Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

पैसे से ज्यादा कीमती समय : सुधीर अग्रवाल

[caption id="attachment_16908" align="alignleft"]सुधीर अग्रवालसुधीर अग्रवाल[/caption]अखबारों को पढ़ने का औसत समय लगातार घटते जाना सबसे बड़ी चिंता : अखबार सूचना की बजाय ज्ञान पर ज्यादा जोर दें : लक्ष्य नहीं होगा तो बेमकसद यात्रा से मंजिल नहीं मिलेगी : लक्ष्य प्राप्ति में बाधा दिखे तो रास्ता बदलें, लक्ष्य नहीं : दैनिक भास्कर समूह के प्रबंध निदेशक सुधीर अग्रवाल बुधवार को रांची में प्रभात खबर सभागार में पहुंचे. उन्होंने पहली बार भास्कर समूह के इतर किसी अन्य अखबार के सहयोगियों को संबोधित किया. श्री अग्रवाल ने अपने संबोधन में मीडिया की वर्तमान दिशा-दशा के साथ चुनौतियों व संभावनाओं पर विस्तार से अपनी बातें रखीं. श्री अग्रवाल ने कहा कि अब यदि अखबारों को अपना अस्तित्व बचाये रखना है और बढ़ना है तो बदलते समय के साथ हर मोर्चे पर कदमताल करना होगा. पाठकों की संख्या में वृद्धि होना नि:संदेह शुभ संकेत है लेकिन अखबारों को पढ़ने का औसत समय लगातार घटते जाना सबसे बड़ी चिंता की बात है. अखबारों के सामने यही भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती भी है. ऐसे में संपादकीय विभाग के सभी साथियों को सोचना होगा कि हम क्यों ऐसा अखबार पाठकों को नहीं दे पा रहे, जो पाठकों को अधिक से अधिक समय तक पढ़ने के लिए बाध्य कर दे.

सुधीर अग्रवाल

सुधीर अग्रवालअखबारों को पढ़ने का औसत समय लगातार घटते जाना सबसे बड़ी चिंता : अखबार सूचना की बजाय ज्ञान पर ज्यादा जोर दें : लक्ष्य नहीं होगा तो बेमकसद यात्रा से मंजिल नहीं मिलेगी : लक्ष्य प्राप्ति में बाधा दिखे तो रास्ता बदलें, लक्ष्य नहीं : दैनिक भास्कर समूह के प्रबंध निदेशक सुधीर अग्रवाल बुधवार को रांची में प्रभात खबर सभागार में पहुंचे. उन्होंने पहली बार भास्कर समूह के इतर किसी अन्य अखबार के सहयोगियों को संबोधित किया. श्री अग्रवाल ने अपने संबोधन में मीडिया की वर्तमान दिशा-दशा के साथ चुनौतियों व संभावनाओं पर विस्तार से अपनी बातें रखीं. श्री अग्रवाल ने कहा कि अब यदि अखबारों को अपना अस्तित्व बचाये रखना है और बढ़ना है तो बदलते समय के साथ हर मोर्चे पर कदमताल करना होगा. पाठकों की संख्या में वृद्धि होना नि:संदेह शुभ संकेत है लेकिन अखबारों को पढ़ने का औसत समय लगातार घटते जाना सबसे बड़ी चिंता की बात है. अखबारों के सामने यही भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती भी है. ऐसे में संपादकीय विभाग के सभी साथियों को सोचना होगा कि हम क्यों ऐसा अखबार पाठकों को नहीं दे पा रहे, जो पाठकों को अधिक से अधिक समय तक पढ़ने के लिए बाध्य कर दे.

आज पाठक के लिए अखबार की कीमत कोई ज्यादा मायने नहीं रखती. अखबार पढने वाले के सामने वह बड़ी समस्या भी नहीं होती. वह अपनी कीमत नहीं वसूलना चाहता बल्कि जितना समय देता है, उसके बदले में वह कुछ पाना चाहता है. आज के जमाने में हर किसी के लिए पैसे की तुलना में समय ज्यादा कीमती और महत्वपूर्ण हो गया है.

