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वर्ना कोई नौकरी भी नहीं देगा…

रवीश इस दौर के टीवी जर्नलिस्टों के सुपर स्टार हैं. रिपोर्टिंग तो बहुत सारे टीवी जर्नलिस्ट करते हैं, एंकरिंग तो बहुत सारे टीवी जर्नलिस्ट करते हैं, पर रिपोर्टिंग-एंकरिंग करते वक्त खुद को जनता के साथ कनेक्ट कर-रख पाने का माद्दा बहुत कम लोगों में होता है. ये ‘माद्दा’ नामक बल कोई एक दिन में पैदा होने वाली चीज भी नहीं कि किसी मीडिया ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के मास्टरजी की घुट्टी से मिल जाए या किसी सीनियर जर्नलिस्ट की संगत से पैदा हो जाए. ये माद्दा नामक चिड़िया आपके ज्ञान, आपके जनजुड़ाव, आपके जन प्रेम, आपके आवारापन-बंजारापन टाइप जीवनानुभव, आपकी सचेत सोच और आपकी चीजों के प्रति जनपक्षधर नजरिए से पैदा होती है और यही ‘माद्दा’ आपको जर्नलिस्ट बनाता है. पर अब न तो मीडिया मालिक को ऐसा माद्दा वाला जर्नलिस्ट चाहिए क्योंकि उनके लिए माद्दा का मतलब धंधा है.

रवीश कुमार

रवीश इस दौर के टीवी जर्नलिस्टों के सुपर स्टार हैं. रिपोर्टिंग तो बहुत सारे टीवी जर्नलिस्ट करते हैं, एंकरिंग तो बहुत सारे टीवी जर्नलिस्ट करते हैं, पर रिपोर्टिंग-एंकरिंग करते वक्त खुद को जनता के साथ कनेक्ट कर-रख पाने का माद्दा बहुत कम लोगों में होता है. ये ‘माद्दा’ नामक बल कोई एक दिन में पैदा होने वाली चीज भी नहीं कि किसी मीडिया ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के मास्टरजी की घुट्टी से मिल जाए या किसी सीनियर जर्नलिस्ट की संगत से पैदा हो जाए. ये माद्दा नामक चिड़िया आपके ज्ञान, आपके जनजुड़ाव, आपके जन प्रेम, आपके आवारापन-बंजारापन टाइप जीवनानुभव, आपकी सचेत सोच और आपकी चीजों के प्रति जनपक्षधर नजरिए से पैदा होती है और यही ‘माद्दा’ आपको जर्नलिस्ट बनाता है. पर अब न तो मीडिया मालिक को ऐसा माद्दा वाला जर्नलिस्ट चाहिए क्योंकि उनके लिए माद्दा का मतलब धंधा है.

(कई चैनलों में सीनियर रिपोर्टर के पोस्ट पर इंटरव्यू में प्रबंधन द्वारा पूछा जाने लगा है कि आपको अगर फलां बीट दे दी जाए तो आप तुरंत किस मंत्री या किस बड़े नेता से इंटरव्यू ले सकते हैं और कंपनी का काम पड़ जाए तो किस किस नेता मंत्री से करा सकते हैं, नाम बताइए, फटाफट, वरना जाइए, फटाफट) और न ऐसे माद्दा वाला जर्नलिस्ट पैदा हो रहे हैं. अब मीडिया इंस्टीट्यूटों से गमले में उगे बौने पत्रकार आ रहे हैं जो जीवन का अंतिम सच फ्लैट, कार, टीवी, लड़की में देखते हैं. उनका दोष भी नहीं है. समय ही ऐसा है दोस्त. माहौल का असर तो पड़ता है न.  देश में कोई किसी का आदर्श नहीं रह गया है.

सबके सिर पाप में धंसे दिखते हैं. जो साफ-पाक दिखता है, उसकी पोल पट्टी थोड़ी देर में खुल जाती है. लगता है कि ये भी बाजार का ही खेल है कि जो कोई नायक सरीखा बनता दिखे, उसकी चड्ढी उतार दो. वो नंगा दिखेगा और लोग ताली बजाकर हंसेंगे. कभी कहा जाता था कि लोगों की परसनल लाइफ से उनके पब्लिक कांट्रीब्यूशन का आकलन नहीं किया जाना चाहिए. पर अब जो कुछ है वो परसनल लाइफ ही है. अगर परसनल लाइफ आपकी मजेदार है, एलीट है, सोकाल्ड माडर्न है, तो आप बेहद सक्सेसफुल हैं. अगर आपकी परसनल लाइफ विवादित है, गरीब है, डाउन टू अर्थ है तो समझिए आपका किया धरा सब गया क्योंकि बाकी किए धरे से दुनिया कोई वास्ता नहीं रखती. दुनिया को तो मनोरंजन चाहिए और वो मनोरंजन मिलता है आपकी चड्ढी उतारे जाने पर, आपके घर में झांकने पर, आपके बेडरूम में निहारने पर.

