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वेब-सिनेमा

संजय की गायकी और भड़ास का नया प्रयोग

पत्रकारिता के कंधों पर कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है, पत्रकार की संवेदना कितनी व्यापक व उदात्त होती है, इसे समझने वालों की संख्या दिन ब दिन कम होती जा रही है. अच्छी बात है कि कई पत्रकार अपनी सीमाओं और अपने जीवन संघर्षों के बावजूद वृहद मानवीय सरोकारों को जी रहे हैं, पत्रकारिता के धर्म व पत्रकार के दायित्व के पैमाने पर 24 कैरेट सोने की तरह खरे उतर रहे हैं. उन्हीं में से एक संजय तिवारी हैं. इलाहाबाद के एक गांव के एक गरीब परिवार से निकले संजय इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पढ़ाई मुश्किल से कर सके. आर्थिक दिक्कतों ने न तब पीछा छोड़ा था न अब. तब पढ़ने की दिक्कत थी, अब अपनी सोच व समझ के हिसाब से जीवन जीने का संकट है. विस्फोट डाट काम के जरिए हिंदी वेब पत्रकारिता में एक मुकाम हासिल किया है संजय ने.

<p style="text-align: justify;">पत्रकारिता के कंधों पर कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है, पत्रकार की संवेदना कितनी व्यापक व उदात्त होती है, इसे समझने वालों की संख्या दिन ब दिन कम होती जा रही है. अच्छी बात है कि कई पत्रकार अपनी सीमाओं और अपने जीवन संघर्षों के बावजूद वृहद मानवीय सरोकारों को जी रहे हैं, पत्रकारिता के धर्म व पत्रकार के दायित्व के पैमाने पर 24 कैरेट सोने की तरह खरे उतर रहे हैं. उन्हीं में से एक संजय तिवारी हैं. इलाहाबाद के एक गांव के एक गरीब परिवार से निकले संजय इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पढ़ाई मुश्किल से कर सके. आर्थिक दिक्कतों ने न तब पीछा छोड़ा था न अब. तब पढ़ने की दिक्कत थी, अब अपनी सोच व समझ के हिसाब से जीवन जीने का संकट है. विस्फोट डाट काम के जरिए हिंदी वेब पत्रकारिता में एक मुकाम हासिल किया है संजय ने.</p>

पत्रकारिता के कंधों पर कितनी बड़ी जिम्मेदारी होती है, पत्रकार की संवेदना कितनी व्यापक व उदात्त होती है, इसे समझने वालों की संख्या दिन ब दिन कम होती जा रही है. अच्छी बात है कि कई पत्रकार अपनी सीमाओं और अपने जीवन संघर्षों के बावजूद वृहद मानवीय सरोकारों को जी रहे हैं, पत्रकारिता के धर्म व पत्रकार के दायित्व के पैमाने पर 24 कैरेट सोने की तरह खरे उतर रहे हैं. उन्हीं में से एक संजय तिवारी हैं. इलाहाबाद के एक गांव के एक गरीब परिवार से निकले संजय इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पढ़ाई मुश्किल से कर सके. आर्थिक दिक्कतों ने न तब पीछा छोड़ा था न अब. तब पढ़ने की दिक्कत थी, अब अपनी सोच व समझ के हिसाब से जीवन जीने का संकट है. विस्फोट डाट काम के जरिए हिंदी वेब पत्रकारिता में एक मुकाम हासिल किया है संजय ने.

बाजार और प्रलोभनों के इस विकट दौर में संजय खुद को आज भी डाउन टू अर्थ और जमीनी किस्म के आदमी बनाए हुए हैं.  अगले महीने के दिन कैसे कटेंगे, इसकी चिंता तो उन्हें सताती है लेकिन उनके लिए यह उतनी बड़ी चिंता नहीं जितनी की इस देश के हाशिए पर जी रहे लोगों के दुखों को सत्ता, समाज व सिस्टम द्वारा उपेक्षित कर दिया जाना. इसीलिए वे बाजार व सिस्टम के बने बनाए रास्ते से अलग जाकर, वेब पत्रकारिता के जरिए सच बोलो रे, बेधड़क कहो रे और एकला चलो रे का नारा लगाए हुए हैं.  आपाधापी भरे इन दिनों में भटक-भटक कर जीवन, समाज व देश को समझने की कोशिश करने वाले संजय को एक दिन मैंने एक शाम दिल्ली के मयूर विहार फेज थ्री इलाके में पकड़ा.

संजय के जीवन में वह वो दौर था जब उनका आफिस उनके झोले में लैपटाप की शक्ल में होता था और उनका घर कोई पार्क या किसी मित्र का आतिथ्य. संजय दिल्ली में उस जगह से किन्हीं साजिशों-झंझटों के चलते अचानक बेदखल हो गए जहां उन्होंने अपने कई वर्ष जिये, कई तरह के इन्नोवेटिव काम किए. शाम, फिर रात और फिर संगीत. दौर शुरू हुआ. मांस-मदिरा से कोसों दूर रहने वाले संजय पान के शौकीन हैं. संजय कम बोलते हैं, गाते हुए बिलकुल नहीं दिखते. लेकिन संजय उस रात गाए. कई बार गाए. अवसाद की परतों को श्लोकों-भजनों के जरिए बाहर निकाला. उनके गायन के वीडियो हम यहां पेश कर रहे हैं.

