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दुख-दर्द

परिजनों को हत्यारा बताने-मानने की जिद

कुछ लोग पुलिस जांच और अदालती कार्यवाही से पहले ही निरुपमा के हत्यारे के रूप में उनके परिजनों को फांसी पर लटका देना चाहते हैं. ऐसे लोगों को यह तक पसंद नहीं है कि निरुपमा के हत्या पर शोक संवेदना उनके परिजनों तक पहुंचाई जाए. इनका मानना है कि हत्यारों तक शोक संवेदना क्यों पहुंचाना? पर, यहां हम जानना चाहेंगे कि अगर परिवार के लोग हत्यारे हैं तो क्या सभी लोग हत्या में शामिल हैं? अगर सभी नहीं शामिल हैं तो जो लोग शामिल नहीं हैं, उन्हें अपनी बहन या बेटी की मौत का दुख न होगा? उन तक शोक संवेदना पहुंचाना गलत किस तरह होगा?

<p style="text-align: justify;">कुछ लोग पुलिस जांच और अदालती कार्यवाही से पहले ही निरुपमा के हत्यारे के रूप में उनके परिजनों को फांसी पर लटका देना चाहते हैं. ऐसे लोगों को यह तक पसंद नहीं है कि निरुपमा के हत्या पर शोक संवेदना उनके परिजनों तक पहुंचाई जाए. इनका मानना है कि हत्यारों तक शोक संवेदना क्यों पहुंचाना? पर, यहां हम जानना चाहेंगे कि अगर परिवार के लोग हत्यारे हैं तो क्या सभी लोग हत्या में शामिल हैं? अगर सभी नहीं शामिल हैं तो जो लोग शामिल नहीं हैं, उन्हें अपनी बहन या बेटी की मौत का दुख न होगा? उन तक शोक संवेदना पहुंचाना गलत किस तरह होगा?</p>

कुछ लोग पुलिस जांच और अदालती कार्यवाही से पहले ही निरुपमा के हत्यारे के रूप में उनके परिजनों को फांसी पर लटका देना चाहते हैं. ऐसे लोगों को यह तक पसंद नहीं है कि निरुपमा के हत्या पर शोक संवेदना उनके परिजनों तक पहुंचाई जाए. इनका मानना है कि हत्यारों तक शोक संवेदना क्यों पहुंचाना? पर, यहां हम जानना चाहेंगे कि अगर परिवार के लोग हत्यारे हैं तो क्या सभी लोग हत्या में शामिल हैं? अगर सभी नहीं शामिल हैं तो जो लोग शामिल नहीं हैं, उन्हें अपनी बहन या बेटी की मौत का दुख न होगा? उन तक शोक संवेदना पहुंचाना गलत किस तरह होगा?

परिजनों का दूसरा अर्थ ‘हत्यारा’ क्यों बनाया जा रहा है? पिछले दिनों बिजनेस स्टैंडर्ड, जहां निरुपमा काम करती थी, के एडिटर संजय बारू ने सभी स्टाफ की तरफ से निरुपमा की मौत पर उनके परिजनों को शोक संदेश भिजवाया. इस पर कई लोगों ने उंगलिया उठाई हैं. इनका कहना है कि संजय बारू ने परिवार तक शोक संवेदना पहुंचाकर गलत किया है क्योंकि परिजन तो हत्यारे हैं. पर यह अभी कैसे मान लिया जाए कि निरुपमा के परिवार का हर शख्स उसकी हत्या में शामिल है?

हम पढ़े लिखे लोग भी वही हरकत कर रहे हैं जो मरीज की मौत पर गांव-देहात से आए गुस्सैल तीमारदार करते हैं, पूरे अस्पताल और अस्पताल के हर कर्मी पर धावा बोल देते हैं, जैसे मरीज की मौत के लिए अस्पताल व वहां मौजूद हर शख्स जिम्मेदार हो. निरुपमा के मामले पर मीडिया ट्रायल बंद करना चाहिए. किसी को हत्यारा मानने-मनवाने के लिए दबाव बनाने की राजनीति भी बंद होनी चाहिए. जांच ईमानदारी से आगे बढ़े और पुलिस मामले में लीपापोती न कर सके, इस पर जरूर नजर रखने की जरूरत है.

और, निरुपमा के परिजन भी चाहते हैं कि इस मामले की जांच सीबीआई से हो. यही मांग प्रियभांशु के पक्ष में खड़े लोग भी कर रहे हैं. तो, पुलिस जांच हो जाने के बाद या पुलिस जांच के दौरान ही, जांच का काम सीबीआई को सौंप देने में कोई बुराई नहीं है. निरुपमा की मौत के तुरंत बाद पैदा हुई भावुक प्रतिक्रिया में कई ऐसी बातें कह दी गईं जिसे कहने से बचना चाहिए था. खासकर तब जबकि जांच शुरू ही न हुई हो और दोषियों की शिनाख्त तक न हुई हो. संभव है कि परिजनों ने निरुपमा की हत्या की हो, पर किस-किस ने की, इसका खुलासा होना अभी बाकी है. उससे पहले सभी को हत्यारा मान लेना गुनाह है. यह भी संभव है कि परिजन हत्या में शामिल न रहे हों, हत्यारे बाहर के हों. यह भी संभव है कि परिवार में कोई एक हत्यार के लिए जिम्मेदार हो और उसने हत्या के लिए बाहर के लोगों को बुलवाया हो. तस्वीर अभी स्पष्ट नहीं है.

बिजनेस स्टैंडर्ड की इसलिए आलोचना जरूर होनी चाहिए कि उसने निरुपमा की मौत की खबर को सिंगल कालम का भी स्पेस नहीं दिया. फिलहाल वो पत्र पढ़िए, जिसे संजय बारू ने बीएस के अपने स्टाफ को मेल किया है.

