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संजय तिवारी ने दिया अंबरीश के आरोपों का जवाब

15 जुलाई की शाम दिल्ली के गांधी दर्शन में प्रभाष जोशी को जानने मानने वाले कोई पांच सात सौ लोग इकट्ठा हुए और उन्होंने उनके जाने के बाद पहला जन्मदिन मनाया. प्रभाष जी जब थे तब वे जन्मदिन पर भी अपनी उत्सवधर्मिता का पालन करते थे. उनके जाने के बाद जिस न्यास ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था उसकी कोशिश भी यही थी कि प्रभाष जी की उस परंपरा को भी जन्मदिन के बहाने बरकरार रखा जाए. जिस दिन यह कार्यक्रम हो रहा था, मैं खुद मुंबई में था. चाहकर भी नहीं पहुंच पाया क्योंकि दिल्ली और मुंबई के बीच अच्छी खासी दूरी है और मुंबई से दिल्ली पैदल चलकर नहीं जाया जा सकता था. फिर भी लोगों से बात करके जो पता चला वह यह कि खूब लोग आये और प्रभाष जी को याद किया.

15 जुलाई की शाम दिल्ली के गांधी दर्शन में प्रभाष जोशी को जानने मानने वाले कोई पांच सात सौ लोग इकट्ठा हुए और उन्होंने उनके जाने के बाद पहला जन्मदिन मनाया. प्रभाष जी जब थे तब वे जन्मदिन पर भी अपनी उत्सवधर्मिता का पालन करते थे. उनके जाने के बाद जिस न्यास ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था उसकी कोशिश भी यही थी कि प्रभाष जी की उस परंपरा को भी जन्मदिन के बहाने बरकरार रखा जाए. जिस दिन यह कार्यक्रम हो रहा था, मैं खुद मुंबई में था. चाहकर भी नहीं पहुंच पाया क्योंकि दिल्ली और मुंबई के बीच अच्छी खासी दूरी है और मुंबई से दिल्ली पैदल चलकर नहीं जाया जा सकता था. फिर भी लोगों से बात करके जो पता चला वह यह कि खूब लोग आये और प्रभाष जी को याद किया.

लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ लोगों को यह बात अच्छी नहीं लगी. क्यों नहीं लगी इसे समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है. ये वो लोग हैं जो निंदा को आलोचना और नकारात्मकता को ईश्वरीय अनुकंपा मानते हैं. इसलिए जन्मदिन समारोह बीत जाने के बाद ऐसे लोगों ने तलवार निकाल ली और मैदान में उतर पड़े. अंबरीश कुमार उनमें से एक हैं. अपने ब्लाग लेख में अंबरीश कुमार लिखते हैं कि “पंद्रह जुलाई को हमारे संपादक प्रभाष जोशी का जन्मदिन है, जिनकी परंपरा का निर्वाह करते हुए आज भी जनसत्ता के हम पत्रकार राज्यसत्ता की अंधेरगर्दी के खिलाफ डटे हुए हैं।”

जिस प्रभाष जोशी को वे हमारे संपादक लिखकर अपने आप को जस्टिफाइ कर रहे हैं वे खुद राज्यसत्ता की कैसी अंधेरगर्दी के खिलाफ हैं इसका नमूना जानना हो तो सोनभद्र जाइये. वहां कुछ नामी बदनामी पत्रकार हैं. उनको खोजिए और पता लगाइये कि उनके साथ अंबरीश कुमार का क्या कोई व्यावयिक गठजोड़ है? यह भी पता लगाइये कि लखनऊ में बैठकर वे राज्यसत्ता की कौन सी अंधेरगर्दी के खिलाफ हवा फूंक रहे हैं? तथ्य कम पड़ें तो नैनीताल भी हो आइये जहां अंबरीश कुमार शब्द निर्माण की बजाय ईंट गारे से कुछ निर्माण कार्य कर रहे हैं. फिर भी, अंबरीश जी अगर ऐसा मानते हैं कि वे सत्ता की अंधेरगर्दी के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद किये हुए हैं तो उन्हें उनके मुंह मियां मिट्ठू बनने से कौन रोक सकता है.

