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उस्ताद शुजात हुसैन खां, सितार और गायकी

: पसंद न आए तो पैसे वापस! : उस्ताद शुजात हुसैन खां की ख्याति एक वादक के रूप में ज्यादा है, क्योंकि वे विलायत खां साहब के सुपुत्र हैं। तीन बरस की उम्र में जब बच्चे खिलौनों से खेलते हैं उनके लिये एक नन्हा सितार ईजाद किया गया था व छ: बरस की उम्र में जनाब “लाइव परफारमेंस” करने लगे। पर वे अपने दूसरे रूप में मुझे ज्यादा भले लगते हैं। आपने हारमोनियम के साथ गायकों को हजारों बार देखा व सुना होगा। लेकिन यह कितनी बार हुआ कि कोई कलाकार सितार के तार छेड़ते हुए गा रहा है? कम से कम मेरे लिये इस तरह का पहला अनुभव उस्ताद शुजात खां को सुनना था।

<p style="text-align: justify;">: <strong>पसंद न आए तो पैसे वापस!</strong> : उस्ताद शुजात हुसैन खां की ख्याति एक वादक के रूप में ज्यादा है, क्योंकि वे विलायत खां साहब के सुपुत्र हैं। तीन बरस की उम्र में जब बच्चे खिलौनों से खेलते हैं उनके लिये एक नन्हा सितार ईजाद किया गया था व छ: बरस की उम्र में जनाब "लाइव परफारमेंस" करने लगे। पर वे अपने दूसरे रूप में मुझे ज्यादा भले लगते हैं। आपने हारमोनियम के साथ गायकों को हजारों बार देखा व सुना होगा। लेकिन यह कितनी बार हुआ कि कोई कलाकार सितार के तार छेड़ते हुए गा रहा है? कम से कम मेरे लिये इस तरह का पहला अनुभव उस्ताद शुजात खां को सुनना था।</p>

: पसंद न आए तो पैसे वापस! : उस्ताद शुजात हुसैन खां की ख्याति एक वादक के रूप में ज्यादा है, क्योंकि वे विलायत खां साहब के सुपुत्र हैं। तीन बरस की उम्र में जब बच्चे खिलौनों से खेलते हैं उनके लिये एक नन्हा सितार ईजाद किया गया था व छ: बरस की उम्र में जनाब “लाइव परफारमेंस” करने लगे। पर वे अपने दूसरे रूप में मुझे ज्यादा भले लगते हैं। आपने हारमोनियम के साथ गायकों को हजारों बार देखा व सुना होगा। लेकिन यह कितनी बार हुआ कि कोई कलाकार सितार के तार छेड़ते हुए गा रहा है? कम से कम मेरे लिये इस तरह का पहला अनुभव उस्ताद शुजात खां को सुनना था।

इंडिया टुडे व इसके सहयोगी संस्थानों से मुझे कुछ एलर्जी सी है, पर इसमें कोई दो राय नहीं कि म्यूजकि टुडे ने भारतीय संगीत के प्रचार प्रसार में बड़ा काम किया है। हालांकि मार्केटिंग इसकी भी खराब है व इसके सीडी या कैसेट बाजार में आसानी से नहीं मिलते। फिर अपन को इतना धैर्य भी नहीं है कि किसी माल की जानकारी हो जाये व उसे डाक से मंगाकर कासिद के इतंजार में बैठे रहें। बहरहाल, बात शुजात खान की हो रही थी जिनका अलबम “सुर व साज”” म्यूजकि टुडे ने ही निकाला था व उनकी दिलकश आवाज से अपना परिचय हुआ। सूफी गीत व ग़ज़लों के लिये आवाज में जो एक अलग सी तासीर होनी चाहिये है, वह उनमें बखूबी है। पर इस समय मैं आपको अपनी पसंद की एक बंदिश सुनाना चाहता हूं।

भाई यशवंत जी, यह जो रनिंग कमेंट्री है, उससे भड़ासी भाइयों को बोर करें इसकी कतई कोई जरूरत नहीं है। बात दरअसल यह है कि मैं दुनिया का सबसे बेसुरा इंसान हूं। मुझे संगीत का “स” नहीं मालूम। लेकिन मैं प्रोफेशनल किस्म का सुनने वाला हूं व लोगों कि इस धारणा को तोड़ना चाहता हूं कि क्लासकिल मौसिकी को सुनने के लिये उसकी समझ होनी चाहिये। राग वगैरह जायें भाड़ में। कोयल कूकती है तो मीठा लगता है, वो क्या कह रही है किसी ने समझा?

जब भी किसी नये व्यक्ति को यह पता चलता है कि अपन शास्त्रीय संगीत सुनते हैं, तो वह छूटते ही पूछता है, “अच्छा आप गाते भी हैं?” या “आपने कहीं से सीखा है?” भाई, मुझे बतायें कि नावेल पढ़ने वाले से कभी कोई पूछता है  “आप लिखते भी हैं क्या?” मैं कहना सिर्फ इतना चाहता हूं कि अपना जो संगीत है, इसका जायका जुबान पर जरा देर से चढ़ता है पर एक बार इसकी लत लग जाये तो कोई माई का लाल उसे छुड़ा नहीं सकता। हां, जो चीज सुनी जा रही है थोड़ा सा उसका बैकग्राउंड मालूम हो तो वह सुनने के लिये उत्सुकता जगाती है।

-दिनेश चौधरी

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0 Comments

  1. ashok

    August 10, 2010 at 3:40 pm

    अदभुत ….दिनेश जी को धन्यवाद

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