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सर्वेश्वरदयाल सक्सेना और उनकी पत्रकारिता

संजय द्विवेदी ने यह आलेख इस टिप्पणी के साथ भेजा है…हिंदी के मान्य पत्रकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के विषय में आज की पीढ़ी बहुत कम जानती है। मुझे उम्मीद है यह लेख भड़ास के पाठकों को पसंद आएगा।  अगले महीने सर्वेश्वर जी कि जन्मतिथि और पुण्यतिथि दोनो है। ऐसे में यह आलेख एक सच्ची श्रद्धांजलि है। -संपादक, भड़ास4मीडिया 


इतिहास पुरूष  सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जन्मतिथि- 15 सितंबर 1927  पुण्यतिथि- 23 सितंबर 1983

पने तीखे तेवरों से सम्पूर्ण भारतीय प्रेस जगत को चमत्कृत करने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की उपलब्धियां बड़े महत्व की हैं।

<p>संजय द्विवेदी ने यह आलेख इस टिप्पणी के साथ भेजा है...<em>हिंदी के मान्य पत्रकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के विषय में आज की पीढ़ी बहुत कम जानती है। मुझे उम्मीद है यह लेख भड़ास के पाठकों को पसंद आएगा।  </em>अगले महीने सर्वेश्वर जी कि जन्मतिथि और पुण्यतिथि दोनो है। ऐसे में यह आलेख एक सच्ची श्रद्धांजलि है। -संपादक, भड़ास4मीडिया  </p><hr id="null" /><p align="center">इतिहास पुरूष  <strong><font color="#ff0000">सर्वेश्वर दयाल सक्सेना</font></strong> <strong>जन्मतिथि- </strong>15 सितंबर 1927  <strong>पुण्यतिथि- </strong>23 सितंबर 1983</p><p><strong>अ</strong>पने तीखे तेवरों से सम्पूर्ण भारतीय प्रेस जगत को चमत्कृत करने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की उपलब्धियां बड़े महत्व की हैं। </p>

संजय द्विवेदी ने यह आलेख इस टिप्पणी के साथ भेजा है…हिंदी के मान्य पत्रकार सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के विषय में आज की पीढ़ी बहुत कम जानती है। मुझे उम्मीद है यह लेख भड़ास के पाठकों को पसंद आएगा।  अगले महीने सर्वेश्वर जी कि जन्मतिथि और पुण्यतिथि दोनो है। ऐसे में यह आलेख एक सच्ची श्रद्धांजलि है। -संपादक, भड़ास4मीडिया 


इतिहास पुरूष  सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जन्मतिथि- 15 सितंबर 1927  पुण्यतिथि- 23 सितंबर 1983

पने तीखे तेवरों से सम्पूर्ण भारतीय प्रेस जगत को चमत्कृत करने वाले सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की उपलब्धियां बड़े महत्व की हैं।

सर्वेश्वर जी मूलतः कवि एवं साहित्यकार थे, फिर भी वे जब पत्रकारिता में आए तो उन्होंने यह दिखाया कि वे साथी पत्रकारों से किसी मामले में कमतर नहीं हैं। अपने समय की प्रमुख साप्ताहिक पत्रिका दिनमान के प्रारंभ होने पर उसके संस्थापक संपादक श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्सायन अज्ञेय ने न सिर्फ कवि सर्वेश्वर में छिपे पत्रकार को पहचाना वरन उन्हें दिनमान की टीम में शामिल किया। दिनमान पहुंच कर सर्वेश्वर ने तत्कालीन सवालों पर जिस आक्रामक शैली में हल्ला बोला तथा उनके वाजिब एवं ठोस उत्तर तलाशने की चेष्टा की, वह महत्वपूर्ण है। खबरें और उनकी तलाश कभी सर्वेश्वर जी की प्राथमिकता के सवाल नहीं रहे, उन्होंने पूरी जिंदगी खबरों के पीछे छिपे अर्थों की तलाश में लगाई। वे घटनाओं की तह तक जाकर उनके होने की प्रक्रिया की पूरी पड़ताल करते थे और जनमत निर्माण के उत्तरदायित्व को निभाते थे। 
 
