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उदयन को आज क्यों याद करें?

[caption id="attachment_17320" align="alignleft" width="85"]संतोष भारतीयसंतोष भारतीय[/caption]उदयन शर्मा को आज (पुण्यतिथि 23 अप्रैल पर) क्यों याद करें? लेकिन एक पत्रकार चाहता है कि उदयन को न केवल याद किया जाए बल्कि जाना भी जाए. मैने उन पत्रकार संपादक से कहा कि कोई याद नहीं करता तो आप क्यों करते हैं. उनका उत्तर है कि हमें तो याद करना ही चाहिए क्योंकि उदयन जी सही पत्रकारिता की परिभाषा थे.

संतोष भारतीय

संतोष भारतीय

संतोष भारतीय

उदयन शर्मा को आज (पुण्यतिथि 23 अप्रैल पर) क्यों याद करें? लेकिन एक पत्रकार चाहता है कि उदयन को न केवल याद किया जाए बल्कि जाना भी जाए. मैने उन पत्रकार संपादक से कहा कि कोई याद नहीं करता तो आप क्यों करते हैं. उनका उत्तर है कि हमें तो याद करना ही चाहिए क्योंकि उदयन जी सही पत्रकारिता की परिभाषा थे.

इनका नाम बाद में बताउंगा, पर इतना बता दूं कि ये पत्रकार आज की पीढी के हैं, उदयन जी के साथियों में से नहीं हैं. उदयन शर्मा के लिए पत्रकारिता नौकरी नही थी, पागलपन था. वे पत्रकारिता को हथियार की तरह इस्तेमाल करते थे. जहां भी सच्चाई दबाने की कोशिश होती थी, उदयन शर्मा वहां हाजिर होते थे, और ऐसी कोशिशों को नाकाम कर देते थे. नाइंसाफी जहां भी हो रही हो, उदयन जी के निशाने पर होती थी. क्रिकेट, सिनेमा, राजनीति, सामाजिक संघर्ष, कश्मीर, आतंकवाद सभी उनके प्रिय विषय थे. उदयन हमेशा कमजोर और सताए लोगों की आवाज बनने की कोशिश करते थे.

सांप्रदायिता के खिलाफ उन्होंने हमेशा कलम उठाई. हिंदी पत्रकारिता में उदयन शर्मा से पहले और बाद में कोई भी इतना प्रखर और जुनूनी नहीं दिखाई देता. दंगा अगर हुआ है तो उदयन वहां जरूर जाते थे और रेशा रेशा खोल कर रख देते थे. उन्हीं की रिपोर्ट पढकर जाना जाता था कि दंगों के पीछे के कारण, दंगों के पीछे की ताकतें, दंगों का तरीका, दंगों के शिकार, दंगों से नुकसान, यहां तक कि दंगों से फायदा किसे हुआ या होने वाला है. उदयन शर्मानिर्भीक इतने थे कि दंगों में शामिल संगठनों और व्यक्तियों के नाम लिखने में उन्हें सुकून मिलता था. सांप्रदायिक ताकतें उन्हें अपना दुश्मन मानती थीं. पांचजन्य और ऑर्गेनाइजर उन पर लगभग हर हफ्ते कठोर टिप्पड़ी करते थे. उदयन जी को दुख होता था, जिस हफ्ते इन दोनों साप्ताहिकों में उनके खिलाफ न लिखा गया होता था. उन्हें लगता था कि उनकी धार कहीं धीमी तो नही पड़ गई है.

उदयन शर्मा हमारे बीच आज के ही दिन विदा हुए थे. वे नहीं हैं  इसे मन आज भी नही मानता. उनके घर पर जाइए, एक तस्वीर लगी है, ठीक वैसी जैसे उदयन जी थे. उन्होंने कभी पोज देकर फोटो नही खिंचवाई. हमेशा एक मंद मुस्कान उनके चेहरे पर रहती थी.

उदयन शर्मा ने जितने खुलासे अपनी रिपोर्ट में किए, हमेशा उनके साथ खड़े रहे. चौधरी चरण सिंह, राजनारायण जी, मधुलिमए, जार्ज फर्नांडिज, चंद्रशेखर, शरद यादव, मुलायम सिंह, के सी त्यागी, सत्यपाल मलिक, सुरेंद्र मोहन, आनंद शर्मा और तारिक अनवर से उनके अंतरंग संबंध थे लेकिन इनमें से किसी के भी कहने पर उन्होंने किसी के ख़िला़फ लिखा नहीं. उदयन जी का लिखा पाठक एक सर्टीफिकेट की तरह मानता था. उदयन शर्मा ने पत्रकारिता को संबंधों से हमेशा अलग रखने की कोशिश की.

आज पत्रकारों की बड़ी भीड़ है, ग्लैमरस चेहरे हैं, चीखते चेहरे हैं लेकिन ऐसे बहुत कम हैं जिन्हें उदयन शर्मा की तरह लोगों का प्यार मिल रहा हो. ऐसे लोग नहीं जानते कि उदयन शर्मा के लिखने का मतलब क्या होता था. उदयन शर्मा की लिखी रिपोर्ट अगर कोई पूरी तरह पढ़ जाए तो उसे किसी पत्रकारिता संस्थान में जाने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी.

