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‘अब चोर भी लेंगे चोरी न करने की कसम!’

: सवाल केवल पेड न्यूज का ही नहीं : चुनावों के समय मीडिया में पेड न्यूज मीडिया के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ी चुनौती है। इसे लेकर आंदोलन कई रूपों में पिछले 40 सालों से चलता रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह कि जो इस कुरीति का विरोध करते हैं, वही पत्रकार जब अपने मीडिया हाऊस में निर्णायक की भूमिका में आते हैं, तो वह भी वही करते हैं जो अन्य करते हैं। इस संदर्भ में कई लोगों का नाम लिया जा सकता है, लेकिन नाम न लेना ही बेहतर होगा। कल पटना के एलएन मिश्रा संस्थान में ‘एंटी पेड न्यूज फ़ोरम’ द्वारा आयोजित ‘एंटी पेड न्यूज महासम्मेलन’ के अवसर पर जो कुछ देखने को मिला, उससे मेरे अनेक विश्वास टूटे। जिन लोगों को मैं आम आदमी मानता था, वे बहुरुपिये निकले।

<p style="text-align: justify;">: <strong>सवाल केवल पेड न्यूज का ही नहीं</strong> : चुनावों के समय मीडिया में पेड न्यूज मीडिया के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ी चुनौती है। इसे लेकर आंदोलन कई रूपों में पिछले 40 सालों से चलता रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह कि जो इस कुरीति का विरोध करते हैं, वही पत्रकार जब अपने मीडिया हाऊस में निर्णायक की भूमिका में आते हैं, तो वह भी वही करते हैं जो अन्य करते हैं। इस संदर्भ में कई लोगों का नाम लिया जा सकता है, लेकिन नाम न लेना ही बेहतर होगा। कल पटना के एलएन मिश्रा संस्थान में 'एंटी पेड न्यूज फ़ोरम' द्वारा आयोजित 'एंटी पेड न्यूज महासम्मेलन' के अवसर पर जो कुछ देखने को मिला, उससे मेरे अनेक विश्वास टूटे। जिन लोगों को मैं आम आदमी मानता था, वे बहुरुपिये निकले।</p> <p>

: सवाल केवल पेड न्यूज का ही नहीं : चुनावों के समय मीडिया में पेड न्यूज मीडिया के अस्तित्व के लिये सबसे बड़ी चुनौती है। इसे लेकर आंदोलन कई रूपों में पिछले 40 सालों से चलता रहा है। सबसे बड़ा आश्चर्य यह कि जो इस कुरीति का विरोध करते हैं, वही पत्रकार जब अपने मीडिया हाऊस में निर्णायक की भूमिका में आते हैं, तो वह भी वही करते हैं जो अन्य करते हैं। इस संदर्भ में कई लोगों का नाम लिया जा सकता है, लेकिन नाम न लेना ही बेहतर होगा। कल पटना के एलएन मिश्रा संस्थान में ‘एंटी पेड न्यूज फ़ोरम’ द्वारा आयोजित ‘एंटी पेड न्यूज महासम्मेलन’ के अवसर पर जो कुछ देखने को मिला, उससे मेरे अनेक विश्वास टूटे। जिन लोगों को मैं आम आदमी मानता था, वे बहुरुपिये निकले।

इनमें सबसे अधिक दुख मुझे प्रो नवल किशोर चौधरी और प्रो विनय कंठ के कारण हुआ। अब तक कई अवसरों पर मैंने इन दोनों को आम आदमी के लिये सत्ता से लड़ते देखा है। कल पहली बार अहसास हुआ कि बिहार में अधिक पढा लिखा और स्वयं को सबसे प्रगतिशील मानने वाला आदमी भी सामंती हो सकता है। दरअसल हुआ यह कि इस कार्यक्रम में लालू प्रसाद और रामविलास पासवान सहित अनेक नेता अपना विचार व्यक्त करने आये। जैसे ही रामविलास पासवान ने बोलना शुरू किया, ये दोनों महानुभाव सभास्थल से निकल गये। यदि स्वभाविक तरीके से जाते तो कोई और बात होती, लेकिन इनके चेहरे पर नफ़रत का भाव स्पष्ट झलक रहा था।

