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उदयन शर्मा : पत्रकार भी, एक्टिविस्ट भी

सलीम अख्तर सिद्दीकीउदयन शर्मा की पुण्य तिथि 23 अप्रैल पर उनको याद करना 1977 में शुरू हुई उस हिन्दी पत्रकारिता को भी याद करना है, जब उदयन, एमजे अकबर व एसपी ने ‘रविवार’ के माध्यम से हिन्दी पत्रकारिता को नए तेवर प्रदान किए थे। 11 जुलाई 1949 को जन्मे उदयन पत्रकार ही नहीं, एक्टिविस्ट भी थे।

सलीम अख्तर सिद्दीकी

सलीम अख्तर सिद्दीकीउदयन शर्मा की पुण्य तिथि 23 अप्रैल पर उनको याद करना 1977 में शुरू हुई उस हिन्दी पत्रकारिता को भी याद करना है, जब उदयन, एमजे अकबर व एसपी ने ‘रविवार’ के माध्यम से हिन्दी पत्रकारिता को नए तेवर प्रदान किए थे। 11 जुलाई 1949 को जन्मे उदयन पत्रकार ही नहीं, एक्टिविस्ट भी थे।

उदयन जी विचारों से पक्के समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शख्स थे। उन्होंने दीन-हीन हिन्दी पत्रकारिता को नए आयाम दिए। जब 23 अप्रैल 2001 को उनका निधन हुआ तो निर्भीक, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष पत्रकारिता का एक युग समाप्त हो गया। उदयन शर्मा का ये विशेष गुण था, वो अपने लिए नहीं जीते थे, वे अपने नहीं लिखते थे। जहां भी पीड़ा हो दर्द हो, जहां भी उत्पीड़न हो, जहां भी मनुष्य विपत्ति में हो, उसकी आवाज उठाने का काम उदयन शर्मा ने किया था। हालांकि एक वक्त में उदयन शर्मा रिपोर्टर से सम्पादक बन गए थे, लेकिन उनकी दिलचस्पी रिपोर्टिंग से कभी नहीं हटी। उनका मानना था कि अगर पत्रकार रहना है तो रिपोर्टर बनकर रहो। वो यह भी कहते थे कि जो सम्पादक रिपोर्टर नहीं रहता उसका सम्बन्ध उसकी अपनी जमीन यानी ‘फील्ड’ से छूट जाता है। उदयन जी के लिए पत्रकारिता सिर्फ पाठकों तक सूचनाएं पहुंचाने का पेशा नहीं थी। घटनाक्रम, उसके पीछे के कारकों तथा भावी परिणामों  के प्रति सजग करना भी वह अपना दायित्व मानते थे। सामाजिक और व्यवस्थापक बदलावों के लिए काम करना भी वह पत्रकार का दायित्व मानते थे।

उदयन जी एक खास बात यह भी थी कि उनका कभी कोई स्थाई दुश्मन या दोस्त नहीं रहा। उन्होंने यदि किसी के खिलाफ लिखा और उस आदमी ने उन्हें बैठाकर अपना नजरिया समझा दिया तो उसके पक्ष में लिखने से भी संकोच नहीं किया। जब वीपी सिंह ने कांग्रेस से निकलकर जनता दल बनाया तो उदयन शर्मा ने ‘रविवार’ में वीपी सिंह के खिलाफ जबरदस्त अभियान चलाया था। उन्होंने वीपी सिंह को ‘बेईमान राजा’ से ‘शर्मीला ब्रूटस’ तक लिख डाला था। बाद में जब वीपी सिंह ने अपना पक्ष उन्हें समझाया तो उन्होंने वीपी सिंह को ‘शालीनता की अदभुत मिसाल’ कहने से भी गुरेज नहीं किया। यदि वे किसी के स्थाई दुश्मन थे तो वो थे साम्प्रदायिक लोग, जिन्हें उन्होंने कभी नहीं बख्शा। साम्प्रदायिक लोग हिन्दू थे या मुसलमान इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। उदयन की साम्प्रदायिक दंगों की रिर्पोटें तो पत्रकारिता के छात्रों के लिए दस्तावेज की तरह हैं। अस्सी का दशक भारत खासतौर से उत्तर भारत साम्प्रदायिक दंगों की चपेट में था। उदयन शर्मा ने साम्प्रदायिक दंगों की वास्तविकता और उनके पीछे लगे दिमाग और हाथों को कस कर बेनकाब किया। जब बेनकाब साम्प्रदायिक ताकतें किसी अन्य समाचार माध्यम से उनकी आलोचना करती थीं तो वे केवल मुस्कराकर कहते थे-‘हाथी चलता है, कुत्ते भौंकते हैं।’ साम्प्रदायिक दंगों पर उनकी रिर्पोटिंग इतनी अथेंटिक होती थी कि अंग्रेजी साप्ताहिक ‘संडे’ भी उनकी हिन्दी रिपोर्ट्‌स को अंग्रेजी में अनुवाद करके प्रकाशित करता था। पाठक उनकी रिपोर्ट को पढ़कर जानता था कि सच क्या है। उदयन शर्मा की एक खास बात यह भी थी कि वे पत्रकार के साथ ही एक एक्टिविस्ट भी थे। वे चन्द्रशेखर की भारत यात्रा के साथ पूरी तरह जुड़े रहे। इस यात्रा से उन्हें देश और लोगों को समझने में आसानी हुई। जब चम्बल घाटी के कुछ दस्युओं ने आत्मसमर्पण किया तो समर्पण कराने में उनकी भूमिक भी थी।