भड़ास4मीडिया प्रयोगों का नाम है और इसी कड़ी में एक नया प्रयोग, बेहद चुपचाप तरीके से शुरू कर रहे हैं. मीडिया के बंदों, मीडिया के कर्मियों की गायकी को हम लगातार भड़ास4मीडिया पर पेश करने का इरादा बना चुके हैं. अच्छे गाने वालों को एक निर्णायक मंडल पुरस्कृत करेगा, नगद ईनाम भी देगा. इसके लिए नियम-शर्तों को तैयार किया जा रहा है. ईनाम देने के लिए नगद राशि मुहैया कराने वाले कई लोग सामने आ चुके हैं. यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि सूफियों-संवेदनशीलों-फक्कड़ों-मानवीयों की परंपरा मजबूत हो, बुरे दिनों में आशा की उम्मीदें मजबूत हों. संजय के गाने के इन वीडियोज को ‘भड़ास मीडिया म्यूजिक मुकाबला’ में हम शामिल कर रहे हैं और इन वीडियो को मुकाबले के लिहाज से प्रथम इंट्री मान रहे हैं. अगर आप भी फुरसत के वक्त में, मुश्किल के वक्त में, अकेलेपन में कुछ गाते-गुनगुनाते हैं, संगीत से प्यार करते हैं और अच्छे गीत आपकी जुबान पर आ जाते हों तो उसे रिकार्ड कर हमें [email protected] पर भेज दीजिए. उसे वीडियो को हम यहां दिखलाएंगे. ध्यान रहे, एक वीडियो में केवल एक गाना रहे ताकि वीडियो फाइल बड़ी न हो सके. लीजिए, संजय की आवाज में दो-तीन गीत, भजन, श्लोक, जज्बात, बात को सुरीले तरीके से सुनिए.

– यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया

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0 Comments

  1. पंकज झा.

    September 30, 2010 at 7:50 am

    अद्भुत प्रयोग….वास्तव में संजय जी के बारे में जितना कहा गया है वह एक-एक शब्द सटीक और सही है. तिवारी जी को पत्रकारिता में विलुप्त हो रही प्रजाति का एक प्राणी कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.तकनीकों के अधुनातन रूप को भी सहज अपना कर, पत्रकारिता के पुरातन मूल्यों को अपने झोला में ढोने वाले ऐसे लोग अब विरले ही हैं. मेरे जैसे लोगों को नेट पर लिखने की ‘लत’ लगाना संजय जी की ही देन है. याद है सबसे पहला ‘भड़ास’ अपना संजय जी के प्रोत्साहन से विस्फोट पर ही पोस्ट हुआ था. तबसे ऐसी खुमारी छाई कि दिन भर एक-एक कमेन्ट के लिए बैठा रहता हूँ नेट पर अपना ‘काम-धाम’ छोड, मोडरेटरों की घुडकी झेल कर भी. अनन्य-अशेष शुभकामना एवं संजय जी को धन्यवाद भी.

  2. संजय तिवारी

    September 30, 2010 at 4:01 pm

    गायकी का तो पता नहीं लेकिन विडियोग्राफी का प्रयोग यशवंत सिंह ने किया था.

    मैं अभाव और कुभाव में नहीं रहना चाहता. ठीक वैसे ही जैसे आप नहीं रहना चाहते. लेकिन हमारे आस पास परिस्थितियां ऐसी पैदा कर दी गयी हैं कि हम चाहकर भी भाव से नहीं भर पाते हैं. आप जो पाना चाहते हैं जैसे उसे पाने के लिए आप लड़ते हैं वैसे ही मैं जो पाना चाहता हूं उसे पाने के लिए मैं लड़ता हूं. हां, मेरे पाने की चाहत थोड़ी बेतुकी है. अक्सर अभाव ही कुभाव पैदा करते हैं. लेकिन क्या अभाव होने पर भी कुभाव से बचा जा सकता है?

    बस यही प्रयोग करते रहते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि ऐसा करते वक्त विरोधाभास पैदा नहीं होंगे. विरोधाभास पैदा होंगे और लोग आपको गलत साबित करने की कोशिश करेंगे. लेकिन अपना अनुभव यह है कि डटे रहो, तब तक जब तक टूट न जाना. जिससे आप सच्चे मन से सहमत हैं उसे छोड़िए मत. हालात कैसे भी हों, परिणाम कुछ भी निकले. बस डटे रहो. तो बस, डटे रहते हैं.

    कोई तीन महीने मैं अपने जीवन में स्वनिर्वासन के बिताए हैं. कोई पूछे कि क्यों बिताए? तो बता भी नहीं सकता कि क्यों बिताए, लेकिन बिताए. शायद प्रारब्ध में यह निहित था कि तुम्हें यह परीक्षा भी देनी है. कह नहीं सकते कि पास हुए या फेल लेकिन परीक्षा तो हो गयी.

    यशवंत सिंह मेरे बारे में इतनी अच्छी राय क्यों रखते हैं मालूम नहीं लेकिन मैं पत्रकारिता में कोई क्रांति नहीं कर रहा हूं. हां, एक जिद्द जरूर है कि करूंगा वही जो दिल कहेगा, भले ही इसके लिए साइनबोर्ड पर लिखकर लोगों से संवाद करना पड़े, वही करेंगे लेकिन किसी के आगे दुम नहीं हिलाएंगे. एकाध बार कोशिश की भी तो बात नहीं बनी, पता चला कि इसके तो दुम ही नहीं है.

  3. प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI

    September 30, 2010 at 4:29 pm

    [quote][b]संजय जी के बारे में जितना कहा गया है वह सही है![/b][/quote]

  4. vishnu

    November 13, 2010 at 6:20 pm

    अद्भुत…अद्भूत…someyhing like satyajit ray….

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