इससे पहले कार्यक्रम के शुरू में ही जब उदघोषक पत्रकार नवेन्दु ने कहा कि इस कार्यक्रम में लालू प्रसाद, राम विलास पासवान और विजय कुमार चौधरी आने वाले हैं, तब सभा स्थल में उपस्थित लगभग सभी पत्रकारों के मुंह से निकला – अब चोर भी लेंगे चोरी न करने की कसम। मैं उनके इस कथन का आशय समझ रहा था। पूर्व मुख्यमंत्री डा जगन्नाथ मिश्रा सहित श्याम रजक और निहोरा यादव जैसे नेता भी ऐसे भागे, मानों लालू प्रसाद नहीं, कोई अछूत अथवा उनका सबसे पराक्रमी दुश्मन आ रहा हो और उसका सामना करना उनके वश में नहीं।

वास्तविकता यह है कि आज भी बिहारी समाज में लालू प्रसाद और रामविलास पासवान अछूत हैं। हर सामंती चाहे वह बुद्धिजीवी हो या फ़िर आम आदमी इन नेताओं से दूर रहना चाहता है और इनके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता है। इस रोग से मीडिया भी ग्रसित है। इसलिये केवल पेड न्यूज का विरोध करने का सवाल ही नहीं है, बल्कि यह तो इससे भी बड़ा सवाल है। अस्पृश्यता और भेदभाव का।

नवल किशोर कुमार (साभार- अपना बिहार)

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0 Comments

  1. xyz

    August 29, 2010 at 8:05 am

    Bada bachkaana bayaan aap ka hai . hansi bhi aayee aur taras bhi ! Aap ne kaha — वास्तविकता यह है कि आज भी बिहारी समाज में लालू प्रसाद और रामविलास पासवान अछूत हैं। हर सामंती चाहे वह बुद्धिजीवी हो या फ़िर आम आदमी इन नेताओं से दूर रहना चाहता है और इनके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता है——- . Kya aap bhul gaye ki Laalu jee ne 15 saal Bihar par raaj kiya ! agar aap ko ye yaad hai , to kya aap ye kahna chaahte hain ki Lalu ne janta ke samarthan se nahi , balki zabardasti BOOTH CAPTURING KE ZARIYE raaj kiya ? Khair ! Aap heen bhaawana se grast lagte hain , warnaa Lalu jee ke 15 saalon ke raaj ko yaad Zarur rakhte aur shaayad phir ye nahi kahte ki — वास्तविकता यह है कि आज भी बिहारी समाज में लालू प्रसाद और रामविलास पासवान अछूत हैं। हर सामंती चाहे वह बुद्धिजीवी हो या फ़िर आम आदमी इन नेताओं से दूर रहना चाहता है और इनके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता है।

  2. santosh

    August 30, 2010 at 2:34 am

    नवल किशोर जी लालू और रामविलास की कारगुजारी से पूरा बिहार त्रस्त है, यही लालू है जिसने सार्वजनिक मंच से कहा था भूराबाल साफ करों,यही रामविलास पासवान है जो राज नेता होते हुए भी सर्व समाज की जगह समाज को दलित ,मुस्लिम में बांटता है , यहीं लोग है जो बिहार की छवी को धूल -धूसरीत किया , भाई साबह बिहार की छवी इनकी ही बनाई हुई है, भूल गए क्या –क्या नहीं किया लालू ने अपने शासन काल में ,केवल बिहार की प्रगति के लिए कुछ नही कर पाए , महोदय एसे लोगो का तो समाज से वहिष्कार किया जाना चाहिए । हलां की जगर्नाथ मिश्र की छवी स्वच्छ नही रही है पर एसे नेताओ की वहिष्कार जरुरी है इसमें जाती धर्म का कोई लेना देना नहीं है ।सोच को सुधारे ,जाती को गौरव का विषय बनाले रोने –धोने और आरोप प्रत्यारोप के कुछ नहीं होगा –साधूबाद

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