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‘विधवा विलाप’ न करें : राहुल देव

: पसीना पोछता समाजवादी पत्रकार और एसी में जाते कारपोरेट जर्नलिस्ट : परिचर्चा ने बताया- फिलहाल बदलाव की गुंजाइश नहीं : जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहेगा : कॉरपोरेट जगत अपनी मर्जी से मीडिया की दशा और दिशा तय करता रहेगा :

: पसीना पोछता समाजवादी पत्रकार और एसी में जाते कारपोरेट जर्नलिस्ट : परिचर्चा ने बताया- फिलहाल बदलाव की गुंजाइश नहीं : जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहेगा : कॉरपोरेट जगत अपनी मर्जी से मीडिया की दशा और दिशा तय करता रहेगा :

11 जुलाई को सुप्रसिद्ध पत्रकार स्वर्गीय उदयन शर्मा का जन्म दिन था। हर साल की तरह इस साल भी ‘संवाद 2010’ के तहत एक परिचर्चा ‘लॉबिंग, पेड न्यूज और समकालीन पत्रकारिता’ का आयोजन किया गया था। इस परिचर्चा में देश के कई जाने-पहचाने पत्रकार दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब के स्पीकर हॉल में जुटे और अपने विचार रखे। इस तरह से कार्यक्रमों की विशेषता यह होती है कि वक्ता और श्रोता किसी न किसी रूप में मीडिया से जुड़े लोग ही होते हैं। ऐसे अवसरों पर मीडिया के लोग अपने आप को कसौटी पर कसते हैं। लेकिन कभी भी कसौटी पर खरे नहीं उतरते। दरअसल, जो पत्रकार ऐसे आयोजनों में शामिल होते हैं, वे ‘आजाद’ नहीं होते बल्कि मालिकों के ‘नौकर’ होते हैं। कल हुई परिचर्चा में यही बात उभर कर सामने आयी। और कल क्यों, जब भी कहीं पत्रकारिता के गिरते स्तर की बात होती है, यही बात सामने आती है।

‘सीएनईबी’ के राहुल देव ने कल कुछ भी नहीं छिपाया। उन्होंने साफ कहा कि ‘पत्रकारिता के स्तर की बात हो तो अखबारों और चैनलों के मालिकों की भी भागीदारी होनी चाहिए। और मालिक लोग कभी यहां पर आएंगे नहीं।” मतलब साफ था कि पत्रकार अखबार या चैनल को उसी तरह से चलाने के लिए मजबूर हैं, जैसा मालिक चाहते हैं। उन्होंने साफ कहा कि ‘विधवा विलाप’ करने का कोई फायदा नहीं है।

इस परिचर्चा में सीएनएन-आईबीएन के राजदीप सरदेसाई भी वक्ता के रूप में मौजूद थे। वह पत्रकार होने के साथ-साथ मालिक भी हैं। उन्होंने कहा कि कॉरपोरेट जगत को माइनस करके अखबार और चैनल नहीं चलाए जा सकते। उन्होंने एक उदहारण देकर कहा कि ‘उनके एक चैनल ने एक कॉरपोरेट घराने के खिलाफ कैम्पेन चलाई। इसके नतीजे में उस कॉरपोरेट ने हमारे सभी नेटवर्क के चैनलों से अपने विज्ञापन वापस ले लिए।’

मतलब साफ है कि मीडिया कॉरपोरेट जगत के खिलाफ जाएगा तो चैनलों और अखबारों पर ताले लटक जाएंगे। ऐसे में भला मीडिया उन सत्तर प्रतिशत लोगों की बात क्यों करे, जो रोजाना पन्द्रह से बीस रुपए रोज पर अपना गुजारा करने के लिए मजबूर हैं। मीडिया को कॉरपोरेट जगत के हितों की बात करनी ही होगी।