सुधीर अग्रवाल ने सूचना की बजाय ज्ञान पर ज्यादा जोर देते हुए कहा कि अब यह सबको स्पष्ट रूप से समझ लेने की जरूरत है कि यह युग ज्ञान का युग है. सूचनाओं के लिए कोई भी पाठक सिर्फ अखबारों पर निर्भर नहीं रहता. कई नये विकल्प खुले हैं, खुल रहे हैं और शीघ्र ही वह दिन आने वाला है, जब सूचनाओं के लिए तो अखबारों की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. ऐसे में अखबारों को अभी से ही सूचना की बजाय ज्ञान पर ज्यादा से ज्यादा जोर देने की शुरुआत करनी होगी. सूचनापरक खबरों के साथ यह भी हमेशा जेहन में रखना चाहिए कि पाठकों के पास अधिकतर सूचनाएं पहले से ही होती हैं, वह अपनी सूचनाओं से अखबारों की सूचना का मिलान करता है और उसमें नयेपन के साथ खुद के जुड़ाव की भी तलाश करता है. इसलिए खबरों में पारंपरिक ढर्रा बदलने की जरूरत है यानी खबरों मे नयापन, नयी जानकारी, नयी सूचना जरूर होनी चाहिए.

अपने संबोधन में सुधीर अग्रवाल ने सबसे ज्यादा जोर व्यक्तित्व निर्माण, आत्मविश्वास व लक्ष्य निर्धारण पर दिया. उन्होंने कहा कि हर किसी का एक लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए. अगर कोई लक्ष्य ही नहीं होगा तो फिर बेमकसद यात्रा से मंजिल तक नहीं पहुंचेंगे. लक्ष्य की प्राप्ति के लिए खुद को उसके अनुरूप तैयार करना होगा, उसे भेदने के लिए कुशल मार्गदर्शन-सहयोग आदि लेते रहना होगा लेकिन कोई उंगली पकड़कर लक्ष्य तक नहीं पहुंचायेगा. वह खुद ही प्राप्त करना होगा. यदि आत्मविश्वास हो और कोई संस्थान, व्यक्ति या समूह उसमें बाधा की तरह दिख रहा हो तो आप अपने आत्मविश्वास से लक्ष्य तक पहुंचने के लिए रास्ता बदल दें, न कि ऊब कर लक्ष्य ही बदल लें. इस क्रम में श्री अग्रवाल ने सभागार में उपस्थित प्रभात खबर सहयोगियों से मीडिया जगत से संबंधित सवाल पूछने को भी कहा, जिसका क्रमवार जवाब उन्होंने दिये.

ज्ञात हो कि प्रभात खबर की यह परंपरा रही है कि मीडिया व बौद्धिक जगत से जुड़े हुए लोगों को समय-समय पर आमंत्रित कर सार्वजनिक रूप से उनके अनुभव, ज्ञान का लाभ सार्वजनिक संबोधन के माध्यम से लेता है. उसी क्रम में सुधीर अग्रवाल को विशेष अनुरोध पर प्रभात खबर सभागार में आमंत्रित किया गया था. कुछेक वर्षों पहले प्रभात खबर ने अमर उजाला के मालिक अतुल माहेश्वरी को भी न्योता था. उन्होंने भी पत्रकारिता, प्रबंधन आदि पर प्रभात खबर के लोगों के साथ लंबी बातचीत की थी. इसी तरह संपादकीय शिखर पर रहे लोग प्रभाष जोशी, कुलदीप नैयर, बीजी वर्गीज, जस्टिस पीबी सावंत, अजीत भट्टाचार्य, राजदीप सरदेसाई, मधुकर उपाध्याय जैसे मीडिया से जुडे हुए विशेषज्ञ व वरिष्ठतम लोग प्रभात खबर सभागार में अपना व्याख्यान दे चुके हैं.

Click to comment

0 Comments

  1. atul

    February 11, 2010 at 1:07 pm

    such a nice artical. ekdam sahi he mushkilo se ghabrakar lkshya badlane se accha hai raste me aane wali mushkilo se ladate huye aage badana.

  2. Ex. Employee BHUJ BHASKAR

    February 11, 2010 at 1:58 pm

    Great. Kya kahu Sudheer Bhaisahab ke liye. I have just once heard this venerable and I can only say he his a real AKHBAAR WAALE . Inko mai Res. Vinod Shukla jee ke samkachchh rakhta hun. Inka editorial ke upar gajab ki pakad hai. Bhaskar ki unnanti ke piche agar samuh ka yogdan 50% hai to akele inka yogdan 50% ka hai. Salam karta hun inko aur inke vicharo ko.