उन्होंने समकालीन पत्रकारिता के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को समझा और सामाजिक चेतना जगाने में अपना अनुकरणीय योगदान दिया। उन्होंने बचपन एवं युवावस्था का काफी समय गांव में बड़ी विपन्नता एवं अभावों के बीच गुजारा था। वे एक छोटे से कस्बे से आए थे। जीवन में संघर्ष की स्थितियों ने उनको एक विद्रोही एवं संवेदनशील इन्सान बना दिया था। वे गरीबों, वंचितों, दलितों पर अत्याचार देख नहीं पाते थे। ऐसे प्रसंगों पर उनका मन करुणा से भर उठता था। जिसकी तीव्र प्रतिक्रिया उनके पत्रकारिता लेखन एवं कविताओं में दिखती है। उन्होंने आम आदमी की जिंदगी को, हमारे आपके परिवेश के संकट को आत्मीय, सहज एवं विश्वसनीय शिल्प में ढालकर व्यक्त किया है। उनका कहा हुआ हमारी चेतना में समा जाता है। पाठक को लगता है इस सबमें उसकी बहुत बड़ी हिस्सेदारी है। इन अर्थों में सर्वेश्वर परिवेश को जीने वाले पत्रकार थे। वे न तो चौंकाते हैं, न विज्ञापनी वृत्ति को अपनाते हैं और न संवेदना और शिल्प के बीच कोई दरार छोड़ते हैं। 
 
श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पत्रकारिता की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वह अपने परिवेश पर चौकस निगाहें रखते हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सीमाओं से मिली अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं  को भी देखा है। वे गांधी, नेहरु, इंदिरा गांधी, लोहिया, विनोबा के देश को भी देखते हैं तो दुनिया में घट रही घटनाओं पर भी नजर रखते हैं। उन्होंने लोकतंत्र का अर्थ समझा है तो संसद की दृश्यावली को भी समझा है। वे महंगाई के भूत-पिशाच को भी भोगते रहे हैं और व्यवस्था की भ्रष्टता का भी अनुभव करते हैं। उनकी नजर भूखे आदमी से लेकर सत्ता के भूखे भेड़ियों तक है। इसी के चलते उनकी पत्रकारिता का एक-एक शब्द परिवेश का बयान है। सर्वेश्वर जी इसी के चलते अपने युगीन संदर्भों, समस्याओं और देश के बदलते मानचित्र को भूल नहीं पाते। उन्होंने युद्ध, राजनीति, समाज, लोकतंत्र, व्यवस्था गरीबी, कला-संस्कृति हर सवाल पर अपनी कलम चलाई है। युद्ध हो या राजनीति, लोकतंत्र हो या व्यवस्थाकर्ताओं का ढोंग, गरीबी हटाने का नारा हो या कम्बोडिया पर हुए अत्याचार का सवाल या अखबारों की स्वायत्तता का प्रश्न, सर्वेश्वर सर्वत्र सजग हैं। उनकी दृष्टि से कुछ भी बच नहीं पाता। फलतः वे घुटन और बेचैनी महसूस करते हुए, आवेश में आकर कड़ी से कड़ी बात करने में संकोच नहीं करते। उनकी पत्रकारिता संवेदना के भावों तथा विचारों के ताप से बल पाती है। वस्तुतः सर्वेश्वर की पत्रकारिता में एक साहसिक जागरुकता सर्वत्र दिखती है। 
 
सर्वेश्वर जी के लिए पत्रकारिता एक उत्तदायित्वपूर्ण कर्म है। वे एक तटस्थ चिंतक, स्थितियों के सजग विश्लेषक एवं व्याख्याकार हैं। सर्वेश्वर न तो सत्ता की अर्चना के अभ्यासी हैं और न पत्रकारिता में ऐसा होते देखना चाहते हैं। समसामयिक परिवेश कि विसंगतियों और राजनीति के भीतर फैली मिथ्या-चारिता को भी वे पहचानते हैं। वे हमारी सामाजिक एवं व्यवस्थागत कमियों को भी समझते हैं। इसीलिए वे अपने पाठक में एक जागरुकता के भाव भरते नजर आते हैं। 
 
सर्वेश्वर जी के पत्रकार की संवेदना एवं सम्प्रेषण पर विचार करने से पूर्व यह जानना होगा कि कलाकारों की संवेदना, आम आदमी से कुछ अधिक सक्रिय, अधिक ग्रहणशील और अधिक विस्तृत होती हैं। सर्वेश्वर की संवेदना के धरातलों में समसामयिक संदर्भ, सांस्कृतिक मूल्य, मनोवैज्ञानिक संदर्भ और राजनीति तक के अनुभव अनुभूति में ढलकर संवेदना का रूप धारण करते रहे हैं। अनेक संघर्षों की चोट खाकर सर्वेश्वर का पत्रकार अपनी संवेदना को बहुआयामी और बहुस्तरीय बनाता रहा है। इसके चलते सर्वेश्वर की संवेदना स्वतः पाठकीय संवेदना का हिस्सा बन गई है । इस कारण उनके लेखन में एक संवेदनशीलता है जो आसपास के संदर्भ दृश्यों से बल पाती है। 