अंबरीश कुमार आगे लिखते हैं कि “प्रभाष जोशी, निधन से ठीक एक दिन पहले, लखनऊ में एक कार्यक्रम के बाद मुझसे मिलने सिर्फ इसलिए आये, क्‍योंकि मेरी तबियत खराब थी। करीब ढाई घंटा साथ रहे और एयरपोर्ट जाने से पहले जब पैर छूने झुका, तो कंधे पर हाथ रखकर बोले – पंडित सेहत का ध्यान रखो, बहुत कुछ करना है। यह प्रभाष जोशी परंपरा थी।”

बीमार के कंधे पर हाथ रखकर उसके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करना प्रभाष जोशी ही क्यों किसी सामान्य व्यक्ति की भी परंपरा हो सकती है. आलोक तोमर को कैंसर होने की खबर लगी तो उनके पास पहुंचनेवालों में सबसे पहले अंबरीश कुमार नहीं बल्कि रामबहादुर राय ही थे. अंबरीश जी ने तो लंबे समय तक प्रभाष जोशी के साथ काम किया है. उनकी बीमारी में अगर वे कुछ देर उनके साथ रहते हैं तो यह प्रभाष जोशी का बड़प्पन और अंबरीश कुमार दोनों की जरूरत है. लेकिन वही अंबरीश कुमार क्या करते हैं? अगले ही दिन उनके निधन की खबर सुनकर भी वे प्रभाष जोशी का अंतिम दर्शन करने दिल्ली नहीं आते हैं. प्रभाष जी के नाम पर वे पूरी तरह से सन्न मार जाते हैं मानों वे प्रभाष जोशी नामक किसी व्यक्ति को जानते ही नहीं है.

अंबरीश कुमार तो शायद कभी प्रभाष जोशी का नाम ही नहीं लेते अगर प्रभाष जोशी के नाम पर गठित ट्रस्ट में वे अशोक गादिया, एनएन ओझा और रामबहादुर राय का नाम न देख लेते. प्रभाष परंपरा न्यास के गठन में रामबहादुर राय की सक्रिय हिस्सेदारी रही है. प्रभाष जी के नाम पर काम को आगे बढ़ाने के लिए जो न्यास गठित किया गया उसमें 36 ट्रस्टी शामिल हैं जिसमें सुश्री उषा जोशी और संदीप जोशी भी हैं. फिर इन्हीं तीन नामों से अंबरीश कुमार को इतनी चिढ़ क्यों है? कारण हम बताते हैं. एक जनसत्ता सोसायटी बनी थी. उस सोसायटी में अंबरीश कुमार सचिव बनाये गये थे और बतौर सचिव निर्माण कार्य में उन्होंने जमकर घपला किया था. मामला अदालत के विचाराधीन है.

इस घपले को सामने लाने में जिन दो लोगों का सबसे अहम योगदान है उसमें एक खुद सोसायटी के अध्यक्ष रामबहादुर राय हैं और दूसरे हैं अशोक गादिया जो कि पेशे से चार्टर्ड एकाउण्टेण्ट हैं. इन्हीं अशोक गादिया की स्वतंत्र आडिट में यह बात खुलकर सामने आयी कि अंबरीश कुमार सोसायटी में घपले के संदिग्ध दिख रहे हैं. जाहिर है अंबरीश कुमार को ऐसे अशोक गादिया कब अच्छे लगेंगे? जहां तक उनके न्यास में शामिल करने का सवाल है तो शायद अंबरीश कुमार जानते नहीं है कि आखिर के कुछ वर्षों में प्रभाष जोशी जिन कुछ लोगों के सबसे करीब थे उनमें एक अशोक गादिया भी हैं.

जिन अंबरीश कुमार उनके पार्थिव शरीर को देखने तक की जहमत नहीं उठायी वे भला उस अशोक गादिया पर कैसे सवाल उठा सकते हैं जो पूरी रात प्रभाष जी के पार्थिव होती देह के साथ अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे. न्यास की अवस्थापना का सारा काम अशोक गादिया ने पूरा करवाया और प्रभाष जी के नाम पर वे आगे और भी बहुत कुछ करने की तमन्ना रखते हैं. जहां तक एनएन ओझा के नाम का सवाल है तो यह प्रभाष जोशी ही थे जिन्होंने राय साहब को कहा था कि प्रवक्ता पत्रिका को स्थापित करना है. और एनएन ओझा उसी पत्रिका के प्रबंध संपादक हैं. खुद प्रभाष जोशी उस पत्रिका के लिए नियमित कॉलम लिखते थे. कारण भले ही राय साहब रहे हों, लेकिन एन एन ओझा का उस न्यास में होना अनुचित कहीं से नहीं है.

