पहले भड़ास ब्लाग Bhadas.BlogSpot.com फिर भड़ास4मीडिया Bhadas4Media.com फिर विचार पोर्टल Vichar.Bhadas4Media.com अब वीडियो पोर्टल. नाम मीडियाम्यूजिक.भड़ास4मीडिया.काम है. इस पर जाने के लिए आपको पता www.MediaMusic.Bhadas4Media.com टाइप करके इंटर मार देना होगा.
अभी यह पोर्टल आधिकारिक रूप से लांच नहीं किया गया है. टेस्टिंग-ट्रायल के दौर में है. कई कमियां सुधारी जा रही हैं. खासियत यह कि यूट्यूब पर अपलोड वीडियो को इसमें दिखाने के साथ-साथ इस पोर्टल पर भी वीडियो अपलोड करने की सुविधा है. मतलब, अगर कोई वीडियो किसी जगह अपलोड नहीं है और वीडियो अपलोड करना आता भी न हो तो आप वीडियो हम तक पहुंचा भर दें, उसे हम लोग इस वीडियो पोर्टल पर अपलोड कर दिखाना शुरू कर देंगे. उदाहरण के तौर पर www.MediaMusic.Bhadas4Media.com पर जाकर सबसे पहले वाला वीडियो देखें. इसमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी का इंटरव्यू है.
इस इंटरव्यू को मैंने देहरादून में अपने मोबाइल से रिकार्ड किया था. इंटरव्यू में जनरल साहब एक शानदार शेर पढ़ते दिख रहे हैं. यह शेर उन्होंने वर्तमान राजनीति में काम कर रहे ईमानदार और स्वाभिमानी नेताओं के लिए कहा है. साथ में कुछ और सवाल जवाब हैं. इस वीडियो को बजाय यूट्यूब पर अपलोड करने के, इसे सीधे भड़ास4मीडिया के वीडियो पोर्टल मीडियाम्यूजिक.भड़ास4मीडिया.काम पर ही अपलोड कर दिया गया. इससे पहले जनसंदेश, मुंबई के जुहैर जैदी के गाते हुए वीडियो को भी इसी वीडियो पोर्टल पर अपलोड किया गया जिसे आप वहां देख भी सकते हैं. वीडियो पोर्टल पर अपलोड व पब्लिश किए गए वीडियो के इंबेडेड कोड का इस्तेमाल कोई भी व्यक्ति अपने ब्लाग या पोर्टल पर कर सकता है, उसी तरह जैसे हम लोग यूट्यूब पर अपलोड वीडियो के इंबेडेड कोड का इस्तेमाल करके वहां के वीडियो को अपनी साइटों-ब्लागों पर प्रकाशित कर देते हैं.
www.MediaMusic.Bhadas4Meida.com पर जाइए, वीडियो वेबसाइट देखिए. कोशिश करिए कि जल्द ही आप भी इस वीडियो पोर्टल पर दिखें. इसके लिए ज्यादा कुछ करना नहीं है. बस, कोई गाना गाते हुए खुद को रिकार्ड करिए और भेज दीजिए हम लोगों के पास, [email protected] पर मेल से या सेंडस्पेस से. आपकी गायकी के हुनर से हम दुनिया को परिचित कराएंगे. आपके वीडियो को भड़ास मीडिया म्यूजिक मुकाबला (BMMM) में शामिल करेंगे.
