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कानपुर प्रेस क्लब पर भारी पड़ा “अन्नागिरी का इफेक्ट”

अरविंदजैसा कि माना जा रहा था “चौथा कोना” का धरना हो तो रहा था अन्ना हजारे के समर्थन में पर उसके परिणाम बहुत ही दूरगामी होने थे. ये आम चर्चा उस धरने में चलती रही थी. कानपुर प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के द्वारा पर्याप्त दूरी बनाए रखना ये बताने और जताने के लिए पर्याप्त था कि अब वो पत्रकार होने के बावजूद पत्रकारों के सवालों और बहस-मुबाहिसों से अपने मुह चुराने लगे हैं.

अरविंद

अरविंदजैसा कि माना जा रहा था “चौथा कोना” का धरना हो तो रहा था अन्ना हजारे के समर्थन में पर उसके परिणाम बहुत ही दूरगामी होने थे. ये आम चर्चा उस धरने में चलती रही थी. कानपुर प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के द्वारा पर्याप्त दूरी बनाए रखना ये बताने और जताने के लिए पर्याप्त था कि अब वो पत्रकार होने के बावजूद पत्रकारों के सवालों और बहस-मुबाहिसों से अपने मुह चुराने लगे हैं.

कानपुर के पत्रकारों के पास कोई भी सर्वमान्य मंच का न होना एक बड़ी समस्या होती जा रही थी. इसका कारण दस साल के रुके-थके लोगों के द्वारा संगठन पर किया गया अति नियंत्रण था. रोशनी की कोई किरण कहीं से आ नहीं सकती थी. जिसने भी विरोध किया वो अकेले में समझा लिया गया और वही विद्रोही अगले ही पल फिर से इसी प्रेसक्लब की सड़ी-गली कमेटी के अद्वितीय कार्यकाल की महिमा का गान करने लगता था. ऐसे मैनेज होता रहा सब-कुछ और सालों-साल बीतते रहे.

धरने का नेतृत्व करने वाले प्रमोद तिवारी कह बैठे कि देखना इस तम्बू का उखड़ना होगा और प्रेस क्लब जैसे बहुत सारे तम्बू भी उखड जायेंगे. सही भी था. प्रमोद जी से जब सभी अपनी और प्रेस क्लब की दुर्व्यवस्था का रोना रोने लगे तो उन्होंने कहा कि वे एक दिन का और इस तम्बू का खर्चा दे सकते हैं. तुम सब में से ही किसी को अन्नागिरी करनी होगी. नया बैनर बनवाओ और बैठ जाओ इसी तम्बू के नीचे. बस घोषणा करनी ही है और देखना कि कमजोर प्रेस क्लब के मजबूत पदाधिकारियों की जड़ें कितनी जल्दी उखड़ जायेंगी. अन्ना को तो चार दिन बैठना भी पड़ा है, तुम सब को कुछ घंटे बैठने का साहस होना चाहिए.

लोकतंत्र की चाह रखने वाले तमाम युवा पत्रकार इस आह्वान से अति उत्साहित थे पर अपनी गर्दन को भी बचाने में लगे थे. मुझ सहित बहुत से पत्रकारों से प्रेस क्लब के महामंत्री कृष्ण कुमार त्रिपाठी ने टेलीफोनिक वार्ता की जिसमें उनका कमजोर आत्मविश्वास और ज्यादा परिलक्षित हुआ. पहले तो मैंने सोचा कि वो अगले दिन के कार्यक्रम की फोटो खींचने के लिए आयेगा या फिर आयोजक का नाम पूछ कर खुश होना चाहता है,  पर बाद में लगा कि अब जगीरा तो पूरी तरह से डर गया है. अपने कार्य-काल के अंतिम दौर में अपने स्थायित्व के बारे में अति-आत्मविश्वास के दौर में यही महोदय अपने मुहबोले भतीजे सौरभ शुक्ला से कुछ भी उखाड़ने और टेढ़ी करने तक की धमकी दे दिया करते थे. वैसे उनका कल्चर हरदम ऐसा ही रहा है. पर अब का और युवा वर्ग अब इन बुढ़ाते हुए युवा नेताओं में एक उकताहट देखने लगा था.

