रह-रहकर गूंजता कुत्तों का रुदन चर्च परिसर में रुकने से रोकता है। ये कुत्ते अपनी मां को खोकर अनाथ हो चुके हैं। उस मां को जिसने इन्हें जना तो नहीं था अलबत्ता पाला-पोसा अपनी औलाद की मानिन्द। जाड़ा पड़ा तो शीरीन ने अपने तन की फिक्र नहीं की, कुत्तों को बेहतरीन स्वेटर पहनाये। भोजन भी एक से बढ़कर एक। कभी गोश्त पका तो कभी दूध-ब्रेड से काम चला लिया। कड़ाके की ठंडक ने जब शीरीन महावीर को लीला तो संबंधी इतना नहीं रोये, जितना कि यह कुत्ते रोये। कुत्ते रोये ही नहीं बल्कि अभी भी चुप लगाने का नाम नहीं ले रहे। लखनऊ के इस्लामिया कालेज के बगल रेड चर्च परिसर में रहने वाली शीरीन महावीर को होश संभलते ही सड़क के आवारा कुत्तों से ऐसा लगाव हुआ कि पूरी जिन्दगानी होम कर डाली उन्होंने कुत्तों पर। शीरीन ने शादी नहीं की। क्यों नहीं की, इस सवाल पर शीरीन कहने लगती- क्या बताऊं साहब। अपने लिये तो सब जीते हैं। मैं तो कुछ भी नहीं करती इनके लिए। सब गाड ही करता-कराता है। मैं तो सिर्फ ऊपर वाले की वाचमैन हूं। शीरीन को अपनापे में कुछ लोगों ने खिताब दे डाला- ‘कुत्ते वाली आन्टी’ और आन्टी भी ऐसी कि कभी किसी की बात का बुरा नहीं माना।
एक महाविद्यालय में अंग्रेजी की लेक्चरर रहीं शीरीन का बहन की लड़की सुखबीर को छोड़कर इस दुनिया में कोई सगा न था। नौकरी के दौरान शीरीन ने अपनी पूरी तनख्वाह कुत्तों पर उड़ा डाली और रिटायर हुई तो पेंशन भी कुत्तों पर न्यौछावर कर दी। अपने पहनने -खाने की कभी कोई परवाह नहीं की। कुत्तों के लिए जो बना उसी में से कुछ अपने लिये भी निकाल लिया। कोई कुत्ता बीमार होता तो शीरीन की पेशानी पर बल पड़ जाते। डाक्टरों के यहां दौड़ती-भागती और दवाइयों का इंतजाम करती। खुद्दारी इतनी कि कभी किसी के सामने हांथ पसारना गंवारा नहीं किया। कोई दशक भर पहले मेरा परिचय हुआ था शीरीन से। हजरतगंज में शान के साथ टहलती शीरीन और उनके पीछे अलमस्त आवारा कुत्तों की एक लम्बी फौज। हर शख्स कभी शीरीन को घूरता तो कभी उनके अमले को और शीरीन थीं कि बस अपनी ही धुन में चलती चली जा रहीं थी। कुत्तों के प्रति हमदर्दी शीरीन में कूट-कूट कर भरी थी। अपनी इस हमदर्दी के मूल में वह पिता का स्मरण कर आंखों में आंसू भर लेतीं। कहती – वह इंसान से कहीं ज्यादा जानवर में प्रभु को पाते थे, यह राज उन्होंने मुझसे जब से शेयर किया था तब से कुत्ते ही मेरे सर्वस्व हैं।
इधर बीच महंगाई ने तोड़-सा दिया था शीरीन को। फंड वगैरह तो पहले ही कुत्तों पर कुर्बान हो चुका था। कभी चूल्हा जला तो ठीक वरना होटल से काम चल जाता। पहले कुत्ते, बाद में खुद खाया, ऐसा था शीरीन का दस्तूर। होटलवाला भी कुछ रहम दिल था। शीरीन उसकी तारीफ के पुल बांधती रहतीं। कहतीं- बड़ा नेक इन्सान है। बहुत दुआएं देती उसको। कुत्ते भी शीरीन पर जान छिड़कते थे। शीरीन बीमार तो कुत्ते रोते, शीरीन खुश तो कुत्ते दहाड़ते। कुत्ते आपकी खुशी कैसे भांप लेते हैं, शीरीन बताने लगतीं- अजी इनको तो बस बढि़या खाना चाहिए। अच्छा खाना मिल गया तो सारे के सारे जनाब बहुत खुश हो जाते हैं। कुत्तों के नाम भी शीरीन ने अलबेले रख छोड़े थे। दड़बेनुमा घर में किसी का नाम तेन्दुलकर तो कोई वीरू। शाहरुख से लेकर आमिर तक। कुतियों के नाम भी ऐसे ही कुछ- जैसे रानी मुखर्जी, शिल्पा बगैरह। सब के सब शीरीन की एक पुकार पर भागे चले आते।
