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इस्तीफानामा : आशा है परेशानी कम होगी

[caption id="attachment_14965" align="alignnone"]अंचल सिन्हाअंचल सिन्हा : ज़िंदगी और बता, तेरा इरादा क्या है…[/caption]

अंचल सिन्हा जब तक बैंक की नौकरी करते हुए शौकिया तौर पर पत्रकारिता करते थे, उन्हें यह पढ़े-लिखों, विचारवानों और सरोकारों की दुनिया समझ में आती थी।

अंचल सिन्हा
अंचल सिन्हा

अंचल सिन्हा जब तक बैंक की नौकरी करते हुए शौकिया तौर पर पत्रकारिता करते थे, उन्हें यह पढ़े-लिखों, विचारवानों और सरोकारों की दुनिया समझ में आती थी।

वे पत्रकारिता और पत्रकारों की बहुत कद्र किया करते थे। वे बैंक की नौकरी करते हुए भी ढेर सारे अखबारों, पत्रिकाओं में लिखते-पढ़ते रहते थे। पत्रकारिता के प्रति अपनी आदर्शवादी समझ व सोच के चलते ही उन्होंने वीआरएस के जरिए बैंक की नौकरी को बाय बोला और फिर पूर्णकालिक पत्रकार बनकर चौथे खंभे के मिशन-विजन को मजबूत बनाने के लिए जुट गए। अंचल के कार्य का इलाका बिजनेस पत्रकारिता रहा है, सो, वे दिल्ली से निकलने वाले ‘बिजनेस भास्कर’ की लांचिंग टीम के हिस्से बन गए। बाहर से जन्न्त की तरह नजर आने वाली पत्रकारिता की दुनिया के अंदर आने के बाद अंचल को ‘जन्नत की हकीकत’ का पता जल्द ही चल गया। उन्होंने इस्तीफा दे दिया। अंचल के इस्तीफे की खबर भड़ास4मीडिया पर पहले ही प्रकाशित की जा चुकी है। आज अंचल सिन्हा का इस्तीफानामा प्रकाशित कर रहे हैं।

चूंकि अंचल सिन्हा पत्रकारिता में लाभ कमाने के मकसद से नहीं आए थे, पत्रकारिता में करियर बनाने के मकसद से नहीं आए थे, पत्रकारिता के जरिए शोहरत पाने की तमन्ना नहीं की थी, इसलिए उनके अंदर वो बुनियादी पत्रकारीय साहस जिंदा है, जो होने को तो हर पत्रकार में होना चाहिए पर अफसोस ये कि ज्यादातर पत्रकार इससे रीते हैं। बुनियादी साहस व समझ के अभाव के चलते ज्यादातर पत्रकारों ने पेट पालने को मजबूरी मान लिया है। इसीलिए पेट पालते रहने व ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं हासिल करते रहने को ही इऩ लोगों ने सबसे बड़ी चुनौती मान लिया है, सबसे बड़ा लक्ष्य बना लिया है। यही वजह है कि ये लोग पत्रकारिता नहीं बल्कि चाकरी उर्फ नौकरी कर रहे हैं। पत्रकारिता नहीं बल्कि मालिक की गुलामी कर रहे हैं। वे पत्रकार नहीं रह गए हैं बल्कि ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने के मकसद से चलाई जा रही फैक्ट्री उर्फ कंपनी के कल-पुर्जे बन गए हैं।

इन पत्रकारों के लिए अंचल का यह इस्तीफानामा नसीहत की तरह है, अगर ले सकें तो कि जितना कंप्रोमाइज करोगे, उससे ज्यादा कंप्रोमाइज करने की उम्मीद की जाएगी। जितना डरोगे, उतना ज्यादा डराया जाएगा। जितना झेलोगे, उससे ज्यादा झेलाने की व्यवस्था की जाएगी। जितना चुप रहोगे, उससे ज्यादा चुप्पी साधने के लिए आतंकित किए जाओगे। वो कहते हैं न, जिस दिन तुम डरना बंद कर दोगे, उस दिन लोग तुमसे डरने लगेंगे।  यह सच है कि बाजार ने इस दौर में मेट्रो शहरों में रह रहे ज्यादातर लोगों को सुविधाभोगी, पतित, विचार व रीढ़विहीन, संवेदनहीन और अमानवीय बना दिया है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि इसी को हम सभी रास्ता मानकर इसी राह चल पड़ें। नए रास्ते बनाए जाने चाहिए और बहुत सारे लोग बना भी रहे हैं। नए रास्ते बनाने की शुरुआत, इतिहास गवाह है, कोई भी, कहीं से भी, और किसी भी रूप में कर सकता है बशर्ते उसके अंदर बेसिक इमानदारी और बुनियादी साहस हो। खैर, भाषण फिर कभी, पहले अंचल के साहस को सलाम करते हुए उनके इस्तीफेनामे को पढ़ते हैं और इससे कुछ समझते-सीखते हैं।

एडिटर, भड़ास4मीडिया

26 मई 2009

आदरणीय यतीश जी / हरवीर जी

मैं बैंक छोड़कर इसीलिए अखबार में आया था कि आप लोग मेरी पिछली 25 वर्षों से ज्यादा की पत्रकारिता और स्वतंत्र लेखन को ध्यान में रखकर बिजनेस भास्कर में उचित स्थान देंगे। पहले भी जब मेरा बैंक में इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ था, मैं बैंक तथा अन्य विषयों पर लगातार रिर्पोटिंग करता रहा था और आप लोगों ने मेरी सैकड़ों स्टोरी को उचित स्थान देते हुए छापा भी। मुझे यह भी छूट दी गई थी कि मैं घर से भी स्टोरी मेल कर दूं।

पिछले कुछ दिनों से मैं महसूस कर रहा हूं कि बैंक से पूरी तरह मुक्त होने के बाद से अचानक मेरी कोई भी स्टोरी या आलेख, यहां तक कि ग्रासरुट डायरी भी, जिसमें अनेकों बार कूड़ा सामग्री भी छप जाती है, नापसंद कर दी जा रही है। एक दिन मुझे श्री हरवीर जी ने कहा कि मैं स्टोरी कम करके अखबार के डाटा वाले पेज पर ही अपने को केंद्रित रखूं।

अब उनका आदेश मिला है कि मुझे किसी भी तरह की स्टोरी नहीं करनी है, केवल डाटा अपडेट करना है। मैंने कई बार खुद को रेगूलर करने के बारे में भी पूछा तो कहा गया कि अभी आर्थिक मंदी है, बाद में सब होगा। पर जब मुझे केवल डाटा अपडेट करने के लिए ही कहा गया है तो मुझे लगा कि मुझे आपका इशारा समझ लेना चाहिए। क्योंकि इस तरह के कार्य तो एक सामान्य क्लर्क भी कर सकता है।

शायद आपको सीधे कहने में संकोच होता होगा, इसलिए आपके इशारे को समझते हुए मैं अपने को बिजनेस भास्कर से अलग करना चाहता हूं। वैसे भी मैं कहीं भी अनवांटेड गेस्ट की तरह नहीं रहता।

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मैं पहली जून से अपने को अखबार से अलग कर रहा हूं।

आशा है, इससे मेरे कारण आपकी परेशानी कम होगी।

धन्यवाद !

आपका,

अंचल सिन्हा


इस मुक्ति पत्र के लिए अंचल सिन्हा को बधाई आप [email protected] पर दे सकते हैं।
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0 Comments

  1. puja

    March 3, 2010 at 5:09 am

    good….keep it up..

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