फिर वो दिन आया जब कानपुर नगर निगम में एक बैठक का आह्वान किया गया. समय 3 बजे का था पर उसके पहले ही एक आपातकालीन बैठक कर पदाधिकारियों ने “डैमेज कंट्रोल” की नीति अपनाते हुए प्रेस क्लब के एक सदस्य इरफ़ान भाई को फोन पर बताया कि अब परेशान मत हो जल्दी ही पदाधिकारियों की बैठक कर अगले चुनाव के बारे में घोषणा की जायेगी. और ठीक अगले दिन एक जुलाई को चुनाव की घोषणा कर भी दी गयी. इस के पहले आपस में ब्रूटस की खोज भी गयी. उन गलतियों को फिर से न दोहराने के संकल्प लिए गए. और नए चुनावों में बागडोर अपने हाथों में फिर परोक्ष रूप से बनाए रखने के लिए तमाम उपक्रम किये गए.

अब आज-कल चुनावों की चर्चा पूरे शहर में जोरों पर है. देर रात की घंटाघर की बैठकों सहित हाई प्रोफाइल पार्टियों में भी पत्रकारों की नेतागिरी के चर्चे हैं. शहर का माफिया भी एक बार फिर इस चुनाव के माध्यम से नए प्रेस क्लब के गठन पर निगाह जमा चुका है. उम्मीद की जा रही है की एक बार फिर से माफिया के पिट्ठू चुनाव मैदान में होंगे. जब प्रमोद जी से इस नए दौर के बारे में बात की तो उन्होंने कहा की वे न तो पक्ष हैं और न विपक्ष, उन्होंने कहा कि हमारी भूमिका तो बस इतनी ही थी,  जिसे अंग्रेजी में ह्विसिल ब्लोवर कहा गाता है. सभी अपने हैं. जब ये गलत करेंगे तो फिर अन्ना ने तो रास्ता बता ही दिया है. शिक्षक पार्क भी ठीक सामने ही है. तम्बू लगाओ और बैठ जाओ धरने पर.

लेखक अरविंद त्रिपाठी कानपुर में पत्रकार हैं तथा चौथी दुनिया से जुड़े हुए हैं.

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0 Comments

  1. shailesh dixit, crime reporter in kota

    April 22, 2011 at 1:21 pm

    kanpur press club pr abhi tak arun agrawal, shailendra dixit, pramod tiwari, anoop bajpai, kumar ji zaise logo ne he netratava kiya hai……… inme se thaka hua kaun hai muzhe to samazh me nahi aaya……. arvind ji aap he bata de……
    shailendra dixit, shailesh
    crime reporter in kota

  2. Rajeev Verma

    April 23, 2011 at 4:10 am

    sach keh rahe hai aap purane logo ko ab sirf sarparasti karte hue naye logo ko aage lana or kanpur press club ke liye ek majboot manch taiyaar karne ki aavyashakta hai… ek aisa manch jisse kanpur press club ke saath saath sabhi patrakar bandhu hi gouranvit ho sake …

  3. Ankur awasthi, Kanpur

    May 15, 2011 at 9:15 am

    Soop bole toh bole, Chalni kya bolegi jisme khud 72 chhed hain. Jo khud ko Wistle Blower keh rahe hain, Apne girahbaan mein jhaank kar dekhein. Kya unhone press club mein padadikhari rehte hue 10 saal tak kabja nahi kiye rakha tha. Unko toh pareshan patrakaron ne Jute-Chappal se maar maar kar press club se bhagaya tha. Aaj wahi Aandolan ki baat kar rahe hain… Kya Zamana aa gaya hai…

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