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ये अंगुली कटा कर शहीद कहाने वाले

: हेडलाइंस टुडे पर कथित हमला : भोपाल में एक थे (पता नहीं अब हैं या नहीं) राजा बुन्देला. उनकी एक कथित फिल्म थी ‘प्रथा’. फिल्म में तथाकथित तौर पर हिंदू भावनाओं को भड़काने का मसाला था, जैसा कि बुंदेला जी का स्वयम्भू मानना था. लेकिन सवाल है कि दर्शक का जुगाड कैसे हो? अच्छी-भली फिल्मों को तो दर्शकों का टोटा झेलना पड़ता है या क्या-क्या ना सहना और झेलना पड़ता है तो आखिर ‘बुंदेलों-हरबोलों’ के मुंह कही कहानी सुनने की फुर्सत आजकल किसे?

<p style="text-align: justify;">: <strong>हेडलाइंस टुडे पर कथित हमला</strong> : भोपाल में एक थे (पता नहीं अब हैं या नहीं) राजा बुन्देला. उनकी एक कथित फिल्म थी ‘प्रथा’. फिल्म में तथाकथित तौर पर हिंदू भावनाओं को भड़काने का मसाला था, जैसा कि बुंदेला जी का स्वयम्भू मानना था. लेकिन सवाल है कि दर्शक का जुगाड कैसे हो? अच्छी-भली फिल्मों को तो दर्शकों का टोटा झेलना पड़ता है या क्या-क्या ना सहना और झेलना पड़ता है तो आखिर ‘बुंदेलों-हरबोलों’ के मुंह कही कहानी सुनने की फुर्सत आजकल किसे?</p> <p>

: हेडलाइंस टुडे पर कथित हमला : भोपाल में एक थे (पता नहीं अब हैं या नहीं) राजा बुन्देला. उनकी एक कथित फिल्म थी ‘प्रथा’. फिल्म में तथाकथित तौर पर हिंदू भावनाओं को भड़काने का मसाला था, जैसा कि बुंदेला जी का स्वयम्भू मानना था. लेकिन सवाल है कि दर्शक का जुगाड कैसे हो? अच्छी-भली फिल्मों को तो दर्शकों का टोटा झेलना पड़ता है या क्या-क्या ना सहना और झेलना पड़ता है तो आखिर ‘बुंदेलों-हरबोलों’ के मुंह कही कहानी सुनने की फुर्सत आजकल किसे?

तो फिर शुरू हुआ फिल्म को धाँसू बनाने के लिए हथकंडों का दौर. कुछ ‘बजरंगियों’ को किराए पर लिया गया. पहले ही शो में बिना फिल्म देखे ही प्रदर्शन करवाया गया. बुन्देला जी के कपडे फाड़े गए. कुछ लात-मुक्के प्रायोजित हुए. लेकिन पोल खुल गयी. अंततः निर्माता महोदय को पुलिस का चक्कर लगाना पड़ा. खुद भी पिटे, भद्द भी पिटी और फिल्म को तो खैर पिटना ही था.

तो ‘प्रथा’ के निर्देशक भले ही इस हथकंडे में मुंहकी खा गए हों. लेकिन फिल्म पब्लिसिटी का यह तरीका आजमाए हुए नुस्खों में से एक है. अब ऐसा लगता है कि टीआरपी के भूखे मीडिया संस्थान ने भी इसी तरह से अपना प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया है. अभी बात बिना दर्शक के चलने वाले एक अंग्रेज़ी चैनल पर संघ के स्वयंसेवकों द्वारा किये गए कथित हमले की हो रही है. अगर हमला वास्तविक था तो सही में लोकतंत्र में ऐसे हमलों की भर्त्सना होनी चाहिए. असामाजिक तत्वों को दण्डित भी किया जाना चाहिए. इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले के रूप में निरूपित किये जाने में भी कोई हर्ज नहीं है. लेकिन अगर आप कुछ चीज़ों पर गौर करेंगे तो लगेगा की कहानी शायद ‘प्रथा’ जैसी ही है.

अव्वल तो यह कि वह चैनल कोई ऐसा नहीं है जिसकी रिपोर्ट देखकर कोई फर्क पड़े किसी को क्योंकि किसी को देखना ही नहीं है वह चैनल. दूसरा यह कि अगर आप चैनल द्वारा दिखाए जा रहे फुटेज पर गौर करेंगे तो लगेगा कि हल्ला-हंगामा भले ही लोग कर रहे हों. वंदे-मातरम का नारा भी लगा रहे हों, लेकिन किसी तरह का कोई तोड़-फोड हुआ हो, ऐसा दिख नहीं रहा था. उसके अलावे जब चैनल पर कोई हमला हो तो वहां भगदड़ की स्थिति होगी. लेकिन ऐसा लग रहा था कि कैमरा वाले अपना-अपना पोजीशन लेकर बैठे हैं और बाकी किसी भी कर्मियों का कोई ठिकाना नहीं. बस कुछ उपद्रवी जैसे दिखते चेहरे और चंद नारे.