इस्लामिया की ओर से गुजरते वक्त शीरीन से यदाकदा मुलाकात हो जाती थी लेकिन फोन पर उनसे सम्पर्क बना रहता। एक रोज सूखी रोटी खाती शीरीन को देख दंग रह गया। शीरीन चिथड़ों में लिपटी थीं। उनकी यह हालत देखी न गई मुझसे। खख्खाशाह तो था नहीं लिहाजा बातों ही बातों में अपनी मित्र रोमा हेमवानी जी से इस प्रसंग की चर्चा कर बैठा। यह उनकी सदाशय वृत्ति ही थी कि बिना सवाल किये एक निश्चित राशि प्रतिमाह भिजवाना उन्होंने शुरू कर दिया। शीरीन ने फोन करके कुछ झेंपते हुए बातचीत शुरू की- यह क्यों करवा दिया आपने, खैर गाड की ओर से मैडम को थैंक्यू बोलियेगा। अबकी जाड़ा बहुत ही किटकिटाऊ पड़ा। शीरीन का फोन आया- क्या एक कम्बल दिलवा देंगे किसी से। ‘नहीं, मैं खुद लेकर दे जाऊंगा’- मैंने कहा लेकिन यह बात महज बतफरोशी होकर रह जायेगी, यह अनुमान न था। कम्बल ले आया था लेकिन शीरीन का फोन आता रहा और मैं रोज वायदा करके भी काम में फंसता रहा। आज अल सुबह शीरीन की भांजी सुखबीर का फोन आया- आन्टी नहीं रहीं, ठंडक लग गई थी। फोन रखते ही मानो सन्निपात सा हो गया, काटो तो खून नहीं- बस एक सवाल- ‘अब वह कम्बल किसे दूंगा’।
निशातगंज कब्रिस्तान में 79 बरस की न जाने कितने कुत्तों की मां शीरीन दफना दी गई हैं। लखनऊ सूबे की राजधानी है। तमाम पुरस्कार, तमगे यहां घोषित होते और बंटते हैं लेकिन शीरीन सरीखे लोगों का नाम इन पुरस्कारों की सूची में नहीं होता। शीरीन के सारे बच्चे अनाथ हो गये हैं। खुद को भी अपने ही हांथों ठगा महसूस कर रहा हूं मैं। अब किसी रोज कब्रिस्तान में सो रही शीरीन को कम्बल ओढ़ाकर अपनी झेप मिटाने का प्रयास करूंगा लेकिन शीरीन के हांथ में कम्बल न दे पाने का मलाल ताजिन्दगी सालता रहेगा। परमात्मा शीरीन को अपने चरणों में जगह देगा। हो सके तो माफ करना आन्टी।
लेखक राजू मिश्र वरिष्ठ पत्रकार हैं. वे लखनऊ में दैनिक जागरण में कई वर्षों से कार्यरत हैं. उनसे संपर्क [email protected] या फिर 09415188979 के जरिए किया जा सकता है. उनका यह लिखा उनके ब्लाग से साभार लेकर यहां प्रकाशित किया गया है.
यशवंत सिंह
January 16, 2010 at 6:59 am
राजू सर, बहुत दिनों बाद आपके ब्लाग की तरफ गया तो यह सब पढ़कर कुछ क्षण के लिए सन्न रह गया. काश, आप समय से कंबल पहुंचा देते…. पर यही काश हम सब की जिंदगी के आसपास है. अपने भी आसपास ऐसे लोग दिख जाते हैं. जितना संभव है मदद करते हैं पर आखिर अब इनडिविजुवली कितनों की मदद कर सकते हैं. यह लंबा चौड़ा सिस्टम, अफसरों-नेताओं का फौज फाटा, अरबों खरबों का टैक्स और जनहित योजनाएं कहां हैं…. गरीबी और अभाव को किसी एक का भला करके नहीं मिटाया जा सकता. इसके लिए नीतिगत रूप से योजनाएं बनाने और बिना भ्रष्टाचार के उसे लागू कराने पर बल देना होगा. यह सब लिखते हुए भी मुझे लग रहा है कि कैसी असंभव कल्पनाएं कर रहा हूं… भ्रष्टाचार और खत्म हो जाए, असंभव.