बदलते समय में सच के साथ भी दिक्कत पैदा हो गई है. जो उनका सच है, वो हमारा झूठ है. जो हमारा झूठ है, वो उनका सच है. क्लास. वर्ग. मार्क्स खूब याद आने लगे हैं. लोहिया सपने में समझाने लगे हैं. गांधी लाठी उठाकर अपन सबों के यहां से जाने लगे हैं. जो विचारवान दिख रहे हैं, वे सत्ता और बाजार के इर्द-गिर्द झाल-करताल लेकर बिरहा गा रहे हैं, अपनी-अपनी दुकान की ब्रांडिंग में आल्हा सुना रहे हैं, कहीं से ईनाम-इकराम में कुछ माल मिल जाने की उम्मीद में बार-बार बेवजह यूं ही शुक्रिया अदा करते जा रहे हैं. ऐसे दौर में रवीश सरीखा जर्नलिस्ट अगर अपने अंदाज में नई चीजें दे रहा है, जटिल मुद्दों पर बोल रहा है, अपनी दुनिया की विसंगतियों पर लिख रहा है, तो ये बड़ी बात है. रवीश ने अपने ब्लाग पर धोनी-शादी-कांड को लेकर जो कुछ लिखा है, वो आप भी पढ़िए. उसके बाद रवीश की एक और पोस्ट है, जिसमें उन्होंने जर्नलिस्टों के नए ट्रेंड पर कुछ लिखा है, उसे भी देखें. ये दोनों ऐसी पोस्ट हैं, जिन्हें मीडिया से जुड़े हर शख्स को पढ़ना चाहिए. -एडिटर


शादी में नहीं बुलाया तो क्या हुआ-हम तो कवर करते हैं

-रवीश कुमार-

रवीश कुमारआज न्यूज़ चैनल किसी शादी का वीडियो अल्बम लग रहे थे। ग्राफिक्स आर्टिस्टों की मदद से धोनी को शेरवानी से लेकर पगड़ी तक पहना दी गई थी।जिन पंडितों,ज्योतिषियों को धोनी की कुंडली बांचने का मौका न मिला वो स्टुडियो में आकर धोनी और साक्षी की जन्मपत्री बांच रहे थे। बता रहे थे कि गज़ब का संयोग है। जोड़ी निभेगी। अगर टूटेगी तब इन ज्योतिषियों के साथ क्या इंसाफ होगा मालूम नहीं। शायद लाइब्रेरी से निकाल कर ये टेप प्ले किये जायेंगे। देखो झूठा निकला ये ज्योतिष। आजकल लोग कई बार शादियां करते हैं इसलिए ऐसा कह रहा हूं।

ग्राफिक्स आर्टिस्टों ने क्या आइडिया निकाला। ये और बात है कि नाम आइडिया उत्पादक संपादकों का होगा। न्यूज़ रूम में कई लोग गुटका चबाते हुए कहेंगे कि ये फ्रेम मेरा आइडिया था और इस वाले का आइडिया मैंने दिया था। बीच में कोई शरारती किसी के आइडियो को अपना बताकर माहौल गरमा देगा। जैसा कि हर शादी में होता है। एकाध बाराती भड़क जाते हैं। बस मैं यह चाहता हूं कि बारात लौटे तो न्यूज़ चैनलों को इस कामयाबी में प्रोड्यूसर और ग्राफिक्स डिज़ाइनर गुमनाम न रह जाए। विनीत कुमार को ग्राफिक्स आर्ट और टीवी पर भी कुछ लिखना चाहिए।

हर देश में सेलिब्रिटी की ज़िंदगी खबर है। टाइगर वुड्स की बेवफाई पर अमेरिकी अखबारों को उठा कर देख लीजिए। हमारे हिन्दी चैनलों की तारीफ होनी चाहिए। एक शादी पर लोगों ने कितने एंगल निकाले। आजतक ने कपिल देव और मदनलाल को बिठाकर चर्चा की। कपिल से उनकी शादी की चर्चा की। लगता है धोनी ने कपिल पा को नहीं बुलाया फिर भी कपिल पा जी ने धोनी की तारीफ की कि बिना सूचना के शादी की। धोनी ने दिखावा नहीं किया। एंकर ने लेडी लक की बात कही। देखना है साक्षी से शादी धोनी को विश्वकप दिलाएगा या नहीं। बेचारी साक्षी। अगर इंडिया हार गया तो सब कहीं यह न कहने लगे कि मनहूस निकली साक्षी। इसी के कदम पड़े धोनी के जीवन में और कप हाथ से निकल गया।

आम तौर पर दूल्हों को मालूम नहीं होता कि कितनी देर घोड़ी पर बैठे। आजतक ने बताया कि धोनी पांच मिनट तक घोड़ी पर बैठे। विक्रांत के सवाल के जवाब में मदन लाल ने कहा कि मैं तो घोड़ी पर पांच मिनट से ज्यादा बैठा था। दोस्तों ने घोड़ी से उतरने नहीं दी। आज तक की यह चर्चा लाजवाब रही। कपिल पा जी ने कहा कि इस दिन को कोई नहीं भूलता। उसके बाद तुरंत गाना बजा दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है, दुल्हन का तो दिल दीवाना लगता है। नुसरत साहब के इस गाने से मजा आ गया।