अगर आपके पास किसी बड़े घटनाक्रम की एक्सक्लूसिव वीडियो हो, किसी बड़ी खबर से संबंधित एक्सक्लूसिव वीडियो हो, कोई स्टिंग हो तो हम तक पहुंचाएं. उसे भड़ास4मीडिया के वीडियो पोर्टल पर अपलोड करके उस वीडियो को भड़ास4मीडिया समेत कई जगहों पर प्रकाशित कर दिया जाएगा. अगर बड़े टीवी न्यूज चैनल अपनी किसी मजबूरी के चलते कोई वीडियो या स्टिंग नहीं दिखा रहे हैं तो उसे दिखाने की वैकल्पिक व्यवस्था हम लोगों ने कर दी है. यह जनता का मोर्चा है. और जनता का यह मोर्चा दिनोंदिन मजबूत होता जा रहा है. इसमें कोई दल्लापंथी नहीं है क्योंकि इसमें डिस्ट्रीब्यूशन का करोड़ों रुपये का खर्च नहीं है जिसके चक्कर में दल्लापंथी के पंथ को अपनाने को मजबूर होना पड़े. इसमें किसी बड़े सेटअप की जरूरत नहीं है, नोटों से भरे बोरों की कतई आवश्यकता नहीं है. इसमें किसी विज्ञापनदाता की तलाश की जरूरत नहीं है, इसमें लाखों रुपये वेतन लेने वाले संपादकों जर्नलिस्टों की जरूरत नहीं है. इसमें सरकार से कोई लाइसेंस या दिशा निर्देश लेने की जरूरत नहीं है.
यह न्यू मीडिया है. ग्लोबल पहुंच वाला, कम पैसे में चलने वाला और जबर्दस्त मार करने वाला, सीधा-साधा और खरा-खरा माध्यम. तो, पत्रकारिता के पतन का रोना मत रोइए, न्यू मीडिया के साथ जुड़िए और मिशनरी पत्रकारिता करिए. जो मीडिया हाउस बाजारू हो चुके हैं, टीआरपी के लिए संचालित होते हैं, प्रसार और विज्ञापन के लिए मरे जा रहे हैं, खबरों का सौदा कर रहे हैं, पेड न्यूज के जरिए उगाही कमाई कर रहे हैं, उन्हें छोड़ दीजिए कुकर्म करने के लिए. अपनी उर्जा लगाइए न्यू मीडिया में, ऐसी लकीर खींचिए जो उनकी लकीरों से बड़ी हो जाए. वे खुद ब खुद चर्चा और चलन से बाहर होने लगेंगे. उन्हें शर्म आने लगेगी और कुछ पीढ़ियों के बाद वे गली गली में दौड़ाकर मारे जाएंगे, अभी तो केवल गाली खा रहे हैं, दलाली में कुख्यात होते जाने के कारण, सरकार से गलबहियां कर जनविरोधी होते जाने के कारण, पत्रकारिता को बेच खाने के वास्ते घटिया से घटिया हरकत करते रहने के कारण.
प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के संपादकों मालिकों के मोहजाल में मत पड़िए. ये साले सबके सब (अपवाद छोड़कर) ठग, डफर और हिप्पोक्रेट हैं. ज्यादा से ज्यादा पैसा बटोरना चाहते हैं. ज्यादा से ज्यादा टीआरपी के चक्कर में पड़े हुए हैं. ज्यादा से ज्यादा मकान और जमीन बनाने में लगे हैं. एलीट किस्म की लाइफस्टाइल जीते रहना इनका मुख्य एजेंडा है, और इस लाइफ स्टाइल के लिए इन्हें चाहिए होता है ढेर सारा पैसा, तो वे लोग गलत सही स्याह सफेद सारे काम राम राम (मीडिया मीडिया) कहकर कर रहे हैं. पत्रकारिता की आड़ में, संपादकी का नाम ले लेकर गैर-पत्रकारीय, गैर-संपादकी वाला काम कर रहे हैं. सच कहें तो लाइजनिंग और दलाली ही इनका मूल धंधा है और ये सब कुछ पत्रकारिता और मीडिया के नाम पर ढंककर चुपचाप करते रहते हैं. देश-प्रदेश में सत्ता शीर्ष पर बैठे परमभ्रष्टों से पंगा लेने में इनकी पेशाब छूटती है. भ्रष्ट और जनविरोधी अफसरों को नेस्तनाबूत करने में इन्हें डर लगने लगा है. उल्टे ये भ्रष्ट नेता और भ्रष्ट अफसर से मिलकर खुद भ्रष्टाचार के दलदल में गोते लगा रहे हैं और देश दुनिया को ईमानदारी व नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे हैं.