वस्तुतः सर्वेश्वर जी का पत्रकारिता समझौतों के खिलाफ है। वे सदैव लोकमंगल की भावना से अनुप्राणित रहे हैं। उनकी पत्रकारिता में आम आदमी की पीड़ा को स्वर मिला है। इसके चलते उन्होंने सामाजिक जटिलताओं एवं विसंगतियों पर तीखे सवाल किए हैं। आजादी के बाद के वर्षों में साम्राज्यवादी शक्तियों और उपनिवेशवादी चरित्रों ने अमानवीयता, पशुता, मिथ्या, दंभ और असंस्कृतिकरण को बढ़ावा दिया है। प्रजातंत्र को तानाशाही का पर्याय बना दिया है, मनमानी करने का माध्यम बना दिया है। फलतः गरीबी, भूख, बेकारी और भ्रष्टाचार बढ़ा है। ये स्थितियां सर्वेश्वर को बराबर उद्वेलित करती हैं और उन्होंने इन प्रश्नों पर तीखे सवाल खड़े किए हैं। उनका पत्रकार ऐसी स्थितियों के खिलाफ एक जेहाद छेड़ता नजर आता है। व्यक्ति की त्रासदी, समाज का खोखला रूप और आम आदमी का दर्द – सब उनकी पत्रकारिता में जगह पाते हैं। यह पीड़ा सर्वेश्वर की पत्रकारिता में बखूबी महसूसी जा सकती है। वे अपने स्तंभ चरचे और चरखे में कभी दर्द से, कभी आक्रोश से तो कभी विश्लेषण से इस पीड़ा को व्यक्त करते हैं। पत्रकार सर्वेश्वर इन मोर्चों पर एक क्रांतिकारी की तरह जूझते हैं। 
 
सर्वेश्वर जी की पत्रकारिता में वैचारिकता की धार भी है। उनकी वैचारिकता का मूल मंत्र यह है कि वे अराजकता, विश्रृंखलता, विकृति, अस्तित्वहीनता और सड़ांध को कम करके स्वस्थ जीवन दृष्टि के आकांक्षी हैं। वे स्वतंत्र चिंतन के हिमायती, निजता एवं अस्मिता के कायल, जिजीविषा के साथ दायित्वबोध के समर्थक, पूंजीवादी, अवसरवादी और सत्तावादी नीतियों के कटु आलोचक रहे तथा पराश्रित मनोवृत्तियों के विरोधी हैं। सीधे अर्थ में सर्वेश्वर की पत्रकारिता समाजवादी चिंतन से प्रेरणा पाती है। वे एक मूल्यान्वेषी पत्रकार दृष्टि के विकास के आकांक्षी हैं जिसमें मनुष्य, मनुष्य और जीवन रहे हैं। 
 
सर्वेश्वर जी की पत्रकारिता अपने समय, समाज और परिवेश को कभी उपेक्षित करके नहीं चलती। परिवेश के प्रति सचेतन दृष्टि, बदलते माहौल के प्रति संपृक्ति और समकालीन घटना-प्रसंगों व उनसे उद्भूत स्तितियों के प्रति साझेदारी सर्वेश्वर की पत्रकारिता का एक वृहद एवं उल्लेखनीय संदर्भ है। 

सर्वेश्वर की पत्रकारिता में स्वातंत्र्योत्तर भारत के कई रंग हैं, वे चुनौतियां हैं जो हमारे सामने रही हैं, वे विचारणाएं रहीं हैं जो हमने पाई हैं, वे समस्याएं हैं जो हमारे लिए प्रश्न रही हैं, साथ ही वह वैज्ञानिक बोध है जिसने बाहरी सुविधाओं का जाल फैलाकर आदमी को अंदर से निकम्मा बना दिया है। भूख, बेकारी, निरंतर बढ़ती हुई दुनिया, आदमी, उसके संकट और आंतरिक तथा बाह्य संघर्ष, उसकी इच्छाएं, शंकाएं, पीड़ा और उससे जन्मी निरीह स्थितियां, शासन तंत्र, राजनीतिक प्रपंच, सत्ताधीशों की मनमानी, स्वार्थपरता, अवसरवादिता, शोषकीय वृत्ति, अधिनायकवादी आदतों, मिथ्या आश्वासन, विकृत मनोवृत्तियां, सांस्कृतिक मूल्यों का विघटन, ईमान बेचकर जिंदा रहने की कोशिश जैसी अनगिनत विसंगतियां सर्वेश्वर की लेखकीय संवेदना का हिस्सा बनी हैं। परिवेश के प्रति यह जाकरुकता पत्रकार सर्वेश्वर की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। कहने का तात्पर्य सर्वेश्वर की पत्रकारिता में समसामयिक परिवेश का गहरा साक्षात्कार मिलता है।

