सचिन मिश्रा हाल-फिलहाल तक अमर उजाला, लखनऊ में सब एडिटर हुआ करते थे. वहां से इस्तीफा देकर दैनिक हिंदुस्तान, कानपुर में ज्वाइन कर लिया. अमर उजाला छोड़ते वक्त उन्होंने इस अखबार के मालिक अतुल माहेश्वरी को एक लंबा पत्र लिखा. पत्र के जरिए उन्होंने अमर उजाला, लखनऊ के स्थानीय संपादक अभिजीत मिश्रा की शिकायत कर डाली. लोग कहते हैं कि अशोक पांडेय अमर उजाला, लखनऊ से गए हैं तो उनके करीबी लोग अभिजीत मिश्रा पर तरह-तरह के आरोप लगाकर संस्थान छोड़ रहे हैं और वे लोग फिर से अशोक पांडेय के साथ हिंदुस्तान में जुड़ रहे हैं. दूसरी ओर, यह भी कहा जा रहा है कि अभिजीत मिश्रा ने आरई की कुर्सी संभालते ही पूर्व आरई अशोक पांडेय के करीबी लोगों को टारगेट कर परेशान करना शुरू कर दिया जिसके कारण एक-एक कर ये लोग संस्थान छोड़कर जा रहे हैं. दोनों पक्षों में कौन सही है, कौन गलत है, ये तो किसी बड़ी जांच से ही पता चल सकता है लेकिन फिलहाल हम यहां सचिन मिश्रा के इस्तीफेनामे को पब्लिश कर रहे हैं ताकि पता चल सके कि उन्हें क्या, किससे व किस तरह की शिकायत है.
-एडिटर
सेवा में,
आदरणीय अतुल माहेश्वरी जी
प्रबंध निदेशक
अमर उजाला समूह
नोएडा,
सर,
सादर प्रणाम। मैं पिछले दो वर्षों से अमर उजाला प्रकाशन लिमिटेड के लखनऊ संस्करण से जुड़ा हुआ हूं. इस दौरान (अप्रैल 2008 से अब तक) अब तक मेरा कार्य संतोषपूर्ण रहा, लेकिन इधर कुछ दिनों से मेरी निष्ठावान कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है। एक व्यक्ति विशेष को लेकर सीधे तौर पर मानसिक उत्पीड़न किया जा रहा है। अगर ऐसा ही रहा तो इससे संस्थान का अहित ही होगा। वर्तमान संपादक श्री अभिजीत मिश्रा का नजरिया भी कुछ ऐसा ही है। वह कुछ विशेष लोगों को अपने निशाने पर रखे हैं, उनमें से एक मैं भी हूं। निष्ठावान लोगों को संस्थान से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। क्या उनका दोष केवल इतना ही है कि वे संपादक अभिजीत मिश्रा के इशारों पर नहीं दौड़ रहे हैं।
जैसा कि ज्ञात हो, अमर उजाला समूह को अनुशासन की सीढ़ी समझा जाता है, लेकिन यहां तो स्थिति बिलकुल विपरीत है। अगर यहां ऐसा ही बना रहा तो कौन संस्थान को अपना भावी भविष्य बताएगा, ऐसी जगह जहां लगातार निकालने की धमकी दी जाती रहती है, वहां किसका मनोबल टूटेगा नहीं। हालांकि एक बात जरूर कहना चाहूंगा कि इन दो वर्षों में मैंने अमर उजाला से बहुत कुछ सीखा। ऐसी-ऐसी चीजें जो भविष्य में मुझे न केवल देश के किसी भी समाचार पत्र में नौकरी दिलाने में, बल्कि एक नया आयाम भी स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।
मुझे नहीं लगता कि इस तरह के माहौल में संस्थान को मैं अपनी सेवाएं दे सकूंगा। इस तरह का दर्द मेरा ही नहीं, बल्कि संस्थान के कई ऐसे कर्मचारियों का है, जो अमर उजाला, लखनऊ संस्करण के साथ पूरी निष्ठा और लगन से जुटे हैं। हालांकि वे नौकरी जाने के डर से अपना दर्द बयां नहीं कर पा रहे हैं। इन अपमानजनक स्थितियों में मैं आगामी 1 मार्च 2010 से संस्थान की और सेवा नहीं कर पाऊंगा।
आपका
सचिन मिश्रा
सब एडिटर
अमर उजाला
लखनऊ
mansi
February 15, 2010 at 7:02 am
badhai sachin new job ke liye
कमल शर्मा
February 15, 2010 at 8:45 am
सचिन, अपनी बात सामने रखने के लिए साधुवाद। बस केवल आगे बढ़ो।
anuj agarwal ex emp amar ujala
February 15, 2010 at 9:24 am
badhai sachin ji,
aapney khula patra likhkar management ko bastbikta sey aabgat karakar sahi kadam uthaya hai. amar ujala aab woh nahi raha jo pahley tha.
amar ujala ki taaraki sey kabhi bahut khusi hoti thi.
thanks
anuj agarwal
ex asst manager
amar ujala bareilly
supreet
February 15, 2010 at 9:25 am
badhiya sachin…….jahan sukun nahi waha kam nahi………….
संजय
February 15, 2010 at 9:42 am
नौकरी छोड़ कर जाने वाले पत्रकार ने श्री अभिजीत मिश्रा पर मानसिक प्रताडऩा का जो आरोप लगाया है, वह ठीक नहीं लगता है। किस संस्थान में कौn -सा पत्रकार मानसिक रूप से प्रताडि़त नहीं है। पत्रकार महोदय को नौकरी मिल गई तो भड़ास निकालने के लिए श्री माहेश्वरीजी को पत्र लिख दिया।
जहां तक मैं समझता हूं। श्री अभिजीत मिश्राजी के चहरे पर कठोरता के जो भाव दिखता है, व्यवहारिक रूप में वे उतने कठोर नहीं है। उनके अंदर भी जिंदादिली है। उन्हें मैं तब से जानता हूं जब वे अमर उजाला के नई दिल्ली में मुख्य संवाददाता थे। अपनी प्रतिभा और कार्यकौशल के बल पर ही यहां तक पहुंचे हैं।
वैसे भी जब भी कोई नया व्यक्ति प्रभार संभालता है, वह थोड़ा सा बदलाव करना चाहता है। पुराने लोग बदलाव को सहन नहीं कर पाते हैं। क्योंकि वस्तुस्थिति में थोड़े से भी बदलाव से पुराने लोगों को असुरक्षा महसूस होने लगती है। मुझे लगता है कि श्री अभिजीत मिश्राजी समाचारपत्र में कुछ सकारात्मक बदलाव करना चाहते होंगे और यही कुछ बातें पुराने सहयोगियों को पसंद नहीं आई होगी।
संजय
vikas srivastava
February 15, 2010 at 11:02 am
bahut badhia sachi jee apke is kadam se hum nay Journalisst ke liye hoshala dene wala hai, main v is ka sikar hun. main us sansthan ka name to nahi likhunga kyon ki abhi main full time patrakarita me naya naya hun.
dd pandit
February 15, 2010 at 1:19 pm
sanjay ji ne jo likha hai meri najar me chtukarita hai>:(
shashikant
February 17, 2010 at 5:38 am
i thinks u are duing right