क्या किया जाए, सिवाय गले मिलके कुछ क्षण रो लेने के अलावा.
आपके इस मार्मिक संस्मरण ने वाकई हिला दिया.
यशवंत
Awdhesh kumar mishra
January 16, 2010 at 7:05 am
sirin mahavil jaise kuch hi insani fariste zamin par utrte hai jo bhale hi koi award na pa sake lekin unhe unke kam ke liye hamesha yaad kiya jayega.vaise bhi chand puruskaron se unke karya taule nahi ja sakte
sudhir k singh dixit
January 16, 2010 at 7:06 am
मर्मस्पर्शी…ज़िंदगी में कुछ हादसे ऐसे हो जाते हैं, जिनकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। ख़ैर…आंटी की आत्मा को शांति मिले और उनके बच्चों को कोई उतना ही प्यार करनेवाला, जितना आंटी करती थी।
Tillan
January 16, 2010 at 7:20 am
बहुत अच्छी नज़र है तुम्हारी … राजू नज़र न लगे ! पत्रकारों और पत्रकारिता ( अगर कहीं मिले या दिखे ) से अपील करो कि…पोलिटिक्स , बॉस की निंदा – स्तुति और सीनयर में अहंकार व चापलूस प्रियता के बखान के साथ कभी …ऐसे ‘ जीवन की जंग के विजेताओं पर ‘ भी अपनी लेखनी की कृपा बरसा दिया करें … समय और समाज बड़ा गुण गायेगा उनका ! तुम्हें हार्दिक स्नेह ! –टिल्लन रिछारिया
kamlesh srivastava
January 16, 2010 at 7:45 am
Raju Mishra sir mai to varsho se apke lekhan ka kayal raha hoon. Apka kutto wali aunti par likha peace dil ko choo gaya. aap un par bhi likhiye jo so called NGO hein unhe aise log kayo nahi dikhai deta
Naval Kant Sinha
January 16, 2010 at 7:55 am
राजू जी,
सच्चाई ये है कि ये केवल एक खबर नही है बल्कि आइना है हमारे समाज का… सचमुच जो नेक लोग हैं उनको अक्सर एवार्ड नहीं मिल पाता और न ही सबकी नज़र उन तक पहुच पाती है… ज़ाहिर है कि अक्सर ऐसे बेहतरीन लोग ग़ुरबत की ज़िंदगी जीने को मजबूर हो जाते हैं… ठण्ड की एक अलसाई रात में इस दुनिया से बहुत दूर चले जाते हैं… हमें आइना दिखाने का शुक्रिया…
-नवल कान्त सिन्हा, सीएनईबी, लखनऊ
Amrendra Kumar
January 16, 2010 at 9:23 am
Rajuji,Apki yah khabar manwiya samvedna ko spandit karti hai.Aisi khabrein pathkon ke samne aani chahie.Rajniti aur apradh se alag is tarah ki khbren man ko chhooti hain.
