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दुख-दर्द

नवनीत सहगल ने धमकाया था निशीथ राय को!

[caption id="attachment_16723" align="alignleft"]नवनीत सहगलनवनीत सहगल[/caption]यूपी शासन के ‘मूक-बधिर-चारण’ अफसरों ने ‘डीएनए’ को सबक सिखाकर अपनी नेता मायावती को दिया जन्मदिन का तोहफा : ‘अखबार को नियंत्रित कर लो अन्यथा जीवन तबाह कर दिया जाएगा…’। यह धमकी दी थी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के सचिव नवनीत सहगल ने। यह खुलासा किया इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित हिंदी दैनिक डेली न्यूज एक्टिविस्ट (डीएनए) के चेयरमैन और मैनेजिंग एडिटर डा. निशीथ राय ने। उन्होंने बताया कि कुछ समय पहले ही नवनीत सहगल उनसे मिले थे और इस तरह की सीधी धमकी उन्हें दी थी। निशीथ राय के मुताबिक उनका आवास खाली कराने के लिए शासन के शीर्ष स्तर से साजिश हुई जिसके सूत्रधार सीनियर आईएएस नवनीत सहगल बने। डा. राय ने यह भी कहा कि बिना अपील का मौका दिए उनसे मकान खाली करवाया गया और यह कार्रवाई शाम पांच बजे के बाद की गई जो कि नियम विरुद्ध है।

नवनीत सहगल

नवनीत सहगलयूपी शासन के ‘मूक-बधिर-चारण’ अफसरों ने ‘डीएनए’ को सबक सिखाकर अपनी नेता मायावती को दिया जन्मदिन का तोहफा : ‘अखबार को नियंत्रित कर लो अन्यथा जीवन तबाह कर दिया जाएगा…’। यह धमकी दी थी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती के सचिव नवनीत सहगल ने। यह खुलासा किया इलाहाबाद और लखनऊ से प्रकाशित हिंदी दैनिक डेली न्यूज एक्टिविस्ट (डीएनए) के चेयरमैन और मैनेजिंग एडिटर डा. निशीथ राय ने। उन्होंने बताया कि कुछ समय पहले ही नवनीत सहगल उनसे मिले थे और इस तरह की सीधी धमकी उन्हें दी थी। निशीथ राय के मुताबिक उनका आवास खाली कराने के लिए शासन के शीर्ष स्तर से साजिश हुई जिसके सूत्रधार सीनियर आईएएस नवनीत सहगल बने। डा. राय ने यह भी कहा कि बिना अपील का मौका दिए उनसे मकान खाली करवाया गया और यह कार्रवाई शाम पांच बजे के बाद की गई जो कि नियम विरुद्ध है।

अरली हियरिंग के नाम पर कोर्ट से गुपचुप तरीके से जो फैसला कराया गया, उसकी कापी तक नहीं दी गई। इस बीच, पता चला है कि मुख्यमंत्री मायावती को जन्मदिन का तोहफा देने के वास्ते बेबाक खबरें प्रकाशित करने से आंखों की किरकिरी बने डीएनए को सबक सिखाने की योजना पहले ही तैयार कर ली गई थी। बड़े स्तर पर की गई साजिश में खुफिया एजेंसियों, पुलिस और न्यायिक अधिकारियों को भी शामिल किया गया। अरली हिरयरिंग का आवेदन डाल फैसला करा लिया गया और फैसले की कापी निशीथ राय तक पहुंचने नहीं दी गई। खुफिया एजेंसियों ने आवास खाली कराने का वह वक्त चुना जब विरोध न्यूनतम हो। निशीथ राय के दिल्ली जाने और घर में सिर्फ उनकी पत्नी अनीता राय के होने की खबर खुफिया एजेंसियों ने शासन के शीर्ष अधिकारियों को दी। बस, उचित मौका देख अफसरों ने धावा बोलने का आदेश दे दिया।

सड़क पर फेंका गया प्रो. निशीथ राय के आवास का सामान.

