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‘मैं अपने बॉस से परेशान-दुखी हूं, मदद करें’

दिल्ली हो या बरेली, लखनऊ हो या बेंगलुरू, हर जगह पत्रकार अपने बॉसेज से परेशान हैं. जागरण हो या उजाला, हिंदुस्तान हो या पत्रिका या फिर भास्कर, हर अखबार में कई बॉस अपने अधीनस्थों के लिए बेहद बुरे आदमी साबित हो रहे हैं. ताजा मामला पत्रिका, बेंगलूरु का है. वहां काम करने वाली एक रिपोर्टर ने अपने ग्रुप एडिटर भुवनेश जैन को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा के बारे में बताया है. इस पत्र को पढ़कर आप अखबारों में अंदर के हालात का अंदाजा लगा सकते हैं. -एडिटर, भड़ास4मीडिया

<p style="text-align: justify;">दिल्ली हो या बरेली, लखनऊ हो या बेंगलुरू, हर जगह पत्रकार अपने बॉसेज से परेशान हैं. जागरण हो या उजाला, हिंदुस्तान हो या पत्रिका या फिर भास्कर, हर अखबार में कई बॉस अपने अधीनस्थों के लिए बेहद बुरे आदमी साबित हो रहे हैं. ताजा मामला पत्रिका, बेंगलूरु का है. वहां काम करने वाली एक रिपोर्टर ने अपने ग्रुप एडिटर भुवनेश जैन को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा के बारे में बताया है. इस पत्र को पढ़कर आप अखबारों में अंदर के हालात का अंदाजा लगा सकते हैं.<strong> -एडिटर, भड़ास4मीडिया</strong></p> <p>

दिल्ली हो या बरेली, लखनऊ हो या बेंगलुरू, हर जगह पत्रकार अपने बॉसेज से परेशान हैं. जागरण हो या उजाला, हिंदुस्तान हो या पत्रिका या फिर भास्कर, हर अखबार में कई बॉस अपने अधीनस्थों के लिए बेहद बुरे आदमी साबित हो रहे हैं. ताजा मामला पत्रिका, बेंगलूरु का है. वहां काम करने वाली एक रिपोर्टर ने अपने ग्रुप एडिटर भुवनेश जैन को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा के बारे में बताया है. इस पत्र को पढ़कर आप अखबारों में अंदर के हालात का अंदाजा लगा सकते हैं. -एडिटर, भड़ास4मीडिया

बॉस ने आफिस को कर्मभूमि की बजाय युद्धभूमि बना रखा है

आदरणीय भुवनेश जैन जी,

डिप्टी एडिटर,

राजस्थान पत्रिका समूह,

जयपुर,

राजस्थान

मान्यवर,

फोन पर हरीश पराशर जी, गोविंद चतुर्वेदी जी एवं आपसे हुई बातचीत के अनुसार आपको यह शिकायती पत्र लिख रही हूं। इसके जरिए मैं (शुभम शरण) आपको मेरे साथ यहां हो रहे पर कार्यालयिक अन्याय से अवगत कराने का प्रयास कर रही हूं। यहां ‘बेंगलूरु संस्करण’ के मुखिया तथा स्थानीय संपादकजी के वरदहस्त प्राप्त अमित श्रीवास्तव जी की मेरे प्रति की जा रही कारगुजारियों व व्यवहार से मेरा न केवल कार्यालय आना मुश्किल हो गया है बल्कि इस माहौल में मेरा सांस लेना भी कठिन होता जा रहा है। मेरे प्रति उनकी ओर से रखी जा रही दुर्भावनाओं का आलम यह है कि यहां कार्यालय में सबके सामने नीचा दिखाते हैं और अभद्र भाषा और भद्दे शब्दों के जरिए मेरे स्वाभिमान को भी चोट पहुंचाते हैं। साथ ही मेरे व्यक्तिगत मामलों में भी दखलअंदाजी करते हैं।