फिर भी अंबरीश कुमार जैसे जनसत्ताइट पत्रकारों को यह भला कैसे बर्दाश्त होगा कि उन प्रभाष जोशी के नाम पर कुछ काम आगे बढ़ रहा है जिनकी कमाई वे खा रहे हैं. यह सब लिखकर कीचड़ उछालने से अच्छा होता कि ऐसा ही कोई आयोजन वे लखनऊ में करते. प्रभाष जोशी पत्रकारिता में किसी की बपौती नहीं है. कोई भी नहीं है जो उनके ऊपर अपनी मोहर लगाकर गिरवी रखने का दावा कर सके. खुद उनके दोनों बेटे भी नहीं.

अंबरीश कुमार अपनी सदिच्छा व्यक्त करते हुए कहते हैं- “प्रभाष जोशी को सही मायने में तभी याद किया जा सकता है, जब दिल्ली से लेकर दूरदराज के इलाकों में मीडिया को बाजार की ताकत से मुक्त करते हुए वैकल्पिक मीडिया के लिए ठोस और नया प्रयास हो। भाषा के नये प्रयोग की दिशा में पहल हो और प्रभाष जोशी के अधूरे काम को पूरा किया जाए।”

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तो करिए? आपको किसी ने रोक रखा है क्या? अगर अंबरीश कुमार इस दिशा में काम नहीं करते हैं तो प्रभाष परंपरा न्यास पर सवाल उठाना सिवाय विधवा विलाप के और कुछ नहीं है.

लेखक संजय तिवारी सोशल एक्टिविस्ट रहे हैं. हिंदी ब्लागिंग के महत्वपूर्ण लोगों में शुमार किए जाते हैं. चर्चित न्यूज पोर्टल विस्फोट.काम के संस्थापक और संचालक हैं.

