महंगाई की मुंहबोली बहन है घूसखोरी। महंगाई बढ़ती है, तो उसकी ‘बहन’ भी कुलांचे मारने लगती है। महंगाई की आग में सब जल रहा है, लेकिन आदिवासियों में इसकी तपिश कुछ ज्यादा ही तेज है। वनवासियों को अपनी जान बचाने के लिए धर्म को बेचना पड़ रहा है। दो वक्त की रोटी के लिए देश के कई इलाकों में पिछले कई सालों से आदिवासियों ने तेजी से धर्म बदलने की कोशिश की है। ईसाई संगठनों को ये जनजातियां बतौर घूस अपना धर्म ‘गिरवी’ रखने को बाध्य हैं।
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नचिकेता कपूर और उनके कारनामे (दो)
जिस नोट के बदले वोट मामले में नचिकेता कपूर का नाम सामने आया है, वह कांग्रेसी सत्ता का एक बड़ा खिलाड़ी है और शान-ओ-शौकत का जीवन जीने का आदि है। इसके कई कांग्रेसी नेताओं से न सिर्फ जान पहचान है बल्कि बाकायदा उसके लिए दलाली भी करता रहा है। युवा कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू करने वाला नचिकेता अपने विदेश दौरा के दौरान कुकर्म करते हुए भी पकड़ा गया था। बाद में बदनामी की डर से इसे पार्टी से निकाल दिया गया।
नचिकेता कपूर और उनके कारनामे (एक)
[caption id="attachment_19964" align="alignleft" width="85"]अखिलेश अखिल[/caption]18 फरवरी। दिन के सुबह साढे़ आठ बजे। मैं नहाने की तैयारी कर रहा था। तौलिया लेकर जैसे ही बाथ रूम की तरफ बढ़ा कि अचानक तीन चेहरे सामने प्रकट हुए। एक छोटे कद का आदमी था और दो थे ट्रैक शूट में लंबे चौडे़ शख्स। छोटे कद वाले ने पूछा …क्या अखिलेश जी हैं? मैं सामने ही था। कहा… बताएं मेरा नाम ही अखिलेश है। हमें लगा कि ये लोग जनगणना करने वाले हैं।
मीडिया की नपुंसक संस्थाएं
जिस राडिया प्रकरण को लेकर देश दुनिया मे भारत की भद्द पिट रही है, उस प्रकरण को सरकार का भ्रष्टाचार माना जाये या मीडिया में अब तक का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार, क्योंकि इस राडिया प्रकरण ने भारतीय मीडिया और उसके बड़ी मूंछ वालों की कलई खोल दी है। लेकिन शुक्र है राडिया प्रकरण की, जिसने यह भी साबित कर दिया है कि जिस बड़े पत्रकारों का नाम जप कर नए व पुराने मीडियाकर्मी अघाते नहीं थे, वे पूंछ उठने के बाद मादा निकल गए।
आगरा के दो आदमखोर पत्रकार
मीडिया में यौनाचार (5) : उदारीकरण के बाद मीडिया का जो रूप बदला है, अब किसी से छिपा नहीं है। मीडिया का चरित्र बदला तो हम पत्रकार भी बदले। इस बदलाव में हम अपनी शुचिता, इमानदारी, प्रतिबद्धता, चरित्र और सामाजिक कर्त्तव्य को दफनाते चले गए। बावजूद इसके, न पूरा समाज गंदा है और न ही पूरी पत्रकारिता और न ही पूरे पत्रकार। प्रेस को जब लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया था तो उसके पीछे की बात यह थी की प्रेस के लोग समाज को दिशा देंगे और लोकतंत्र के तीनो स्तंभों पर नजर रखेंगे ताकि हर हाल में राष्ट्र और जनता का भला हो। इसके पीछे का सच यह भी था कि जो लोग मीडिया में आयेंगे, वे समाज के लिए आदर्श होंगे। इसका मतलब ये है कि मीडिया और मीडिया के लोग आम नहीं, खास लोग हैं और खास लोगों से अपेक्षा की जाती है कि उनका दामन साफ़ हो।
एनसीआर : दिन में पत्रकारिता और रात में ब्लू फिल्म!
