प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष ने कहा- दोषी अखबारों के खिलाफ कार्रवाई होगी : आल इंडिया न्यूज पेपर एडिटर्स कांफ्रेंस की नई दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सभागार में शनिवार को हुई बैठक में प्रेस काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जीएन रे ने बीते चुनाव में विज्ञापन के तौर पर पैसे जमा कर खबरें छापने का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा, कुछ अखबारों ने जिस तरह अपनी खबरों को बेचा, उसे पत्रकारिता की वेश्यावृत्ति की ही संज्ञा दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि भारतीय प्रेस परिषद इस बाबत गंभीर है और मिली शिकायतों के आधार पर दोषी अखबारों के खिलाफ कार्रवाई करने की सोच रहा है। उन्होंने बताया कि मीडिया को संवाद की स्वतंत्रता संविधान ने नहीं दी बल्कि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से मिली। सुप्रीम कोर्ट से अखबारों को स्वतंत्रता इस आधार के साथ मिली कि अखबार जनता का मुखपत्र होता है और लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। इसलिए उसके पत्रों को स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। लेकिन मौजूदा समय में अधिकांश अखबारों ने इसका बेजा इस्तेमाल करना शरू कर दिया है।
‘राजनीति को सुधारने में मीडिया की भूमिका’ विषय पर आयोजित समिनार में निगमित और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि मीडिया सनसनीखेज ब्रेकिंग न्यूज की जगह देशहित व समाज को प्राथमिकता दे। मीडिया को लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मान्यता मिली है और चारों स्तंभ में से एक भी स्तंभ कमजोर होता है तो लोकतंत्र और फिर समाज कमजोर होता है। राजनीति और मीडिया में ‘संवाद’ कामन है। जब संवाद नहीं होता तो टकराव की शुरुआत होने लगती है। मीडिया सहयोगी बने, और राजनीति को दिशा दे।
आल इंडिया न्यूज पेपर एडिटर्स कांफ्रेंस की तरफ से आयोजित सेमिनार में सलमान खुर्शीद ने समलैंगिकता के मसले पर रिपोर्टिंग का हवाला देते हुए कहा कि कानून बनाना संसद का काम है। सभी सांसदों की राय जाने बगैर मीडिया को एकपक्षीय रिपोर्टिंग से बचना होगा। सेमिनार के अध्यक्ष सलमान खुर्शीद के संबोधन के बाद वक्ताओं की राय दो विरोधी खेमे में बंट गई। कुछ लोगों का कहना था कि मीडिया खुद बीमार हो गया है। इससे बीमार राजनीति को ठीक करने की उम्मीद करना बेमानी होगा। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि मीडिया आज भी राजनेताओं को सुधारने में अहम भूमिका निभा सकता है। बीच बचाव के बाद मदनलाल खुराना ने कहा, निष्पक्ष पत्रकारिता आज की जरूरत है। ऐसे समय में जब 1960-70 की राजनीतिक सदभाव का अंत हो चुका है और संवाद, सहजता, सुलभता आदि सभी गुण राजनेताओं से दूर हो चुके हैं, निष्पक्ष पत्रकारिता की ज्यादा जरूरत है। आखिर में वक्ताओं में आम राय बनी कि मीडिया रपद दे, सूचना दे, आम लोगों के सरोकार को आगे लाए, राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस छेड़े लेकिन राय व सुझाव न दे। खास कर खबरों में तो इससे परहेज होना ही चाहिए। साभार : जनसत्ता, दिल्ली
sagarbandhu
January 19, 2010 at 1:42 pm
kuch nahi jayadatar akhbaro ne Khabaro ko bechne ka dhandha shuru kiya hai. aise akhabaro ke khilaf khator karwi honi chahie. jisse akhabaro ki biswsniyta bani rahe. ab akhabaro par bharosa karanewalo ki sankhya kam ho gai hai.
Ishwar Dhamu
April 9, 2010 at 6:29 pm
Akhabaro ke malikon ne Election time mai ek tarah se KHABARON ke sath RAPE kiya hain. Party Candidates ke bich mai KHABARON ko khada karake akhabar malikon ne CHEERHARAN kiya. Patrakar Sangathanon ko action ke liye dabav banana chahiye .
tarun kumar srivastava
May 24, 2010 at 10:22 am
are sir jo paisa lega vo khabar kaise chapega.aajkal news print/ele. me khabar kam vigyapan jyada hote hain