तभी आजतक पर बारात से लौटा घोड़ी वाला फ्रेम में एंटर करता है। हिन्दी पत्रकारिता के किसी भावी स्मार्ट रिपोर्टर की तरह। उसने जो आंखें देखा हाल बयान किया उस पर अलग से लिखा जाना चाहिए। थोड़ा सा लिख देता हूं। आजतक ने घोड़ीवाले से बात की। बताया कि जॉन अब्राहम को बराबर से देखा। वो घोड़ी के बराबर खड़े थे। डांस किसी ने नहीं की। इंग्लिश गाने ही बजे। घोड़ी वाला भी पत्रकार की तरह बता रहा था कि और शादी में एक घंटा लगता है लेकिन इसमें तो मुश्किल से पांच मिनट नहीं लगे। सभी रिपोर्टर हंसने लगे। उसकी बातों से ऐसा लगा कि रिपोर्टरों ने उसे तैयार कर भेजा था कि बॉस ये ये चीज़ें देखकर आना और फिर बताना। किसी रिपोर्टर ने यह भी पूछ दिया कि खाना खाया तुमने। घोड़ी वाले ने कहा कि खाना नहीं खाया। कैसा कप्तान निकला अपना। घोड़ीवाले को बिना खिलाये भेज दिया। काहे का सेलिब्रिटी भइया। हेडलाइन बनाना चाहिए था कि कैसा निकला रे तू माही,खाना भी नहीं खिलाया घोड़ी वाले को।

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शादी के सारे वीडियो अल्बम में इस्तमाल होने वाले गानों को सभी चैनलों ने बजाया। एक बार एक बैंड वाले से पूछा था कि एक गाना बताओ जो तुम गरीब से लेकर अमीर तक की शादी में बजाते हो। तो उसने कहा था कि आज मेरे यार की शादी बजाए किसी शादी से नहीं लौटा हूं। आज तक ने इसकी जानकारी दी। एनडीटीवी इंडिया के थोड़े से कवरेज में फार्मेट वीडियो अल्बम वाला ही था। बैकग्राउंड में वही गाने बजे। आज तक के विक्रांत ने कहा कि करोड़ों दर्शक जानना चाहते हैं कि शादी में किस तरह का माहौल है। जवाब में रिपोर्टर ने बताया कि फैन्स काफी दुखी है। आज तक का कवरेज थोड़ा चटकदार और चटकीला लगा। कपिल और मदन लाल की मौजूदगी अलग लुक दे रहा था।

आईबीएन सेवन ने बताया कि धोनी मांगलिक है। सुपर लगा था कि किस्मत की साक्षी। वही बात जो गांव घरों में लोग लड़की को तरसाते हैं। देखो तुम्हारी किस्मत अच्छी है इसलिए इंजीनियर से शादी हो रही है। धोनी से शादी न होती तो न जाने साक्षी की किस्मत क्या होती। खैर यह बताया गया कि धोनी मांगलिक हैं। कुंडली के बारहवें ग्रह में मंगल है। इसलिए शादी से पहले खूब पूजा हवन हुए।

आज के कवरेज पर अलग से लिखा जाना चाहिए। हिन्दी न्यूज़ चैनलों के पास आइडिया की कमी नहीं। नैतिकतावादी बहस करेंगे, रोयेंगे कि देखो पत्रकारिता का क्या हाल हो गया है। वैसे धोनी शादी नहीं करते तो भगवान जाने रविवार का दिन कैसे कटता। मुझे इसी बात का अफसोस रह गया। धोनी सोमवार को शादी करते तो बीजेपी के भारत बंद की बैंड बज जाती। एक विजुअल तक नहीं चलता। महंगाई की मारी जनता टीवी पर धोनी की शादी में मुंह मारती रह जाती। अब भी चांस है। अगर धोनी और साक्षी कल एक सेकेंड के लिए मीडिया के सामने आ जाएं तो मैं भी देखता हूं महंगाई मुद्दा है या माही।

स्टार न्यूज ने खूब कवरेज की। साक्षी के हुए माही,रांची में दीवाली और देहरादून में बारात आदि सुपर लगाए। यहां भी वीडियो अल्बम की तरह डिजाइन बनी थी। दिलाकार वाले खांचे में धोनी और साक्षी को फिट कर दिया गया था। रांची में दोस्तनुमा लफंगों को नाचते हुए दिखाया गया। धोनी रांची में शादी करते और लोकल बाराती होते तो इसी तरह के डांस होते। रिसोर्ट में भागकर धोनी ने उन्हें मौका नहीं दिया तो क्या हुआ स्टार ने कमी पूरी कर दी। हिन्दुस्तान की जनता भी ग़ज़ब है। मिठाई बांटने लगी। बच्चे गुलाल लगाने लगे। क्या जश्न था। जितना रिसोर्ट में नहीं होगा उतना न्यूज चैनलों पर था। भोपाल की दामिनी का मैसेज सरक रहा था कि धोनी तुम दोनों साथ रहो। देश भर से बधाई संदेश भेजे रहे थे। ऐसा नहीं था न्यूज चैनल ही बैंड बजा रहे थे। पब्लिक भी एसएमएस के ज़रिये धोनी की खबरिया बारात में नाच रही थी।

