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शशि की भड़ास और भड़ास4मीडिया

हिंदुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर ने भी अपने गले में अटक गई बात को पिछले दिनों उगल दिया. मतलब, अपनी भड़ास निकाल दी. वैसे, शशि शेखर की यह खासियत है कि वे कोई बात गले या पेट में अटका कर नहीं रखते, उसे वे मौका मिलते ही यत्र-तत्र-सर्वत्र उलटते रहते हैं, सामने वाले परेशान या खुश हों तो हुआ करें, दूसरों की परवाह उन्होंने कभी की ही नहीं सो आज क्यों करते.

<p align="justify">हिंदुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर ने भी अपने गले में अटक गई बात को पिछले दिनों उगल दिया. मतलब, अपनी भड़ास निकाल दी. वैसे, शशि शेखर की यह खासियत है कि वे कोई बात गले या पेट में अटका कर नहीं रखते, उसे वे मौका मिलते ही यत्र-तत्र-सर्वत्र उलटते रहते हैं, सामने वाले परेशान या खुश हों तो हुआ करें, दूसरों की परवाह उन्होंने कभी की ही नहीं सो आज क्यों करते. </p>

हिंदुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर ने भी अपने गले में अटक गई बात को पिछले दिनों उगल दिया. मतलब, अपनी भड़ास निकाल दी. वैसे, शशि शेखर की यह खासियत है कि वे कोई बात गले या पेट में अटका कर नहीं रखते, उसे वे मौका मिलते ही यत्र-तत्र-सर्वत्र उलटते रहते हैं, सामने वाले परेशान या खुश हों तो हुआ करें, दूसरों की परवाह उन्होंने कभी की ही नहीं सो आज क्यों करते.

हालांकि अब उनका पद व कद ऐसा नहीं रहा कि वे जगह-जगह भड़ास निकालते फिरें लेकिन आदत तो आदत होती है, वह जाती कहां है. अब बताते हैं उन्होंने भड़ास क्या निकाली है. उन्होंने हिंदी में मीडिया की खबरें देने वाले कुछ पोर्टल की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इन पोर्टल में गाली की भाषा का इस्तेमाल होता है और कुछ बेरोजगार लोगों ने काम न मिलने पर ऐसे पोर्टल का निर्माण कर दिया. शशि शेखर ने अपनी यह भड़ास विज्ञापन और धंधा-पानी जगत की खबरें देने वाले एक पोर्टल से बातचीत के दौरान निकाली. विज्ञापन और धंधा-पानी जगत की खबर देने वाले पोर्टल का मूल काम अंग्रेजी में चलता है. मीडिया हाउसों के मैनेजमेंट का पक्ष व पीआर देखना-पब्लिश करना, पैसे लेकर इवेंट कराना व एवार्ड बांटना इनका मुख्य धंधा है.

तो इन धंधा-पानी जगत की खबरों के लोग हिंदी मीडिया में धंधा-पानी की संभावना देख यहां भी कूद पड़े. शशि शेखर जैसों को बहुत खुशी हुई. लगा, अब उन लोगों के स्याह-सफेद पर बात करने की जगह सिर्फ गुडी गुडी बात करने वाले धंधा-पानी जगत के लोग हिंदी में भी आ गए. शशि शेखर टाइप लोग लगे दुवाएं देने- फूलो फलो रे, खूब आगे बढ़ो रे, ये मुआं भड़ास वाले तो बाल की खाल ही निकालते रहते हैं, पीछे ही पड़े रहते हैं.  तो इसी मनोदशा में शशि शेखर ने भड़ास4मीडिया के प्रति अपनी भड़ास निकाल दी. उन्होंने जो कुछ कहा, वो इस प्रकार है-

”कुछ पोर्टल तो हिंदी में ऐसे हैं जिसमें लोग खाली गाली की भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं। कुछ लोग बेरोजगार थे, उन्हें कुछ काम नहीं मिला तो उन्होंने हिंदी में इस तरह की वेबसाइट निकाल दी। लेकिन बड़ा काम यह किया कि उन्होंने हिंदी वाले लोगों को भी ऑनलाइन पढ़ने की आदत डाल दी। 1828 में हिंदी का पहला अखबार निकला, वह भी आज के ब्लॉग की तरह ही था। एक अंग्रेज ने तत्कालीन गवर्नर वारेन हेस्टिंगस से नाराज होकर अखबार का प्रकाशन शुरू किया था। उसे भारतीयों से कोई लगाव नहीं था, वह सिर्फ गवर्नर को अपनी नाराज़गी दिखाना चाहता था।”

जाहिर है, शशि शेखर का इशारा भड़ास4मीडिया की तरफ है. पर उन्हें कई गलत जानकारियां हैं. मसलन, यह पोर्टल किसी शख्स ने बेरोजगार रहने और काम न मिलने के दौरान नहीं खोला बल्कि इस पोर्टल को खोलने के लिए दो साल पहले 40 हजार रुपये महीने की नौकरी और वाइस प्रेसीडेंट (कंटेंट एंड मार्केटिंग) का पद इरादतन छोड़ा. इंडीकस ग्रुप को एक महीने का नोटिस दिया. इंडीकस ग्रुप के चेयरमैन लवीश भंडारी ने नए प्रोजेक्ट के लिए शुभकामनाएं दीं. तब मेरे दिल में था कि अभी उम्र व समय है प्रयोग करने का, कर लेते हैं, वरना ता-उम्र हूक बनी रहेगी कि जो करना चाहा, वो करने का साहस नहीं जुटा पाया.

भड़ास ब्लाग चल निकला था. मीडिया की दुनिया पर लिखी जाने वाली खबरें खूब पढ़ी जाने लगी थी. दिमाग में यह भी था कि अगर प्रयोग सफल नहीं हुआ तो नौकरी करने का घटिया विकल्प तो हमेशा खुला ही हुआ है. पर संयोग ये रहा कि भड़ास4मीडिया का प्रयोग चल निकला. प्रयोग के चल निकलने के बाद कल तक जो शशि शेखर टाइप लोग नौकरियों के लिए नसीहतें दिया करते थे, ये कर लो वो कर लो, ये छोड़ दो वो छोड़ दो टाइप दर्शन झाड़ते रहते थे, उन्हें भी लगने लगा कि पोर्टल में दम है, प्रयोग में दम है, सो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तरीके से अपनी, अपनी कंपनी व अपने काम की ब्रांडिंग में जुट गए. आज के जमाने में किसी की लगातार आंख मूदे ब्रांडिंग करते रहो तब तो ठीक, तब तो खुश, लेकिन जहां क्रिटिकल, एनालिटिकल व डाउन टु अर्थ होकर लिखना-बताना-पढ़ाना शुरू करो, भाई लोगों की फुंक जाती है. चेला बने रहो तो खुश. बराबरी पर बात करो तो खफा. ये हिंदी की मेंटेलिटी है, इसमें शशि शेखर का दोष नहीं है.

हम यहां शशि शेखर को बताना चाहते हैं कि भड़ास4मीडिया को किसी बेरोजगार ने नहीं बल्कि रोजगारशुदा व्यक्ति ने शुरू किया. यह जरूर है कि एक संपादक को गाली देने के बाद दैनिक जागरण से हटा दिया गया. फिर नौकरी मांगने मैं शशि शेखर (तब अमर उजाला के संपादक थे) के पास जरूर गया था पर तब शशि ने मेरे शराब ज्यादा पीने को बहाना बनाया और कहा कि शराब पीना कम कर दो तो फिर देखेंगे. बाद में अपने मित्र रंजन श्रीवास्तव के सौजन्य से इंडीकस ग्रुप में ज्वाइन किया. छह महीने काम किया. भड़ास ब्लाग के सफल प्रयोग के बाद भड़ास4मीडिया के प्रयोग के लिए इस्तीफा दिया. तो मिस्टर शशि शेखर, अपना सामान्य ज्ञान दुरुस्त कर लीजिए. भड़ास4मीडिया का किसी से बैर नहीं है. शशि शेखर से भी नहीं. संभव है कुछ लोगों से दोस्ती जरूर हो. यह दोस्ती भड़ास4मीडिया को सरवाइव कराने के लिए है. यह दोस्ती छोटे व नए मीडिया हाउसों को प्रमोट करने के लिए है.