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श्रीवास्तव ने मेरे कम्प्यूटर से इंटरनेट हटा दिया है और मुझ पर गलत इल्जाम लगाकर सबके सामने अपमानित किया है जो मैं सह नहीं पा रही हूं। मुझे कई बार उन्होंने कार्यालय और कार्यालय के बाहर गंदे और अभद्र भाषा में अपमानित कर परेशान किया है। कार्यालय में कई बार मेरे कम्प्यूटर के पास आकर मेरे हाथ से जबरदस्ती माउस छीन लिया करते हैं। जब उन्हें मना किया तो उन्होंने धमकी दी और कहा कि अब से तुम्हारे कम्प्यूटर से इंटरनेट की सुविधा हटा दूंगा। उन्होंने यहां हर एक कर्मचारी को अपने वश में कर रखा है चाहे वह कर्मचारी तकनीकी विभाग हो या स्थानीय उच्च पद के अधिकारी हों।

मान्यवर, ऐसे माहौल ने मुझे मानसिक रूप से बहुत परेशान कर दिया है। मेरी स्टोरीज में खामी निकालना तो उनकी आदत बन चुकी है। जब बात ने गंभीर रूप ले लिया तो मैंने इस बात की जानकारी संपादकीय प्रभारी नंद किशोर तिवारी जी को भी दी किन्तु उन्होंने कभी कोई कार्रवाई करने की आवश्यकता महसूस नहीं की। मान्यवर, मैंने कई बार श्रीवास्तव को समझाने का प्रयास किया लेकिन उनके पल्ले बात नहीं पड़ी। यहां हर एक कर्मचारी उनकी हरकतों से भली भांति वाकिफ है पर नौकरी चले जाने की डर से कोई इनके खिलाफ आवाज नहीं उठाता और खामोशी से अत्याचार सहते हैं। मैं मानती हूं कि मेरी कॉपी में गलतियां जाती हैं, इसके बावजूद इतनी एक्सक्लूसिव और बाई लाइन न्यूज़ मिली हैं, जो मेरी काबिलियत का सबूत है।

उन्होंने गलत व्यवहार कर एक लड़की होने का फायदा उठाना चाहा। आप ही बताएं कि ये बातें मैं कैसे सहन कर सकती हूं। वैसे तो यहां स्थानीय संपादक जी मौजूद हैं किन्तु सारा कार्य भार अमित श्रीवास्तव ही उठाया करते हैं। वो सिर्फ अपनी मनमर्जी से इस संस्करण को चलाने का प्रयास कर रहे हैं। इनके इस व्यवहार से परेशान होकर न जाने कितने कर्मचारियों का तबादला हुआ और कितने पलायित हो गए। शायद भविष्य में भी कुछ और यहां से जा सकते हैं। अमित श्रीवास्तव ने इस कार्यालय को ‘कर्म भूमि’ नहीं बल्कि ‘युद्ध भूमि’ बना दिया है।

साहब, मैं मानसिक रूप से बेहद परेशान और दूखी हूं। कृपया मेरी मदद कीजिए। मुझे यहां उत्पीड़न से गुजरना पड़ता है जिसका असर मेरी सेहत पर भी पड़ रहा है। मैं इस संस्थान में पिछले दो सालों से कार्यारत हूं किन्तु अब स्थिति मुझे कमजोर कर रही है। सर, अपनी परेशानी यदि मैं अपने उच्च अधिकारियों को न बताउं तो किसे बताउं।

जब आज फिर से तिवारीजी (जनरल मैनेजर) को बताया तो उन्होंने कहा कि जो अमितजी कर रहे वो सब ठीक हैं। ख़ैर, आप साहब हैं, उच्च अधिकारी हैं, मैं सिर्फ आपसे निवेदन कर सकती हूं, कार्रवाई तो आप ही को करना है, चाहे वो मेरे खिलाफ हो या फिर किसी और के। इन हालात को देखकर मैंने कुछ दिनों क़ी छुट्टी ली है। उम्मीद है कि मेरे वापस कार्यालय आने से पहले सबकुछ ठीक हो जाएगा।

प्रार्थी

शुभम शरण

संवाददाता

सम्पादकीय विभाग

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बेंगलूरु

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0 Comments

  1. BENAM

    September 17, 2010 at 7:01 am

    Shubham Ji,
    Jarur ye Amit patrika ki Dharohar hoga…. Patrika me DHAROHARO ki harkate aisi hi hoti hai……
    Kher Dekhiye shayad Sri Bhuvnesh ji aapki vyatha se vyathit ho n kuch action le !!!!!!