  3. Satyanarayan Pathak

    February 11, 2010 at 2:24 pm

    किसी भी काम को यदि एन्जॉय मन कर लगन के साथ किया जाये तो हम जल्दी लक्ष्य तक पहुंचते हैं.इसके विपरीत आज के भाग दौड़ में काम बोझ लगने लगा है, मंजिल तो नहीं मिलती बल्कि रेस से भी बाहर हो जातें हैं. इलेक्ट्रोनिक मीडिया के ज़माने में यह सही है कि पढ़ने का समय घट गया है. लेकिन इन सब के बाद भी कस्बाई क्षेत्रों में और छोटे शहरों में अख़बार सूचना का बड़ा माध्यम है. आदिवासी इलाके बस्तर के बहुत से हिस्से में लोग दूसरे-तीसरे दिन भी अख़बार कि प्रतीक्षा करतें हैं. हाँ यह जरूर है कि बड़े शहरों में प्रतिस्पर्धा जरुरत से ज्यादा है. अखबार के खर्चे बढे हैं, फिर जो इतनी लागत लगाएगा वो नफे-नुकसान के बारे में भी सोचने लगता है. सबकी अपनी-अपनी सोच हैं कुल मिलकर यह काफी प्रेरक हैं. यदि हताशा हावी हो रही हो और कहीं कमजोर पड़ रहें हो तो यह टॉनिक का कम करेगी आशा है पत्रकारिता से जुड़े भाई इससे एक नई प्रेरणा प्राप्त करेंगे.
    सत्यनारायण पाठक
    जगदलपुर

  4. KALAMWALA-GUNDA

    February 11, 2010 at 3:20 pm

    BHAI SUDHIR NE BATE TO BAHUT ACHHI-ACHHI KI H PER MERE YAR JAB ITANA GYAN KA BHANDARA LIYE GHUM RAHE HO TO THODA BHASKAR KO KYO NAHI DE DETE HO………….. AKHBAR ESE HO AKHBAR ESE HO KEHANE SE KUCHH NAHI HOGA AKHBAR BHASKAR JAISA HO KHNE KI HIMMAT JUTAO OR YE TABHI SAMBHAW H JAB AAP SAWYAM BHASKAR KO SUDHARO GE. SUDHIR BHAI BATE TO SABHI KARTE H AAP THODA KAM KYO NAHI KAR LETE??????????????????????????????????????? CHIEF EDITOR, RAJASTHAN-MEGHDOOT

  5. ankur

    February 11, 2010 at 3:51 pm

    Sir ,you are right now time is precious and readers didnt thinik much about price but try to save time.!

  6. SAPAN YAGYAWALKYA

    February 12, 2010 at 2:57 pm

    yah vichar patrakarita se jude logon ke liye margdarshak hain.lakshya prapti me vadha yahi batati hai ki sahi rashte ka chayan nahin hua.SapanYagyawalkya.Bareli(MP)

  7. SUDHIRji ka ek prashanshak

    February 12, 2010 at 6:14 pm

    SUDHIRji kishi k bhi AADARSH ho sakte hai.

  8. Shiv Harsh Suhalka

    February 12, 2010 at 7:44 pm

    I do agree with Mr.Sudhir agrawal because Knowledge is Power and Innovation is the only way to remain in the Market. Also, innovative Branding, Marketing,Communications and PR skills are also essential for the new-age Journalists to deliver something new to the new-age readers.
    Shiv Harsh [email protected].

  9. Patrakar Tomar, Gwalior

    February 13, 2010 at 4:38 am

    Management Per Bhi Dhyan Dena Jaroori Hai.

  10. aman

    February 13, 2010 at 6:03 am

    आज हर सुबह जब हम अखबार पढते हैं तो निश्चित ही उन खबरों पर पहले ध्‍यान जाता है जो एक दिन पहले टीवी पर चलती रहती हैं। लेकिन टीवी की ही खबरों को सिलसिलेवार छाप देने से अब काम नहीं चलने वाला है, इसलिए सुधीर जी यह बात एकदम सही है कि आज सूचना नहीं ज्ञान का दौर है। संपादकीय स्‍तर पर हमें खबर के अंदर और उसके भविष्‍य के बारे में भी पाठकों को बताना होगा, यानी जो खबर में है वो और जो खबर में नहीं है वो भी। जाहिर है कि ऐसी हर खबर एक पैकेज के तौर पर होगी। यह हिंदी पत्रकारिता के लिए एक चुनौती मानी जानी चाहिए। बस यह जानना था कि क्‍या कभी रविवार और दिनमान सरीखी पत्रिकाएं कुछ इसी तरह का प्रयोग नहीं कर रही थीं;;;;
    अमन

  11. Baburao vishnu Paradkar

    February 13, 2010 at 8:41 am

    At last Owner of Newspaper agreed that Content sells not the brand name of News paper.Who has demolished the institute of Editor? Who has brought marketing persons as Editor? How many people knows Who edits Bhasker?When Market gone down Sudhirji realised. Now wake up respect the power of words and idea which only editor can provide.

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

हलचल

: घोटाले में भागीदार रहे परवेज अहमद, जयंतो भट्टाचार्या और रितु वर्मा भी प्रेस क्लब से सस्पेंड : प्रेस क्लब आफ इंडिया के महासचिव...

Advertisement