सर्वेश्वर बाद के दिनों में अपने समय की सुप्रसिद्ध बाल पत्रिका पराग के सम्पादक बने। उन्होंने पराग को एक बेहतर बाल पत्रिका बनाने की कोशिश की। इन अर्थों में उनकी पत्रकारिता में बाल पत्रकारिता का यह समय एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप रेखांकित किया जाना चाहिए। बाल साहित्य के सृजन को प्रोत्साहन देने वालों में सर्वेश्वर का स्थान महत्वपूर्ण था। उन्होंने इस भ्रम को तोड़ने का प्रयास किया कि बड़ा लेखक बच्चों के लिए नहीं लिखता तथा उच्च बौद्धिक स्तर के कारण बच्चों से संवाद स्थापित नहीं कर सकता। सर्वेश्वर ने यह कर दिखाया। पराग का अपना एक इतिहास रहा है। आनंद प्रकाश जैन ने इसमें कई प्रयोग किए। फिर कन्हैया लाल नन्दन इसके संपादक रहे। नंदन जी के दिनमान का संपादक बनने के बाद सर्वेश्वर ने पराग की बागडोर संभाली। सर्वेश्वर के संपादन काल पराग की गुणवत्ता एवं प्रसार में वृद्धि हुई । उन्होंने तमाम नामवर साहित्यकारों पराग से जोड़ा और उनसे बच्चों के लिए लिखवाया। उन्होंने ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी निबाही। सर्वेश्वर मानते थे कि जिस देश के पास समृद्ध बाल साहित्य नहीं है, उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं रह सकता। सर्वेश्वर की यह अग्रगामी सोच उन्हें एक बाल पत्रिका के सम्पादक के नाते प्रतिष्ठित और सम्मानित करती है। 
 
इसके अलावा सर्वेश्वर ने भाषा के सवाल पर महत्वपूर्ण उपलब्धियां अर्जित की। उन्होंने भाषा के रचनात्मक इस्तेमाल पर जोर दिया, किंतु उसमें दुरुहता पैदा न होने दी। सर्वेश्वर की पत्रकारिता में सम्प्रेषण शक्ति गजब की है। उन्हें कथ्य और शिल्प के धरातल पर सम्प्रेषणीयता का बराबर ध्यान रखा है। उनकी भाषा में जीवन और अनुभव का खुलापन तथा आम आदमी के सम्पृक्ति का गहरा भाव है। वे एक अच्छे साहित्यकार थे इसलिए उनकी लेखनी ने पत्रकारिता की भाषा को समर्थ एवं सम्पन्न बनाया। सर्वेश्वर का सबसे बड़ा प्रदेय यह था कि उन्होंने जनभाषा को अनुभव की भाषा बनाया, पारम्परिक  आभिजात्य को तोड़कर नया, सीधा सरल और आत्मीय लिखने, जीवन की छोटी से छोटी चीजों को समझने की कोशिश की। 
 
सर्वेश्वर में एक तीखा व्यंग्यबोध भी उपस्थित था। अपने स्तंभ चरचे और चरखे में उन्होंने तत्कालीन संदर्भों पर तीखी व्यंग्यात्मक टिप्पणियां लिखीं। सर्वेश्वर के व्यंग्य की विशेषता यह है कि वह मात्र गुस्सा न होकर शिष्ट, शालीन और रचनात्मक है। वह आक्रामक तो है पर उसकी शैली महीन है। सर्वेश्वर ने प्रायः व्यंग्य के सपाट रूप को कम ही इस्तेमाल किया है। उनकी वाणी का कौशल उनको ऐसा करने से रोकता है। प्रभावी व्यंग्य वह होता है जो आलंबन को खबरदार करते हुए सही स्थिति का अहसास करा सके। ड्राइडन ने एक स्थान पर लिखा है कि “किसी व्यक्ति के निर्ममता से टुकड़े-टुकड़े कर देने में तथा एक व्यक्ति के सर को सफाई से धड़ से अलग करके लटका देने में बहुत अंतर है । एक सफल व्यंग्यकार अप्रस्तुत एवं प्रच्छन्न विधान की शैली में अपने भावों को व्यक्त कर देता है। वह अपने क्रोध की अभिव्यक्ति अलंकारिक एवं सांकेतिक भाषा में करता है ताकि पाठक अपना स्वतंत्र निष्कर्ष निकाल सके। व्यंग्यकार अपने व्यक्तित्व को व्यंग्य से अलग कर लेता है । ताकि व्यंग्य कल्पना के सहारे अपने स्वतंत्र रूप में कला और साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश कर सके।” 
 