  2. Benam2

    September 17, 2010 at 1:00 pm

    Looks like an employee is trying to hide her inefficiencies. And taking advantage of her gender!!!

  3. SSS

    September 17, 2010 at 1:43 pm

    माननीय यशवंत भाई
    मैं यह तो यह नहीं जानता कि इस महिला रिपोर्टर के साथ उस कथित सम्पादकीय प्रभारी ने क्या किया होगा कि नौबत यहां तक आ गई कि घर की बात गलियों,चौराहों तक पहुंच गई। लेकिन इतना जरुर जानता हूं कि जब तक पत्रिका में अमित श्रीवास्तव जैसे घटिया मानसिकता वाले स्वयं भू पत्रकार रहेंगे,इस बैनर का नाम डूब जाएगा। इसका सबूत देने की जरुरत नहीं है लेकिन मैं भी अमित का दंश झेल चुका हूं। बात उस समय की है जब मुझे भी बेंगलूरु पत्रिका संस्करण में कुछ समय के लिए काम करने का कड़वा अनुभव है। और आपने मेरे पत्रिका छोडऩे की खबर भी प्रकाशित की थी जिसमें यह लिखा गया था कि एसएसएस ये मेरा नाम है,को पत्रिका से निकाल दिया गया,जबकि हकीकत यह थी कि मुझे निकाला नहीं बल्कि मैंने अमित व उसके बॉस,जो मेरे भी बोस थे,की कारगुजारियों से तंग आकर मजबूरी में संस्थान को बाय बाय कह दिया। पत्रिका कतई बुरा नहीं बल्कि इस संस्थान में घुसे कम हिन्दी ज्ञान व पत्रकारिता का ककहरा भी नहीं जानने वाले लोग आ जाते हैं तो मोठ के साथ घुन भी पिसता है। बात केवल मुझ तक सीमित नहीं रही। मेरे समय में काम करने वालों में मेरे साथी अभिनव सिन्हा,प्रेम मीणा,पवन राणा,अतुल चतुर्वेदी सहित एक दो और भी साथी थे,क्षमा कीजिएगा में उनके नाम भूल गया हूं,जिनको मजबूरन नौकरी छोडऩी पड़ी। इन दोनों ने सम्पादकीय टीम को इतना टॉचर्र किया कि बस कहने और करने को बाकी कुछ नहीं रह गया था। यशवंत भाई मैंने एक दो बार पत्रिका में नौकरी छोडऩे के बाद सम्पर्क किया तो पता चला कि आज भी अमित का आतंक वैसा ही चल रहा है जैसा पहले चल रहा था। और अब उसका शिकार बनी है शुभम। बताया जाता है कि एक समय में ये खुद इसकी खबरें बनाकर बाई लाइन देते थे।…समय रहते पत्रिका प्रबंधन ने इन दो घुणों को किनारे नहीं किया तो भई भगवान ही मालिक है…….

  4. Message in enough

    September 17, 2010 at 1:48 pm

    Kuch bhi kar lo patrika wale ese logon ko nahi nikal sakte. ye to kuch bhi nahi hai Amit ji ne to ese ese kam kiye hain jinki bhank bahar walon ko lag jaye to bangalore hi nahi desh bhar main aag la jaye…..

  5. akash rai

    September 17, 2010 at 4:02 pm

    sir , bhuvnesh ji , aap se ummed hai patrika samuh grup ke sath is tarh ke aropo
    per kuch action lege