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0 Comments

  1. rakesh

    July 20, 2010 at 3:19 pm

    ट्रस्टी व्यवसायी हैं राम बहादुर राय

    पत्रकार साथियों राम बहादुर को एक ट्रस्टी व्यवसायी हैं, ठीक वैसे ही जैसे अन्य व्यावसायी होते हैं। जिस तरह एक व्यवसायी अपने हितो को सर्वोपरो रखकर अपना विकास करता है, उसी प्रकार राम बहादुर राय ने प्रभाश न्यासी मंडल में अपने हितो को सर्वोपरि रखा है न कि प्रभाश परंपरा को। इतिहास भी गवाह है कि वे कभी किसी प्रसिद्ध व्यक्ति के नाम से ट्रस्ट बनाये थे लेकिन कमाई नहीं कर पाये थे कि निकाल दिये गये। राम बहादुर आपने प्रभाश जी के नाम पर जिस न्यासी मंडल को बनाया है और उनमें राजनाथ सिंह, मुरली मनोहर जोषी जैसे धुर संघियों को “ाामिल कर आप कौन सी प्रभाश परंपरा को बढ़ाना चाहते हैं। बाबरी विध्वंस के आरोपियों में से मुरली मनोहर जोषी एक जाना-पहचाना चेहरा हैं। जिन संघियों के खिलाफ प्रभाश जी अकेले दम पर उनका काला चिठ्ठा जग जाहिर किया। उन्हीं प्रभाश जी के नाम से बने न्यास में इन संघियों को “ाामिल कर आपने यह “ााबित कर दिया कि हम प्रवीण तोगड़िया से भी बड़े संघीय हैं। मैं तो कहूंगा आप खाखी का हाफ पैंट और सफेद हाफ कुर्ता पहनकर गडकरी के पास भीख मांगे तो, वो बड़ा खुष होंगे और हो सकता है भिच्छा स्वरुप राज्य सभा तो नहीं किसी कमेटी का सदस्य तो जरुर बना देंगे।
    प्रभाश परंपरा न्यास में इन कर्मठ संधियों को “ाामिल करना ठीक वैसा ही है जैसा गंाधी जी के हत्यारे संधी अपने कार्यालयांे में आज भी गांधी की तस्वीर बड़े प्रेम से लगाते हैं, राम बहादुर जी आपने ठीक उन्हीं संघियों जैसा काम किया है। आप सीध-सीधे बुद्धिजीवियों को बताये कि हम प्रभाश जी के नाम हम व्यवसाय करना चाहते हैं और राज्य सभा में बैठना चाहते हैं इसलिए आप लोग मुझे एक अच्छा मैनेजमेंट करने वाला नवयुवक चाकिये। वैसे मुझे मालूम है कि आपमें खुलकर यह कहने की हिम्मत नहीं है लेकिन इतना तो कर सकते हैं कि अपनी पत्रिका प्रथम प्रवक्ता में एक विज्ञापन तो निकाल ही सकते हैं। राम बहादुर जी इन परंपराओं को प्रभाश परंपरा न कहकर राम बहादुर परंपरा कहें तो ज़्यादा अच्छा होगा और हम सभी मिलकर उस परंपरा को, कहेंगें तो अफगानी जेहादियों में भी परोस आयेंगंे जिसे वे बड़ी सहजता स्वीकार भी कर लेंगे आपका बहुत गुणगान भी करेंगे हमको भी राम बहादुर एक भारतीय ट्रस्टी मिल गया।
    देष के वरिश्ठ बुद्धजीवियों और बड़े बुजुर्गों को यह चेतना चाहते हैं कि वे राम बहादुर राय से सतर्क हो जायें क्योंकि वे ऐसे व्यक्ति हैं जो देखते रहते हैं कि कौन सा बड़ा बुद्धिजीवी या नेता का आखिरी समय चल रहा है, तो वे उसके पास मडराने लगते हैं। इसके पीछे सिर्फ उनका एक ही मतलब होता है कि कब यह व्यक्ति स्वर्ग सिधारे और हम जल्द से जल्द उसके नाम पर ट्रस्ट बनाकर धन कमाना “ाुरु करें। आने वाले समय में राम बहादुर जी जिनके नाम से न्यास बनायेंगे उनके संघियों के अलावा विष्व में संघियों जैसा काम करने वाले तमाम सांप्रदायिक संगठन हैं जैसे जेहादी उनको भी उस न्यास का सदस्य बना लेंगें। ऐसा बुरा दिन न आये इसलिए उनके वरिश्ठ साथियों से विषेश तौर पर कहूंगा कि राम बहादुर जी से कृपया अपनी दूरी बना लें।

    राकेष कुमार
    स्वतंत्र पत्रकार
    इलाहाबाद
    07827126814

  2. Prakash Chdndalia, Kolkata

    July 19, 2010 at 7:18 pm

    ye hui na baat. wah sanjay bhai.