मुझे गर्व है कि मैं किसी का नौकर नहीं हूं. पर शशि शेखर जैसे लोग तो ता-उम्र गुलाम रहने के लिए अभिशप्त रहे हैं और आगे भी रहेंगे. कभी वे शार्दूल विक्रम गुप्ता के नौकर थे, कभी अतुल माहेश्वरी के नौकर हुए और अब शोभना भरतिया के चीफ गुलाम हैं. यशवंत सिंह किसी शशि शेखर या किसी शोभना भरतिया के अधीन उनकी गुलामी नहीं कर रहा है. पांच-दस फीसदी धंधा हम लोग भी करते हैं. लेकिन मुख्य यह है कि किसके साथ करते हैं? नए व छोटे मीडिया हाउसों के साथ. इस दस फीसदी धंधे का भी मूल मकसद पैसे कमाना नहीं बल्कि इन नए व छोटे मीडिया हाउसों को प्रमोट करना है.

जिन नए व छोटे मीडिया हाउसों से उम्मीद है, उन्हें प्रमोट करना भड़ास4मीडिया का शुरू से मकसद रहा है. नए व छोटे मीडिया हाउसों को प्रमोट करने से ही बड़े और राक्षसी मीडिया हाउसों को संतुलित रखा जा सकता है. नए व छोटे मीडिया हाउसों को प्रमोट करने से ही जनता की असली आवाज को उठाने का वैकल्पिक रास्ता तैयार किया जा सकता है. शशि शेखर टाइप लोग और उनकी कंपनियां करोड़ों रुपये भी आफर कर दें तो भी उनके साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा, ये भड़ास4मीडिया के संविधान का सबसे प्रमुख नियम है. अगर आपका विशालकाय मीडिया हाउस अच्छा करता है तो उसकी जानकारी मिलने पर उसे भी पब्लिश किया जाएगा, आप बुरा करेंगे और उसकी जानकारी मिलेगी तो वो भी पब्लिश किया जाएगा. पर इन बड़े मीडिया हाउसों को तो देखिए. ये 90 फीसदी धंधेबाज हो गए हैं. कंटेंट के इमान का काम तमाम कर दिया है. पेड न्यूज पर उतर आए हैं. पत्रकारिता, पराड़कर और विद्यार्थी जी को किसी कुएं में डाल आए हैं. ऐसे मीडिया हाउसों के लोग जब बड़ी-बड़ी फेंकते हुए खुद को महान साबित करते हैं तो इन पर दया आती है.

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यह भी बताना चाहूंगा कि अगर कोई व्यक्ति खुद का अपना कोई छोटा-मोटा काम शुरू करता है तो वह एक बिजनेसमैन या उद्यमी कहलाता है. अगर आप बिजनेसमैन या उद्यमी हैं तो आपको बिजनेस उर्फ धंधा करना ही पड़ेगा. लेन-देन करना ही पड़ेगा. नहीं करते हैं तो फिर काहें के बिजनेसमैन व उद्यमी. फिर तो आप आल टाइम गुलाम होने लायक हैं. किसी के नौकर बनने लायक हैं. किसी पंसारी की दुकान पर नौकरी करने वाले और मीडिया हाउस में काम करने वालों के बीच बहुत महीन फर्क है. उस महीन फर्क को इन धंधेबाज मीडिया हाउसों ने खत्म कर दिया. तो फिर पंसारी के नौकर और मीडिया मालिक के नौकर में फर्क कैसा. जिस तरह कोई नौकर महीना बीतते बीतते अपनी सेलरी के लिए परेशान हो उठता है और न मिलने पर उसी मालिक की मां-बहिन करने लगता है जिसकी कल तक चरण छूकर गुण गाया करता था, उसी तरह कोई बिजनेसमैन व उद्यमी अपने बिजनेस व उद्यम के सरवाइवल के लिए कुछ समझौते, सहयोग, प्रमोशन, ब्रांडिंग, एसोसिएशन में जाता है.

हम यहां बताना चाहेंगे कि भड़ास4मीडिया ने कभी भी पांच से 10 फीसदी से ज्यादा कंप्रोमाइज नहीं किया और न करेगा. हमने कभी भी किसी बड़े मीडिया हाउस के साथ किसी तरह के एसोसिएशन की न कोशिश की और न आगे करेंगे. कई बड़े धंधेबाजों ने सलाह दी कि भड़ास4मीडिया को पाजिटिव बना दो, भड़ास शब्द हटा दो, इनफारमेशन एक्सचेंज के रूप में डेवलप करो. यह सब करने से पैसे बहुत आ जाएंगे. बड़े मीडिया हाउस हाथोंहाथ लेंगे. पर अपन का मकसद कभी धंधा करना नहीं रहा. धंधा बस उतना ही जितने में भड़ास4मीडिया और इसकी टीम का सरवाइवल हो जाए. बाकी सारी एनर्जी कंटेंट पर. बाकी सारी एनर्जी मीडिया जगत के स्याह-सफेद पर. यह काम आसान नहीं रहा और न रहेगा. धमकियां मिलती हैं. गालियां मिलती हैं. मुकदमें होते हैं. नोटिस भेजे जाते हैं. पर धारा के प्रतिकूल चलने वाले थपेड़े सहने का भी माद्दा रखते हैं.

कभी मृणाल पांडेय आंख दिखाती हैं. अब शशि शेखर बुरा मानते हैं. कभी संजय गुप्ता दुखी होते हैं. कभी अतुल माहेश्वरी खफा हो जाते हैं. कभी भास्कर वाले अपने यहां भड़ास4मीडिया को प्रतिबंधित करते हैं तो कभी सहारा वाले साइट एसेस करने से अपने बंदों को रोकते हैं. लंबी सीरिज है. ढेरों नाम है. पर ईमानदारी से कहूं तो मकसद कभी भी किसी को हर्ट करना नहीं रहा और न रहेगा. हमेशा तथ्यों को सामने लाने की कोशिश की. इस कोशिश में गल्तियां भी होती हैं. पर जैसे ही सही चीजें पता चलती हैं, उसे दुरुस्त कर लिया जाता है.

गल्तियां करता भी वही है जो ढेर सारा काम करता है. जो नकारा लोग होते हैं, बेचारा लोग होते हैं, आलोचक लोग होते हैं, वे कभी गल्तियां नहीं करते क्योंकि वे दरअसल कुछ करते ही नहीं. खबरों की दुनिया में 15 साल तक रहा हूं. कभी भी बायस्ड होकर किसी को नुकसान पहुंचाने का इरादा नहीं किया. शायद यही वो ईमानदारी है जो भड़ास4मीडिया की नसों में लहू के रूप में सक्रिय है. यही ईमानदारी भड़ास4मीडिया को निष्पक्ष मंच बनाए हुए है.

पर एक बात सौ फीसदी सही है कि कोई भी शख्स सबको खुश नहीं रख सकता. आप अगर कुछ भी करेंगे तो उससे कुछ लोग प्रभावित होंगे और कुछ लोग मुंह फुला लेंगे. मुंह फुलाए लोग अपने गुस्से का इजहार किसी न किसी रूप में तो करेंगे ही. कोई भड़ास निकालकर, कोई मुकदमा लिखाकर, कोई गालियां देकर, कोई धमका कर. चलिए, अब तो झेलने की आदत-सी पड़ गई है.