ये संपादक और ये मालिक मीडिया के नाम पर बिजनेस टर्नओवर, प्राफिट परसेंट बढ़ाने वाली कारोबारी दुकानें खोले हुए हैं. बाकी दुकानों के मालिक व सेल्समैन साबुन तेल कपड़ा बेचकर मुनाफा कमाते हैं, ईमानदारी से, एमआरपी पर भी छूट देकर, लेकिन मीडिया की दुकानें खोले मालिक खबरें बेचकर बेईमानी से पैसा कमाते हैं, बिना किसी को बताए, बिना कोई सुबूत बचाए. ये खबरों का सौदा करते हैं, पैकेज डील करते हैं, विज्ञापन को खबर की तरह दिखाते हैं और खबर को विज्ञापन की तरह परोसते हैं. जनता को लात मारकर, बाजारू सेठों को खुश करने के लिए टीआरपी व प्रसार की जरूरत के हिसाब से खबरें दिखाते छापते बनाते हैं. सोच लीजिए, फिर खबरें बनेंगी या इंद्रियों को उत्तेजित करने वाले इंद्रजाल सुनाए दिखाए पढ़ाए जाएंगे.
बदमाश किस्म के लोग मीडिया का खोल धारण कर पचास किस्म के चोरी और डकैती वाले धंधों को छुपाने दबाने में लगे हैं. ऐसी ऐसी कंपनियां चैनल चलाने लगी हैं जो जनता को लूट लूट कर बड़ी हुई हैं, फली फूली हैं, जिसमें नेताओं की ब्लैकमनी लगी हुई है. ये मीडिया के जरिए अपनी खाल व खोल, दोनों बचाने में लगी हैं. ये मीडिया के जरिए नेताओं और अफसरों को ओबलाइज करने में लगे हैं. ऐसे सड़ांध मारते दौर में अगर किसी का मन इन कुख्यात प्रिंट व इलेक्ट्रानिक वाले मीडिया हाउसों के साथ काम करते हुए शुद्ध पत्रकारिता करने का हो रहा है या कोई ऐसा दावा कर रहा है तो दोनों को अपना दिमाग चेक कराने की जरूरत है. यह संभव ही नहीं है पार्टनर. अगर कोई ईमानदार है भी इन मीडिया हाउसों में तो वो उसी तरह का ईमानदार है जैसे किसी डकैत गिरोह में एक ईमानदार कैशियर भर्ती कर लिया जाए लूट के माल के ईमानदारी पूर्वक बंटवारे के लिए और वो कैशियर दुनिया भर में खुद को सबसे ईमानदार आदमी घोषित करता हुए ढेर सारे पुरस्कारों और रत्नों के लिए खुद को स्वयंमेव नामित कर रहा हो.
अब दौर है न्यू मीडिया को अपनाकर हर पत्रकार को मीडिया मालिक बनने का. लेकिन मीडिया मालिक बनकर ये मत सोचिए कि आप करोड़ों के मालिक हो जाएंगे या घर का खर्चा आपके पोर्टल से चलने लगेगा. आप कमाने के लिए कोई और धंधा करिए-सोचिए. न्यू मीडिया के जरिए पत्रकारिता के मिशन को आगे बढ़ाइए. पत्रकारिता को मिशनरी भाव से लेने वालों के घरों में बहुत संपन्नता नहीं होती और न ही उन्हें किसी संपन्नता की चिंता होती है. वे जुनूनी लोग होते हैं और अपनी फटेहाली में इतने संतुष्ट व मस्त होते हैं जिसका अंदाजा कोई अरबपति नहीं लगा सकता. हां, उनका काम 24 कैरेट वाला होता है जिससे बड़े बड़े धन्नासेठों, अफसरों और नेताओं की फटती है. तो पत्रकारिता को मिशन या पैशन या शौक के भाव से लीजिए. इसके जरिए पैसे कमाने को मकसद मत बनाइए वरना फंसेंगे और मारे जाएंगे.
