मुन्नी संप्रदाय : मुन्यातुर, मुन्याकांक्षी, मुन्याभिलाषी

[caption id="attachment_18542" align="alignleft" width="71"]विष्णु त्रिपाठीविष्णु त्रिपाठी[/caption]: मुन्नी बदनाम हुई केखे लिए… : दरअसल मुन्नी बदनाम नहीं, सतनाम हुई है : ईद की पूर्वसंध्या थी। कानपुर से चली फरक्का एक्सप्रेस ने टूंडला में हाथ-पांव खड़े कर दिये। बताया गया कि हथिनीकुंड बैराज के सौजन्य से कालिंदी इस कदर हहरा रही हैं कि दिल्ली में अंग्रेजों के जमाने का इस्पाती रेलवे पुल बंद कर दिया गया है। इसलिए ट्रेनों को उनकी औकात के मुताबिक यथास्थान विचलित-स्थगित-निरस्त किया जा रहा है। रास्ता यही था कि टूंडला से आगरा जाएं और वहां से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली पहुंचें। आनंद शर्मा देवदूत बनकर अवतरित हुए, टूंडला से पिकअप किया और हम आगरा के लिए निकल पड़े।

न्यूज मैन कम, न्यूज मैनेजर ज्यादा हो गए

[caption id="attachment_16722" align="alignleft"]विष्णु त्रिपाठीविष्णु त्रिपाठी[/caption]बचपन के एक प्रसंग से बात शुरू करते हैं। मोहल्ले में एक सिद्धी गुरू हुआ करते थे। हमने तो उन्हें बुजुर्ग के तौर पर ही देखा था लेकिन जवानी में वो शौकिया तौर पर पहलवानी भी करते थे, सो उनका निकनेम हो गया सिद्धी गुरू। जबका ये प्रसंग है, तब उनकी उम्र 60 के ऊपर तो हो ही गई होगी। हमें तो बहुत एक्टिव दिखते थे। एक रात जब हम पिता जी के साथ कमल किशोर वैद्य जी के दवाखाने में बैठे थे तो सिद्धी गुरू का पदार्पण हुआ। कुछ बेचैने से थे, वैद्य जी से बोले पता नहीं क्या बात है, कुछ दिनों से पोर-पोर दुखता है। जोड़ों में पीर उठती है। पहले सोचा पुरवाई का असर है लेकिन अब तो पछुवा का जोर चल रहा है लेकिन पीर है कि घटने के बजाय और जोर मार रही है। वैद्य जी बड़ी-बड़ी सघन मूंछों के बीच मुस्कुराए, बोले दादा, पीर इसलिए जोर मार रही है कि आपने जोर करना बंद कर दिया है।

बी4एम की टीआरपी बढ़ाने की रणनीति है यह?

प्रिय यशवंत, विष्णु त्रिपाठी के बारे में खबर पढ़कर बहुत दुख हुआ। यह तो पहले से ही सुना था कि पत्रकारिता में कोई किसी को अच्छा नहीं बोलता, लेकिन यहां तो हद ही पार हो गई। सरेआम किसी पर जातिवादी और क्षेत्रवादी होने का आरोप मढ़ा गया। उसकी तुलना परशुराम से की गई। क्या यह टीआरपी बढ़ाने की रणनीति है या अपनी भड़ास मिटाने की। जागरण में बिहारियों की कमी नहीं और ऐसा भी नहीं कि वहां से बिहारियों को निकालने का अभियान चला रहे हैं त्रिपाठी जी। दरअसल जो लोग काम नहीं करना चाहते और मैनेजमेंट उनकी चापलूसी बर्दाश्त नहीं कर पाता, वे किसी के बारे में कुछ भी अफवाह उड़ा सकते हैं।