स्टार न्यूज़ ने शादी में बजा पहला गाना सुनाया। पंजाबी गाना था कि तैनू दूल्हा किन्ने बनाया भूतनी के। इस गाने को डीजे ने बजाया। जिस पर क्रिकेटर थिरके। दीपक चौरसिया ने इसे बिजली संकट से जोड़कर अपना टच दे दिया। कहा कि कैप्टन कूल की शादी है और यहां बिजली नहीं है। स्टार न्यूज के अनुसार धोनी ने काली शेरवानी पहनी थी लेकिन आज तक पर घोड़ी वाला बता रहा था कि शेरवानी क्रीम कलर की थी। स्टार के अनुसार साक्षी ने भूरे रंग का लहंगा पहन रखा था। स्टार न्यूज़ ने यह भी बताया कि आइये सुनाते हैं वो दूसरा गाना जिसे डीजे ने बजाया। नगाड़ा नगाड़ा बजा। अरे भाई आज मेरे यार की शादी कब बजा या बजा की नहीं,कोई बतायेगा। आजतक के अनुसार बजा था। स्टार के अनुसार तो पहले दो गानों में नहीं था। स्टार का तुर्की वा तुर्की कवरेज शानदार था। लेख लिखते वक्त दीपक चौरसिया ने मेरी आवाज सुन ली और अपने चैट में कह दिया कि लगता है कि आज मेरे यार की शादी ज़रूर बजाया गया होगा। श्योर नहीं थे लेकिन कोई बात नहीं। जवाब तो दिया न। मैं भी यह लेख लाइव रिपोर्टिंग देखकर साथ ही साथ लिख रहा था।

महेंद्र सिंह धोनी ने क्या समझ रखा है टीवी पत्रकारों को। बारात में इज्ज़त से नहीं बुलायेंगे तो ख़बर नहीं मिलेगी। हिन्दी न्यूज चैनलों ने दिखा दिया कि धोनी बंद कमरे में भी शादी करते तो भी लाइव कवरेज करने और दिखाने की ताकत हैं उनमें। कोई नहीं समझेगा कि हिन्दी के पत्रकार किस दबाव में किस तरह डिलिवर करते हैं। देखना दिलचस्प होगा कि टीआरपी की लड़ाई में बाज़ी कौन मारेगा। यह भी अंदाज़ा लगता है कि न्यूज़ चैनल किस लेवल पर कंपटीशन करते हैं। सारे चैनलों ने शानदार और मज़ेदार कवरेज किए। सब एक से बढ़कर एक। मजा आया। यही न्यूज़ चैनल थे जिन्होंने ऐश्वर्य और अभिषेक की शादी का कवरेज तो किया था लेकिन इतना शानदार नहीं। हो सकता है कि मैं स्मृति लोप का शिकार हो गया हूं मगर माही-साक्षी के कवरेज में वो भी संडे के दिन, इतने कम नोटिस पर जो कवरेज का स्तर था (अच्छा या बुरा वो सेमिनार में बोलूंगा) लाजवाब था। हिन्दी पत्रकारिता ने आज शादी काल गढ़ दिया। अब आगे से शादियां इससे भी बेहतर और व्यापक पैमाने पर कवर की जायेंगी। यह लेख भी शायद यही सोचकर लिख रहा हूं कि भावी संपादक रेफरेंस के तौर पर देख सकेंगे कि क्या क्या हुआ था और उन्हें नया क्या क्या करना है।

आज मैं उन नैतिकतावादियों में शामिल नहीं हूं जो पत्रकारिता के खत्म होने का मर्सिया पढ़ रहे होंगे। जिसकी मौत कई साल पहले हो चुकी है उस पर रोज़ रोज़ मर्सिया पढ़ कर क्या फायदा। न्यूज़ चैनलों की इस शादी के बारात में शामिल हो जाइये वर्ना कोई नौकरी भी नहीं देगा। धोनी की शादी बड़ी ख़बर तो है ही। लेकिन यही खबर है अब यह विषय फालतू हो चुका है। इस होड़ में इंग्लिश चैनल वाले भी थे लेकिन उनका कवरेज थर्ड क्लास रहा। सारी कुलीनता धरी की धरी रह गई। हिन्दी के रिपोर्टर की तरह उन्हें बारात में घुसने का रास्ता नहीं मालूम था शायद। अगर यह सब बाज़ार के दबाव में हुआ तो यह कहना चाहिए कि दबाव में चैनलों ने अच्छा काम किया। तालियां।