आप केवल पत्रकारिता करिए. पैसे का चक्कर छोड़िए. जो खुद ब खुद चलकर आए, उसे स्वीकारिए. थोड़े बहुत प्रयास करिए पैसे के लिए पर येन केन प्रकारेण पैसा आए वाला फंडा न अपनाइए. पैसे के लिए मत लिखिए और पैसे लेकर मत लिखिए. भड़ास4मीडिया चलाते हुए मैंने कई तरह के प्रयोग समय-समय पर किए. अब मुझे ये अच्छी तरह से लगने लगा है कि इस माध्यम से ईमानदारी से पैसे नहीं कमाए जा सकते. और, हम जैसे कंटेंट वाले हार्डकोर्ड मार्केटियर हो नहीं सकते. और, अगर कमाई करने का जुनून पाल लेंगे तो इस कोशिश में हम उन्हीं प्रिंट व इलेक्ट्रानिक माध्यमों जैसे हो जाएंगे जो ढेर सारी कमाई के दबाव के कारण ढेर सारी खबरों के साथ समझौता कर लेते हैं और खबर के नाम पर अंततः शून्य हो जाते हैं, उनके यहां पत्रकारिता सूखने-चुकने लगती है. इसी कारण मैं ये सोचने लगा हूं कि पैसे कमाने के लिए अब कुछ और काम करूं और पत्रकारिता करने के लिए भड़ास4मीडिया को रहने दूं. तभी भड़ास4मीडिया और मेरा, दोनों का सम्मान बचा रह पाएगा.
तो भइया, अगर मेरे लायक कोई काम आपके पास हो तो बताइएगा. ये हाल देश के नंबर वन मीडिया न्यूज पोर्टल के मालिक का है तो बाकी पोर्टलों (अनुराग बत्रा वाली पीआर वेबसाइटों को छोड़कर) का हाल समझा जा सकता है जिसे पत्रकार साथी संचालित कर रहे हैं. कह सकता हूं कि जितने भी पोर्टल वाले हैं, वे अच्छे, मेहनती और जुनूनी लोग हैं जो घर फूंक तमाशा देख रहे हैं, खुद के पैसे लगाकर प्लेटफार्म क्रिएट कर रहे हैं, न्यू मीडिया का अलख जगा रहे हैं. और, मेरी निगाह में वही लोग असली जर्नलिस्ट हैं जो बिना किसी सरकारी लाभ, बिना किसी निजी महत्वाकांक्षा के काम करते जा रहे हैं. ऐसे सभी ब्लागरों और वेब संचालकों को मैं प्रणाम करता हूं. मैंने अपनी और भड़ास4मीडिया की माली हालत के बारे में पहले भी एक बार लिखा था, जिस पर ढेरों प्रतिक्रियाएं और प्रस्ताव आए पर रुपइया कहीं से नहीं आया :)♥
हां, हैदराबाद से भरत सागर जी ने मुझे कुरियर से एक पत्र लिखकर और साथ में पांच पांच सौ के दो नोट अटैच कर भेजे थे, यह कहते हुए कि आंसू पोछ लीजिए और आगे बढ़िए. मुझे बहुत अच्छा लगा था उनका यह अंदाज. मुझे बिलकुल उम्मीद न थी कि कोई कुरियर से भी हजार रुपया भेज सकता है. भरत जी के पैसे को इसलिए भी स्वीकारा कि वे बुजुर्ग हैं और हर मोड़ पर प्यार से पुचकारते, साहस बढ़ाते रहते हैं और संपर्क में बने रहते हैं. उनके अलावा दो चार पांच सात लोगों ने पांच सौ एक या ग्यारह सौ एक टाइप का मासिक चढ़ावा देने की बात कही लेकिन पता नहीं क्यों मुझे अच्छा नहीं लगा प्रस्ताव. शायद, एक भाव ये भी हो इन पैसों से कुछ खास होना जाना तो है नहीं, सो, किसी का एहसान क्यों लेना. और, मुझे ये भी लगा कि इन देने वालों के मन में मेरे प्रति दया भाव ज्यादा है, अन्य भाव कम. तो, दयनीय बनकर रहना तो गुरु पसंद नहीं अपन को. एक बेला कम खा लेंगे लेकिन रहेंगे तो अकड़ के, ठसके से, अपने ही अंदाज में.