‘नई दुनिया’ के प्रधान सम्पादक आलोक मेहता ने कहा कि मीडिया पर हमेशा से दबाव रहा है। उन्होंने पटना की एक घटना का जिक्र करते हुआ बताया कि जब हमने ‘नवभारत टाइम्स’ में पशुपालन घोटाला की खबर छापी तो लालू यादव ने हमारे ऑफिस में आग लगवा दी थी। उन्होंने कहा कि हमारा काम खबर छापना है, हमें हर हाल में इस काम को जारी रखना होगा। उनका कहना था कि आज ही नहीं, पहले भी मीडिया पूंजीपतियों के हाथों में रहा है। उन्होंने बीसी वर्गीज और एचके दुआ का उदाहरण देकर कहा कि मालिकों से अलग हटकर चलने पर सम्पादकों को सड़कों पर ही बर्खास्त किया जाता रहा है। उन्होंने कहा कि ‘अखबार का मालिक अखबार चलाने के लिए कहां से पैसा लाता है, सम्पादक को इससे कोई मतलब नहीं होता।’

आईबीनएन-7 के मैनेजिंग एडीटर आशुतोष ने कहा कि पेड न्यूज सिर्फ वही नहीं, जो पैसे लेकर छापी जाती है। उन्होंने किसी विचारधारा के तहत लिखी गयी खबर को भी पेड न्यूज जितना ही गलत बताया। यहां यह बात बताना भी प्रांसगिक है कि जब भी किसी सेमिनार में आशुतोष मौजूद रहे हैं, अक्सर समाजवादी पत्रकारिता की बात करने वाले लोगों से उनकी बहस होती रही है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। लेकिन उन्होंने समाजवादी पत्रकारिता की बात करने वालों पर यह कहकर कटाक्ष किया कि समाजवाद की बात करने वाले पत्रकारों के दिल में भी क्या यह नहीं होता कि दिग्विजय सिंह कहीं कोई बंगला दिलवा दें?

‘दैनिक भास्कर’ समूह के श्रवण गर्ग का कहना था कि खराब अखबार निकालने का दोष मालिकों पर मढ़ना ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को ऐसे कामों से बचना चाहिए, जिससे पाठकों में उसकी इमेज खराब हो। उन्होंने आलोचना को ज्यादा जगह देने की बात कही। उनके विचार से किसी भी कानून से ज्यादा जनता और पाठक की नजर हालात को सही करने में अपनी भूमिका निभा सकती है। उनका कहना था कि कानून बन जाएगा तो पेड न्यूज का सिलसिला दूसरे रास्तों से शुरू हो जाएगा।

पुण्य प्रसून बाजपेयी का कहना था कि पत्रकारिता अब खुलेआम बिक रही है. पत्रकारिता की बिक्री से निपट पाना बहुत मुश्किल हो गया है. पेड न्यूज के लिए और कोई नहीं बल्कि कॉरपोरेट जगत प्रमुख रूप से जिम्मेदार है. राजनीति और मीडिया, दोनों ही क्षेत्र इसके प्रभाव में हैं.

परिचर्चा में बतौर मुख्य अतिथि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि कानून की दीवार बना देने से कुछ नहीं होगा। उन्होंने कहा कि पेड न्यूज के लिए सिर्फ पत्रकार ही जिम्मेदार नहीं है। इसके लिए राजनीति भी जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि मुझसे खबर के बदले पैसों की डिमांड किसी अखबार या पत्रकार ने नहीं की।

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कुल मिलाकर परिचर्चा में यह बात उभर सामने आयी कि फिलहाल बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है। जैसा चल रहा है, वैसा ही चलता रहेगा। कॉरपोरेट जगत अपनी मर्जी से मीडिया की दशा और दिशा तय करता रहेगा। परिचर्चा में ‘जी न्यूज’ के सलाहकार सम्पादक पुण्य प्रसून वाजपेयी, जी न्यूज के सम्पादक सतीश के सिंह, ‘प्रथम प्रवक्ता’ के रामबहादुर राय, इमेज गुरु के दिलीप चेरियन ने भी अपने विचार रखे। संचालन ‘नई दुनिया’ के राजनीतिक सम्पादक विनोद अग्निहोत्री ने किया। इनके अलावा ‘न्यूज 24’ के अजीत अंजुम, एचके दुआ, ‘इंडिया न्यूज’ के कुरबान अली, उर्दू साप्ताहिक ‘नई दुनिया’ के सम्पादक शाहिद सिद्दीकी, ‘चौथी दुनिया’ के प्रधान सम्पादक संतोष भारतीय, सुमित अवस्थी, पारांजय गुहा ठाकुरता, अमिताभ सिन्हा, विनीत कुमार, अविनाश सहित कई लोग थे।