मीडिया में यौनाचार (4) : जिस व्यक्ति, समाज और संस्थान में चरित्र और नैतिकता का अभाव होता है वह कभी भी आदरणीय नहीं हो सकता। थोड़े समय के लिय वहां सब कुछ खुशनुमा लगता दिखता है, लेकिन वह ज्यादा दिनों तक ठहर नहीं सकता। इस धारावाहिक के तीसरे भाग की प्रतिक्रिया पर हमारे कोई साथी ने दो बातें कहने की कोशिश की है. एक- उन्होंने क्षेत्रवाद का मामला उठाया है और दूसरा मेरी बेटी से सम्बंधित बातें कहीं हैं. इनका कहना है कि भोपाल और रायपुर की मीडिया पाक-साफ है और यहां कोई गन्दी बातें नहीं होतीं। ऐसा केवल बिहार में ही संभव है। जिस भड़ास पर अपनी प्रतिक्रया दे रहे थे उसी पर खबर आयी की भोपाल के दो पत्रकारों में से एक से एक महिला ने तंग आकर चैनल वालों से रक्षा की गुहार लगाई है।
रायपुर के बूढ़े पत्रकार का लड़की प्रेम
मीडिया में यौनाचार (3) : मैं पिछले दो सालों से मीडिया पर गंभीरता से काम कर रहा हूं। बदलती मीडिया की तस्वीर, मीडिया का बाज़ार, इसमें आने वाले लोग, पत्रकारिता की नई शिक्षा-दीक्षा, पाठक को खबर देने के बजाय उसे बाजार तक ले जाने की नीति, गाली-गलौज की नई परिपाटी और पत्रकारिता के नाम पर दलाली और सेक्सुअलिटी जैसे मुद्दों पर इन दो सालों में काफी जानकारियां मिलीं। मीडिया में यौनाचार की बात सिर्फ दो किश्तों में लिखना चाहता था, और वह भी डर कर। महिलाए हमारी मां-बहनें हैं और इनकी बुराई लिखना अपनी संस्कृति को धोखा देने के समान है। गलत चलन पर थोड़ी रोक लगे, इस कारण कुछ अनुभव लिखने का साहस कर बैठा। आप सबों को भले ही इस लेखन को पढ़ने में अच्छा या बुरा लगता हो, लेकिन मैं जो झेल रहा हूं, वह कह नहीं सकता। आलम ये है कि हमारे पास हर रोज हर राज्य से दर्जनों नई जानकारियां मिल रही हैं। दूसरी तरफ कई तरह की गालियां भी। कुछ अजीज मित्रों के सलाह पर और कई नई जानकारियां मिलने के चलते बात आगे बढ़ा रहा हूं। दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश और पंजाब पर काफी मसाला है। आप जानेंगे यहां का भी हाल, लेकिन अभी थोड़ी जानकारी लेते हैं हिंदी पत्रकारिता के गढ़ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बारे में।
पहले साथ सोता है, फिर नौकरी देता है
मीडिया में यौनाचार (2) : मीडिया में यौनाचार की दूसरी किस्त लिखने से पहले कुछ पत्रकार भाइयों के संदेह को दूर करना चाहूंगा। सबसे पहली बात तो ये है कि इस तरह के आलेख किसी को जानबूझ कर मर्माहित करने के लिए नहीं लिखा जा रहा है। यह बदलते परिवेश के लिए जरूरी है। दूसरी बात ये है कि कई साथी लोग कह रहे हैं कि अगर आपसी रजामंदी के साथ यौनाचार होता है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। ऐसे लोगों को यह भी सोचना चाहिए की हम सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोग हैं और ऐसे में हमें अपनी नीयत, ईमान, समाज के प्रति कमिटमेंट को नहीं भूलना चाहिए। हमारा काम केवल समाज को सूचना देने तक ही नहीं है, समाज को रास्ता दिखाना भी है। फिर वह महिला जो पैसे ले-देकर अपना तन बेचती है, उसे तो हम वेश्या कहते हैं। जबकि वह महिला भी आपसी रजामंदी से ही सब कुछ करती है। दरअसल मीडिया में आज जो कुछ हो रहा है उसके पीछे रजामंदी कम बेबसी, लाचारी और तेजी से आगे बढ़ने की बात है।
रंडीबाज पत्रकार-संपादक!