अजय शुक्ला
January 16, 2010 at 9:47 am
मैंने कई डॉग शो कवर किए हैं। अभी हाल ही में राजधानी में कुत्तों की एक अखिल भारतीय सौन्दर्य प्रतियोगिता पर की-बोर्ड पीट डाला। एक बाइलाइन भी झपट ली। यहां कुत्ता शब्द लिखने का साहस जुटा पा रहा हूं लेकिन अखबार में लिखने के पहले तीन बार अपना ही लिखा दोबारा देखा कि कहीं गलती से भी कुत्ते को कुत्ता तो नहीं लिख गया। जनाब, इससे ठेस लगती है कुत्ता लवर्स की भावनाओं को। इसलिए सख्त हिदायत रहती है कि कुत्तों को कुत्ता मत लिखो। तरह-तरह के शब्द ईजाद किए- श्वान, डॉगी, पपी। फिर भी, यह मलाल अब तक बना है कि कुतिया को क्या लिखें। श्वान स्वामी तो इसे फीमेल नाम देकर काम चला लेते हैं लेकिन हम लोग क्या करें। अंग्रेजी में इसे बिच कहते हैं लेकिन सभ्य संसार इस शब्द को भी गाली के रूप में इस्तेमाल करता है, सो यह भी नहीं लिख सकते। इनके मुंह से एक गाली छिन जाएगी। इसलिए किसी तरह गोलमोल कर काम चलाता हूं। गर्ज यह कि अपने यहां एक से एक कुत्ता लवर्स हैं।
इस प्रतियोगिता में पूरे देश से कुत्ते आए थे और मुझे बताया गया कि ये वायुयान में सफर करके आए हैं और यहां महंगे होटलों में रुके हैं। मेरे लिए यह यकीन कर पाना मुश्किल था और आज भी भरोसा नहीं होता, पर है यह सच। बंगलुरु से एक कुत्ता आया था जो प्रतियोगिता मैदान में कुत्ता-वाक करने के बाद एक लग्जरी कार के एसी में आराम फरमा रहा था। भद़दर ठंड में भी। पत्रकारों को भनक लग गई कि यह कुत्ता 18 लाख रुपए का है। सब पिल गए लेकिन श्वान स्वामी ने दर्शन न कराए। इसी तरह विदेशी नस्ल-सुदर्शन मूरत वाले और भी कुत्ते थे कुछ-एक को छोड सब लाखों के और मेडल होल्डर।
ऐसे ही प्रतियोगिताओं को कवर करते हुए यह भी पता चला कि इस लव का इकोनॉमिक्स क्या है। जब तक चाहो गुदाज चमडी और रोएं का स्पर्श गोद में महसूस करो और फिर डॉग शो के दो-चार फेरे लगवाकर मेडल झटको और हजारों का माल लाखों में बेच लो। इनमें से कुछ सचमुच के कुत्ता प्रेमी होते हैं, पर मैले कुचैले कुत्तों से प्यार सिर्फ शीरीन उर्फ कुत्तो वाली आंटी के ही बस की बात है।
दुर्भाग्य से यह कुत्ता प्रेम आज इंसानों की जिंदगी का भी आईना बन गया हैं। यहां भी दो नस्लों के इंसान हो गए हैं और दोनों की दुनिया बिल्कुल अलग-अलग है। एक नस्ल की हर हरकत सुर्खी बनती है और दूसरे की मौत अखबारों में संक्षेप कालम का मैटीरियल या फिर आंकडों का अंक। … और कुत्तों वाली आंटी तो वह भी नहीं।
राजू भाई प्रणाम, दूसरी नस्ल के बारे में लिखते रहिए, क्योंकि यही असली भारत है।
अजय शुक्ला
nemish hemant
January 16, 2010 at 10:35 am
raju ji. aapko sadhuvad, aapp isi tarah se apne kalam se samvednao ko ukerte rahe. yahi duaa hai.
Neeraj Mishra
January 16, 2010 at 1:37 pm
राजू सर, प्रणाम
बहुत दिनों बाद आपके ब्लाग में पंहुचा तो यह सब पढ़कर कुछ क्षण के लिए सन्न रह गया. क्योंकि मुझे भी कई बार इस आंटी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. बात उन दिनों कि है जब मैं पत्रकारिता के अपनी जगह खोज रहा था. अगर आज मैं प्रदीप सर के ब्लॉग पर नहीं जाता तो शायद आप का ब्लॉग नहीं दीखता और मैं इस खबर से दूर ही रहता. सर हर किसी को जितना संभव हो मदद करना चाहिए पर आखिर अब इनडिविजुवली कितनों की मदद हो सकती है. यह लंबा चौड़ा सिस्टम. अरबों खरबों का टैक्स और जनहित योजनाएं कहां हैं.आप तो राजधानी मैं हैं जानते हैं कि गरीबी और अभाव को किसी एक का भला करके नहीं मिटाया जा सकता. इसके लिए योजनाओ को बनाने और बिना भ्रष्टाचार के लागू कराने पर बल देना होगा. मुझे लग रहा है कि अब मैं लीक से हट रहा हूँ. लेकिन आप महान हैं. ये मैं नहीं हर वो कहता है जो आपको जानता है. रही बात खबर कि तो आप जानते हैं कि आज कल कैसे ख़बरें लिखी और दिखाई जाती है.