शशि शेखर जी को जान लेना चाहिए कि बेरोजगार होना, काम न मिलना अपमानजनक बात कतई नहीं है. इस देश में करोड़ों लोग बेरोजगार हैं. उन्हें नौकरी नहीं मिली, काम नहीं मिल रहा तो उन्हें कमतर नहीं आंकना चाहिए. यह सिस्टम का फेल्योर है कि हर हाथ को काम नहीं है. यह व्यवस्था की त्रासदी है कि कोई श्रम करना चाहता है पर उसे देने लायक काम नहीं है. यह घटिया सोच है कि जिन्हें नौकरी मिल गई, जिन्हें सत्ता में हिस्सा मिल गया, जिन्हें माल मिलने लगा, वो तो ठीक लोग हैं और बाकी लोग खराब. अगर यह सोच किसी बड़े संपादक में है तो वाकई शर्मनाक है. आप किस तरह जनपक्षधर अखबार निकालेंगे जब आपकी नजर में बेरोजगार व्यक्ति दोयम दर्जे का व्यक्ति है. चलिए, आप खुशनसीब हैं जो मेहनत, प्रतिभा, जोड़-तोड़ तीनों के संगम से काफी सफल हो गए, ‘महानतम’ संपादक बन गए पर जो लोग नहीं बन पाए हैं, उनसे आप जीने का हक थोड़े ना छीन लेंगे. याद रखिए, इतिहास में जाकर खंगाल लीजिए, ज्यादातर फेलिहर, निरक्षर, देहाती, पीड़ित, कुरूप, पागल और बेरोजगार टाइप लोगों ने ही महान काम किए हैं.  और, ऐसे ही लोग याद भी रखे जाते हैं. याद है या गिनाऊं….!!!

-यशवंत

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0 Comments

  1. parivesh

    March 12, 2010 at 10:24 pm

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    ————–ÂçÚUßðàæ

  2. विनीत कुमार

    February 23, 2010 at 6:56 am

    तो क्या निष्कर्ष ये निकाला जाए कि जगह अपना असर दिखाती है।.

  3. prashant kumaar

    February 23, 2010 at 7:06 am

    Once again a great write up ozzes out from Comrade Yashwant Bhai pen.Zara Shashi Ji ko yeh bhi yaad dila den ki” Uncha agar uda to banega shikaar bhi, Zamin agar choda to nazar bhi na ayega, Kaun kehta hai ki raat gayi to baat gayi, Dage gunaah to sara sahar nazar ayega”. [b][/b]

  4. saleem malik

    February 23, 2010 at 7:16 am

    sahi karke utari he, ye log hen hi is layak. jab tak khud berojgar hote hem BAGULA BHAGAT ki tarah rahte hen. kursi milte hi samne wale chhote najar aane lagte hen. thank’s YASHWANT.

  5. k

    February 23, 2010 at 7:36 am

    पर आखिरी बात ये हुई कि इतिहास में भड़ास, ब्लॉग जगत का ‘हिकी’ज़ गजट’ साबित होने जा रहा है। ये बात दर्ज की जाए। और शशि जी ने जाने-अनजाने भड़ास को एक बड़ी मान्यता दे दी। ये बात व्यक्तियों और संस्थाओं से बड़ी है।

  6. alok pathak

    February 23, 2010 at 7:42 am

    lage raho guru bus itna dhyan dena jab tum bade banana to inki tarah jamin se mat uth jana

  7. Nice, naukar patrkarita kio nahin samajh sakte. Lala ke naukar kabhi is lala ki gulamo aur kabhi us lala ki gulami jarte rahte hain

  8. rj

    February 23, 2010 at 8:52 am

    bahut khub yashbant bhai

  9. सबसे पुराना भडासिया

    February 23, 2010 at 9:53 am

    [b]सबसे पहले तो कोमरेड, शानदार लेख के लिये बधाई.
    शशी जी की एक बात पर ध्यान आकर्षित करना चाहुन्गा, उन्होने कहा कि ज्यदातर मीडिया पोर्टल गालियो का प्रयोग करते है. कोमरेड, जहा तक मुझे याद आता है कि अमर उजाला एक साफ़ सुथरा और विवाद रहित सन्स्थान था, लेकिन जबसे शशी जी ने अमर उजाला की कमान सम्भाली, अमर उजाला मे ज्यदातर लोग गाली भरी भाषा का प्रयोग करने लगे. खुद शशी जी भी अमर उजाला मे अपने कनिष्ठो से गाली गलौज की ही भाषा मे बात करते थे. बात अगर गालियो की करे तो हिन्दी मीडिया मे गाली वाले सम्पादक वही रहे है. उन्ही की देखादेखी सन्स्थान मे कई लोग गालिया देने लगे. इन्ही गालियो से तन्ग आकर दर्जनो लोगो को सन्स्थान छोडना पडा. तो बेहतर है कि शशी जि पहले खुद के गिरेबान मे झाककर देख ले…[/b]

  10. Manoj

    February 23, 2010 at 11:21 am

    yeh thik baat hai Yashwant bhai ki aap ka apna kaam per iska matlab yeh to nahi ki naukari kerne vala her insaan gulaam hai, “naukari kerne ka ghatiya vikalp” aapne likha hai, yeh galat hai, aap shaayd bhool rahe hain ki aap bhi apne pairon me usi media ko leker khade hain jahaan naukari kerne aap ghatiya samajhte hain, matlab media se hi aapki daal-roti chal rahi hai.

  11. kumar

    February 23, 2010 at 11:21 am

    कमाल हो यशवंत भइय्या।

    कुछ पंक्तियां लिख रहा हूं। जिनमें आप और शशि शेखर दोनों को शामिल कर दिया है। अब देखना यह है कि हकीकत कौन समझता है। अगर सटीक लगे तो प्रत्युत्तर जरूर दीजिएगा।

    हालात के कदमों में कलंदर नहीं गिरता,
    टूटे भी जो तारा तो जमीं पर नहीं गिरता।
    यूं तो गिरते हैं समंदर में बड़े शौक से दरिए,
    लेकिन किसी दरिए में समंदर नहीं गिरता।।

    आप के हौसले को सलाम। जिंदगी में जोखिम लेकर बिल्कुल एक नया इतिहास रच दिया।
    एक ऐसा हैरतअंगेज कारनामा कर दिया, जिसने दशकों से मीडिया के दिग्गजों, बड़े स्तंभों को भी बौखलाने पर मजबूर कर दिया। गाहे-बगाहे बड़े घरानों के संपादकों और मालिकों द्वारा आज के सर्वाधिक तीव्र व यत्र-तत्र-सर्वत्र विराजमान वैश्विक वेब मीडिया के प्रति आलोचना यह साफ जाहिर कर रही है कि अब खबरचियों के ठेकेदारों की भी कोई खबर ले सकता है। किसी का काला कारनामा छिप नहीं सकता।

    लगे रहिए भइय्या इस मिशन पर। कभी जरूरत पड़े तो मदद के लिए हमेशा तैयार।

    धन्यवाद और शुभकामनाएं।

    कुमार

  12. bhawesh

    February 23, 2010 at 11:33 am

    यशवंत जी,
    अब मै यह बखूबी समझ गया हु की मीडिया वालो के लिए भी सच्चाई करवी ही होती है. भड़ास के मामले में आदरणीय शशिशेखर जी का बयान भी तो यही साबित कर रहा है. बहुत ही इनमे पत्रकारिता की तेज़ है तो बिहार सरकार के विज्ञापन के तले दबी पटना यूनिट को बिकी हुई खबर लिखने से रोक तो ले.