  3. आलोक तोमर

    July 20, 2010 at 5:28 am

    पता नहीं हमारे मित्र संजय तिवारी को अचानक क्या हो गया है? प्रभाष परंपरा न्यास का जिस दिन गठन हुआ था उस दिन प्रभाष जी के घर एक अच्छी खासी बैठक हुई थी और तय हुआ था कि नामवर सिंह के संरक्षण में यह न्यास काम करेगा। जिन्हें नहीं पता हो उन्हें बताना जरूरी है कि प्रभाष परंपरा न्यास यह नाम मेरा दिया हुआ है और इस न्यास में आंकड़ों की हेरा फेरी करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, लेखकों की रायल्टी हजम करने वाले एक प्रसिद्व प्रकाशक हैैं जिन्होंने खुद प्रभाष जी से लाखों रुपए कमाएं हैं, एक पत्रिका के मालिक हैं जो राज्यसभा में जाने के लिए आतुर बताए जाते हैं।
    पता नहीं क्यों न्यास के प्रबंध न्यासी और हमारे बड़े भाई के समान राम बहादुर राय ने मुझे से इस न्यास में शामिल होने लायक नहीं समझा? हो सकता है कि मैं उनके न्यास चलाने के तौर तरीकों में फिट नहीं होता हूं और वैसे भी अपने पास वक्त जरा कम रहता है। अपने गुरु प्रभाष जी के लिए वक्त निकाल लेता क्योंकि वह गुरु दक्षिणा थी मगर राय साहब ने तो वह मौका ही नहीं दिया।
    अंबरीश कुमार को गालियां देने से अगर प्रभाष जी की आत्मा को तृप्ति मिलती है तो संजय तिवारी उन्हें चाहे जितना कोसते रहे। सत्ता प्रतिष्ठान के खिलाफ अंबरीश संजय से ज्यादा खड़े रहे हैं और इनमें जनसत्ता सोसायटी का सत्ता प्रतिष्ठान भी शामिल हैं। मामला अदालत में हैं और दूध का दूध और पानी का पानी जल्दी हो जाएगा। जहां तक मेरी निजी राय की बात है तो प्रभाष परंपरा न्यास ने प्रभाष जी के जन्मदिन पर एक दावत और एक भाषण करवाने के अलावा एक प्रकाशक की कमाई का इंतजाम और किया है और यह सब वे कर्म नहीं थे जो प्रभाष जी करना चाहते थे। प्रभाष जी के नाम पर उस पेड न्यूज के धंधे पर एक सेमिनार ही करवा लेते जिसके लिए वे आखिरी पल तक लड़ रहे थे मगर प्रभाष जी जैसे फक्कड़ बैरागी को भी इन भाई लोगों ने उत्सवमूर्ति बना कर रख दिया है। आओ, खाओ पियो, गाना सुनो और जाओ।
    अंबरीश कुमार के नैनीताल में किसी महल का जिक्र संजय तिवारी ने किया है। एक तो यह महल नहीं हैं। छोटे छोटे दो कमरे हैं जिन्हे अंबरीश के पिता ने खरीदा था। दूसरे उसी नैनीताल के रामगढ़ में मेरी भी जमीन हैं और मैं भी घर बनाने वाला हूं। जिसे जो बिगाड़ना है, बिगाड़ लें। रही बात प्रभाष जी की परंपरा को निभाए रखने की तो जरूरी है कि एक न्यास में जितना विश्वास होना चाहिए वैसा न्यास बने। अगर प्रभाष परंपरा न्यास यह नहीं कर सका तो हम दूसरा न्यास बनाएंगे। प्रभाष जी के परिवार को जोड़ लेने से न्यास के उद्देश्य पवित्र नहीं हो जाते। उद्देश्यों की पवित्रता ज्यादा जरूरी है। जिन लोगों को लग रहा है कि बंदे को तो कैंसर है और वह कभी भी टपक जाएगा तो उनकी जानकारी के लिए अभी मैं बड़े, बूढ़ों का श्राद्ध कर के जाने वाला हूं।

    – आलोक तोमर

  4. प्रभाष जी का असली चेला

    July 20, 2010 at 7:49 am

    कुछ समय पहले तक सोनभद्र स्थित जेपी सीमेंट के खिलाफ आग उगलने वाले और खुद को प्रभाष जी का दुलारा कहने वाले अम्बरीश कुमार जी सिर्फ इतना बताएं कि इनके पोर्टल जनादेश पर लगा जेपी का विज्ञापन कितने का है, और यह विज्ञापन जनसत्ता अखबार में क्यूँ नहीं है, जहां वे काम करते हैं |