पत्रकार अब प्रचार भी कर रहा है

-रवीश कुमार-

रवीश कुमारजो काम फिल्म वाले करते हैं, वहीं अब हम पत्रकार करने लगे हैं। अपनी स्टोरी या शो का सेल्फ प्रमोशन। फेसबुक का स्टेटस अपडेट कब बिलबोर्ड बन गया पता ही नहीं चला। मैं खुद अपनी रिपोर्ट का मल्टी स्तर पर प्रचार करने लगा हूं। यू-ट्यूब में प्रोमो अपलोड कर देता हूं। फेसबुक पर दो दिन पहले से टीज़ करने लगता हूं। एनडीटीवी के सोशल साइट्स पर जाइये तो वहां सारे एंकर और अब तो रिपोर्टर भी अपनी स्टोरी का विज्ञापन करते हैं। बताते हैं कि दस बजे या नौ बजे मेरी रिपोर्ट देखियेगा। नहीं देखा जाने का डर सबको सता रहा है। इतने सारे माध्यम हो गए हैं। हर माध्यम में नाना प्रकार के चैनल या अखबार। टीवी, लैपटॉप, ट्विटर, फेसबुक, आरकुट, अखबार, एफएम इत्यादि। जब एफएम पर न्यूज आने लगेगा तब घर पहुंचते पहुंचते चटपटे अंदाज़ में ख़बर मिल जाया करेगी। फिर कार से निकलकर टीवी के सामने न्यूज के लिए कोई क्यों जाएगा? जब थ्री जी से मोबाइल में ही टीवी चल जाएगा तब टीवी पर क्या देखेंगे मालूम नहीं।

पहले जब कोई रिपोर्ट करता था तो टीआरपी का आतंक नहीं होता था। क्योंकि तब टीआरपी के सौ फीसदी का बंटवारा तीन चार चैनलों में होता था। अब कई चैनलों में होता है। तब एक रिपोर्ट पर कई लोगों की प्रतिक्रिया मिलती थी। अब भी मिलती है लेकिन दर्शकों से कम। उन दर्शकों से मिलती है जो बौद्धिक कार्यों में ज्यादा संलग्न हैं। प्रतिक्रिया देने वाले ज्यादातर लोगों में से भावी पत्रकार हैं या फिर पत्रकार हैं। कई लोग इन दोनों कैटगरी से बाहर के भी हैं। फेसबुक पर सक्रियता के अनुभव से कुछ-कुछ ऐसा लगता है। यह कहने का मेरे पास कोई आधार नहीं है कि लोगों के पास टीवी देखने का वक्त नहीं है। लोग थक कर घर आते हैं तो सीरीयल ही देखते हैं। यही वजह है कि टीवी की खबरों का असर कम होने लगा है। अफसरों पर तो और भी कम हो गया है। इम्पैक्ट का वाइप( जो खबर के असर के तौर पर धांय धांय करता आता है) कम ही दिखता है।

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टीवी को एसएमएस के ज़रिये इंटरएक्टिव बनाने का प्रयास हुआ। राय मंगाई गई। अब यह लगभग बंद होने लगा है। मुझे याद है जब मैंने दरभंगा से अपनी रिपोर्ट की एक पीटूसी में एसएमएस का नंबर ही बोल दिया। स्टुडियो में नग्मा और सिक्ता हंस पड़ी। न्यूज़ चैनलों ने फीडबैक के लिए ईमेल का सिलसिला शुरू किया। मुझे नहीं लगता कि बहुत फीडबैक आते हैं। आते भी हैं तो उनका खास प्रभाव नहीं है। पढ़कर अच्छा ज़रूर लगता है मगर ईमेल से हिन्दुस्तान का दर्शक एसएमएस की तरह राय नहीं भेजता है। इसके बाद न्यूज़ चैनलों ने इंटरएक्टिविटी बढ़ाने के लिए अपने अपने वेबसाइट बना डाले। वेबसाइट पर वीडियो लाइव देखने की सुविधा दे दी गई। टीवी अपनी खबरों को अखबार की तरह छापने भी लगा। अखबार तो टीवी होने का प्रयास नहीं करता। कल ही खबर देखी कि दैनिक भास्कर अपने रिपोर्टर को ऑन स्पॉट रिपोर्टिंग की सुविधा दे रहा है। मालूम नहीं कि यह किस लिए किया जा रहा है। क्या अखबार को भी अब पाठक का संकट हो रहा है जिससे जूझने के लिए वे अब टीवी की तरह बनने लगे हैं।

जो भी हो टीवी संकटग्रस्त हो गया है। यह एक जाता हुआ माध्यम लगता है। थ्री जी के आते ही बड़े बड़े ओबी वैन बेकार हो जाएंगे। कैमरे के साथ सेट टॉप जैसा बक्सा होगा जिससे आप लाइव टेलिकास्ट कर सकेंगे। इसे पूरी तरह सक्रिय होने में कम से कम तीन साल लगेंगे लेकिन थ्री जी का प्रयोग होने लगा है। क्वालिटी खराब है मगर इसका रास्ता निकल आएगा। वर्तमान में टीवी बौरा गया है। वो कभी ट्विटर से कमेंट उठाता है तो कभी फेसबुक से। वॉक्स पॉप लेने का रिवाज भी कम होता जा रहा है।टीवी आंखें ढूंढ रहा है। आंखें किस टीवी को ढूंढ रही हैं मालूम नहीं।