  13. शेष नारायण सिंह

    February 23, 2010 at 11:54 am

    बांगलादेश की आज़ादी की तारीख और यूरोपीय दार्शनिक रूसो के पीरियड के बारे में दैनिक हिंदुस्तान के सम्पादक ने कुछ गलतियाँ की थीं और अपने धर्म का पालन करते हुए भड़ास ने उसको उजागर किया था . सर्वज्ञ कोई नहीं होता ,गलती सबसे होती है . और भड़ास का काम तो है ही मीडिया की चौकीदारी , तो उसकी भी गलती नहीं है . उसने वही किया जो उसे करना चाहिए. अपना काम सही तरीके से करने की वजह से सम्मानित किया जाना चाहिये लेकिन दैनिक हिन्दुस्तान के सम्पादक तो बुरा मान गए. गलत बात है. वेब पत्रकारिता सूचना क्रान्ति का सबसे बेहतरीन पहलू है , इसका सम्मान किया जाना चाहिए . अगर कोई व्यक्तिगत कारणों से इसकी मुखालिफत करता है, तो वह तूफ़ान के आगे चादर फैलाने की कोशिश कर रहा है ..और यह बात हिंदुस्तान के सम्पादक सहित सभी संपादकों को पता रहनी चाहिए . जहां तक बेरोजगार होने का सवाल है , कोई भी बेरोजगार हो सकता है . मालिक की नज़र तिरछी हुई नहीं कि आप सड़क पर. और यह स्थिति हिंदुस्तान के सम्पादक की भी होनी ही है क्योंकि उस अखबार का ताज़ा इतिहास तो सम्पादक को निकाल बाहर करने का ही रहा है.

  14. yadwinder karfew

    February 23, 2010 at 12:01 pm

    यह घटिया सोच है कि जिन्हें नौकरी मिल गई, जिन्हें सत्ता में हिस्सा मिल गया, जिन्हें माल मिलने लगा, वो तो ठीक लोग हैं और बाकी लोग खराब. अगर यह सोच किसी बड़े संपादक में है तो वाकई शर्मनाक है. आप किस तरह जनपक्षधर अखबार निकालेंगे जब आपकी नजर में बेरोजगार व्यक्ति दोयम दर्जे का व्यक्ति है. badyia vaat lagai hai yaswant……

  15. surender singh

    February 23, 2010 at 12:04 pm

    nehala pe delha

  16. surender singh

    February 23, 2010 at 12:05 pm

    very nice yashwant bhai

  17. balkrishan thareja

    February 23, 2010 at 12:13 pm

    jeb shashi ji ney hindusthan jvaen kiya Tha tab aap ney unkey nature ke tarif k pul bandey they aaj vohi neture bura legny lega!

  18. Ram Ratna Gupta

    February 23, 2010 at 12:29 pm

    आपके लेख में दम है. यह भी मानना पड़ेगा कि आप रिपोर्टिंग में ईमानदार हैं. भड़ास के खिलाफ भड़ास निकालने वालों की कमी कभी नहीं रहेगी, पर शशि शेखर ने जो कहा क्या वह सब गलत है ? आप बढ़िया पत्रकार हैं, पर क्या आपकी साईट की भाषा भी उतनी ही संयत और शालीन है ? मुझे या अपने पाठकों को सफाई मत दीजिये, खुद अपने दिल पर हाथ रख कर कहिये कि यह भाषा यदि आपकी बिटिया पढ़े, (यदि खुदा ने आपको बिटिया बख्शी हो तो) तो क्या आप सचमुच खुश होंगे.

    यह अच्छी बात है कि आप उद्यमी हैं और आपने लोगों को आगे बढ़ने की राह दिखाई है. इसके लिए आप सचमुच बधाई के पात्र हैं. पर क्या इसी तरह portal चलाने वाले लोग आपको उद्यमी नहीं लगते ? आपका उद्यम, उद्यम; और उनका उद्यम धंधा-पानी ? यह कैसा न्याय है, यह कैसी सोच है ? और यह कैसी सफाई है आपकी अपने बारे में ? dhandha-paani कंपनी के पुरस्कारों पर उंगली उठाने से पहले आपको देखना चाहिए था कि उनका पुरस्कार देने का तरीका क्या है ? क्या उन पुरस्कारों की विश्वसनीयता सचमुच नहीं है, जैसा की आप दावा कर रहे हैं ? मैंने dhandha-pani.कॉम को बड़े ध्यान से पढ़ा है. उन्होंने कहीं भी भड़ास4मीडिया की निंदा नहीं की. शशि शेखर का बयान शशि शेखर का है, dhandha-pani.कॉम का नहीं. फिर आपने बिना किसी तहकीकात के किसी के खिलाफ कुछ भी क्यों कह डाला ?

    dhandha-pani समूह के पुरस्कारों की सचमुच बहुत प्रतिष्ठा है. मैं न तो dhandha-pani.कॉम से जुड़ा हूँ, न मैंने उनसे कोई पुरस्कार लिया है और न ही मुझमें इतनी काबलियत है कि कोई मुझे पुरस्कार दे दे. न मैं भड़ास के खिलाफ हूँ और न मुझे आपसे किसी फेवर की आशा है. न मैं उनसे कभी मिला हूँ न आपसे, पर मैं दोनों साइटें पढता जरूर हूँ और अलग-अलग कारणों से दोनों का प्रशंसक हूँ.

    मैं सिर्फ एक बात जानता हूँ कि आप बढ़िया पत्रकार हैं और आपकी शान इसी मैं है कि आप बिना तथ्यों की जांच के किसी के खिलाफ कुछ न बोलें. शशि शेखर ने आप को काम नहीं दिया, क्यों नहीं दिया, यह आप दोनों के बीच की बात है ? पर संपादक के रूप में हर टीम लीडर का हक़ होता है कि वह टीम में मन चाहे साथी रखे, उस पर ऐतराज कैसा ? क्या अब वही काम आप नहीं करेंगे ? क्या आप हर काम मांगने वाले को रख लेंगे और उसकी काबलियत और आदतें नहीं देखेंगे ?

    शायद मैं विषय से भटक रहा हूँ. खैर …

    भवदीय
    राम रत्न गुप्ता
    मुंबई

  19. रहबर-ऐ-सफ़ाकत

    February 23, 2010 at 2:39 pm

    बहुत खूब यशवंत ! एक बार फिर आप की हिम्मत और इमानदारी की दाद देना चाहूँगा. आप और तथाकथित ‘महान संपादकों’ में यही मूल फर्क है कि आप अपने गुणों के साथ ही अपने दुर्गुणों को भी इमानदारी के स्वीकार करते हैं, महसूस करते हैं. भड़ास पर कुछ भी अप्रिय, अपठनीय या आपत्तिजनक सामग्री दिखती है तो थोडा दुःख, थोड़ी तकलीफ जरूर होती है, और यह शिकायत आप तक पहुचाने कि सोच भी पनपती है. पर आज एक ‘महान सम्पादक’ से यह सुन कर बड़ा अजीब लगा कि गालियों से अपनी बात शुरू कर गलियों पर ही अपनी बात ख़तम करने वाले लोगों को खबरों के पोर्टल पर गालियाँ दिखने पर, छपने पर आपत्ति है, अपने साथ-साथ अपने चेला संपादकों को भी अपने में ही रंग देने वाले ‘महान संपादक जी’ अगर अपने आप को और बिगड़ गए चेला संपादकों को सुधार सके तो हिंदी मिडिया का कुछ कल्याण अवश्य हो जाएगा. वैसे भी एक पुरानी कहावत सुनता आ रहा हूँ ‘ जिनके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेकते’. एक बार पुनः बधाई, लगे रहो मुन्ना, अरे रे रे रे – यशवंत भाई.

  20. keshav

    February 23, 2010 at 2:47 pm

    bahut bariya yeshwantG. dil se nikli aawaj hai aapki….

