आमिर खान की शायद ही कोई फिल्म ऐसी रहती है जिसकी चर्चा न हो। ऐसी ही एक अब सुर्खियों में है। पीपली लाइव। कहा जा रहा है कि पीपली लाइव किसानों की हालत पर फोकस फिल्म है। मेरा मकसद यहां पर आमिर खान की फिल्म की तारीफ करना नहीं है। मेरा मकसद है कि जब आमिर खान किसानों की हालत पर फिल्म बना सकते हैं तो क्यों न लगे हाथों मध्यप्रदेश के प्रकाशित होने वाले उस अखबार का भी जिक्र हो जाए जिसकी नाम राशि आमिर खान की पीपली लाइव से मिलती है।
बस अंतर सिर्फ इतना है कि पीपली लाइव कर्ज में डूबे किसानों पर फोकस है तो पीपली लाइव की नाम राशि वाले अखबार में काम करने वालों की हालत भी पीपली लाइव के किसानों से कम नहीं है। वैसे कम से कम इस अखबार में काम करने वालों ने इस अखबार के मालिक को यह सलाह नहीं दी होगी कि वे अखबार शुरू करें। लेकिन अखबार शुरू होने के बाद इससे जुडऩे वाले लोग अपने आपको ठगा महसूस कर रहे हैं और अखबार की नीति-रीति तय करने वाले हैं कि वे कहते हैं कि हमने करोड़ों रुपए खर्च करके यह तो सीख लिया कि अखबार कैसे चलाया जाता है।
खैर, अखबार की कहानी यह है कि कहा तो यह जा रहा है इस पर से मालिक का नियंत्रण हट गया है। अखबार में हो वही रहा है जो अखबार में अपना बिस्तर डलवाकर उसी बिस्तर पर पड़े-पड़े अखबार का भविष्य तय करने वाले चाहते हैं। कहा जाता है कि यह बीमार हैं। दो बार मुंबई की यात्रा कर चुके हैं। अपनी बीमारी का इलाज करवाने के लिए। इलाज के बाद ही इन्होंने अपने चेंबर के पीछे एक बिस्तर डलवा लिया है। इसी बिस्तर पर लेटे-लेटे ही यह अखबार का स्वरूप तय करते हैं। ऐसा उदाहरण शायद हिंदुस्तान के किसी अखबार में न तो मिलेगा न ही मालिक ऐसा इसकी इजाजत देंगे कि उनके अखबार की नीति करने वाला अखबार के दफ्तर में बिस्तर पर ही पड़ा रहे।
इन्हें छींक भी आती है तो डॉक्टर इनका ब्लड प्रेशर नापने के लिए पहुंच जाते हैं। शायद यह मालिकों को बताना चाहते हैं कि देखो, वे कितने कर्मठ हैं। बीमार हैं। बिस्तर पर पड़े हैं। फिर भी अखबार के लिए जान लगाए हुए हैं। मालिक भी शायद इसी तरह के वफादार लोगों को पंसद करता है। इन साहब की देखा-देखीकर इनके द्वारा एक संस्करण के प्रभारी बनाए गए भी दफ्तर में दो कुर्सियां आराम फरमाते हैं। इसकी वजह यह है कि इन्हें जहां पदस्थ किया गया है, वहां गर्मी बहुत पड़ती है। घर में तो एयर कंडीशनर है नहीं, इसलिए दफ्तर का एयर कंडीशनर चेंबर ही ठीक है रात-दिन एक करने के लिए।
इस अखबार में शायद ऐसा होता है कि जितनी सैलरी तय की गई, वह बाद में कम कर दी जाती है। अखबार का घाटा देख-देखकर एयरकंडीशनर चेंबर में बैठने वाले मालिकों को पसीना आ रहा है तो वे कास्ट कटिंग की बात करने लगे हैं। सफेद हाथी मुख्यालय में पाल लिया है तो सफेद हाथी के कहने पर दूसरे संस्करणों पर तलवार लटका दी गई है। एक एडीशन के संपादक को संपादक से हटाकर प्रिसिंपल बना दिया गया है। वे कम से कम प्रिंसिपल बनने के लिए तो इस अखबार से नहीं जुड़े होंगे। तो दूसरे एडीशन के संपादक को मुख्यालय बुला लिया गया। दोनों ही जमी जमाई नौकरी छोडक़र इससे जुड़े थे। पर क्या करें। वो आमिर खान की पीपली लाइव तो यह …. उसकी नाम राशि।
इस मल्टी एडीशन अखबार के एक एडीशन की कमान अखबार मालिक के रिश्तेदार के हाथों में है। रिश्तेदार बेहद नजदीकी है। लेकिन अखबारी ज्ञान के मामले में शून्य हैं यह। यही वजह है कि यह कभी आचमन कर ऑफिस स्टॉफ को पीटते हैं तो कभी कार चालक को। एक पिटाई का मामला तो थाने तक पहुंच चुका है। इस संस्थान को सुरक्षा मुहैया करवाने वाली एजेंसी ने सभी गार्ड हटा लिए हैं क्योंकि मामला भुगतान को लेकर झंझट में फंस गया। इस संस्करण को शुरु हुए तो मात्र आठ माह ही हुए हैं पर इस मल्टी एडीशन संस्करण वाले ग्रुप से अभी तक एक सैकड़ा लोग पीपली लाइव का शिकार बनकर नौकरी छोड़ चुके हैं।
वैसे तो कहने-लिखने को इस पीपली लाइव के अनगिनत किस्से हैं। लेकिन कितना लिखें। इतना भी सिर्फ इसलिए लिखा कि इस पीपली लाइव से जुडऩे से पहले सैकड़ों बार सिर पर ठंडे पानी की बोतलें उडऩे के बाद ही कोई अंतिम फैसला लेना। वरना अंत में यही कहोगे, जो हम कह रहे हैं, कि कहां से आ गए पीपली लाइव….।
Comments on “पीपली लाइव और एमपी का एक अखबार”
yadi woh yahi peoples hai jisme humne kam kiya to phir hai sach hai
many peoples have spoliled carrier in peoples samachar one sugesstion to all media colleagues do take risk any new publication which doesnot have any experience in print media many peoples have spoiled there carrier in peoples samachar
ple peoples se bacho aur carrier bachao
yah bat to sahi hai ke peoples me sailry ka loocha hai par kya kare vikalp maile to sabhi bhag jayenge koykoki logo ke sailry yah log kam karne lage hai.
peoples me aaj 13 july tak vetan nahi mila hai. school khul gaye hai bachhooo ke fees kaha se bhare sir?
bhaiya aisa lag raha jaise TITANIC dooob raha hai. bhagoo bhaiya mooka lagte se bhagoooo.
in peoples security guards have left the job now there is request for mgmt they must appoint dabra guys who can give free service & will take peoples ship in middle of the sea
Ab patrkaro ko ise join karne se pahale sochan hoga.
bhaiya lagta he likhne vale ki shayad peoples se gpl hui he ya inhe mukhbiri ka shok he tabhi to peoples samachar ki tareef ke kaseede pad rahe he