  5. Siddharth Kalhans

    July 20, 2010 at 9:28 am

    माननीय संजय जी जसका खाना उसे बचाना। यही कुछ तो लगता है आप लोग कर रहे हैं। गडिया जी के लिए इतनी हायतौबा उफ। सवाल गडिया जैसों के होने का कम आलोक तोमर या अंबरीष को बाहर रखने का है। जो भी हो प्रभाष जी ने अंबरीष या आलोक जी को अपने से बेदखल कभी नही किया था। उन्हें रखने में क्या एतराज था पता नही।
    अंबरीष के पिता जी के खरीदे दो कमरों के महल पर मैं गया हूं। रामगढ़ जिले नैनीताल में सबसे गरीब मकान उस इलाके में शायद उनका ही है। कुल जमा लाख रूपये में वहां मकान लायक आधा नाली जमीन मिलती है और कईयों ने खरीदा है। कई पत्रकार वहां बसे हैं। अगर अंबरीष पिता जी के पैसों से खरीदे वहां के मकान पर साल के एक महीने गुजारते हैं तो क्या बुराई। खैर निष्ठा से तिवारी जी लगे रहिए वहीं जहां लगे हैं। रही बात सोनभद्र की तो वहां के जनसत्ता संवाददाता विजय शंकर चतुर्वेदी को मैं जानता हूं। शायद ही जिले के संवाददाताओं में उन जैसा पढ़ा लिखा और बुद्धिजीवी मिले। विजय जी माल काट रहे हैं ये तो आपसे ही पता चला है। हां आरोप लगाने वाले जरा अंबरीष की एक खबर सत्ता प्रतिष्ठान के पक्ष में लिखी दिखाएं।

  6. क्षत्रियकुमार

    July 20, 2010 at 10:29 am

    आलोक तोमर जी आपकी ये प्रतिक्रिया पढकर दुख हुआ। दुख इसलिए कि छोटी सी नाराजगी पर आप अपनो के खिलाफ सार्वजनिक रूप से तलवार भांजने लगे। वो भी नाराजगी इसीलिए की आपको न्यास का सदस्य नही बनाया गया। आपको राय साहब के बारे में आपके ही विचार दिखा रहा हूं, जो 25 मई 2009 को विस्फोट पर आपने प्रकट किए थे। ….राय साहब के साथ मैंने भी काम किया है…अम्बरीश भी सहकर्मी और मित्र रहे हैं और आज भी हैं..राय साहब को मैंने आदर्श, तपस्वी होने की हद तक साहसी और ईमानदार पाया है..गुस्सा उन्हें आता है तो वह तो दुर्वासा को भी आता था…फिर भी उनके ऋषि होने में कौन संदेह करेगा…अम्बरीश दुनादार इंसान हैं और जो दुनियादार नहीं होगा वह जनसत्ता सोसायटी बनाने जैसा बड़ा काम नहीं कर सकता..अम्बरीश पत्रकारिता अपने सरोकार से कर रहे हैं..

  7. vijayvinit

    July 21, 2010 at 7:53 am

    प्रभाष परम्परा न्यास पर अम्बरीश जी के द्वारा उठाये गये सवाल क्या गलत है । मै तो इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहता था लेकिन जब इस मसले में सोनभद्र को घसीट दिया गया तो बोलना लाजिमी हो जाता है। प्रभाष जोशी जी आज हमारे बीच नहीं
    है । लेकिन पत्र
    पत्रिकाओं को पढ़ने का शौक इतनी तो समझ पैदा कर ही चुका है कि देश के नामी गिरामी पत्रकारों लेखकों में किसकी क्या साख है । हमारे पास लगभग 25 वर्ष पुराना साप्ताहिक हिन्दुस्तान का वह अंक सुरक्षित है जिसमें इंडियन एक्सप्रेस समूह और कांग्रेस सरकार पर विस्तृत समीक्षा रिपोर्ट छपी थी। जनसत्ता उसी समूह का अखबार है जिसमें मालिक ने झुकना नहीं सीखा प्रभाष जोशी उसी परम्परा के वाहक थे।
    प्रभाष जी को पढ़ने समझने के बाद मशहूर शायर वामिक जौनपुरी का एक शेर ‘‘आखों के सामने तैरता है कि
    आहन नहीं की चाहिए जब मोड़ दिजीए,
    शीशा हूं मुड़ तो सकता नहीं तोड़ दिजीए’’
    और अब जब प्रभाष जी नही रहे तो यू.पी. में अम्बरीश उस परम्परा का निर्वाह बखूबी कर रहे है । संजय तिवारी जी ने किस लिए ऐसा लिखा वह तो वहीं जाने लेकिन यह सच है कि सोनभद्र में पिछले दो वर्षो से जितनी तेजीं से यहां दलितो आदिवासियों परजुल्म बढ़े यहां एक दो अखबारों को छोड़कर किसी ने भी कलम नहीं चलायी । या पत्रकारों ने खबर भेजी तो आजसत्ता का चारण बन चुके तमाम अखबार के मालिकों ने लिखना नहीं समझा। इस स्थिति में जनसत्ता मजबूती के साथ डटा रहा । मुझे नहीं पता कि रामबहादुर राय का कौन इतना बड़ा हितैषी है जो संजय तिवारी के जरीए सोनभद्र के पत्रकारों को सर्टिफिकेट बांट रहा है। यहां स्वयं गलत पत्रकारों का मजबूती से विरोध करने वाली टीम है । जे0 पी0 का विज्ञापन जनादेश ,पोर्टल पर चल रहा है तो उससे जनसत्ता को कत्तई कष्ट नहीं हो सकता शायद विचार व्यक्त करने वालो को यह नहीं पता कि जनसत्ता विज्ञापन के लिए हाथ नहीं फैलाता यह परम्परा भी शायद जोशी जी की ही थी ।लिफाफा देखकर मजमून भापने वालों की गणित फेल हो गयी अम्बरीश का नैनीताल मे महल बताने वालों को उनकी एक-एक ईट का हिसाब मिल जायेगा । महज कुछ ईटो से बने कमरों का घर तो हो सकते है महल नहीं, और शायद आज ऐसा कोई नहीं जो ईट गारे की कल्पना न करता हो । राजसत्ता का विरोध आज भी जिस मजबूती से जनसत्ता में अम्बरीश कर रहे है वह कमतर नहीं ।विचार भेजनेंवालों को जनादेश को बीच में नहीं लाना चाहिए