Message for All BS Staff

As some of you may already know, our dear colleague, Nirupama Pathak, died at Koderma, her home in Jharkhand. She had gone there on a short holiday.  We have  been trying to reach her family since Thursday evening, when we got to know of her death through colleagues. Our contributor in Ranchi got in touch with someone at her Koderma residence on Thursday evening and was told that she had died that morning and that the Police had recorded her death as unusual. We have sent one of our colleagues to Nirupama’s home at Koderma for further information.

Nirupama joined us in Delhi as a sub-editor in April 2009. She was a cheerful and hard-working colleague.  A message of condolence on behalf of all of our colleagues is being sent to the family. In the light of the controversy surrounding her death we shall be monitoring developments closely and respond appropriately. The evening news meeting will observe a minute’s silence as a mark of respect. May her soul rest in peace.

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0 Comments

  1. Dhananjay Jha

    May 20, 2010 at 9:39 am

    Yashwant.. first time aapne Nirupama issue par nishpaksh likha hai
    badhye ho..!!
    Janha tak rahi Business standard ki baat,usski aalochana mai aap phir Hindi mentality dekha diye, har paper ki aapni policy hote hai, aap policy kai liye, kisi ki aalochana nahi kar sakte, its not fair BOSS..!!

  2. satya prakshm

    May 20, 2010 at 11:02 am

    appropriate argument and appropriate suggestion

  3. सुजीत गुप्ता

    May 20, 2010 at 1:31 pm

    बहुत बढ़िया यशवंत जी..

  4. kumar bhawesh

    May 20, 2010 at 1:40 pm

    aaj se pahle aap bhi yahi kar rahe the yashwant bhai, waise badhai ho der aaye durust aaye
    bhawesh

  5. भावेश झा

    May 20, 2010 at 2:28 pm

    अरे मूर्ख यशवंत : संभव है, परिजनों में से कई हत्‍या की साजिश या हत्‍या करने में शामिल न हों – लेकिन फिर वे निरुपमा की हत्‍या से दुखी होकर, आवेश में आकर हत्‍या की साजिश का पर्दाफाश तो कर ही सकते हैं। ऐसा नहीं करते हैं, तो ये क्‍यों न माना जाए कि चुप रहकर वे इस हत्‍या का समर्थन कर रहे हैं और उन्‍हें निरुपमा की हत्‍या से कोई दुख नहीं। इतना तो समझ बेटा।

  6. rajesh patel

    May 20, 2010 at 2:51 pm

    badhayi ho yashwant. media janch agency gayi hai. aisa hona kharab sanket hai.

  7. Raj bairagi

    May 20, 2010 at 5:40 pm

    Bahut saare jaativaadi patrakaro ke dwara gariyaye jaane ke baad lagta hai aap bhi tark ke bahane nispaksh banne ki koshish kar rahe hain. Lag raha pichle likhe ko balance karne ki koshish kar rahe hain. Vicharo me shuddhta zaruri hai.. Saala ye desh aur yahan ke bakchod log kabhi nahi sudhrenge. Waise ye sahi hai ki Kisi ko case poora hone se pehle apraadhi ghosit karna sach me galat hai. Lekin iss case me khuli aankho se makkhi nigalne ko keh rahe hain..

  8. Shalinee

    May 20, 2010 at 6:15 pm

    यशवंत जी इस मुद्दे पर आनंद प्रधान औऱ उनके चट्टे बट्टों की हरकतों पर गौर करने की जरुरत है। कुछ लोग अपने अच्छे भविष्य की कामना में ऐसे लोगों का मोहरा बन रहे हैं। ऐसे में आपने अपने पिछले पोस्ट में जिस ब्लाग का पता दिया था उस पर एक नयी कहानी छपी है,बहुत ही यथार्थपरक। अच्छा होगा कि उस लेख से आप भी भड़ास के पाठकों को रूबरू कराएं :

    “निरुपमा मामला डीजीपी ने खबर का किया खंडन- ”
    http://tutikiawaz.blogspot.com/2010/05/blog-post_19.html

    अफसोस है कि मोहल्ला,विस्फोट के कर्ताधर्ता और तमाम लोग जो नेट के जरिए अपना एजेंडा चला रहे हैं,भड़ास जैसी हिम्मत नहीं दिखा रहे। उनके अनुसार निरुपमा का परिवार ही दोषी है। ये बात कोर्ट मान ले, सरकार मान ले,पूरा देश मान ले।

  9. Neeraj Kumar Mishra

    May 22, 2010 at 3:41 am

    Samajik Byabashtha Ka Ek Galat Namuna Nirpma Hatyakand Hai. Ek Ladki Ke Liye Jis Pita Ke Hirdaya Mein Sada Acchi Bhawana Rahi Aur Use Padha Likhakar Ek Safal Insaan Banana Jiska Uddesya Raha Wahi Beti Apne Pita Ko Kahin Ka Nahi Chorti. Kya Wah Awara Ladka Jisne Hundu Riti Niti Ka Galat Fayada Uthaya Wah Maaf KArne Layak Hai. In Sari Chigon Ka Jar Wahi Awara Ladka hai Jisne Apni Simaon Ka Ullanghan Kiya Aur Ek Ladki Ki Hatya Athwa Atmhatya Karne Par Bibas Kiya.

  10. Haritima

    May 22, 2010 at 8:10 am

    Iimc k logo ne media ka misuse kia hai.apne ko bhagwan maan kuch v karne ki aajadi chahte hai.aisa lagta hai Nirupma kewal Priyabhansu ki niji sampatti thi,anya koi nata uska nahi th.Pragatishilta ka jhanda dhone wale log fascist hai…..

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