उदयन शर्मा ने राजनीति में भी हाथ आजमाए थे। राजनीति में वे केवल इसलिए नहीं आना चाहते थें कि उनके कई पत्रकार मित्र ‘जोड़-तोड़’ करके राज्यसभा में पहुंच गए थे। उनका मानना था कि राजनीति से भी समाज में बदलाव का काम किया जा सकता था। लेकिन वे राज्यसभा में नहीं बल्कि जनता के द्वारा चुनकर लोकसभा में जाना चाहते थे। लेकिन दूसरों का राजनैतिक आकलन करने में माहिर उदयन शर्मा अपना आकलन करने में गच्चा खा गए। 1985 में जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में कांग्रेस के पक्ष में लहर चल रही थी तो वे चौधरी चरण सिंह की पार्टी ‘दलित मजदूर किसान पार्टी’ के टिकट पर आगरा से चुनाव लड़े। दूसरी बार 1991 में कांग्रेस विरोधी लहर में कांग्रेस के टिकट पर भिंड से चुनाव लड़ा। दोनों बार ही हार का मुंह देखना पड़ा। उदयन यदि चुनाव जीत जाते तो यकीनन देश को एक ऐसा सांसद मिलता, जो दलितों, अल्पसंख्यकों और वंचितों की मुखर आवाज बनता।

आज जब पत्रकारिता ‘मिशन’ से ‘धन्धा’ बन चुकी है, यह देखकर उदयन की आत्मा अगर कहीं है तो जरुर जार-जार रो रही होगी। 1977 में जिस जन पक्षधर पत्रकारिता की शुरुआत उन्होंने एमजे अकबर और स्व. सुरेन्द्र प्रताप सिंह के साथ मिलकर की थी, आज वह बाजार में बेशर्मी के साथ बिक रही है। पत्रकारिता ‘जन पक्षधर’ से ‘विज्ञापन पक्षधर’ हो गयी है। ‘पेड न्यूज’ के नाम पर कुछ लोग जरुर मुखर हो रहे हैं, लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह गयी है। हैरत की बात तो यह है कि ‘पेड न्यूज’ पर मीडिया कुछ भी दिखाने और लिखने को तैयार नहीं है। पेड न्यूज के बारे जो भी बहस हो रही है, वो केवल मीडिया पोर्टलों पर ही हो रही है। अब सवाल यह है कि मीडिया पोर्टलों के पाठक हैं ही कितने। जो भी हैं, उनमें भी उन पाठकों की तादाद ज्यादा है, जो किसी न किसी रुप से मीडिया से जुड़े हैं। आम आदमी को आज तक यह पता नहीं चल पाया है कि कुछ अखबार और न्यूज चैनल किस तरह से विज्ञापन को खबर बनाकर परोस कर उनके साथ धोखा-धड़ी कर रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि आज मीडिया पर विश्वसनीयता का संकट है। अब विज्ञापन विभाग सम्पादकीय पॉलिसी तय करने लगा है। आज भी कुछ लोग  1977 वाली पत्रकारिता करना चाहते हैं, लेकिन उनके सामने इतनी दुश्वारियां खड़ी कर दी जाती हैं कि कुछ हालात से समझौता कर लेते हैं। जो लोग समझौता नहीं करना चाहते, उन्हें हाशिए पर धकेल दिया जाता है। मीडिया को आज उदयन शर्मा, एसपी सिंह और राजेन्द्र माथुर जैसे पत्रकारों की जरुरत है।

लेखक सलीम अख्तर सिद्दीकी ने इस आलेख को तैयार करने में कई इनपुट उदयन शर्मा स्मृति ग्रंथ से लिए हैं.

 

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0 Comments

  1. Shalini Garg

    April 23, 2010 at 11:11 am

    Aaj hume aise hi journalists ki jarurat hai. Hum sabhi yuva journalists ko, aise hi journalists ko apna ideal maankar apna kaam karna chaiye. Aur samaaj ko nayi disha deni chaiye.

  2. Animesh

    April 23, 2010 at 3:42 pm

    Udayanji sensitive patrakaar the. Par Saleem saab yeh bataana bhool gaye ki Udayanji, Rajiv Shukla aur kai maharathi 1987 mein Reebok joote pahankar Rajiv Gandhi ki Mera Bharat Mahaan daud mein India Gate par shaamil huye the. Woh yeh bhi bataana bhool gaye ki 1991 me chunaav haarne ke baad Arjun Singh ne unhe Nehru Yuvak Kendra ka chief banaaya tha. Jab itihaas hi likhna hai to negative-positive saari baaten likhen. Lubbolubab yeh – ki Udayanji ki rajnitik netaon ke saath achhi setting thi, haalanki unhone apni writings me kabhi yeh baat jhalkne nahin di.

  3. brij khandelwal

    April 25, 2010 at 10:25 am

    wakai behtareen aur bahut hi dynamic patrakar the udayan sharma. unka political dynamism unko kai khemon mein le gaya, jismen unko koi virodhabas bhi nahin dikhta tha.

    yeh achchi baat thi ki woh ek taraf ugr brahminwadi the to doosri taraf unki muslim kattarpanthiyon se bhi nazdeeki thi, aur non-veg khane-peene ka shauk bhi kafi tha unko. ambanis aur chandra shekhar ke vicharon ko aage badhane mein bhi kafi sahyog kiya, baad mein congress aur phir kabhi VP Singh to kabhi farooq abdullah, sabke saath the hamare pyare udayan sharma.

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