मैं जिस फ्लोर पर रहता हूं। उस में पांच घर हैं। नीचे के फ्लोर पर भी इतने ही हैं। इन दस घरों में से छह मुझे सीधे तौर पर जानते हैं। इनके घरों में मैं कभी भी अचानक चला जाता हूं। लेकिन कभी भी अचानक इन्हें न्यूज़ देखते हुए नहीं पाया। इनमें से एक या दो को मालूम है कि मेरे शो की टाइम क्या है। टीवी खूब देखते हैं। चलता है तो इंडियन आइडल टाइप कुछ चल रहा होता है। मेरे घर में जब बुज़ुर्ग आते हैं तो कभी उनको न्यूज देखते नहीं देखा। सास-ससुर न्यूज के लिए बांग्ला चैनल लगा कर देख लेते हैं। बहुत कम समय के लिए। उसके बाद अगर टीवी चल रहा होता है तो सिर्फ सीरीयल या क्रिकेट के लिए। टीआरपी के विशेषज्ञ एक मित्र ने कहा कि अकेले दिल्ली में न्यूज़ के दर्शकों में चालीस फीसदी की गिरावट है। टैम मीटर की सत्यता पर मेरे जैसे खिन्न पत्रकार ही सवाल उठाते हैं। आज तक किसी मीडिया मालिक को टैम को गरियाते नहीं सुना। जबकि ये काम वो हमसे बेहतर कर सकते हैं। टैम नहीं जाएगा। वो रहेगा।

नहीं देखे जाने के मलाल से सब परेशान हैं। मैं तो फेसबुक पर चैट करने वालों से पूछने लगता हूं कि आपने मेरा शो देखा? न जाने उन पर क्या बितती होगी। बेचारे गरियाते भी होंगे कि चाट है। जब देखो यही बात करता है। कुछ नहीं तो सबके चैट में शो की टाइमिग डाल देता हूं। फिर कई लोगों से पूछने लगता हूं कि देखा मेरा शो। जवाब मिलता है कि मिस कर गए तो मायूस हो जाता हूं। ये एक पत्रकार के व्यवहार में आ रहे बदलाव की आत्मस्वीकृति है। ये तो शुरूआत है। पता नहीं अंत कहां होगी। क्या पता एक दिन मैं टी शर्ट पहनकर घूमने लगूं। जिसके पीछे लिखा होगा कि आप रवीश की रिपोर्ट नहीं देखते हैं? क्या करते हैं। एनडीटीवी के सोशल साइट्स पर लोग अपनी स्टोरी या टॉपिक डालने लगे हैं। स्टेटस मन की बातों के लिए था। हम धंधे के दबाव में आ गए। आखिर सवाल तो है ही क्या हम न देखे जाने के लिए काम करें या फिर वो काम करें जो देखा जा सके। तब क्या हो जब दूसरे टाइप का काम भी करें और देखे न जाएं। मीडिया का असर कम हो रहा है। विविधता से मीडिया को क्या फायदा हुआ इसका अध्ययन किया जाना बाकी है। फिलहाल यह फैसला करना होगा कि क्या करें। बेहतर रिपोर्ट कौन तय करेगा। चार बुद्धिजीवी या फिर चालीस दर्शक।

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0 Comments

  1. rajesh kumar

    July 6, 2010 at 6:51 am

    ravish bhai aapne dhoni ke marriage ki reporting par jo comment likha hai,gajab hai.lajabab.congrts
    rajesh kumar
    reporter,hindustan
    ghaziabad

  2. theanurag

    July 6, 2010 at 7:12 am

    आपका ब्लॉग पड़ा…सत्य है, अब मुश्किल होती है | मन भर जाता हैं ,जब किसी गंभीर विषय पर आप कुछ लिखते हैं और वो विना किसी प्रतिक्रिया के गुजर जाता है , दुःख होता हैं जब सान्या मिर्ज़ा की शादी की खबर की आधी भी झारखण्ड मैं मरे शहीदों को नहीं मिलती..आज की रिपोर्टर ख़बरों से ज्यादा TRP को जानने लगे हैं | व्यवसायिकता के नाम पर फूहड़ता परोसी जाने लगे है , मॉडल की आत्महत्या कश्मीर मैं मरे लोगों से बड़ी हो जाती है, खबरें केवल दिल्ली और मुंबई तक सीमित रह गए हैं और पत्रकार सुविधाभोगी हो गए है |
    वो जमाना गया जब माँ कहती थी की सांच को आंच नहीं किसी भी रूप मैं आये स्वीकृति मिल ही जाएगी, अब तो सच को भी पैकेज करना पड़ता है..उस पैकेज को इन ख़बरों की मंडी मैं बेचना पड़ता हैं , नहीं तो सच या यूँ कहें ख़बरों की दुकान नहीं चलती… आप youtube या twitter पर लगे रहिये, नहीं तो हम जैसे ग्राहकों का क्या होगा जिन्हें चाहे अनचाहे खबर देखने, सुनने और खरीदने की आदत हो गए हैं | अभी फ़िलहाल हमें आपकी दुकान का ही पता याद हैं | ये दुकान चलते रहिये ..

