न्यूज एजेंसी यूएनआई के जनरल मैनेजर अरुण कुमार भंडारी ने कर्मचारियों के एक गुट द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब भड़ास4मीडिया के साथ बातचीत के दौरान दिया. भंडारी का साफ कहना है कि उन्हें वही लोग हटाने की कोशिश कर रहे हैं, जो लोग यूएनआई का अधिग्रहण करना चाहते हैं. ऐसे ही लोग इच्छा पूरी न होने पर तमाम तरह के अनर्गल आरोप लगा रहे हैं. भंडारी से हुई बातचीत इस प्रकार है-
-यूएनआई स्थापना दिवस 21 की बजाय 19 मार्च को ही क्यों मनवा दिया?
-21 को संडे था. 20 और 21 को यूएनआई टीवी के स्ट्रिंगर्स का ट्रेनिंग प्रोग्राम रखा गया था. पहली बार यूएनआई के इतिहास में हुआ कि स्ट्रिंगर को आने-जाने का किराया दिया गया और उनको ट्रेनिंग प्रोग्राम में इनवाल्व किया गया. जो लोग लंबे समय से यूएनआई के साथ जुड़े हुए हैं, उन्हें यूएनआई टीवी के साथ जोड़कर उनकी इनकम बढ़ाने की व्यवस्था की गई है.
-आरोप है कि बेटे की शादी के कारण आपने दो दिन पहले ही स्थापना दिवस मना दिया.
-ऐसा कुछ नहीं है. बेटे की शादी तो 28 मार्च को थी. यह शादी भी दिल्ली में ही थी. आजकल बारात आकर कई दिन नहीं रुकती है. शादी तो एक दिन का काम है. यह अनर्गल आरोप है.
-आरोप है कि आप अपने खास लोगों को सेलरी दे देते हैं और बाकी लोगों को पांच-पांच महीने तक की सेलरी नहीं मिली है?
-खास आदमी? कौन खास आदमी? नहीं. गलत बात है. जिस सेंटर से पैसे आते हैं, उनको सेलरी देने में हम प्रियारिटी पर रखते हैं. जहां-जहां से पैसा आता है, उनको सेलरी दे दी जाती है. हमने सेलरी को विज्ञापन से लिंक किया है. बाकी जब देना होता है तो सभी को देते हैं, उसमें कोई भेदभाव नहीं किया जाता. जिस महीने की सेलरी देते हैं, सबको देते हैं.
-कुछ साल पहले जो स्मारिका प्रकाशित हुई थी, उसमें जिन लोगों ने विज्ञापन दिलाए, उन्हें कमीशन देने की बात थी पर उन्हें अब तक कुछ नहीं दिया गया?
-ये भी गलत है. कमीशन दिया है. सिर्फ विज्ञापन देने से काम नहीं होता. विज्ञापन का पेमेंट भी आना चाहिए. जहां से पेमेंट मिलता है, वहां पर कमीशन दे देते हैं. कभी कभी देरी भी हो जाती है. ऐसा तो नहीं होता कि आज पेमेंट आया और आज ही दे दें.
-यूएनआई के कई लोग आपका लगातार विरोध कर रहे हैं, ऐसा क्यों?
-देखिए, जब मैं आया तो यूएनआई पर बंदी की तलवार लटक रही थी. बिलकुल बंद होने के कगार पर थी यह एजेंसी. उसे अब बचा लिया गया है. जो नुकसान होने वाला था, उसे रोक लिया गया है. कुछ लोग चाहते थे कि यूएनआई बंद हो जाए और सिर्फ एक एजेंसी रह जाए. उन लोगों के मंसूबे नाकाम हो गए हैं. जब मैं नहीं था और तब जिनको बेनीफिट हो रहा था, जो खरीदना चाह रहा था, उसे लग रहा है कि अब तो यह एजेंसी चल पड़ी है. उसकी कोशिश है कि कैसे मैं जल्दी से जाऊं और यूएनआई कमजोर हो जाए फिर वह इसे टेकओवर कर ले. जिनको मेरे न होने से फायदा होगा, वो लोग ये सब कर रहे हैं.
UNIkaemployee
April 1, 2010 at 2:33 pm
bhandariji upar wale se daro.oct 2008 mein 22 din vetaan late tha aj paanch mahine.tum kise bewakoof banane ki koshish mein lage ho.