कुल मिला कर सर्वेश्वर की पत्रकारिता हिंदी पत्रकारिता का एक स्वर्णिम अध्याय है जो पत्रकारिता को सामाजिक सरोकारों से जोड़ती है। सर्वेश्वर ने अपनी लेखनी से जहाँ पत्रकारिता को लालित्य का पुट दिया वहीं उन्होंने उनकी वैचारिक तपन को कम नहीं होने दिया। शुद्ध भाषा के आग्रही होने के बावजूद उन्होंने भाषा की सहजता को बनाए रखने का प्रयास किया। भाषा के स्तर पर उनका योगदान बहुत मौलिक था। वे इलेक्ट्रॉनिक मीजिया की पत्रकारिता से प्रिंट मीडिया की पत्रकारिता में आए थे पर यहाँ भी उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। हालांकि वे सदैव पत्रिका संपादन (दिनमान एवं पराग) से जुड़े रहे, इसलिए उन्हें कभी दैनिक समाचार पत्र में कार्य करने का अनुभव नहीं मिला। हो सकता है कि यदि उन्हें किसी दैनिक समाचार पत्र में कार्य करने का अवसर मिलता तो वे उस पत्र पर अपनी छाप छोड़ पाते। पत्रिका संपादन के एक निष्णात व्यक्तित्व होने के नाते वे एक दैनिक समाचार पत्र के कैसे इस्तेमाल के पक्ष में थे, वे एक सम्पूर्ण दैनिक निकालते तो उसका स्वरूप क्या होता, यह सवाल उनके संदर्भ में महत्पूर्ण हैं। इसके बावजूद दिनमान के प्रारंभकर्ताओं में वे रहे और उन्होंने एक बेहतर समाचार पत्रिका हिंदी  पत्रकारिता को दी जिसका अपना एक अलग इतिहास एवं योगदान है। 
 
सर्वेश्वर की रुचियां व्यापक थीं, वे राजनीति, कला, संस्कृति, नाटक, साहित्य हर प्रकार के आयोजनों पर नजर रखते थे। उनकी कोशिश होती थी कि कोई भी पक्ष जो आदमी की बेहतरी में उसके साथ हो जाए, छूट न जाए। उनकी यह कोशिश उनकी पत्रकारिता को एक अलग एवं अहम दर्जा दिलाती है। साहित्य के प्रति अपने अतिशय अनुराग के चलते वे पत्रकारिता जगत के होलटाइमर कभी न हो पाए। अगर ऐसा हो पाता तो शायद हिंदी पत्रकारिता जगत को क साथ ज्यादा गति एवं ऊर्जा मिल पाती। पर हां, इससे हिंदी जगत को एक बड़ा साहित्यकार न मिल पाता। सर्वेश्वर पत्रकारिता को जीवन भर एक मिशन मानकर चले यह उनकी पत्रकारिता का सबसे बड़ा प्रदेय है। 
 
वास्तव में सर्वेश्वर पत्रकारिता के क्षेत्र में ईमानदार अभिव्यक्ति के प्रति प्रतिबद्ध रहे। इस अर्थ में अनुभूति की ईमानदारी उनकी उपलब्धि मानी जा सकती है। वस्तुतः सर्वेश्वर की लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण यह है कि उन्होंने स्वयं को सदैव लोक से जोड़े रखा। आंचलिक शब्दों के प्रयोग के कारण उनकी भाषा का स्वरूप और भी ताजा आर अप-टू-डेट हो गया है। यही कारण है कि उनकी भाषा, आम भाषा होते हुए भी हर प्रकार की अभिव्यक्ति में पूर्ण तथा सक्षम है। इन संदर्भों के प्रकाश में सर्वेश्वर की पत्रकारिता वस्तुतः एक प्रेरणास्पद अध्याय है। उनकी उपलब्धियां महत्व की हैं और नई पीढ़ी के लिए प्रेरक भी।


लेखक जी 24 घंटे छत्तीसगढ़ के डिप्टी एक्जीक्यूटिव प्रोडूयसर हैं। उनसे उनकी मेल आईडी [email protected] के जरिए संपर्क किया जा सकता है।

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0 Comments

  1. sanyukta

    November 26, 2010 at 4:48 pm

    vey helpful!
    i completed my assignment!yipiiiiiii:D

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