सरकारी गुंडई का आलम यह था कि आवास खाली कराने के दौरान मकान में अकेले मौजूद उनकी पत्नी अनीता राय के साथ अभद्रता की गई। बिना कोई मौका दिए, उनके घर के सामान को सड़क पर फिंकवा दिया गया। घरेलू सामान की तोड़फोड़ की गई। राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारियों ने श्रीमती अनीता राय को न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए आवास खाली करने की बात कही। उन्होंने कहा कि उनके पति डा. निशीथ राय शहर से बाहर हैं और उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने 28 जनवरी तक स्टे आर्डर का हवाला देते हुए आवास खाली करने से मना कर दिया। इसके बावजूद राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी एवं कर्मचारी जबरन आवास के भीतर घुस गए। भीतर रखा सामान बाहर सड़क पर फेंकने लगे।

सड़क पर फेंका गया प्रो. निशीथ राय के आवास का सामान.

इस कार्रवाई से पशोपेश में आईं श्रीमती राय ने इसकी जानकारी अपने परिजनों एवं रिश्तेदारों समेत अखबारकर्मियों को दी। इस दौरान सारी बातों को अनसुनी करते हुए राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी सामान सड़क पर फिंकवाते रहे। मामला सीधे उपर से जुड़ा होने के कारण उनमें सिर्फ यही धुन थी कि किस तरह आवास के सामान को जल्दी से जल्दी बाहर करवाया जाए। इस एकतरफा कार्रवाई के दौरान बवाल की आशंका को ध्यान में रखते हुए सरकार के इशारे पर यहां भारी पुलिस बल और यहां तक की महिला पुलिसकर्मियों को भी तैनात किया गया था। भारी पुलिसबल देखकर आसपास के लोग भी सकते में थे। मकान खाली कराने के लिए इतनी पुलिस?

शाम होते ही मीडिया के तमाम लोगों का जमावड़ा लग गया। इससे राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी सकते में आ गए और समय का हवाला देते हुए आवास पर ताला डालकर वहां से खिसक लिए। हजरतगंज थाने से आए पुलिसकर्मियों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि उन्हें अचानक राजभवन कालोनी क्यों बुलाया गया? उन्हें बाद में पता चला कि राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी कोई आवास खाली करवा रहे हैं। एक दरोगा ने कहा- इस तरह तो कभी किसी का आवास नहीं खाली कराया गया है।

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0 Comments

  1. kunvar sameer shahi

    January 15, 2010 at 4:03 am

    BHAI SHAB U.P.GOVMENT NE AAPKE SATH JO KUCH KIYA A KOI NAYI BAAT NHI HAI..A KAAM TO SATTADHARI DAL IMANDAR AAUR SACHE LOGO KE SATH HAMESHA SE KARTE AAYE HAI..LEKIN DNA NE SATTA KE KILAPH JO MOVMENT SURU KIYA HAI HAI USME HAM SAB AAPKE SATH HAI..APKO AANYYA KE SAMNE JHUKNE KI JARURAT NHI HAI..DER BHALE HO PR JEET SACH KI HI HOGI…SARKAR SATT KA DURUPUOG KAR KE SACH KO JADA DIN TAK NHI DABA SAKTI HAI..DNA TO SURU SE HI SATTA KO SAHI RAAH DIKHANE KA KAAM KAR RAHA HAI PR SATTA KE MAD ME CHUR IN NETAWO KO SACH KO SUNNE KI HIMMAT NHI HAI..TO HAMARA AAPKA KYA DOSH HAI..PR LOKTANTARA ME HAME APNI BAAT KHANE KA HAQ TO HAI NA ..MANO YA NA MANO AAPKI MARZI..HAMARI SUBHKAMNAYE AAP THA AAPKE PURE PARIWAR KE SATH HAI..
    SAMEER SHAHI..JOURNALIST.

  2. akhil

    January 15, 2010 at 6:39 am

    navneet sarakari gunda hai…jaunpur me dm tha. tbhi usne gundai ki..tamam fariyadiyo ko nyay ke bajay kuchal diya …ab to maya ka karibi hai..kuchh bhi kr sakata hai..lekin eski lagam kasni gogi..garibo ke liye..nyay ke liye..independency ke liye..

