Connect with us

Hi, what are you looking for?

कहिन

पत्रकारिता के नए नायक कहां से आएं

प्रभाष जोशी की मृत्यु के बाद उनके बारे में जितना लिखा गया और उन्हें भाव-भरी श्रद्धांजलियां अर्पित की गईं, वह एक ऐतिहासिक घटना है। उन सभी में यह स्वीकार किया गया कि प्रभाष जी बड़े पत्रकार और संपादक थे। इस स्थापना में यह भविष्यवाणी निहित थी कि अब ऐसा व्यक्तित्व हमें देखने को नहीं मिलेगा। जहां पहली स्थिति आत्मगौरव की भावना का संचार करती है, वहीं दूसरी स्थिति मायूसी के भंवर में डालने वाली है।

<p align="justify">प्रभाष जोशी की मृत्यु के बाद उनके बारे में जितना लिखा गया और उन्हें भाव-भरी श्रद्धांजलियां अर्पित की गईं, वह एक ऐतिहासिक घटना है। उन सभी में यह स्वीकार किया गया कि प्रभाष जी बड़े पत्रकार और संपादक थे। इस स्थापना में यह भविष्यवाणी निहित थी कि अब ऐसा व्यक्तित्व हमें देखने को नहीं मिलेगा। जहां पहली स्थिति आत्मगौरव की भावना का संचार करती है, वहीं दूसरी स्थिति मायूसी के भंवर में डालने वाली है।</p>

प्रभाष जोशी की मृत्यु के बाद उनके बारे में जितना लिखा गया और उन्हें भाव-भरी श्रद्धांजलियां अर्पित की गईं, वह एक ऐतिहासिक घटना है। उन सभी में यह स्वीकार किया गया कि प्रभाष जी बड़े पत्रकार और संपादक थे। इस स्थापना में यह भविष्यवाणी निहित थी कि अब ऐसा व्यक्तित्व हमें देखने को नहीं मिलेगा। जहां पहली स्थिति आत्मगौरव की भावना का संचार करती है, वहीं दूसरी स्थिति मायूसी के भंवर में डालने वाली है।

प्रभाष जोशी नामक परिघटना पर विचार करते वक्त यह बात जितनी आसानी से भुला दी गई कि उनके निर्माण में कुछ विशेष परिस्थितियों की निर्णायक भूमिका थी, उस पर हैरत होती है। पहली बात तो यह कि अगर रामनाथ गोयनका न होते, तो प्रभाष जोशी प्रभाष जोशी न होते। गोयनका ने पत्रकारिता का एक ऐसा संस्थान खड़ा किया, जिसमें सच को सामने लाने पर किसी तरह का प्रतिबंध नहीं था और सच के लिए संघर्ष करने को हमेशा प्रोत्साहित किया जाता था। इस संदर्भ में स्वाभाविक रूप से अरुण शौरी की याद आती है। अगर रामनाथ गोयनका न होते, तो अरुण शौरी भी न होते। साहसिक, बल्कि दु:साहसिक, पत्रकारिता करने के जितने अवसर अरुण शौरी को इंडियन एक्सप्रेस में मिले, उतने कहीं और नहीं। यही बात हिंदी में प्रभाष जोशी को मिली स्वतंत्रता के बारे में भी कही जा सकती है। उन्हें अपने ढंग का अखबार निकालने की पूरी छूट दी गई, तभी प्रभाष जोशी की प्रतिभा को खिलने का पूरा मौका मिला।

दूसरी बात यह है कि किसी भी प्रतिभा को पल्लवित-पुष्पित होने के लिए नर्सरी की जरूरत होती है। प्रतिभाएं जन्मजात होती होंगी, पर उचित वातावरण न मिलने पर उनका विकास अवरुद्ध हो जाता है। प्रभाष जोशी को प्रभाष जोशी के रूप में विकसित होने देने में उस समय के गुणी संपादक राहुल बारपुते का विशेष योगदान रहा। अगर वे न होते, तो प्रभाष जी भी प्रभाष जी न हो पाते। इसका मतलब यह नहीं है कि सिर्फ अच्छा वातावरण मिलने से ही कोई स्टार बन जाता है। अनेक लोगों ने राहुल बारपुते के नेतृत्व में काम किया, पर राजेंद्र माथुर को छोड़ कर किसी और व्यक्ति का नाम हम नहीं जानते जो पत्रकारिता के शीर्ष तक पहुंच सका। पौधे में कुछ अपने गुण न हों, तो अच्छी से अच्छी नर्सरी भी कुछ नहीं कर सकती। राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी, दोनों ही अध्यवसायी थे, अपने समय और संसार को पढ़ने में उनकी गहरी दिलचस्पी थी और हिंदी को नए रूप में ढालने का प्रचंड चाव था। इसीलिए वे बड़े पत्रकार बन सके।

