sarkar bhi manti hai to aap ya hamara samaj kyu nahi manta hai

  20. praveen

    July 10, 2010 at 8:45 am

    the artical is good massage but nobody can stop yahi ma yadi phele action le leti to this offince will not happen

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