  21. deepak barthwal

    February 23, 2010 at 2:57 pm

    आदरणीय यशवंत जी,
    शशि जी का बयान वर्तमान समय में उच्च स्तर पर विराजमान भ्रष्टाचार व सरकारी पैरोकार वाले सिस्टम के अगुवाओं की व्यथा को बताता है। यह इस बात का भी द्योतक है कि हमारे वरिष्ठ साथी किन माध्यमों से इन पदों पर पहुंच रहे हैं और वहां पहुंचने के बाद किस तरह से अपने ही साथियों के उत्साह से डरे रहते हैं। रहा सवाल बेरोजगार होकर नया व्यवसाय शुरू करने का तो, यदि ऐसा है भी तो उसके लिए आप बधई के पात्र हैं, क्योंकि आम आदमी बुरे समय में तनावग्रस्त होकर गलत कदम उठाता है। इसके विपरित आपने क्रान्तिकारी कदम उठाये हैं। यह बात और है कि कुछ लोगों को क्रान्ति के बदले चाटुकारिता ज्यादा पसन्द है। यहां पर मैं एक बात और कहना चाहूंगा कि अहिंसा के महान अनुयायी महात्मा गांधी ने भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई भारत आकर तब लड़ी थी, जब दक्षिण अफ्रीका में उनके साथ रेल में अभद्र व्यवहार किया गया था। इसलिए मेरा मानना है कि महत्व परिस्थितियों का नहीं होता बल्कि व्यक्ति द्वारा उठाये गये कदमों की दिशा का होता है। १८५७ से लेकर १९४२ व १९४७ की लड़ाइयों के दौरान भी कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने क्रान्ति के बदले अंग्रजों की चाटुकारिता को ज्यादा पसंद किया। इसलिए आपसे व अन्य साथियों से आग्रह कि शशि जी की इस तहर की टिप्पणियों को सकारात्मक प्रेरक के रूप में लेते हुए अपना अभियान और तेज करें। ध्न्यवाद के साथ आपका
    दीपक बड़थ्वाल
    देहरादून

  22. sandas singh

    February 23, 2010 at 3:01 pm

    यशवंत जी. शशि शेखर न तो काबिल हैं और न वे अखवार पढ़ते हैं. उनकी पोल खुलने में कुछ टाइम है. अलबत्ता उन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा, 1828 में हिंदी का पहला अखबार निकला, वह भी आज के ब्लॉग की तरह ही था।

    शशि शेखर की यह एक और ऐतिहासिक गलती है. उदन्त मार्तंड २६ मई १८२६ से निकला था. यह सज्जन जोड़-तोड़ करके यहाँ तक पहुंचे हैं. और यहीं इनकी समाधि बनेगी.

  23. Ram Ratna Gupta

    February 23, 2010 at 3:05 pm

    आप को शर्म आनी चाहिए. मैं अभी तक इस विचार का था कि आप एक ईमानदार पत्रकार हैं. मेरी प्रतिक्रिया में आपने अपना उथलापन दिखा कर साबित कर दिया कि दूसरों को बेईमान बताने वाला खुद कितना बेईमान और खोखला व्यक्ति है. आप अपने शब्द मेरे मुंह में नहीं डाल सकते. यदि आप को dhandha-pani.com का नाम देने से ऐतराज़ होता तो वह समझ में आता है कि आप एक प्रतिद्वंद्वी पोर्टल का नाम नहीं देना चाह रहे, पर उसे मेरी प्रतिक्रिया में आपने धंधापानी.कॉम लिख कर अपने छोटेपन का सुबूत दिया है. मेरी निगाह में आज आप जीरो हो गए. मैंने न आप को गलत नाम दिया था, न उन्हें देना चाहा था. आपने जो किया बहुत गलत किया, बेईमानी की. यदि आप सचमुच ईमानदार हैं और दूसरों की गलती बताना पत्रकारिता मानते हैं तो अपनी गलती मानते हुए इस टिपण्णी को ज्यों का त्यों छाप कर प्रायश्चित कीजिये.
    राम रत्न गुप्ता
    मुंबई

  24. rajesh

    February 23, 2010 at 3:10 pm

    बहुत अच्‍छा लिखा। और सच लिखा। आपका पोर्टल हिंदी मीडिया जगत के लिए क्रांतिकारी साबित होगा। ऐसे ही लिखते रहिए।

  25. sandas singh

    February 23, 2010 at 3:11 pm

    उदन्त मार्तंड ब्लॉग की तरह नहीं था. वह गंभीर अखबार था. उसे पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने शुरू किया था. चूंकि शशि शेखर घटिया पत्रकार है इसलिए दूसरों की कही बातों को सन्दर्भ जाने बगैर बोल या लिख देते है. उन्हें जेम्स ए हिकी का नाम पता नहीं था इसलिए कुछ का कुछ बोल गए. उस अखबार की तारीख का इन्हें पता भी नहीं होगा.

  26. suniye ji

    February 23, 2010 at 3:18 pm

    Ram Ratna Gupt ji,
    लगता है आपने अपना कमेंट करने के पहले I have read and agree to the Terms of Usage. नहीं पढ़ा. उसमें साफ लिखा है कि कमेंट एडिट, डिलीट व मोडीफाइ किया जा सकता है. आप क्यों चाहते हैं कि प्रतिद्वंद्वी पोर्टल का नाम छपे. जो धंधा पानी करते हैं, वे करते रहें. पर सही बात तो ये है कि धंधा शब्द गलत नहीं है. काम-धंधा करने की बात हर लोग करते हैं पर जिन लोगों ने धंधे को बेईमानी से किया है, और उनकी संख्या बहुतायत है, उन लोगों ने ईमानदारी से धंधा करने वालों को भी बेईमानी के कटघरे में खड़ा किया है. लगता है आप भी धंधा पानी वालों के गैंग में हैं इसलिए आपको मिर्ची लग रही है.

  27. a s das

    February 23, 2010 at 3:52 pm

    yaar yashwant, ek tuchche se shashishekhar ke liye itna time aur space kharab kar diya………

  28. s

    February 23, 2010 at 4:21 pm

    dqN rks yksx dgsaxs] yksxksa dk dke gS dguk] Nks+Mks bu csdkj dh ckrksa esa dgha chr u tk, jSukA vknj.kh; ’kf’k D;k dg jgs gSa bl ckjs esa lkspus dh tjwjr gh ugha gS ’kf’k’ks[kj us fdl rjg ls viuh /ka/ks dh nqdku tekbZ vkSj fdl rjg ls vius nykyksa ds ek/;e ls /ka/kk ikuh fd;k ;g crkus dh tjqjr ugha gSA ‘’kf’k’ks[kj dksbZ xqyke ugha gS cfYd og ekfyd }kjk Qsads x, gM~Mh ds cnys nqljksa ij xqjkZus okyk —– gSA fdlh etnwj ;k deZpkjh dk ‘’kks’ku ekfyd ugha dj ldrs gSaA D;ksafd ,slk dj ikuk muds cwrs ds ckgj gSA ysfdu ‘’kf’k Vkbi yksx gh ekfyd ds nkyy lkWjh xyrh gks xbZ ,stsaV ekfydksa dk dke djrs gSaA [kSj fQygky dksbZ dzkafr rks ugha vk,xhA ysfdu tc bl Vkbi ds yksxksa dh vfr pje ij gks tk,xh rks dzkafr vo’; gksxhA vkils xqtkfj’k gS ‘’kf’k HkkbZ dks dqN u dgsa D;ksa fd og igys Hkh dg pqds gSa fd vc mudh mez gks xbZ gSA

  29. Dr Maharaj Singh Parihar

    February 23, 2010 at 4:28 pm

    bhai yashwant aaj ki patrakarita ke daur men vakai sahas aur swabhiman ki pratimurty ke roop men ubhare hen. unhen mere aur mere sathiyon ka salam. itni sahi aur bevak writup kewal himmatwala patrakar hi likh sakta he. keval unchey pad par aasin vyakri hi mahan nahin hoto apitu chhota lagne wala vyakti bhi itihas ko palat deta he.

  30. Ashok Sharma

    February 23, 2010 at 4:35 pm

    The last para is excellent, you showed the miror.
    Ashok

  31. vipnesh

    February 23, 2010 at 4:47 pm

    yashwant, bahut ghatiya aapne likha hai. Apni ghatiya soch ka parichay diya hai. Lagta hai aaj tak shashi ji ke naukari na dene ka gam aapko sata raha hai varna achanak aapka hamara hero zero kaise ho gaya! unke itihaas me jhankne se pahle apne giraban me jhanke. jitni gaaliyon ka prayog aapne apne blog me kiya hai utnni vah kya kam hai? aap yah karen to accha shashi karen to bura. bad yashwant tumhe bhi chatukaron ki jarurat hai jo tumhare lekhan ko dekhkar lagta hai.