  6. Pa.....

    September 18, 2010 at 8:23 am

    कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है और वह वक्त सभी घाव भर देता है। पत्रिका में प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में काम करते समय अमित श्रीवास्तव ने जो जख्म मुझे दिए वो अब भर चुके हैं लेकिन इन खबरों को पढ़कर मुझे उन दिनों की याद आ गई जब मैंने अपना घर बार छोड़कर बेंगलौर पढऩे गई और वहां पाठ्यक्रम पूरा करने के साथ-साथ पत्रिका बेंगलौर में कुछ समय के लिए काम किया। हालांकि मैंने मीडिया कोर्स के साथ पत्रकारिता का ककहरा सीखने की शुरुआत भी पत्रिका से की लेकिन वहां मुझे जितना मार्गदर्शन मिलना था वो तो मिला नहीं हो इतना जरुर है कि वहां प्रताडऩा जरुर मिलती,वो भी हर रोज। एक वो समय था जब ऑफिस में केवल एक दो लोगों की ही तूती बोलती थी जिसमें कुछ ऐसे लोग भी अब शामिल हैं जिन्होंने अब यह मुद्दा ऐसे समय में उठाया है जब उनके साथ भी कुछ ऐसा ही होने लगा जैसा वो कभी मेरे साथ करते थे।हालांकि मेरी कोई पहचान नहीं थी इस क्षेत्र में मेरा कोई ज्यादा अनुभव नहीं था और ना ही मेरी पहचान थी किसी बड़े अधिकारी से,जो मैं शिकायत कर पाती। खैर मैंने अमित श्रीवास्तव के इशारे पर माननीय सम्पादकीय प्रभारी द्वारा मुझे काम पर नहीं रखने की बात कहने के बाद वापस अपने प्रदेश का रुख किया और यहां आराम से काम कर रही हूं। मेरा इतना सा मत है कि मीडिया में ऐसे लोगों की मौजूदगी का मतलब ऐसे ही हुआ जैसे गुंडों को पुलिस में भर्ती कर लेना। जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो क्या कहना?

  7. Shubhchintak

    September 18, 2010 at 10:03 am

    Arrre jo hota aayaa hai wo to hota hi rahega..par waha pe baithe log noukri ke naam apna swabhemaan daaw par lagaa rahe hai. ab sawal ek ladki ya ladke ka nahee banta par kisi se sawabhemaan kee baat aa gai hai…sharm to waha baithe dusre karmchario ko honi chaiye jo baithakar tamashaa dekh rahe the. waise is ladki ne itni himmat to dekhi ki aage aakar ladai ladi par baki k log to muhh hi dekhte rah gaye…chuki kabhi mai bhe waha ka hissa tha to pata hai ki kya stheti paida hui hogi…
    Shubham ji aap mat ghabraiye..humsab aapke sath hai..aur aisi naukri karne me agar aapko aab bhi man kar raha hai to phir bhagwan hi aapka malik hai.PAHLE IZZAT AUR SWABHEMAAN AATA HAI BAAD ME NAUKRI.ye baat yaad ralhiyega..jo kisi se darta nai wo hameshaa aage badhta hai… All the Best 🙂

  8. yes

    September 18, 2010 at 2:41 pm

    ase boos media men lag bhag har bade channal men mel jayege jo harami hain..jinki bajah se midiya man log aana nahi chate ase boos channal ko apne bap ki jagir samjte hain enki leye jetne gali lekhe jay kam hai……..

  9. harpreet singh

    September 19, 2010 at 2:12 pm

    main bhi bahut tang agya tha apne boss se tu muje chodna pada ludhiana se dainik jagran ko mera boss itna lalchi ho gaya tha ki meri sonwai bhi nahi ho rahi thi uper thak ludhiana mein dainik jagran mein photographer ke kam kara tha jab se yeh lalchi chief repoter manoj thirpathi jalandher se aya isne jina harm kar diya.ek spot mein mera camra tut gaya or isne party se paise laker kha gaya muje ke mila nukri se jawab yeh hai mehnat ka natiza

  10. अमित गर्ग. जयपुर. राजस्थान.