नीरज मिश्र
ग्वालियर
Neeraj Mishra
January 16, 2010 at 1:37 pm
राजू सर, प्रणाम
बहुत दिनों बाद आपके ब्लाग में पंहुचा तो यह सब पढ़कर कुछ क्षण के लिए सन्न रह गया. क्योंकि मुझे भी कई बार इस आंटी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. बात उन दिनों कि है जब मैं पत्रकारिता के अपनी जगह खोज रहा था. अगर आज मैं प्रदीप सर के ब्लॉग पर नहीं जाता तो शायद आप का ब्लॉग नहीं दीखता और मैं इस खबर से दूर ही रहता. सर हर किसी को जितना संभव हो मदद करना चाहिए पर आखिर अब इनडिविजुवली कितनों की मदद हो सकती है. यह लंबा चौड़ा सिस्टम. अरबों खरबों का टैक्स और जनहित योजनाएं कहां हैं.आप तो राजधानी मैं हैं जानते हैं कि गरीबी और अभाव को किसी एक का भला करके नहीं मिटाया जा सकता. इसके लिए योजनाओ को बनाने और बिना भ्रष्टाचार के लागू कराने पर बल देना होगा. मुझे लग रहा है कि अब मैं लीक से हट रहा हूँ. लेकिन आप महान हैं. ये मैं नहीं हर वो कहता है जो आपको जानता है. रही बात खबर कि तो आप जानते हैं कि आज कल कैसे ख़बरें लिखी और दिखाई जाती है.
नीरज मिश्र
ग्वालियर
Anand Rai
January 16, 2010 at 2:08 pm
भावनाओं का फलक इतना उंचा है कि मनुष्यता को नयी परिभाषा मिल गयी है. संवेदना से कटे हुए लोगों को सबक भी है. यह एक आंसू की तरह कोमल और पारदर्शी भवनाभिव्यक्ति है. शब्द दिल की गहराइयों से उतरे हैं और अपना असर छोड़ते गए हैं. Anand Rai- gorakhpur
krishna kumar mishra
January 16, 2010 at 4:24 pm
शिरीन आन्टी की बेमिसाल सोच और उनके कार्यों को मेरा सलाम, मिश्र जी आप ने बड़ी कहानी सुनाई, पर क्या शासन ऐसी बेहतरीन कहानियों को सुनता व समझता है,?
पुरस्कार सिर्फ़ संबन्धों पर और जुगाड़ से मिलते है यहां। सरकारे चाहती ही नही है कि सच्चे आदर्श स्थापित हो, हाँ जब आदर्शों की जरूरत पड़ती है तो सरकारों की पुरस्कारों वाली फ़ेहरिस्त में उन्हे ऐसा कोई नही मिलता जिसके आदर्श समाज को प्रभावित कर सके, लेकिन इसका भी जुगाड़ है सरकार के पास.झूठे चरित्रों को क्रान्तिकारी बना देने की क्षमता।
amit kumar gour
January 16, 2010 at 4:47 pm
ये खबर उन लोगो के लिए है जो कि आज के समय मे इंसानो से भी हमदर्दी नही रखते बस समाज के सभी लोगो कुत्ता ही समझते है ..शिरीन आंटी को तो ये पुण्य कार्य कर मोक्ष मिल गई लेकिन ….सरकार और जो की आज के समय मे पशु पक्षियो और पर्यावरण के लिए जागरुकता के नाम पर केवल योजनाओ की रुपरेखा बना रहे है शायद… परमात्मा का कुत्ता इन्हे मोक्ष जरुर दे देगा–
अमित कुमार गौड़ सी.एन ई.बी न्यूज आसइनमेन्ट नोयडा-09312533302
amit kumar gour
January 16, 2010 at 4:49 pm
ये खबर उन लोगो के लिए है जो कि आज के समय मे इंसानो से भी हमदर्दी नही रखते बस समाज के सभी लोगो कुत्ता ही समझते है ..शिरीन आंटी को तो ये पुण्य कार्य कर मोक्ष मिल गई लेकिन ….सरकार और जो की आज के समय मे पशु पक्षियो और पर्यावरण के लिए जागरुकता के नाम पर केवल योजनाओ की रुपरेखा बना रहे है शायद… परमात्मा का कुत्ता इन्हे मोक्ष जरुर दे देगा–
अमित कुमार गौड़ सी.एन ई.बी न्यूज आसइनमेन्ट नोयडा-09312533302
संजीव
January 16, 2010 at 5:45 pm
किसी की कविता पढ़ी थी बहुत पहले- आदमी और कुत्ते में बड़ा फ़र्क़ है/ आदमी मरने से पहले रोता है, चिल्लाता है, शोर मचाता है ख़ूब/ कुत्ता मर जाता है चुपचाप, बिना शोर मचाए/ मगर पता नहीं क्यों/ वाक़ई मुझे नहीं पता/ इस शहर में रोज़/ तक़रीबन हर रोज़/ एक आदमी कुत्ते की मौत मारा जाता है…चुपचाप। ख़ामोश।
Professor cs chauhan kanpur
January 16, 2010 at 9:48 pm
I ALSO CRIED LIKE A dog IN PAST. But situations are different. HERE dogs are crying after the death of lady. That’s why its natural happening. Every one cry when family member leaves for ever. Five years before I also cried on railway station charbag lucknow. At that time my master was alive and was on bed. God lesion my prayer and my sir appeared in office after one month. Why this all
needed to write because we cry when things are gone out of our
control. According to me its not write time for dogs to cry. If they
do same thing during her life may be goD give some MORE time to LIVE WITH lady. At last full of teaching are in this article. What I think I viewed. Ram
ram.