सेक्स एक ऐसा विषय है जिस पर हिंदी समाज कभी भी सहज नहीं रहा. किसी भी पेशे में कार्यरत लोगों में से कुछ लोग अक्सर सेक्स के कारण विवादों, चर्चाओं, आरोपों से घिर जाते हैं. मीडिया भी इससे अछूता नहीं है. बाजारवाद के इस दौर में नैतिकता नाम की चीज ज्यादातर दुकानों से गायब हो चुकी है, या, कह सकते हैं कि इसके खरीदार बेहद कम हो गए हैं. इंद्रियजन्य सुख, भौतिक सुख, भोग-विलास सबसे बड़ी लालसा-कामना-तमन्ना है. शहरी जनता इसी ओर उन्मुख है. बाजार ने सुखों-लालसाओं को हासिल कर लेने, जी लेने, पा लेने को ही जीवन का सबसे बड़ा एजेंडा या कहिए जीते जी मोक्ष पा लेने जैसा स्थापित कर दिया है. आप निःशब्द होने वाली उम्र में भी सेक्स और सेंसुअल्टी के जरिए सुखों की अनुभूति कर सकते हैं, यह सिखाया-समझाया जा रहा है. हर तरफ देह और पैसे के लिए मारामारी मची हुई है. फिर इससे भला मीडिया क्यों अछूता रहे. यहां भी यही सब हो रहा है. आगे बढ़ने के लिए प्रतिभाशाली होना मुख्य नहीं रहा. आप किसी को कितना फायदा पहुंचा सकते हैं, लाभ दिला सकते हैं, सुख व संतुष्टि दे सकते हैं, यह प्रमुख होने लगा है.
क्या इन्हीं पत्रकारों की एकजुटता चाहते हैं?
[caption id="attachment_16056" align="alignleft"]अखिलेश अखिल[/caption]कोलकाता की महिला पत्रकार के साथ रेल मंत्री ममता बनर्जी और उसके पार्टी समर्थकों द्बारा किए गए असंसदीय व्यवहार से आहत और लोकतंत्र में पत्रकार और पत्रकारिता को बचाने के लिए सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी की चिंता ”कैसे की जाय पत्रकारिता” आज के इस माहौल में सोचने के लिए बाध्य करती है। पुण्यजी जमीनी पत्रकार हैं और जमीनी पत्रकारिता के पक्षधर भी। आज की पत्रकारिता कर रहे बहुत ही कम लोग हैं जो पत्रकारिता की कम हो रही विश्वसनीयता, पत्रकारों के गिरते आचरण, उनके ईमान और पत्रकारीय संस्कार को लेकर चिंतित हैं।
पत्रकारिता बनी वेश्या, पत्रकार बने दलाल
[caption id="attachment_15625" align="alignleft"]अखिलेश अखिल अपनी नई किताब के साथ[/caption]वेश्याएं खूब बिकती हैं। आम औरतों को कोई पूछता नहीं। भूख, गरीबी, तंगी से आम महिलाएं रोती रहती हैं, लेकिन वेश्याओं का बाजार गर्म रहता है। पत्रकार भूखे मरते हैं, लेकिन पत्रकारिता के दलाल कभी भूखे नहीं मरते। उनकी खूब चलती है। यह बात अलग है कि जब विद्रूप होती पत्रकारिता की स्थिति पर बहस होती है तब ये दलाल पत्रकार भी हाय तौबा मचाते हैं, रोते हैं। भाषण देते हैं और पत्रकारिता के नाम पर बिजनेस करने वाले लोगों को गरियाते हैं। शायद आपको यकीन न हो, लेकिन सच्चाई यही है कि पत्रकारिता वेश्या बन गई है और पत्रकार बन गए हैं दलाल। वेश्या बनी पत्रकारिता खूब बिक रही है।