  32. madhav chandra chandel

    February 23, 2010 at 6:01 pm

    खींचो न कमानों को न तलवार निकालो,
    जब तोप मुकाबिल हो तो “भड़ास” निकालो

    माधव चंद्र चंदेल

  33. ccc

    February 23, 2010 at 6:48 pm

    भइया सादर चरण स्पर्श,
    सचमुच आज तबियत खुश हो गई। आपके साथ लाखों मीडियाकर्मियों की दुआएं हैं। अगर सच कहना बगावत है तो आप ऐसे ही बागी बने रहिए और सच कहते रहिए। शशि जैसे लोग सिर्फ और सिर्फ अपना भला देखेते हैं। इनका जनसरोकारों से कोई मतलब नहीं होता। अपने धंधा करे तो बिजनेस और दूसरा धंधा करे तो धंधेबाज। शायद ऐसी ही सोच होती है शशि जैसे लोगों की। सच ये है कि इनसे काबिल हजारों लोग होंगे मीडिया में किंतु वे गुणा गणित और चरण बंदना नहीं कर पाये तो शशि शेखर नहीं बन पाये। सचमुच होली से पहले आपकी कलम इतनी रंगीन हो गई है कि होली का मजा दुगुना हो गया है।
    आपका
    अनिल
    ;D

  34. Rishi Naagar

    February 23, 2010 at 10:41 pm

    Dear Yashwant ji,

    Read a wonderful piece of writing after such a long period! Mr. Shekhar must know, by now, the reality that pen is still mightier than a sword. Your to the point arrows have got the shot and hit the right place. Salutes to your writing, to you!
    Thanks for giving an opportunity to read a masterpiece!
    Rishi

  35. nagesh

    February 24, 2010 at 12:10 am

    yaswant ji positive sochiye. is baat ko sweekar kariye ki aapne apne liye rojgar or desh-videsh ke lakhon hindi bhashi logon ko online reading ka mouka diya hai. aapka pryash safal hai lekin kahawat hai “khali pet na hoy bhajan gopala” isliye ye aapka rojgar bhi hai.

  36. संतोष कुमार

    February 24, 2010 at 2:16 am

    यशवंत जी ,बहुत जरुरी है इन मीडिया के धृतराष्ट्रो को आईना दिखाने का, दरअसल में ये मीडिया के कथित पुरोधा मीडिया को मंडी बनाकर रख दिया है,बातें तो करते है जैसे प्रख्यात ज्ञानी हो ,पिछले तीन -चार सालों से मीडिया में चाकरी कर रहा हूं,कई सारे कथित बुद्दी जीवियों को देखा ,सुना,पढा अब पता चला की हमाम में सब नंगे हैं,मेरी भी इच्छा है जल्द ही इस इस रोजगार को छोड़ दूं, सड़क पर आने को तैयार हूं ,मीडिया को अलविदा कहते ही खुद का काम करुंगा ,और अपने अनुभवों का पिटारा खोलूंग, वैसे यशवंत भाई एक सलाह है आपको मीडिया की चाकरी करनी चाहिए गटर में गिरने पर गटर की गहराई और बुराई के बारे में मालूमात होते है,लिखतें रहे ,खुब लिखें,सही लिखें ,बेवाक लिखे,अपने अनुभवों पर कह सकता हूं ,भेंड़िये
    टाइप लोग बहुत कमजोर होते है ,चिल्लाए,अवरोध खड़ा करेंगे ,हिम्मत मत हारना ,कुछ उखाड़ नहीं पाएगे, जो जमीन पर खड़ा रहने ,आसमान को ओढने को तैयार हो उसे भला कबुतर खाने में रहने वाले क्या डरा पाएंगे

  37. pankaj ohri

    February 24, 2010 at 4:05 am

    बहुत अच्‍छा लिखा। और सच लिखा।
    यह घटिया सोच है कि जिन्हें नौकरी मिल गई, जिन्हें सत्ता में हिस्सा मिल गया,
    आप की हिम्मत और इमानदारी की दाद देना चाहूँगा.
    [email protected]

  38. Shyamnandan

    February 24, 2010 at 6:12 am

    बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी…
    भड़ास4मीडिया जैसी वेब पत्रकारिता का कोई पोर्टल हो या कोई नामचीन मीडिया हाउस, जो सच है वह सामने आना चाहिए. यही पत्रकारिता है. अब इसे चाहे वारेन हेस्टिंग्स के ज़माने में किया जाए या आज के ज़माने में. पत्रकारिता के इस मौलिक तथ्य को उसने ही नजरअंदाज़ किया है, जिसे जन सरोकार से कुछ लेना-देना नहीं है. लेना-देना इसलिए नहीं है कि उन्हें तो ‘खबरची’ (यह कहने पर गर्व है होता क्योंकि जैसे अफीमची को अफीम की पिनक होती है, वैसे ही पत्रकार/संवाददाता को खबर की पिनक होती है) बनना ही नहीं है. वे तो ‘धंधा-पानी’ के जुगाड़ में थे…हैं…और रहेंगे.

    किसी बड़े मीडिया हाउस से जुड़ जाने से क्या होता है, चाहे वो पद कितना ही बड़ा क्यों न हो! क्या नैतिकता का सारा मुलम्मा उनके चेहरे (स्याह-सफ़ेद) पर ही चिपक जाता है!! सबको पता है, इन पदों तक पहुंचने के लिए क्या-क्या ‘घाघपन’ दिखाना पड़ता है. फिर जब आज ‘पेड न्यूज़’ बोलबाला है, तो ‘उन्हें’ तो अखरेगा ही कि कोई मीडिया में रहकर मीडिया की ही बखिया उधेरता है. अब इस काम यशवंत जी करें या कोई और. उन्हें चुभन तो होगी, उनकी तिलमिलाहट तो सामने आएगी ही. आखिर उनकी स्वार्थसिद्धि में रोड़े जो अटकते हैं.

    खैर, एक बात तो साफ़ हो गई कि नए व छोटे मीडिया हाउस से उठी आवाज़ (वो भी हिंदी में) अब पढ़ी जाने लगी हैं और इसकी पहुंच दूर तक है. ये तो वही बात हुई ‘जब बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी’. जी हां, ये बाते अभी और दूर जाएंगी…और जाना ही चाहिए.

  39. abhishek

    February 24, 2010 at 6:22 am

    bahut sahi likha.