  3. Rajesh Kumar

    January 15, 2010 at 6:50 am

    ek bidambana hi hai ki hamare uttar pradesh ki mukhya mantri sushri mayawati jaisa inssan hai jisake sah per insaaniyat ke upar haiwaniyat nanga naach ka khel khela ja raha hai, mai B S P supreemo kathit yaad dilaana chahata hun ki hamara Uttar Pradesh sirf unke wajah se nahin jaana jaata hai, jab se sushree mayawati jee U P ke satta me aayin hain U P ka vikash chetra men graaf girane alava badha nahin, hamare UP ki pahchan hamare un purvajon se hai jo vikash ke bare men aur logon ke hit baare men sochte tthe. na ki kisi jati vishesh ke baare men, aisi karya shaili per mayawati jee ke uper DESH DROH ka mukadma karna chahiye aur kendra sarkar ko chahiye ki sushri mayawati ko C M ki kursi se turant barkhast karane ki pahal suru kar deni chahiye aur sabhi media persan ko yahan per ek jut hokar mayawati ka virodh karna chahiye, aur nisith rai jee ka saath dena chahiye, Rajesh Kumar from Mumbai

  4. D singh

    January 15, 2010 at 7:07 am

    DNA main mayawati ke bare main khoob ulta palta chapta tha.lagta hai ushi ka natija hai ye sab.

  5. Chander Sharma

    January 15, 2010 at 7:34 am

    I was not amused to read the news of the harrassment of Dr. N.Roy, Managing Editor Of Daily News Activist ( When abbreviated often mistaken for Daily News & Analysis – A English daily Of Bhaskar-Zee joint venture). Honestly speaking, such things do happen to all those caring too much for fearless journalism nowadays so rare. Journalists were, are and will be punished ,victimised and subjected to such pressure tactics. Its a part of the media world. All we need to do is to stand up firmly against such tactics. Its not only Mayawati, all the rulers have been resorting to such tactics ever since the advent of media as a vox populi. I was reminded of Mayawati’s threat to the owner of a newspapers in New Delhi in late nineties. It just happaned that journalists attending Mayawati press conference in New Delhi at Kanshi Ram( late) house were mishandled. Almost all the newspapers including the one I was working for front-paged this news item alongwith photographs showing tersely the mishandling of journalists. Infact, the coverage of this mishandling was stretched a bit further.The following day, I was summoned by the Chairman and told in clear terms to stop carrying anything relating to this event. I was told that Mayawati and her supporters had threatened to torch the offices being run by the company running this newspaper.
    Earlier, while working in Maharastra, I was a witness to the severe beating of journalists and photographers in Aurangabad because they dared to boycott the press conference of Sena Pramukh Bal Thakre. The entire journalist
    fraternity of Maharastra had than stood up against Shiv Sena and Bal Thakre had to apologize. The same spirit will have to be shown by our journalist fraternity of UP to stand up againt the pressure tactics of Mayawati government.Going by her arrogant style of functioning, such tactics can follow.
    Chander Sharma,Chandigarh
    09872880146