    विजय विनीत
    सोनभद्र यु . पी
    ९४१५६७७५१३ ,९५९८३२१०४१
    [b][/b][b][/b]

  8. vijayvinit

    July 21, 2010 at 7:55 am

    प्रभाष परम्परा न्यास पर अम्बरीश जी के द्वारा उठाये गये सवाल क्या गलत है । मै तो इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहता था लेकिन जब इस मसले में सोनभद्र को घसीट दिया गया तो बोलना लाजिमी हो जाता है। प्रभाष जोशी जी आज हमारे बीच नहीं
    है । लेकिन पत्र
    पत्रिकाओं को पढ़ने का शौक इतनी तो समझ पैदा कर ही चुका है कि देश के नामी गिरामी पत्रकारों लेखकों में किसकी क्या साख है । हमारे पास लगभग 25 वर्ष पुराना साप्ताहिक हिन्दुस्तान का वह अंक सुरक्षित है जिसमें इंडियन एक्सप्रेस समूह और कांग्रेस सरकार पर विस्तृत समीक्षा रिपोर्ट छपी थी। जनसत्ता उसी समूह का अखबार है जिसमें मालिक ने झुकना नहीं सीखा प्रभाष जोशी उसी परम्परा के वाहक थे।
    प्रभाष जी को पढ़ने समझने के बाद मशहूर शायर वामिक जौनपुरी का एक शेर ‘‘आखों के सामने तैरता है कि
    आहन नहीं की चाहिए जब मोड़ दिजीए,
    शीशा हूं मुड़ तो सकता नहीं तोड़ दिजीए’’
    और अब जब प्रभाष जी नही रहे तो यू.पी. में अम्बरीश उस परम्परा का निर्वाह बखूबी कर रहे है । संजय तिवारी जी ने किस लिए ऐसा लिखा वह तो वहीं जाने लेकिन यह सच है कि सोनभद्र में पिछले दो वर्षो से जितनी तेजीं से यहां दलितो आदिवासियों परजुल्म बढ़े यहां एक दो अखबारों को छोड़कर किसी ने भी कलम नहीं चलायी । या पत्रकारों ने खबर भेजी तो आजसत्ता का चारण बन चुके तमाम अखबार के मालिकों ने लिखना नहीं समझा। इस स्थिति में जनसत्ता मजबूती के साथ डटा रहा । मुझे नहीं पता कि रामबहादुर राय का कौन इतना बड़ा हितैषी है जो संजय तिवारी के जरीए सोनभद्र के पत्रकारों को सर्टिफिकेट बांट रहा है। यहां स्वयं गलत पत्रकारों का मजबूती से विरोध करने वाली टीम है । जे0 पी0 का विज्ञापन जनादेश ,पोर्टल पर चल रहा है तो उससे जनसत्ता को कत्तई कष्ट नहीं हो सकता शायद विचार व्यक्त करने वालो को यह नहीं पता कि जनसत्ता विज्ञापन के लिए हाथ नहीं फैलाता यह परम्परा भी शायद जोशी जी की ही थी ।लिफाफा देखकर मजमून भापने वालों की गणित फेल हो गयी अम्बरीश का नैनीताल मे महल बताने वालों को उनकी एक-एक ईट का हिसाब मिल जायेगा । महज कुछ ईटो से बने कमरों का घर तो हो सकते है महल नहीं, और शायद आज ऐसा कोई नहीं जो ईट गारे की कल्पना न करता हो । राजसत्ता का विरोध आज भी जिस मजबूती से जनसत्ता में अम्बरीश कर रहे है वह कमतर नहीं ।विचार भेजनेंवालों को जनादेश को बीच में नहीं लाना चाहिए