Professor cs chauhan kanpur
payal chakravarty
January 17, 2010 at 4:52 am
शीरीन आन्टी की बेहतरीन सोच का कोई जवाब नहीं। उनकी मौत के बाद निश्चय ही उनके बच्चे अनाथ हो गये होंगे। शीरिन जी यदि हमारी एनिमल ऑर्गनाइजेशन की मदद लेतीं तो आज शायद हजारों बच्चे अनाथ न हुए होते और आगे आने वाले कई सालों तक भी आन्टी उनका साथ दे पाती। मुझे बेहद दुख है कि जानवारों के लिए पिछले कई सालों से काम करने के बावजूद मुझे शीरीन आंटी के बारे में पता नहीं चला।
मैं जानती हूं कि जब कोई व्यक्ति जानवरों के लिए काम करता है तो उसे सोसाइटी में कई विरोधों का सामना करना पडता है ऐसे में बिना िकसी संगठन की मदद लिए न जाने िकतनी परेशानियों का सामना करना पडा होगा । राजू जी आपने जो कंबल आन्टी के लिए लिया था उससे िकसी अबोध जानवर का जैकेट सिलवा दीजिए। हर जानवर जो सडक पर रहता है रोजाना ठंड से कांपता है। ऐसे मे यदि एक थी जानवर को अापके कंबल के कारण थोडी राहत मिल जाए तो शायद आन्टी की आत्मा को शांति मिलेगी। साथ ही उस मूक जानवर की दुआएं भी मिलेंगी। िकसी भूखे जानवर को रोटी खिलाकर उसकी आंखों में देखिएगा उसकी आंखे आपको धन्वाद दे रही होंगी। न जाने ऐसी िकतनी शीरीने होंगी जिन्हें जानवरों के लिए बनी संस्था का पता नहीं चल पाता है। ये नितान्त दुख की बात है।
Kumar Girish
January 18, 2010 at 6:52 am
Payal jee, aap shirin aunti ke anath bachchon ko god lele. isase aapki kasak dur ho jayegi aur bachchon ko naya ghar Mil jayega. Amit jee ham jaise mare logon ke bheetar samvedana jagane ke liye Badhai.
gopal lumar
January 23, 2010 at 12:54 pm
राजू सर, प्रणाम
यह सब पढ़कर कुछ क्षण के लिए सन्न रह गया. अगर आज मैं प्रदीप सर के ब्लॉग पर नहीं जाता तो शायद आप का ब्लॉग नहीं दीखता और मैं इस खबर से दूर ही रहता. सर हर किसी को जितना संभव हो मदद करना चाहिए पर आखिर अब इनडिविजुवली कितनों की मदद हो सकती है. यह लंबा चौड़ा सिस्टम. अरबों खरबों का टैक्स और जनहित योजनाएं कहां हैं.आप तो राजधानी मैं हैं जानते हैं कि गरीबी और अभाव को किसी एक का भला करके नहीं मिटाया जा सकता. इसके लिए योजनाओ को बनाने और बिना भ्रष्टाचार के लागू कराने पर बल देना होगा. मुझे लग रहा है कि अब मैं लीक से हट रहा हूँ. लेकिन आप महान हैं. ये मैं नहीं हर वो कहता है जो आपको जानता है. रही बात खबर कि तो आप जानते हैं कि आज कल कैसे ख़बरें लिखी और दिखाई जाती है.