  6. आवेश तिवारी

    January 15, 2010 at 9:40 am

    भूखे प्रदेश में एक्टिविस्ट का अग्निपथ
    डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट के प्रबंध निदेशक डॉ निशीथ राय के आवास को जबरिया खाली कराना महज एक घटना नहीं है बल्कि ये एक भूखे और बदहाल प्रदेश के मुखिया द्वारा अपने जन्मदिन पर परंपरागत वसूली में सफल न होने से पैदा हुई कुंठा का नतीजा है ,ये वैचारिक स्वतंत्रता के खिलाफ एक आजाद देश में किये जा रहे निरंतर हमलों का एक हिस्सा है ,ये लोकतंत्र में आम आदमी की चीख को रोकने के लिए उसके मुंह में कपडे ठूसे जाने की कोशिश है, मगर ये कोशिश सफल होगी इसमें हमें संदेह है| महत्वपूर्ण है कि एक्टिविस्ट ने ही पिछले वर्ष जन्मदिन पर सरकारी भीखमंगई को लेकर लगातार ख़बरें प्रकाशित की थी, उसी दौरान एक अभियंता की हत्या हुई और मुख्यमंत्री मायावती को मजबूरन अपने जन्मदिन पर वसूली का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा| ठीक उसी दौरान पिछले वर्ष जन्मदिन के मौके पर एक्टिविस्ट ने अपने प्रथम पृष्ठ पर प्रदेश के नौकरशाहों द्वारा मुख्यमंत्री मायावती के चरण स्तुति की सचित्र ख़बरें प्रकाशित की थी ,जिसपर काफी हो हल्ला मचा था|
    इस पूरे मामले की साजिश रचने वाले नवनीत सहगल पहले से ही काफी चर्चाओं में हैं, राज्य संपत्ति विभाग के प्रमुख सचिव और उत्तर प्रदेश पॉवर कारपोरशन के प्रबंध निदेशक सहगल ने अभूतपूर्व बिजली संकट से जूझ रहे प्रदेश में अपने चहेतों को कई तथाकथित तौर से उर्जा सुधार से जुडी तमाम योजनाओं में हिस्सेदारी दी है| सिर्फ इतना ही नहीं सचिव महोदय खुद भी बेनामी तौर पर कई विभागों में ठेकेदारी कर रहे हैं| हमें जानकारी मिली है कि नवनीत सहगल ने मुख्यमंत्री कार्यालय से खुद कहकर आदेश प्राप्त किया और डॉ राय का घर खाली कराये जाने की सूचना मुख्यमंत्री मायावती को प्रेषित की| यह भी जानकारी मिली है कि अदालत से अग्रिम आदेश प्राप्त करने का सारा लहका भी सहगल के चैंबर में पिछले एक सप्ताह से तैयार किया जा रहा था| बसपा सरकार द्वारा मीडिया ख़ास तौर से डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट के खिलाफ योजनाबद्ध हल्ला बोलने की कार्यवाही कोई नयी बात है, सरकार एक्टिविस्ट अखबार को बंद करने की साजिश तो इसके प्रकाशन के पूर्व से ही कर रही है अब सरकार का निशाना अखबार का प्रबंधन और इसके कर्मी भी हैं। प्रभात रंजन दीन जी के सम्पादन में पिछले वर्ष मुख्यमंत्री मायावती के बेहद करीबी माने जाने वाले खनिज मंत्री बाबु सिंह कुशवाहा के सम्बन्ध में कई ख़बरें प्रकाशित हुई थी, जिनमे उसके द्वारा की जाने वाली अरबों रूपए की मनमाना वसूली की चर्चा थी, इस खबर का नतीजा ये हुआ कि मुझे मंत्री के गुंडों ने सरेराह रोक कर कहा कि आपके बारे में सारी जानकारी मंत्री जी के टेबल पर है आपकी माताजी कहाँ रहती हैं आप कि रिश्तेदारी कहां कहां है, अच्छा होगा संभल जाइए. ये बाद की बात है इस तरह की धमकियों ने हमारे हौसले को बढाया, उसे कम नहीं होने दिया| इस घटना के तुरंत बाद एक्टिविस्ट आगरा की संवाददाता छवि मित्तल के परिजनों के खिलाफ एक मामले में सरकारी नुमाइंदों ने जमकर अपना गुस्सा निकाला| ये कुछ घटनाएँ तो महज जीता जागता नमूना है कि उत्तर प्रदेश में किस तरह से निष्पक्ष अखबारों और खबरनवीसों को निशाना बनाया जा रहा है कई घटनाएँ न तो ख़बरें बन पाती है न ही उनकी चर्चा होती है.
    आवेश तिवारी

  7. आवेश तिवारी

    January 15, 2010 at 9:50 am

    एक बात और कहना चाहता हूं कि.. उत्तर प्रदेश की दिक्कत ये है कि यहां अखबारी बनियों के एक बड़ी जमात ने जिन्हें एक्टिविस्ट के संस्थापक सम्पादक प्रभात जी भांड़ कहते हैं, सब गुड़ गोबर कर दिया है. उनके पास न तो सरकारी कृत्यों के खिलाफ आवाज उठाने का असाहस है न ही सामर्थ्य, ये विश्वास करना शायद सबके लिए कठिन हो मगर ये सच है कि कुछ एक अखबारों ने अपने रिपोर्टर्स को बसपा सरकार और बसपा के खिलाफ किसी भी प्रकार की ख़बरें न छपने का आदेश दे रखा है, ये वहीँ लोग हैं जिन्होंने अपने समाचार पत्र में कल की घटना के सम्बन्ध में सिंगल कालम भी खबर प्रकाशित नहीं की है. ये वही लोग हैं जिन्हें अखबार चलने के किये हर साल सरकार करोड़ों रुपए के विज्ञापन मुहैया कराती है. ये वही लोग हैं जिनके दफ्तरों पर जब जी में आता है मुख्यमंत्री हल्ला बोलवा देती हैं। आज जो उत्तर प्रदेश में मीडिया की स्थिति है उसे देखकर ये साफ़ कहा जा सकता है कि अभी तो किसी एक अखबार के खिलाफ भड़ास निकलने के लिए पूरे सरकारी तंत्र को एकजुट होकर अपनी बदनीयती को अंजाम देना पड़ रहा है लेकिन वो दिन दूर नहीं है जब न सिर्फ अखबार बल्कि गाँवों, कस्बों में काम करने वाले अखबारनवीस भी मोहल्ला छाप नेताओं के हाथों पीटे जायेंगे और शायद इसकी शुरुआत हो चुकी है| पिछले एक वर्ष में उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के उत्पीडन के सर्वाधिक मामले सामने आये हैं|
    मुझे एक वाकया याद आता है जो प्रभात जी ने हमें बताया था, एक दिन वो किसी बैठक में गए हुए थे। वहां एक बड़े अखबार के सम्पादक ने उनसे पूछा कि आप पत्रकार है कि एक्टिविस्ट, उन्होंने कहा एक्टिविस्ट, वो पत्रकार ही क्या जो एक्टिविस्ट न हो| ये सच है एक्टिविस्ट से जुड़े लोग पहले एक्टिविस्ट हैं, बाद में जर्नलिस्ट. तमाम चुनौतियों के बावजूद अब तक हार न माने वाला अखबार आगे भी हार नहीं मानेगा| ये सच है कि एक्टिविस्ट द्वारा निरंकुश सत्ता के खिलाफ छेड़े गए इस युद्ध में अपनी कलम को तलवार माने वाले जगंजुओं का एक छोटा लश्कर और अखबार निकलने को धर्म समझने वाले कुछ एक प्रकाशन समूह ही साथ है, मगर ये भी सच है जीत अंततः एक्टिविस्ट की ही होनी है| जूता खाकर जन्मदिन मनाना एक्टिविस्ट कभी स्वीकार नहीं करेगा.