    विजय विनीत
    सोनभद्र यु . पी
    ९४१५६७७५१३ ,९५९८३२१०४१

  9. Dr.K.N.mishra

    July 21, 2010 at 4:29 pm

    written by Dr.K.N.Mishra (Lucknow) July 21, 2010
    Bhai Sanjay jee, Lagata haie aap Ambrish jee se kuch jyada naraj chal rahe haie. baat ho rahaie thee Prabhash jee kie aur aap pahuch gaye ambrish jee ke ghar, Vaise mai Ambrish jee ke Lucknow ke Indira nager ke avash par gaya hnoo. Lucknow me jaha lagbhag 300 patrakar rajya sampatiee vibhag ke alishan sarkarie avasno me rahte haie, vanhi ambrish jee aaj bhiee do kamre ke kiraie ke avas me rahte haie. vaise aap kie narajgie kuch aur haie, mitra. yah narajgie yaha iss tarah vyakt karana thtiek nahie hai.

  10. ashok

    July 22, 2010 at 5:05 am

    बुरा जो ढूढन मै चला बुरा ना मिलीया कोय
    जो दिल ढूढा आपनो मुझसे बुरा ना कोय ।
    संजय तिवारी अपनी आत्म समीक्षा करें लखनऊ में जिस ज्योति को अम्बरीश जी जलाये हुए है उसकी लौ सोनभद्र तक प्रकाश करती है । संजय तिवारी ने कौन सी ज्योति जलायी है लोग जानना चाहते है ।

    अशोक कुमार मो0-9839209238
    उत्तर प्रदेश- सोनभद्र

  11. girish

    July 22, 2010 at 5:09 am

    संजय तिवारी आखिर किस मानसिकता से ग्रसित है कि उन्हें सही परख करने की समझ अभी तक नहीं आयी । वह आखिर अम्बरीश व सच को क्यो नहीं पचा पा रहे । अम्बरीश ने क्या गलत लिखा है । अगर संजय तिवारी इतने निष्पक्ष है तो तमाम तरह के कार्यो को लेकर चर्चा में रहने वाले रामबहादुर राय के बारे में क्यांे नहीं लिखते ।

    सुरेश मो0-9838136466
    उत्तर प्रदेश- सोनभद्र

  12. rakesh

    July 22, 2010 at 5:11 am

    जनतंत्र विस्फोट मोहल्ला लाइव भड़ास पर संजय तिवारी का अम्बरीश को लेकर टिप्पणी पढी । अम्बरीश जी जनसत्ता में सत्ता का जो विरोध करते है वैसा संजय तिवारी में हो तो सामने आये । अम्बरीश जी ने जो कहा है सच कहा है सच के सिवा कुछ नही कहा है छदम नामों से कमंेट करने वालों क्या नाम छिपाने में बड़ाई है । नाम तो वह छुपाता है जो चोर मक्कार ,फरेबी व पता नहीं क्या-क्या होता है। े

    राकेश मिश्रा मांे0-9935363472

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