  40. कुमार हिंदुस्तानी

    February 24, 2010 at 6:58 am

    भड़ास4मीडिया के सभी पाठकों को नमस्कार। जाहिर सी बात है कि अगर आपने इस पोर्टल को खोला है तो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से मीडिया से आपका लगाव होना लाजमी है। कई जगह देखा तमाम लोगों से सुना कि यार भड़ास4मीडिया वाकई लाजवाब है। सभी तारीफ करने वाले मीडियाकर्मी है और इस पोर्टल से उनका अक्सर वास्ता पड़ता है।
    लेकिन मैं इस बात से वास्ता नहीं रखता कि भड़ास4मीडिया डॉट कॉम वाकई लाजवाब है। दरअसल हकीकत इससे परे है। इस पोर्टल को लाजवाब कहने वाले मेरे दोस्त-मित्र शायद खुद से ही झूठ बोल रहे हैं। वे क्या आप सभी भी जानते हैं कि यह पोर्टल लाजवाब नहीं है। इस पोर्टल पर ऐसा कुछ भी नहीं रहता जिसकी हम सभी को जानकारी नहीं होती। तो क्या बात है जो हम सभी इससे जुड़े हुए हैं? क्यों हम सभी को इसकी लत लग चुकी है? क्यों हम सभी इंटरनेट मिलते ही जल्द से जल्द भड़ास4मीडिया डॉट कॉम टाइप करके पेज खुलने का इंतजार करते हैं? क्यों हम सभी पेज रिफ्रेश करके देखते रहते हैं कि मीडिया जगत पर अब कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? क्यों हम सभी को इंतजार रहता है कि यार मेरा लेख अब तक पब्लिश क्यों नहीं हुआ? क्यों इतने कम समय में यशवंत, सभी मीडियाकर्मियों (कुछ अपवादों को छोड़कर) के चहेते और शुभचिंतक बन गए हैं?
    चलिए मैं आपको बताता हूं कि आखिर इसकी असलियत क्या है? दरअसल आज के मीडिया घरानों को हकीकत से वास्ता नहीं है। खबरों का आज व्यवसायीकरण हो चुका है। जो बाजार में बिक सकता है या फिर जिससे संस्थान को मुनाफा हो सकता है वही खबर चलाई या छापी जाती है। जो भी फायदे का सौदा हो सकता है उसे ही खबर बना दिया जाता है। विज्ञापन की पार्टी है या फिर खबर छापने या चलाने से विज्ञापन नहीं तो मेज के नीचे से कुछ मिलेगा, उसी को वरीयता दी जाती है। इस खेल की टीम के कोच और मैनेजर मीडिया घरानों के मालिक और संपादक बन बैठे हैं।
    इन संस्थानों में काम करने वाले पत्रकार और डेस्क पर कार्यरत कर्मियों की फौज भी इस व्यवसायिक खबरों को लाने और छापने/दिखाने के लिए जिम्मेदार हो गई है। मालिक-संपादकों को जो पसंद है सिर्फ वही खबर है यह बात आज हर पत्रकार को भलीभांति मालूम है। आज मीडिया में एक्सक्लूसिव कुछ नहीं रहा। बल्कि मालिक-संपादक को फायदा पहुंचता है और उसने उस खबर से संबंधित बातें कभी नहीं सुनी तो वो समाचार एक्सक्लूसिव की श्रेणी में आ जाता है। मतलब साफ कि आज इन सभी संस्थानों में काम करने वाले छोटे-बड़े मीडियाकर्मी भी चाहे-अनचाहे, ज्ञान-अज्ञान, जानते-भूलते खबरों के व्यवसायीकरण के जिम्मेदार हो गए हैं। असल पत्रकारों को अच्छी तरह पता होता है कि कहां पर क्या वाकई खबर है और क्या नहीं? किसे चैनल-अखबार में स्थान मिलना चाहिए और किसे नहीं? क्या हकीकत है और क्या झूठ है? क्या लिखना/दिखाना चाहिए और क्या नहीं? इन सभी सवालों से हर असल पत्रकार बखूबी वाकिफ है। लेकिन फिर भी नौकरी चलाने के लिए उसे झूठ का चोला ओढ़कर आंख मूंद कर हकीकत पर पर्दा डालना पड़ता है। वो लिखना/दिखाना पड़ता है जिसका खबर या हकीकत से कोई सरोकार नहीं बल्कि ऊपर बैठे लोगों से ताल्लुक है।
    इन सबका मतलब क्या निकलता है? चलिए आपके मुंह की बात मैं छीन कर कहता हूं कि आज हम सभी मीडियाकर्मी झूठ में जी रहे हैं। दर्शकों/पाठकों को झूठ परोस रहे हैं। हकीकत से उन्हें वहां लिए जा रहे हैं जहां मीडिया घराने का स्वार्थ जुड़ा हुआ है। यानी कि आज खुद पत्रकारों को हकीकत देखना ऐसा लगता है कि जैसे कोई इब्नेबतूता सामने आ खड़ा हुआ हो। जैसे अमावस्या की काली अंधियारी रात में सूरज अपनी रोशनी और तपिश से एकदम बौखला दे। जैसे समुंदर का पानी आसमान में तैरते हुए हिलोरे मारने लगे। जैसे पैरों तले तपते ज्वालामुखी का लावा हो और उस पर चल रहे हों।
    अब फिर से आता हूं वापस उस मुद्दे पर कि क्या यह पोर्टल वाकई लाजवाब है। इसका जवाब अब तक शायद आप सभी को मिल चुका होगा। लेकिन शब्दों में बयां करना जरूरी है। दरअसल आज सभी मीडियाकर्मी हकीकत से कोसों दूर हो चुके हैं। ऐसे में भड़ास4मीडिया लोगों को नंगी हकीकत, कड़ुवा सच, पूर्ण सत्य, बेबाक बयानी, कलम की पैनी और धारदार ताकत, जमींर में कईयों फीट दब चुकी चिंगारी को सामने लाता है। जो आज मैं और मेरे पत्रकार साथी नहीं लिख/दिखा सकते उसे निडर होकर लिखता है। जो देखकर भी मुंह नहीं खोल सकते उसे पूरी दुनिया के सामने नंगा कर देता है। नौकरी जाने के डर से जो हकीकत दबा देते हैं उसे डंके की चोट पर दिखाता है।
    ऐसे में हम सभी को अब सच देखने पर आश्चर्य होने लगा है। कहीं पर हकीकत पढ़ते/देखते ही शरीर का रोयां खड़ा हो जाता है कि यार इसने कैसे कर दिया। यही वो वजह है जिसने इस पोर्टल को लाजवाब बनाया है।
    लेकिन अफसोस होता है कि अभी भी न जाने कितने मीडिया घराने हैं जो आंखें बंद करके यह सोच रहे हैं कि अब हकीकत कोई नहीं देख सकता। लगभग देश के सभी दिग्गज मीडिया घरानों में आज भड़ास4मीडिया डॉट कॉम को ब्लॉक कर दिया गया है। कोई भी कर्मचारी अपने कंप्यूटर पर इसे नहीं देख सकता। मीडिया घरानों के ठेकेदारों को डर है कि कहीं इससे उनके सिपहसलार कहीं बगावत न कर दें। कहीं मीडिया के अंदर भी आंदोलन का बिगुल न बज जाए। कहीं उनके संस्थान के उच्चतम प्रबंधकीय विवाद की खबर उनके सबसे नीचे काम करने वाले कर्मियों को न लग जाए। मालिक-संपादक यह सोचते हैं कि आंख बंद कर लो, सच छिप जाएगा, वेबसाइट को ब्लॉक कर दो कोई नहीं देखेगा। लेकिन बंद आंखों के अंदर मन तो खुला हुआ है। वे भी यह बात भलीभांति जानते हैं कि ऑफिस में न सही तो घर में, दोस्त के यहां, मोबाइल पर या लैपटॉप पर वे सभी कर्मी रोजाना न सही तो हर दूसरे दिन भड़ास4मीडिया देखते जरूर हैं। वेबसाइट पर किसी भी नई खबर की जानकारी इंटरनेट के जरिए न सही तो उनके किसी साथी के द्वारा फोन पर कॉल-एसएमएस के जरिए मिल जाती है।
    तो मुर्दा हो चुकी गैरत के मंद (बेगैरतमंद) मालिक-संपादकों भले ही आंखें बंद कर लो, भले ही वेबसाइट पर बैन लगा दो, भले ही वेबसाइट को ब्लॉक कर दो। लेकिन हकीकत तुम्हारे बाप की बपौती नहीं जो तुम डकार जाओगे और किसी को खबर भी नहीं होगी। सच नंगा होता है और नंगा किसी से डरता नहीं। इसलिए हकीकत से वास्ता रखो। भले ही मीडिया को व्यवसाय बनाकर मोटी कमाई कर रहे हो लेकिन अपने कर्मचारियों को तो हकीकत से हमेशा रूबरू होने का पाठ तो पढ़ा ही सकते हो।
    कुमार हिंदुस्तानी

  41. Vinod Varshney

    February 24, 2010 at 7:01 am

    सम्पादकों ने मीडिया को वेस्टेड इंटेरेस्ट का गुलाम बना दिया और पत्रकारिता को मुनाफाखोरी का पहिया. भड़ास अगर आईना दिखा रहा है तो ठीक कर रहा है. वेब मीडिया ने सचमुच खुली बहस की आज़ादी दी है और संपादक के सेंसर से मुक्ति. भड़ास अच्छे वाच डॉग का काम कर रहा है. भड़ास जो कर रहा है पहले किसी ने नहीं किया, सचमुच यह इतिहास है. यशवंत बधाई का पात्र है.