  8. mahendra srivastava

    January 15, 2010 at 11:09 am

    जहां तक मेरा अनुभव है मैं ये बात दावे के साथ कह सकता हूं कि इस घटना के लिए पत्रकार संघर्ष की तैयारी भले न कर रहे हों… लेकिन कुछ पत्रकार इस खाली मकान को अपने नाम कराने के लिए लामबंदी जरूर कर रहे होंगे। अपनी बिरादरी का ये गुण है। ….. मैं ये तो नहीं जानता कि अखबार में क्या खबर छपी.. वो सही थी या गलत… जिस आवास में पत्रकार साथी रह रहे थे उसका आवंटन सही था या गलत.. ये सब बहस मुद्दे हो सकते हैं… लेकिन घर के मुखिया यानि डा. निथीश की गैरमौजूदगी में वहां के अफसरों और पुलिस ने जिस तरह घर खाली कराया है.. ये निंदनीय है..। मै ये कत्तई मानने को तैयार नहीं हूं कि राजधानी लखनऊ में किसी पत्रकार का मकान खाली कराया जाए और इसकी जानकारी मुख्यमंत्री को न हो..। और अगर उनकी जानकारी ये सब हुआ तो ऐसे सूबे और उसकी मुखिया के लिए जितनी कड़े शब्दों में निंदा करनी चाहिए.. कम से कम हम पत्रकार जो शब्दों की कीमत समझते हैं .. ऐसी मुख्यमंत्री पर जाया नहीं करेंगे। जहां तक मैं दुनियादारी को समझता हूं मुझे लगता है कि जिनके पास घर नहीं होते हैं और जीवन बड़े ही फाकाकसी में बीतता है … जब वे घर पा जाते हैं तो उन्हें लगता है कि वो दुनिया के सबसे बड़े बादशाह हैं। चूंकि बिना छत के वो समय बिताए रहते हैं तो उन्हें लगता है कि अगर किसी को परेशान करना हो तो उसकी छत छीन लो।.. शायद लखनऊ में रीता जोशी बहुगुणा के मकान में आग लगाने की घटना रही हो या फिर राय को मकान से बेदखल करने का। बहरहाल भगवान जब किसी को दोनों हांथो से ताकत देता है तो दोनों आंखो से देखता भी है कि कहीं ताकत का बेजा इस्तेमाल तो नहीं हो रहा… फैसला उसी पर छोड़ते हैं…

  9. shahzad ansari

    January 15, 2010 at 2:14 pm

    Dont worry Nishith Ji
    talwar kya uthaunga main apne haath me
    Zalim ko maar dete hain khud uske zulm hee

