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आरटीआई कानून से गृह मंत्रालय भी दहशत में!

सरकारी विभाग सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी देने में आनाकानी करते हैं। जानकारी देते भी हैं, तो शर्तों के साथ। गृहमंत्रालय ने पद्म सम्मान के बारे में आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराते हुए आवेदक को संबंधित जानकारी मीडिया को न देने के लिए भी चेताया है। सुभाष अग्रवाल ने गृहमंत्रालय से जानकारी मांगी थी कि पदम सम्मान के लिए किन नामों को हरी झंडी दी गई, किनको इस सम्मान के उपयुक्त नहीं माना गया।

<p align="justify">सरकारी विभाग सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी देने में आनाकानी करते हैं। जानकारी देते भी हैं, तो शर्तों के साथ। गृहमंत्रालय ने पद्म सम्मान के बारे में आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराते हुए आवेदक को संबंधित जानकारी मीडिया को न देने के लिए भी चेताया है। सुभाष अग्रवाल ने गृहमंत्रालय से जानकारी मांगी थी कि पदम सम्मान के लिए किन नामों को हरी झंडी दी गई, किनको इस सम्मान के उपयुक्त नहीं माना गया। </p>

सरकारी विभाग सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी देने में आनाकानी करते हैं। जानकारी देते भी हैं, तो शर्तों के साथ। गृहमंत्रालय ने पद्म सम्मान के बारे में आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी उपलब्ध कराते हुए आवेदक को संबंधित जानकारी मीडिया को न देने के लिए भी चेताया है। सुभाष अग्रवाल ने गृहमंत्रालय से जानकारी मांगी थी कि पदम सम्मान के लिए किन नामों को हरी झंडी दी गई, किनको इस सम्मान के उपयुक्त नहीं माना गया।

इस पर मंत्रालय ने बताया कि इस साल पदम सम्मान के लिए कुल 1163 नामों की संस्तुति की गई। सम्मान के लिए नामों को अंतिम रूप देने वाली समिति ने इनमें से 130 लोगों को ये सम्मान देने के उपयुक्त माना। जिन लोगों को पदम सम्मान समिति ने इन सम्मानों के लिए उपयुक्त नहीं माना उनमें पूर्व सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्र, चित्रकार जतिन दास और नृत्यांगना पदमा सुब्रमण्यम शामिल हैं।

मंत्रालय ने इस जानकारी के साथ आवेदक के लिए एक कैविएट (चेतावनी पत्र) भी नत्थी कर दी। इसमें कहा है कि जो जानकारी आवेदक को दी गई है, उसे मीडिया के साथ न बांटा जाए। हालांकि आरटीआई कानून में संबंधित विभाग द्वारा इस तरह की चेतावनी या निर्देश देने की कोई व्यवस्था नहीं है। मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह का इस संबंध में कहना है, ‘आरटीआई कानून के तहत यह संभव नहीं है कि कोई विभाग किसी सूचना के बारे में इस तरह चेतावनी, शर्त, सुझाव या आग्रह करे। एक बार कानून के तहत जो सूचना दे दी गई, वह सार्वजनिक ही है।’ सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने इसी तरह की राय जाहिर की है।

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0 Comments

  1. vikas bokdia

    April 9, 2010 at 10:25 pm

    chor ki dadhi me hamesha tinka kulbulata rahta he,sach ka samna karne ki himmat to sarkar ko jutani he hogi, varna jo puraskar pa gaye vo pavitra aur prathishthit ho gaye aur jo rah gaye unka kya.baat kasoor ki nahi usuul ki hai

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