  42. Sapan Yagyawalkya

    February 24, 2010 at 7:13 am

    Adarniya Yashwant Ji,BHADAS4MEDIA ne patrakarita se jude logon ke beech jo jagah banai hai ,vah kisi ke liye bhi irshya ka vishay ho sakta hai.apke kam ka mahatva samajhne ke liye itna kafi hai ki tathakathit dhurandhar bhi upeksha nahin kar pa rahe hain.hindi ke tamam jjharu patrakaron ki atma apse judi hai.ap ish varga ke liye bahut bada kam kar rahe hain.Sapan Yagyawalkya.Bareli(MP)

  43. SANJU

    February 24, 2010 at 7:15 am

    YASHAWANT JI BADHAI

    AAISE HI BEBAAK BANE RAHANA… BAHUT UPAR JAANA HAI AAPKO…

  44. Alok Kumar

    February 24, 2010 at 9:28 am

    Yashwant bhai, achhi baten hain ki aap kishe dwesh se nahi likhte. lekin jo naikari karten hai unke bare main aap ki sooach achhi nahi. aap ke saath bhi kuch loag naukari karte hain ya kar te rahe hongen.

    Chaliye aap bahe ho kar aise hi rahiye ga aur sooacheye ga bhi

  45. Abhay

    February 24, 2010 at 9:42 am

    Sri Maan koi purush apni sachhai iss tarah sarvajanik karta hai uss saks ko mera sat sat pranam.

    Patrkarita mera pesa to nahi parantu ruchi rakhta hoon bahootoon blog aur lekh padhe magar apni sachhai koi koi samne rakhte hai aur aapne apne lekh se na kewal unki juban pe lagam diya hai agge se unko sabak bhi milegi ki iss tarah ka utpatang vichar wo na rakhe.

    ek bar punah aapko dhanywad.

  46. suman

    February 25, 2010 at 7:25 pm

    nice…………………………………………………………………………….

  47. jeetesh

    February 26, 2010 at 4:56 am

    wwsdsfddfdd

  48. kirti

    February 26, 2010 at 5:23 am

    apne lekh se aap vakai frustated lagte….. pure bhadas nikali hai.. Magar shashi shekhar ban paana ya hona itna aasan nahi hai….he is a nice person. aadhi botal khali dekhne ke bajay adhi botal bhari dekhne ki adat daliye..no one is 100% ideal…but purity is something god gifted thing… Aap me bhi buraiya aur achhaiya hain magar sirf buraiya ginana… seems immature and childishness..plz dont repeat it.. ho sakta hai ki aap ya dusre log ise chatukarita kahein magar mera media ya shashi ji se koi lena-dena nahi hai…

  49. vinay kamboj

    March 2, 2010 at 12:01 am

    bhut accha likha aapne yeswant ji. sahi jawab diya aapne

  50. sameer gupta

    March 2, 2010 at 12:06 am

    yashwant ji main to aapka bhakt ho gaya hoon.jo chahe karwa lo.
    Aadmi ko aukaat nahi bhoolni chahiye agar bhool jaye to aap jaise specialist ko gada uthani padegi.
    Jai shree yashwant maharaj ki………jai.

  51. kamal.kashyap

    March 2, 2010 at 5:33 am

    yashwant ji sashi ki faad di apne to

  52. Vikram

    March 18, 2010 at 12:30 pm

    आप ने जो लिखा है वो एक कटु सत्य है .आज के युग में बिना चाटुकारिता या गुटबंदी के बिना काम पा जाना ऐसे ही है जैसे बिल्ली के भाग्य से छींका टूट जाना .लोग कुर्सी में बैठ कर बड़ी बड़ी बाते करते हैं किन्तु वास्तविकता से उसका कोई तारतम्य नहीं होता . ” पर उपदेश कुशल बहुतेरे ” वाली बात इन पर सटीक बैठती है .
    अगर इन बड़ी कुर्सी पर बैठे लोगों क़ि हकीकत सब के सामने ला डी जाये तो यह मुंह दिखाने लायक भी न रह जायेंगे .
    आप ने जो भी लिखा वो कटु सत्य है .

  53. harish singh

    April 3, 2010 at 10:42 am

    Bade bhai yashwant ji
    sadar pranam
    koi kuch bhi kahe aapne media ki pol khol kar rakh di hai. main aapka niymit pathak hu. main aapko batana chahunga ki main bhi karib 20 saal se is peshe se juda hu.yadi sabse adhik kahi shosan hota hai to to use media hi karti hai.badi kursi par baithne wale hamesha apne age kisi ko ko kuchh nahi samjhte. karib char saal poorv maine dainik jagran join kiya. lekin dekha sabse adhik koi bika hua hai to wah jagran hai. samaj ko lootne wale,samaj ke drohi jinke khilaf media ko likhna chahiye unhe jagran sahit anya media sirf isiliye ptasray deti hai kyonki we hi to hai jinke tukdo par yah log palte hai. upar se niche tak sabhi bike huye hai. varanasi ke news editor mr. raghvendra chaddha ke ke rishtedar ne bhadohi me jameen ke naam par ek dalit isai ko 420 karke fansaya.wah bechara dar-dar ki thokre khane ko majboor ho gaya. hame kaha gaya usi ke khilaf likhne ko. jab maine likhne se mana kiya to mujhe majbooe kiya jane. par aap to jante hi hai. SINGH IS KINGmaine istifa bhej diya. hindustan me bhadohi ke reporter jo mafiyav jila badar hai. use sirf isiliye rakh gaya hai taki wah bhadohi se kaleen lekar pahuncha sake. shayad wahi shashishekhar hai jinke varanasi ke karykal me yaha ke exporter aue udyog ko badnam kiya gaya. mujhe sharm aati hai aisi patrakarita jaha imandari v nispakshta ko nahi balki unhe prasray diya jata hai jo dalali kar sake. maine aahat hokar dainik jagran chhoda. aur ek chhote se akhbar me sampadak ban gaya. ha jagran me ek aadmi ki bahut izzat karta hu. jinse hamne patrkarita sikhi wah hai. SRI JAI PRAKASH PANDEY. aapko bahut bahut badhai aise hi ghatiya media ki khal udhedte rahe.
    harish singh
    editor- NEW KANTIDOOT TIMES

  54. chandra kant

    May 28, 2010 at 1:05 pm

    yaswant ji
    shashi ji ka itihas kuch bhi raha ho ek bat to hai woh naukari se nikal to saktey hain per naukari de nahin saktey. jo naukri kar raha ho useh hi woh apney swarthon ki racksha ke liye apney sath rakh len to yeh naukari dena nahi kahlata hai yeh gut aaj yahan hai to kal wahan hain, naukari- cakari karwana koi bada kam nahi kis prakar naukari payen woh badi bat hai .gutvaji chamcha giri munafakhori ne hi patrkarita ka beda gark kiya hai yeh to sansthano ko sochan hai ki sampadak ka nam kisey diya jai ,woh ish layak bhi hai ya nahin jahan tak galtiyon ka sabal hai ”gal (bat) ki to koi bat hi nahin hoti gali ki charcha bahut ”agar PM ka beta kam padha ho 45% number hon to admission ya naukari karwaney ke liye usey bhi sarm aa jayegi agar pad hai to naukari mil hi jayegi wastav main dil dimag to hota nahin naoukarsahi ki chamcha giri kar pad pa jana koi ——

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