  3. A.khan

    July 6, 2010 at 9:51 am

    रविश सर पहले तो आप इस अदना क सलाम कबूल कीजिए….धोनी की शादी पर जो कुछ भी आपने लिखा है उस पढ़कर एहसास होता है कि आज पत्रकारिता कहां पहुंच गई है…आपने सही लिखा कि अगर सोमवार को धोनी की शादी होती तो महंगाई पर बंद का क्या हाल होता उसका अंदाजा बाखूबी लगाया जा सकता है…सर में आपका बहुत बड़ा फेन हूं..और आपसे हमेशा मिलने की कोशिश करता हू लेकिन कभी कामयाबी नही मिली..और एक दिन अचानक जब में वैशाली में शोपरिक्स मॉल में फिल्म देख रहा था तो अचानक नजर पड़ी कि आप मेरे पास बैठे हुए थे..आप से मिलकर मुझे बेइंतेहा खुशी हुई..शाटद आज कल की पत्रकारिता की तरह ही अपको फिल्म काइटस भी अच्छी नही लगी और आप थोड़ी देर में वापस चले गए…सर आप जिस तरह की पत्रकारिता करते है करते रहिए मेरे जैसे ना जाने कितने लोग इसी पत्रकारिता को पसंद करते है..आप खबरों की चकाचोद में गुम न हो जाना आप चलते रहिए जीत हमेशा सच्चाई की ही होती है….आपका………………

  4. रंजीत कुमार राज

    July 6, 2010 at 9:54 am

    सर नमस्कार
    आपने धौनी की शादी पर अदभूत कहानी लिखी है,क्या सही है और क्या गलत है ,आज के इस बाजारवाद के युग में इसका आकलन करना काफी मुश्किल हो गया है,अपने पेशे में तो खासकर और भी मुश्किल हो गया है,आजतक और स्टार न्यूज,आईबीएन 7,इंडिया टीवी जैसे चैनलों की मौजदूगी में चैनलों की अहमियत आम लोगों के बीच काफी कम हुई है।आमतौर पर समाचार की आम परिभाषा है-कि कोई सूचना जो सापेक्ष जनहित के तराजू पर खरी उतरे और जो संदर्भिता एवं तारतम्यता की चाहरदीवारी के भीतर रहते हुए जनता तक पहुंचे। लेकिन यहां यह भी जान लेना जरूरी है कि जनहित अनिवार्य रूप से वह नहीं है जिसमें जनता की रुचि हो। जनता की रुचि कई निम्न वृत्तियों में होती है, लेकिन न्यूज मीडिया पोर्नोग्राफी को खबर नहीं बना सकता।कई बार मनोरंजन की आवश्यकता दर्शकों को होती है,लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हम दिन भर धौनी की शादी की खबरों को दिखाते रहें,वो भी तब जब कि केवल अफवाहों पर काम चलाना है,(जैसै-कोई चैनल कह रहा है धौनी ने चॉकलेटी शुट पहना है,तो कोई क्रीम बता रहा है)चैनलो की इस तरह की हरकत को क्या कहा जाए ,ये मेरी समझ से बाहर है,आपने एक तरह से इसे बाजार की मांग बताया है,तो क्या सर आप ये बता सकते हैं कि कितने दिनों बाद हमारे इन चैनलों से हमारी आपकी समस्याओं पर केंद्रित समाचारों का प्रसारण बंद हो जाएगा।धौनी की शादी की खबर को बिना कंटेंट के ग्राफिक्स और संगीत के माध्यम से दिखाना किस तरह से बाजारी की माग को पूरा करता है,लेकिन इतना तो जरूर है कि इस तरह की रिपोर्टिंग और प्रसारण से हमारी प्रतिबद्धता पर शक होता है और हमारी जेहनियत पर प्रश्नचिह्न लगता है।
    रंजीत कुमार राज,पत्रकार

  5. रंजीत कुमार राज

    July 6, 2010 at 9:55 am

    सर नमस्कार
    आपने धौनी की शादी पर अदभूत कहानी लिखी है,क्या सही है और क्या गलत है ,आज के इस बाजारवाद के युग में इसका आकलन करना काफी मुश्किल हो गया है,अपने पेशे में तो खासकर और भी मुश्किल हो गया है,आजतक और स्टार न्यूज,आईबीएन 7,इंडिया टीवी जैसे चैनलों की मौजदूगी में चैनलों की अहमियत आम लोगों के बीच काफी कम हुई है।आमतौर पर समाचार की आम परिभाषा है-कि कोई सूचना जो सापेक्ष जनहित के तराजू पर खरी उतरे और जो संदर्भिता एवं तारतम्यता की चाहरदीवारी के भीतर रहते हुए जनता तक पहुंचे। लेकिन यहां यह भी जान लेना जरूरी है कि जनहित अनिवार्य रूप से वह नहीं है जिसमें जनता की रुचि हो। जनता की रुचि कई निम्न वृत्तियों में होती है, लेकिन न्यूज मीडिया पोर्नोग्राफी को खबर नहीं बना सकता।कई बार मनोरंजन की आवश्यकता दर्शकों को होती है,लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हम दिन भर धौनी की शादी की खबरों को दिखाते रहें,वो भी तब जब कि केवल अफवाहों पर काम चलाना है,(जैसै-कोई चैनल कह रहा है धौनी ने चॉकलेटी शुट पहना है,तो कोई क्रीम बता रहा है)चैनलो की इस तरह की हरकत को क्या कहा जाए ,ये मेरी समझ से बाहर है,आपने एक तरह से इसे बाजार की मांग बताया है,तो क्या सर आप ये बता सकते हैं कि कितने दिनों बाद हमारे इन चैनलों से हमारी आपकी समस्याओं पर केंद्रित समाचारों का प्रसारण बंद हो जाएगा।धौनी की शादी की खबर को बिना कंटेंट के ग्राफिक्स और संगीत के माध्यम से दिखाना किस तरह से बाजारी की माग को पूरा करता है,लेकिन इतना तो जरूर है कि इस तरह की रिपोर्टिंग और प्रसारण से हमारी प्रतिबद्धता पर शक होता है और हमारी जेहनियत पर प्रश्नचिह्न लगता है।
    रंजीत कुमार राज,पत्रकार