    September 20, 2010 at 7:40 am

    ये पत्र तो हमें लिखना चाहिए था क्योंकि हमसे ज्यादा इस शख्स से परेशान शायद ही कोई और साथी रहे होंगे। ये बात हमारे साथ वहां कार्यरत साथी भी भली-भांति जानते हैं। हमने संस्थानिक स्तर पर अपनी पीड़ा से अवगत भी कराया था लेकिन चहेता होना ही बचाव के लिए ढाल का काम करता है। वैसे इस शख्स की पूर्व में भी कई बार शिकायतें हो चुकी हैं, जिन पर कोई कार्रवाई नहीं होने से इनके हौंसले बुलंद हैं। परिणामस्वरूप अब तो ये भी मानते हैं कि इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ऐसे ही पत्र के जरिए हम भी अपने साथियों से नौकरी छोड़ते वक्त जो तकलीफ हमारे दिल को हुई उसे बांट लेते तो शायद आज जो दिल का बोझ है वह बहुत हल्का होता। पत्रिका, बेंगलूरु में डेढ़ वर्ष काम करने के दौरान हम भी इस प्रकार की स्थिति से दो-चार हुए। इसका समय पर प्रतिकार करते तो जितना समय तनाव में घुट-घुटकर बिताया उतना ना बिताया होता। शायद जितने समय तनाव में नौकरी की उसमें कमी आ जाती। इसमें कोई शक नहीं है कि वहां कुछ साथी बेहद प्रतिभाशाली हैं लेकिन दूसरों के प्रति रखी जाने वाली कुंठित सोच और उनके प्रति किया जाने वाला अमानवीय व्यवहार उनकी प्रतिभा पर हावी है। लोग भूल जाते हैं कि किसी कर्मचारी की नौकरी से उसके तथा उसके परिवारवालों का भरण-पोषण होता है। ऐसे में किसी के साथ अन्याय होना अथवा करना उसके परिवार के साथ भी अन्याय करना है। लोगों को किसी को परेशान करने अथवा उसकी नौकरी को कठिन बनाने में क्या मजा आता है, ये वे हीं जानें। लेकिन सच्चाई यह है कि भगवान श्रीकृष्ण ने जिसका जितना दाना-पानी जहां लिखा है उसे कोई नहीं छीन सकता। खैर, जिसके साथ अन्याय होता है उसका दर्द तो वो ही समझ सकता है। यूं तो सभी की कश्ती एक ना एक दिन किनारे से लग ही जानी है। लेकिन बेमन से नौकरी छोडऩा बहुत तकलीफदेय होता है। बेंगलूरु में हमारे पूर्व तथा वर्तमान साथियों की तरह हमारा भी जमकर अपमान हुआ लेकिन, हमें लगता है कि शायद हमारी किस्मत में यही लिखा था। अन्याय सहना तथा हर बार व्यवस्था से समझौता करना हमारे वश में नहीं था, सो नौकरी छोड़ दी। कहीं ना कहीं अन्याय करने वाले लोगों को बढ़ावा अन्याय सहने वाले लोग ही दे रहे हैं। लेकिन, अब लगता है कि मोह-बंधन से मुक्त होकर प्रतिकार करना बहुत जरूरी है। संकुचित व्यवस्था तथा दोषी लोगों के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है नहीं तो ढर्रे में बदलाव नहीं लाया जा सकेगा। मेरी मां हमेशा कहती हैं कि किसी का दिल मत दुखाओ और ना ही कभी अपने जीवन के संघर्ष के शुरुआती दिनों को भूलो। अगर तुमने किसी के साथ बुरा नहीं किया है तो तुम्हारा भी बुरा नहीं होगा। ये जरूर है कि खुदा कुछ समय तुम्हारा और तुम्हारी अच्छाई का इम्तिहान ले और तुम्हें कुछ समय अत्यंत तकलीफों का सामना करना पड़े।

  11. nandita

    September 20, 2010 at 7:47 am

    it is definetly an inefficient employee.and it is a shame that girls are trying t hide their inefficient behaviour under wraps of harrassement.if u can’t gve ur 100% to wrk why don’t u sit at home.

  12. atul chaturvedi

    September 21, 2010 at 6:41 am

    यशवंत जी,
    जैसा कि आप जानते हैं कि मैं भी राजस्थान पत्रिका का हिस्सा रहा हूं। लेकिन जो अंधेर वहां देखी है, शायद दूसरे संस्थानों में हो। मिस्टर अमित श्रीवास्तव शुरु से ही विवादों में रहे हैं, कई शिकायतें प्रबंधन के पास आज भी हैं। इनमें कुरान पर थूकने का मामला तो आलाकमान तक गया लेकिन लीपापोती कर दी गई। पत्रिका के बंगलौर आफिस में अमित के कई और भी मामले हैं, इनमें इनके दो बाप होने का भी मामला है जबकि तीसरे गॉडफादर श्री नन्दकिशोर तिवाड़ी जी हैं जो शुरु से ही अमित का पक्ष लेते आ रहे हैं। अगर इसको धृतराष्ट की संग्या दी जाए तो अतिश्योक्ति ही होगी। बहरहाल यहां तो एेसे ही चलेगा जब तक कि प्रबंधन ध्यान नहीं देता।

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