  10. संजय सिंह

    January 16, 2010 at 7:40 am

    तुम्हारी ही मर्जी का हुक्म दूंगा…
    एक सिक्के के दो पहलू। दोनों का ही स्वरुप एक दूसरे से पूरी तरह से भिन्न। ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ की बात करने वाली उत्तर प्रदेश की मुख्यमन्त्री मायावती ने अपने 54वें जन्मदिन पर गरीबों के लिए योजनाओं के नाम पर सरकारी खजाना खोल दिया। गरीबों को घर भी दिये गये, वहीं उनके जन्मदिन की पूर्व संध्या पर उनकी आंखों की किरकिरी बने हिन्दी दैनिक ‘डेली न्यूज़ ऐक्टिविस्ट’ के चेयरमैन डॉ. निशीथ राय के लखनऊ में राजभवन कालोनी स्थित घर का सामान उनकी अनुपस्थिति में बाहर फेंक दिया जाता है। अपने कायदे अपने नियम बताकर। ये कैसा सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय। वह भी सभ्रान्त नागरिक के साथ ऐसा व्यवहार हमेशा की तरह इस मामले में भी नौकरशाही अपने ग्रेड बढ़ाने में लगी रही। कानून की बेहतरी के लिए बनाये गये जो नियम अक्सर पुलिस वाले अपने बूट के नीचे रौन्द देते हैं, वही खाकी वर्दीधारी ठिठुरती शाम में ऊपर के आदेश का हवाला देते हुए पूरी शिद्दत के साथ डॉ राय के घर का सामान बाहर फेंक रहे थे। ऐसे आदेश पर तो यूपी पुलिस के वक्त से पहले पहुंचने की परम्परा रही है। ये अलग बात है जब अपराध करने वाले भी हाक़िम की सरपरस्ती में हों, तो पुलिस को अढ़ाई कोस चलने में ही सौ दिन लग जाते हैं। उ.प्र कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. रीता बहुगुणा जोशी के घर में आगजनी की घटना ज्यादा पुरानी नहीं हुई…महाभारत में भले ही धृतराष्ट्र ने दु:शासन को द्रौपदी के चीरहरण का स्वयं हुक्म न दिया हो, लेकिन यहां तो माजरा ऐसा ही था। धृतराष्ट्र की भूमिका प्रशासन ने निभायी और दु:शासन की पुलिस ने। लोकतन्त्र के चौथे स्तम्भ कहलाने में खुद पर फक्र करने वाले पत्रकार इस बार भी कलयुग के भीष्म की भूमिका में हैं। आखिर भीष्म की तरह गद्दी पर बैठने वाले के साथ रहने का समर्थन जो किया है। जब सत्ता से लाभ पाने की खुली इच्छा हो, जब सरकारी आवासों से बेघर होने का डर हो, मान्यता को लेकर दिल धक-धक कर रहा हो और मुख्यमन्त्री की प्रेस कांफ्रेस में जाना हो, तो आवाज़ गले तक आते-आते अन्दर ही रह जाती है। छोटी से छोटी ख़बर पर बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड और राजनीति के गलियारों से लेकर खेल व जन्तर-मन्तर और जादू टोने की हवा को बंवडर में तब्दील करने वाले टीवी चैनल की ओवी वैन भी मौके पर नहीं पहुंंची। मुख्यमन्त्री के जन्मदिन पर अख़बार सीएम को बधाई देने वाले विज्ञापनों से भरे पड़े थे। ऐसे में भला सत्ता पक्ष से सीधे-सीधे बैर लेने वाली ख़बर के लिए जगह कहां से होतीर्षोर्षो ठीक ही तो है, `तुम्हारी ही मर्जी का हुक्म दूंगा, ताकि मेरी हुकूमत चलती रहे..´
    मीडिया हाउस के वरिष्ठ सूट पहनकर चेहरे में जबरदस्ती की मुस्कराहट लाये सीएम को उनके जन्मदिन की बधाई देने में लगे थे। कुछ इसी फिराक़ में थे, कि एक बार सीएम उनका चेहरा देख लें। द्रौपदी की चीख और विदुर की दुहाई न तो तब काम आयी थी और न अब। हां तब कान्हा जरुर आये थे द्रौपदी की लाज बचाने को। इस बार कोई हिम्मत जुटा पायेगार्षोर्षो। वैसे इस पूरे घटनाक्रम को लेकर कुछ इस तरह ख्याल आ रहा है-
    `तुम्हारा शहर, तुम्हीं मुद्ई, तुम्ही मुंसिफ, हमें यकीन था हमारा कसूर निकलेगा´।
    संजय सिंह
    (समाचार सम्पादक)
    हिन्दी समाचार एजेन्सी

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