  6. raj

    July 6, 2010 at 9:56 am

    Ravish Sir, आखिर सवाल तो है ही क्या हम न देखे जाने के लिए काम करें या फिर वो काम करें जो देखा जा सके। aapke iss aakhiri sawaal ka utttar mein khud khojne mein laga hon..kisi nishkarsh per aphucnho ki gyaanvardhan kijiyega..yeh madhyam ab aakrshan heen ho gaya hai..kisi yuva ko iss aur bhaghte dekhta hon to taras aata hai..

  7. prafulla nayak 09425111001

    July 6, 2010 at 9:59 am

    ravish bhai aapke har report damdar hoti hai. lagta hai ki palak jhapkane se koi badi bat miss ho jayge, isliye aplak dekhna padti hai.

  8. piyush

    July 6, 2010 at 10:27 am

    Ravish ji ki farzi report…
    public ko chutiya bana raha hai aur kuch nahi….
    Din bhar face book aur blog pe baithe rehte hain..
    internet se bahar nikal kar dekho bahut saari report milegi..
    net se photo download kar ke apne blog par laga do aur kaho ravish ki report yahi kaam aaj ke ye mahan nayak log kar rahe hain..Aur wo log bhi gadhe hai jo inki baat mein haan mein haan milate hain…

  9. nkdiwan"shelly"

    July 6, 2010 at 10:42 am

    Ravish ji …Aapne badhia likha hai.Lekin media ko jabardasti coverage karke bin bulaye jaakar apni bhutt pitvakar kya mila.Chnneloan ko TRP badhne ka bhramm matra hai .Pura din darshak jabardasti ki coverage dekh kar BOR hi hue aur kheeje bhi..Theek hai aaj dhoni ka glamour hai iskaa matlab ye nahi jabardasti kisise chipko..Media ko apni kadra samjhani hogi Nahi to deepak chorasia jaise patrakaron ki tarah beijjat hona padhega……
    Shelly ..(ex Photojournalist Dainik Jagran)

  10. piyush

    July 6, 2010 at 11:15 am

    yashwant ji meinne bhi ek post likha hai ravish ji ko please usse post kijiye..itna kharab bhi nahi likha hai ..

  11. BIJAY SINGH

    July 6, 2010 at 11:50 am

    DALALI AUR CHAPLOOSI KARNA CHOD DIJIYE AAP LOOG COVERAGE KE NAAM PAR.BESHARMI KI HAD HAI.

  12. raj kumar

    July 7, 2010 at 5:50 am

    ravish sir aap great he…aap jaisa koi nhi

  13. shishupal singh

    July 7, 2010 at 10:15 am

    bahut khub yashwant babu..chaplusi khud bhi karo aur dusro ke nam par farzi bhi likho.aur jab tumhare bik jane ki koi bat likhe to wo gol kar jao.dhanya ho aesa sampadak.ravish ke talwe chatne ke kitne paise miley ??

  14. Alok Vani

    July 7, 2010 at 11:45 am

    Aap Yashwant ko chaplus kahe yaa talwe chaatne wala lekin Ravish Ji ki lekhani mai dum hai yeh to maanana hi padega. Bhaskar wale bhi live reporting karwana chahte hai, darasal TV News ki raftar ne news papers ko bhi kaam karne ke liye majbur kar diya hai warna chahe jo ho jaaye akhbar ke liye khabar ka matlab agency ki copy se zyaada nahin hota tha.

  15. op gaur

    July 8, 2010 at 7:22 am

    sir, you are supper

  16. vicky

    July 9, 2010 at 4:02 am

    kab tak news channels ko kostey kostey kam karoge…ab maan bhi lo bhaiyon ki news channel me khabar kam aur nautanki jyada rahegi…fir dekhna zindgi haseen lagne lagegi…yahi param satya hai…waise waqt zaroor badlega..par tab tak hum hi khud ko badal lete hain…kam se kam tab tak sukoon to rahega..ha ha!!

  17. kumar sanjay singh

    September 1, 2010 at 9:36 am

    ganv ke aangan me utarte sanjh aur matmaili godhuli see ahasaas karati aapki bhsha ek thnda sa unchhvaas lene ko majboor karti hai…..kaafee sadha hua lekhan hai ….raveesh ji haare hue logon ki ek samoochi kaum ki aawaj aapke andar basi hai ….kya kahen aapki report ke baare me….achchha bura kuchh bhi naheen ..sab chhote pad jaayenge..bas aapke shabdon ke ehsaas ko jeeta chalta hai main …

    kabhi media ki kuttagiri ke baare me bhi likhiye na

    please

    sanjay singh

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