भड़ास4मीडिया के एडिटर यशवंतजी ने कल रात फोन किया और जोर डाला कि मैं उदयन जी पर कुछ लिखूं, क्योंकि आज उनकी पुण्य तिथि है. उदयन बहुतों को याद नहीं हैं लेकिन यशवंत जैसों को याद हैं. शायद इसीलिए यशवंत आज पत्रकारों की भीड़ में अलग पहचान बन कर खड़े दिखाई दे रहे हैं. ऐसी पहचान वाले जितने बढ़ेंगे, उतनी ही पत्रकारिता निखरेगी. उदयन जी को याद करने का इससे अच्छा तरीका और क्या होगा.

लेखक संतोष भारतीय वीकली हिंदी अखबार ‘चौथी दुनिया’ के एडिटर इन चीफ हैं.

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0 Comments

  1. Sadashiv Tripathi

    April 23, 2010 at 10:33 am

    Yashwant Bhai Ke Sath Bhartiya Ji Ko Sadhubad. Patrakarita Ki Ek Paripati Tair Karnewale Udyanji Ko Bhulana Patrakarita Ke Adarshon Ki Andekhi Hogi.

  2. राजीव शर्मा

    April 23, 2010 at 12:04 pm

    उदयन जीः- एक संस्मरण
    राष्ट्रीय सहारा के टीवी चैनल की तैयारियां जोरों पर थीं। स्टुडियोज़ तो रेडी टू यूज थे। राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सहारा के 21 लोग पहली बार ट्रैनिंग के लिए नोएडा बुलाए गए। इनमें ज्यादातर ब्यूरोचीफ और मैनेजर थे। उनमें मैं इकलौता एक करस्पॉंडेंट। बाकी टेस्ट-ट्रैनिंग के बाद जब वॉयस ओवर की बारी आई तो मेरा नम्बर सबसे आखिर में डाल दिया गया। गोया सबसे छोटा जो ठहरा। टेस्ट-ट्रैनिंग कराने वालों में से एक दाढ़ी वाला शख्स हमारी स्क्रिप्ट्स के पन्नों को बार-बार ऊपर नीचे पलटता और फिर हम लोगों की ओर देखता…बहुत कम समय में ये क्रम कई बार हुआ…इधर वॉयस ओवर का क्रम जारी था… रमेश शर्मा, राजीव सिंह, अशोक चतुर्वेदी…स्वतंत्र मिश्र का वॉयस ओवर हो चुका था..फिर अचानक दाढ़ी वाले शख्स ने घोष जी को रुकने का संकेत दिया…स्क्रिप्ट्स के पन्ने आगे करके उन्होंने आपस में कुछ बुतबुताया…फिर स्वतंत्र मिश्रा जी, जिन्हें हम लोग स्वतंत्र सर कहते (हैं) थे… को बुला कर कुछ पूछा…मिश्रा जी ने आदतन जोर से आवाज लगाई…
    राजीव जी!!!
    … और मैं तो जैसे बस बाट ही जोह रहा था। दौड़ कर पहुंच गया… मैं नहीं, सर बुला रहे हैं। (उन्होंने उसी दाढ़ी वाले शख्स की ओर इशारा करते हुए कहा) ये स्क्रिप्ट तुम ने ही लिखी है? (भौंहे नजदीक लाते हुए उनका पहला सबाल) और उसके बाद ऐसा लगा कि खड़े ही खड़े पूरा इंटरव्यू लिया जा रहा है… मन अंदर ही अंदर धक-धक कर रहा था और मैं बाहर से चेहरे पर पूरा कॉंन्फीडेंस दिखाने की कोशिश कर रहा था। टीवी ट्रैनिंग के लिए आई टीम में कुछ ऐसे भी थे जो मुझे तुच्छ समझ रहे थे वो कभी-कभी मेरे जबाबों के बाद खिलखिलाकर ऐसे हंसते जैसे मेरा एक-एक मायनस प्वाइंट उनके खाते में प्लस हो रहा है…आखिर में उस दाढ़ी वाले शख्स ने मेरे कंधों पर जोर से दोनों हाथ रखे…और वोले जैसी स्क्रिप्ट लिखी है, वीओ भी वैसा करो लगभग डेढ़ दर्जन लोगों को पीछे छोड़ता हुआ मैं वीओ बॉक्स में धड़धड़ाता हुआ घुस गया। उनके हाथों का वजन अपने कंधो पर मैं महसूस कर रहा था…वीओ पूरा किया और बाहर आया तो लगा कि मैंने ओलंपिक जीत लिया है। दाहिने हाथ का अंगूठा ऊपर उठाते हुए बोले “वैल डन” … इसी के साथ उस दिन की एक्सरसाइज भी खत्म हो गई। मेरे मोहब्बती कसमसाते रह गए। इसके बाद शुरू हुआ बातचीत का सिलसिला, इसी बीच स्वतंत्र सर ने दाढ़ी वाले शख्स से औपचारिक परिचय करवाया… ये दाढ़ी वाले शख्स उदयन शर्मा ही थे…राष्ट्रीय सहारा के टीवी चैनल की लॉंचिंग में देरी होने पर उदयन शर्मा काफी क्षुब्ध थे……

    –राजीव शर्मा

  3. गुड्डू कलगा

    April 23, 2010 at 12:26 pm

    संतोष जी, उदयन जी को आपने याद किया. बहोत अच्छा लगा, और यशवंत जी को भी धन्यवाद….

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