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‘शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास’ और ‘गदर जारी रहेगा’ का 26 को लोकार्पण

: शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास : एसके पंजम की पुस्तक ‘शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास’ में वैज्ञानिक व तर्कसंगत तरीके से इस सवाल का जवाब खोजा गया है कि शूद्र वर्ग कौन है, इसकी उत्पति कैसे हुई ? इसी क्रम में सृष्टि, पृथ्वी व जीव की उत्पति से होते हुए भारत में नस्लों की उत्पति तथा शूद्र वर्ण एवं जाति नहीं, बल्कि नस्ल हैं, इसका विशद अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। वैदिक काल में शिक्षा, सभ्यता और संस्कृति की क्या स्थिति रही है, बौद्ध काल में शिक्षा, आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था कैसी रही है, भारतीय समाज में दास प्रथा और वर्ण व्यवस्था व उसकी संस्कृति व संस्कार किस रूप में रहे हैं आदि का वृहत वर्णन है।

<p style="text-align: justify;">: <strong>शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास</strong> : एसके पंजम की पुस्तक ‘शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास’ में वैज्ञानिक व तर्कसंगत तरीके से इस सवाल का जवाब खोजा गया है कि शूद्र वर्ग कौन है, इसकी उत्पति कैसे हुई ? इसी क्रम में सृष्टि, पृथ्वी व जीव की उत्पति से होते हुए भारत में नस्लों की उत्पति तथा शूद्र वर्ण एवं जाति नहीं, बल्कि नस्ल हैं, इसका विशद अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। वैदिक काल में शिक्षा, सभ्यता और संस्कृति की क्या स्थिति रही है, बौद्ध काल में शिक्षा, आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था कैसी रही है, भारतीय समाज में दास प्रथा और वर्ण व्यवस्था व उसकी संस्कृति व संस्कार किस रूप में रहे हैं आदि का वृहत वर्णन है।</p>

: शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास : एसके पंजम की पुस्तक ‘शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास’ में वैज्ञानिक व तर्कसंगत तरीके से इस सवाल का जवाब खोजा गया है कि शूद्र वर्ग कौन है, इसकी उत्पति कैसे हुई ? इसी क्रम में सृष्टि, पृथ्वी व जीव की उत्पति से होते हुए भारत में नस्लों की उत्पति तथा शूद्र वर्ण एवं जाति नहीं, बल्कि नस्ल हैं, इसका विशद अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। वैदिक काल में शिक्षा, सभ्यता और संस्कृति की क्या स्थिति रही है, बौद्ध काल में शिक्षा, आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था कैसी रही है, भारतीय समाज में दास प्रथा और वर्ण व्यवस्था व उसकी संस्कृति व संस्कार किस रूप में रहे हैं आदि का वृहत वर्णन है।

‘शूद्रस्तान’ की चर्चा करते हुए पुस्तक में फुले, साहूजी, पेरियार, अम्बेडकर, जगजीवन राम के विचारों को सामने लाया गया है। यह पुस्तक प्राचीन भारतीय समाज के सामाजिक द्वन्द्व को समग्रता में देखने व समझने का प्रयास है। इस अर्थ में यह पठनीय, जरूरी व महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

: गदर जारी रहेगा : ‘गदर जारी रहेगा’ एस के पंजम का नया उपन्यास है। सत्ता का दमन, उसके द्वारा जनता का शोषण, जल, जंगल, जमीन से गरीब जनता का विस्थापन व बेदखली और जन प्रतिरोध, इस विषय पर यह उपन्यास केन्द्रित है। आज भी भारत में अंग्रेज सरकार द्वारा बनाये गये नब्बे प्रतिशत काले कानून लागू हैं। उन्हीं में एक है भूमि अधिग्रहण कानून 1894। विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) का जन्म इसी से होता है। देश में इस समय 512 सेज हैं। यह सेज क्या है? किसके हितों के लिए है? आज के नये सामंत कौन हैं? इनसे उपन्यास परिचित कराता है। देशी-विदेशी पूँजीपतियों के पक्ष में खड़ी सत्ता की एक तरफ बन्दूकें हैं तो दूसरी तरफ अपनी सम्पदा और अधिकारों के लिए संघर्ष करती, अपना रक्त बहाती जनता है। इसी संघर्ष की उपज नन्दीग्राम, सिंगूर व कलिंग नगर आदि हैं। ‘गदर जारी रहेगा’ सेज के नाम पर उजाड़ी गई जनता के प्रतिरोध संघर्ष की कहानी है।

: एसके पंजम का परिचय : 10 अप्रैल 1968 को माछिल, घोसी, मऊ, उप्र में जन्मे एसके पंजम साहित्य की कई विधाओं जैसे कविता, कहानी, उपन्यास, समीक्षा आदि के क्षेत्र में निरन्तर सक्रिय रचनाकार हैं। अब तक कुल 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ‘शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास’ तथा ‘गदर जारी रहेगा’ इनकी नवीनतम पुस्तकें हैं। लेखन के अलावा सामाजिक व सांस्कृतिक आन्दोलनों में भी पंजम सक्रिय हैं। संप्रति अमीनाबाद इंटर कॉलेज में हिन्दी के प्रवक्ता एसके पंजम जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय पार्षद हैं।

: निमंत्रण : एसके पंजम की कृतियों ‘शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास’ और ‘गदर जारी रहेगा’ का विमोचन कार्यक्रम, तारीख और समय: 26 दिसम्बर 2010 ;रविवारद्ध, दिन के 1.00 बजे, स्थान: अमीनाबाद इण्टर कॉलेज सभागार, अमीनाबाद, अध्यक्षता: ब्रह्मनारायण गौड़, कवि व लेखक, विचार रखने वालों में प्रमुख- आधार वक्तव्य: श्याम अंकुरम, संभावित वक्ता: अनिल सिन्हा, शकील सिद्दीकी, राजेश कुमार, डॉ रामशंकर विश्वकर्मा, अनन्त लाल, अरुण खोटे,  कन्हई राम आदि। कार्यक्रम में आप सादर आमंत्रित हैं।

कौशल किशोर

संयोजक

जन संस्कृति मंच

लखनऊ

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मो. – 09807519227, 08400208031

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0 Comments

  1. विभूति

    December 23, 2010 at 10:58 am

    मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई है कि भारतवर्ष के हृदयस्थल उत्तरप्रदेश की पावन धरती पर वैचारिक क्रांति का सूत्रपात हो रहा है. यह सच है कि भारत में दो संस्कृतियों का निरंतर संघर्ष होता रहा है . शूद्र बहुसँख्यक हैं और उनके उत्पीडन की गाथा असीम है . यदि शूद्रों में एकता कायम हो जाए तो वे चिरकाल तक भारत पर अपना शासन कर सकते हैं और अपनी समस्याओं का निदान भी कर सकते हैं . बुद्ध,कबीर,रविदास,फूले,शाहू,अम्बेडकर, कांशीराम इस समाज के शुभचिंतक रहे हैं. श्री एस के पंजम के प्रयासों की मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूँ और दोनों पुस्तकों के लोकार्पण के अवसर पर अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ.

    विभूति कोलकाता

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