[caption id="attachment_16505" align="alignleft"]ईश्वर शर्मा[/caption]जब मैं दफ्तर में बैठे-बैठे अचानक नारे लगाने वाली मुद्रा में जोर से बोल पड़ा कि ‘फर्जी टीआरपी के धंधे को खत्म करो, टैम वाले टॉमियों की वीकली भौं भौं बंद करो’ तो मेरे पास बैठे साथी चौंकने वाली मुद्रा में आ गए। कुछ दबी हंसी हंसे तो कुछ खिलखिला दिए। मगर मेरा हंसना मामूली न था। सबने वजह पूछी। मैंने कहा- ‘एक बार सभी मेरे साथ जोर से बोलो तब बताऊंगा।’ और फिर सबने ऐसा ही किया। मैंने उन्हें सविस्तार वजह बताई। मैं लगभग क्रांतिकारियों वाले अंदाज में गर्व से बोल पड़ा। दरअसल, जब हम लंबे समय से किसी बारे में सोचते आते हैं और लगभग वैसी ही बात नेशनल लेवल पर कोई और पूरी ताकत से कह दे तो मन ही मन अजीब-सी खुशी और विचारों में अनूठी ताकत महसूस होती है। मन करता है कि इस आदमी के गले मिल आएं या फिर जैसे भी बन पडे, अपना समर्थन उस तक पहुंचाएं। सोमवार शाम भडास4मीडिया पर टैम के टॉमियों के पीछे ‘वैचारिक, मूल्यपरक और मौलिक डंडा’ लेकर पड़ जाने वाला आलेख पढ़ा तो मानो मेरे मन की बात भी सुलग उठी।