अंत में कॉरपोरेट मीडिया और समाजवादी मीडिया का अंतर भी समझ लीजिए। परिचर्चा के बाद जब मैं, मेरे साथ आए धर्मवीर कटोच और मदनलाल शर्मा कांस्टीट्यूशन क्लब के बाहर निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन जाने के लिए बस स्टॉप पर बस का इंतजार कर रहे थे, वहीं एक समाजवादी पत्रकार भी पसीना पोंछते हुए बस की इंतजार में थे। दूसरी ओर कॉरपोरेट मीडिया के लोग शानदार एसी कारों में बैठकर जा रहे थे। शायद इसीलिए आशुतोष समाजवादी पत्रकारिता से लगभग नफरत और कॉरपोरेट मीडिया से प्यार करते हैं। आशुतोष एसी न्यूज रूम में बैठकर नक्सवादियों को इसलिए कोस सकते हैं क्योंकि सलीम अख्तर सिद्दीकीउनको कोसने से विज्ञापन जाने का डर नहीं होता। लेकिन यदि वे आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन को हथियाने वाले पूंजीपतियों के खिलाफ कुछ कहेंगे तो उनके चैनल के विज्ञापन बंद हो जाएंगे। राजदीप सरदेसाई भी तो यही कह रहे थे। आशुतोष भला राजदीप सरदेसाई के खिलाफ कैसे जा सकते हैं? आखिर आशुतोष उनके चैनल में ही तो काम करते हैं।

लेखक सलीम अख्तर सिद्दीक़ी हिंदी के सक्रिय ब्लागर, सिटिजन जर्नलिस्ट और सोशल एक्टिविस्ट हैं. उदयन शर्मा से बेहद प्रभावित सलीम मेरठ में निवास करते हैं. विभिन्न विषयों पर वे लगातार लेखन करते रहते हैं.

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0 Comments

  1. sachin rathore

    July 12, 2010 at 1:03 pm

    अंत में जो आपने अंतर समझाया है, बिलकुल सही है….

  2. kumar

    July 12, 2010 at 1:11 pm

    Bilkul Sahi likha aapne.. aapke lekhan ka marm samajh kar bhi kya kisi ko sharm aane wali hai?

  3. shishupal singh

    July 12, 2010 at 2:07 pm

    manch par baithey kisee bhee patrakar ko dekh kar koee umeed nahi jagti.sab wheeler dealer hein.koi lalu ka chela hey.koi chandrashekhar ka.koi subash chander ka.koi satta ka.sab bikey hue hein.ye kya bat karenge paid news ki ?

  4. vibash

    July 12, 2010 at 5:55 pm

    हमसे पूछो मसीहाओं की हकीकत यारो..
    ऐतबार उठ जाएगा तुम्हारा अपने खुदाओं से

  5. Shrawan Singh

    July 12, 2010 at 7:01 pm

    ….majhadhar me naiyya dole, toh manzi par lagaye
    manjhi jo naw duboye use kaun bachaye??? 🙁

  6. vinoba g

    July 13, 2010 at 8:13 am

    ek mukaam par pahuch kar aisi baatein karna aasan hai ….kud k haath me sab kuch hote hue kud kuch kyo nhi karte ye editor log smajh me nhi aata …..zara sochiye … …. main to bas yahi kahunga ….mere dard ka yaki karo ya na karo arz itni hai ki bas ab charcha na karo …….

  7. Diwaker, Patna

    July 14, 2010 at 1:23 pm

    hakikt hai aap ka antim paragraph

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