अभी पढ़ रहा था कि विदेश में किसी बैठक में इस चैनल के संपादक को सबसे निचले पायदान पर होने के कारण काफी लताड़ा गया था और चैनल को चर्चित करने की कोई योजना बनायी गयी थी. यह और तब देखने में मिला जब इसी के सहयोगी हिन्दी चैनल ने हाल ही में सरे-आम अपने महिला रिपोर्टरों को अत्यल्प कपड़ों में दिल्ली की सड़क पर जहां-तहां खड़ा किया, यह दिखाने के लिए कि महानगर के मर्द किस तरह लड़कियों को घूरते हैं. तो अगर एक अच्छा ख़ासा चलते हिन्दी चैनल को, जिसके अपने दर्शक भी हैं और अपनी पहचान भी, उसे जब दौड़ में बने रहने के लिए ऐसे अनैतिक हथकंडे अपनाने पड़ सकते हैं तो आखिर क्यूंकर उसके अल्प देखित चैनल पर भरोसा किया जाय?

हां, इस मामले में तुरत-फुरत संघ के प्रवक्ता कहे जाने वाले हस्ती का बयान ज़रूर घटना पर मुहर लगाता लगा. लेकिन जैसा कि सबको मालूम है कि उस चैनल में संघ के स्वयंसेवकों की भरमार है. कई के अभी-भी संघ से मधुर सम्बन्ध हैं. अतः अगर सब कुछ प्रायोजित जैसा ही होना था तो इस छोटे से प्रायोजन को क्यूं नहीं किया जा सकता?

बहरहाल….अगर वास्तव में यह हमला पूर्व-नियोजित मिलीभगत का परिणाम नहीं है तो ज़रूर इसकी निंदा की जाय. लेकिन अगर यह वैसा ही हो जैसा की ऊपर वर्णित किया गया है तो उच्चस्तरीय जांच करवा कर लोगों को बेवकूफ बनाने के धंधे पर विराम की ज़रूरत है. ताकि आगे से इस तरह की हरकत करने का हिमाकत कोई संस्थान या व्यक्ति कभी ना कर पाए.

लेखक पंकज कुमार झा रायपुर से प्रकाशिक मैग्जीन ‘दीप कमल’ के संपादक हैं.

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0 Comments

  1. saleem malik

    July 17, 2010 at 12:44 pm

    baat me vajan he, lekin bheriyadhamaal me kon sochta he.

  2. ajay golhani, nagpur

    July 17, 2010 at 4:03 pm

    hamare desh mein bade bade ghotalon ki Janch nahi ho pati… phir bhala is mamle ki kya hogi…

  3. girish pankaj

    July 17, 2010 at 5:13 pm

    santulit vishleshan hai yah. aaj kal prachar pane ke liye kuchh bhi kiya-karaya ja sakata hai.

  4. girish pankaj

    July 17, 2010 at 5:14 pm

    aajkl kuchh bhi ho saktaa hai.prachar ke liye. 🙂

  5. DEEPAK MHASKEY

    July 18, 2010 at 5:35 am

    T.R.P. KI RACE ME AB TO AAM ADMI BHI DARNE LAGA HAI KI KISI STORY VISHESH KE LIYE USKI IZZAT HI DANV PAR NA LAGA DI JAY.KANHI TO MEDIA KO PUNARAVLOKAN KARNA HOGA . AGAR ISI TARAH CHALTA RAHA TO ELCTRONIC MEDIA SE LOGO KA VISHVAS PURI TARAH HAT JAYEGA. SWASTH VICHAR WALE ELECTRONIC MEDIA WALO KO IS TARAH KE SAMACHARO KA VIRODH KARNA CHAHIYE .

  6. chandra prakash jain, raipur

    July 18, 2010 at 6:38 am

    pankajji,
    ham sabne tv par hamla hote dekha hai. log kanch tod rahe hai. iske baad bhi agar, magar, yadi jaise shabd lagakar hamlawaro ko bachane ki koshish uchit nahi kahi ja sakti.
    chandra prakash jain, raipur.

  7. Jeet Bhargava

    July 18, 2010 at 8:49 am

    Bhai Ye Mediyaa Vaale Isi Laayak Hain. Kyonki Vo Ektarafaa Reporting Karte Hain.
    http://www.secular-drama.blogspot.com

  8. Ashish Jha

    July 18, 2010 at 4:53 pm

    Nice article, showing the secret of media.

  9. Ashish Jha

    July 18, 2010 at 4:54 pm

    nice article.

  10. jagmohan sharma

    July 18, 2010 at 5:46 pm

    bahut accha bhai…….khoob….is chitkut ko gatter main dal do

  11. winit

    July 19, 2010 at 8:05 am

    कांग्रेस शाषित और गृह मंत्रालय कि सुरक्षा के अधीन राजधानी दिल्ली के ह्रदयस्थली में स्थित इस मरणासन्न TRP वाले चैनल पर हुए हमले को पुलिस अगर मूक दर्शक बन कर देखती रहे ,वो भी तब जब उसे RSS के इस प्रदर्शन की पूर्व जांनकारी हो, तो क्या ये सामान्य बात है, हमले के दौरान हुई तोड़-फोड को फिल्माते कैमरों को या स्टाफ सदस्यों से कोई दुर्व्यवहार ना होना, …….अजीब नहीं लगता क्या ?? चैनल तो अवसरवादी पत्रकारों और नेताओ के मुह में जुबान देकर सुलह का सफ़ेद झंडा लेके खड़ा हो गया… लेकिन भाई लोग मुह कि खुजली मिटाने से बाज़ नहीं आ रहे…अगर पूछे तो 90% लोगों ने headlines Today कि इस विवादस्पद रिपोर्ट को देखे भी नहीं होंगे, लेकिन हवा में गदा भांजने का मौका क्यों छोड़े भला???
    —विनीत—-
    swen news – newzone broadcom p ltd

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