सवाल यह है कि आज के पत्रकार को क्या वे स्थितियां सुलभ हैं जिनमें प्रभाष जोशी जैसे व्यक्तित्व पैदा होते हैं? पत्रकारिता के लक्ष्य बदल गए हैं। आज का पत्रकार अपने को जितना अनाथ पाता है, किसी भी पीढ़ी के पत्रकार ने अपने को वैसा नहीं पाया होगा। कहते हैं, सृष्टि की शुरुआत एक महाविस्फोट (बिगबैंग) से हुई थी। छोटे-मोटे तारों के जन्म के लिए भी किसी न किसी स्तर का विस्फोट चाहिए। यह सच है कि आज के अधिकांश पत्रकार पढ़ने-लिखने की बीमारी से मुक्त हैं, लेकिन यह इसलिए भी है कि उनसे इसकी मांग नहीं की जाती। फिर भी, यह कहना होगा कि परिस्थितियों का रोना वे रोते हैं जिनमें दम नहीं होता। इसलिए आज जितनी गुंजाइश बची हुई है, नए अंकुरों को उसी का उपयोग करते हुए अपने को ब्रांड के रूप में स्थापित करना होगा। भविष्य के राजेंद्र माथुर और प्रभाष जोशी उन्हीं के क्लोन नहीं होंगे। वे अपनी दुनिया अपने तरीके से बनाएंगे।

लेखक नूर अली का यह आलेख आज दैनिक भास्कर में प्रकाशित हुआ है. वहीं से इसे साभार लेकर यहां पब्लिश किया गया है.

Click to comment

0 Comments

  1. इंतजाम अली

    January 16, 2010 at 7:18 am

    प्रभाष्‍ा जी और राजेंद्र माथुर सा. को तो राहुल बारपुते जी ने अपनी छत्रछाया में काफी कुछ बनाया और ये हिंदी पत्रकारिता में चमके। लेकिन, प्रभाष जी और माथुर सा. ने अपने जैसा कितनों को बनाया…यह नाम गिनाए। सच्‍चे और अच्‍छे पत्रकार नहीं बना पाए ये दोनों महापुरुष जो इनके समकक्ष हो।

  2. media ka madhav

    January 16, 2010 at 11:47 am

    kum se kum bhasha aur patrakarita ke gur to sikha gaye.sachchai se jeene aur kaam seekhne ka zazba to diya,aaj ke sampadakon ko to chhalakane walee adhjal gagriyan chahiyen jo kam na karen,baithe-bithaye shabdon kee jalebee kadh mangadhant report likh den,unke hitmen banen,unke ishaaron par halla bolen kisi nirih aur sachche se sathi par.is sab se bhee aage flat dilwayen,form house dilwayen aur unke nalayak ghisatkar pass hone wali santanon ka professional courses men dakhila karayen. itihas me ais misalen kahan hai?

  3. chandan goswami

    January 16, 2010 at 5:17 pm

    salam hei prabhji joshi ko.yeh too bat sahi hei ki joshi ji nayak thee,,waise to kaie patrkaro ke lekhan mei gambhrita hoti hei lekin kuch patrkar hei naam kamate hei, kyoki baki patrkar majburi mei samay se samjhota ka aoni lekhi ko side mei kar lete hei waise hi ek patrkar hei denik bhaskar NAGPUR mei mr SHISHIR DIVEDI jo ki smay ke saath majburi mei samjhota kar apni lekhni ko side mei karliea hei, agar enki koi majburi nahi hoti too kam se kam prabhat ji joshi ke chele banane ke kabil hotee, vaise enhone ek samay mei denik jagaran lucknow mei prabhat ji joshi ke saath kaam kiea hei , SHISHR DIWEDI me histroy, geography, aur na JAANE kitne GRAHNTH oonhe mukh paath hei, denik bhaskar oonhi barabar upyog mei nahi le raha hei. sahi mei ek patrkar agar likhe to samaj aur jivan badal sakte hei, wahi hei shishir diwedi mei, lekin MAJBURI malum nahi kya

  4. shani singh

    January 21, 2010 at 9:43 am

    job anil chamadiya or kripa sanker jaise patkar paida hote rahege tab tak patkarita pujiwadiyo ki rakhel ban ker reh jayegi

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

हलचल

[caption id="attachment_15260" align="alignleft"]बी4एम की मोबाइल सेवा की शुरुआत करते पत्रकार जरनैल सिंह.[/caption]मीडिया की खबरों का पर्याय बन चुका भड़ास4मीडिया (बी4एम) अब नए चरण में...

Advertisement