कभी कभी लगता है कि मेरे अंदर का जो सामंती दिल है, जो फ्यूडल इगो है, वह भयंकर है, वह भी आड़े आ जाता है. ऐसा होता है कि जो हम सोचते हैं उसे व्यवहार में उतार नहीं पाते या उतारते हुए कष्ट होता है, ईगो हर्ट सा महसूस होता है. उनमें से मैं भी हूं जो महिला आदर्श की बातें तो बहुत करते हैं लेकिन घर में अपनी पत्नियों को बराबरी का अधिकार देने में सकुचाते हैं, या बराबरी का अधिकार खुद ब खुद लेने वाली पत्नियों से दिक्कत महसूस करने लगते हैं. ऐसा फ्यूडल बैकग्राउंड व फ्यूडल इगो के ही कारण है. पर यह सब दिल दिमाग को तार्किक लोकतांत्रिक बनाने की प्रक्रिया में, तराशते रहने की प्रक्रिया में ठीक हो जाता है, ऐसा मेरा मानना है पर सवाल वही है कि कितने लोग दिल दिमाग को लोकतांत्रिक बनाने की प्रक्रिया में लगे हैं. नौकरी करने के चक्कर में सबने अपने दिल दिमाग को घनचक्कर बना डाला है तो सोचने समझने का वक्त ही नहीं किसी को मिलता. कुछ हम जैसे अस्सी घाट वाले बनारसी हैं जो सारे वक्त स्वतंत्र चिंतन मनन में लगे रहते हैं और कह सकते हैं कि हम लोग ही राष्ट्रीय चिंतक, असली चिंतक हैं जो चिंता करने के लिए अलग से वक्त निकालते हैं और उसे ब्लाग बद्ध करते हैं. वैसे भी, किसी एक बनारसी चिंतक ने मुझे बताया कि किसी की नौकरी चाकरी गुलामी करते हुए स्वतंत्र चिंतन किया ही नहीं जा सकता :)♥
और, दुनिया की सरकारें व पूंजीपति यही चाहते हैं कि कोई आदमी स्वतंत्र रहने का वक्त नहीं निकाल पाए क्योंकि स्वतंत्र आदमी और मुक्त दिमाग काफी उन्मुक्त होते हैं और ये सरकारों व पूंजीपतियों के लिए खतरा बन जाते हैं. सो, हर आदमी को पेट के चक्कर में घिसट घिसट कर जीने वाला बना दिया गया ताकि न बचे वक्त और न हो सके स्वतंत्र चिंतन. इसीलिए, आपको आज के दौर में ओरीजनल चिंतक नहीं मिलेंगे. सब पापी पेट के चक्कर में तरह तरह की बातें बनाते मिल जाएंगे जिससे उनकी दुकानें चलती रहें और उन दुकानों से आने वाले पैसे से उनके लाडले पलते रहें, अच्छे घरों में रह सकें, बड़ी बड़ी कारों पर चल सकें. नौकरी चाकरी करने वालों को स्वतंत्र लोग अच्छे नहीं लगते, उसी तरह जैसे एक जमाने में, गुलाम काल में, बेड़ियों में जकड़े मानव को बेड़ियों के बगैर रहने में दिक्कत होने लगती थी क्योंकि उन पर गुलाम मानसिकता हावी थी, गुलाम होकर जीते रहने को वो अपनी नियति मानते थे. वे स्वतंत्र मानव के बतौर जीवन जीने के बारे में कल्पना भी नहीं कर पाते थे, कुछ इस तरह से उनके दिमाग को ट्यून कर दिया गया था. उन गुलामों की अपनी दुनिया होती थे, उस गुलाम दुनिया के अपने दुनियादारी वाले तर्क होते थे.
तो नौकरी चाकरी करने वालों की भी अपनी दुनिया होती है, अपने तर्क होते हैं, दुनियादारों वाले और उन तर्कों के जरिए वे अपनी हर रीढ़विहीन हरकत को जेनुइन व उचित साबित कर खुद को व सामने वाले को संतुष्ट करते रहते हैं, इस तरह से किसी भी तरह के पाप या गलत या खराब का बोध भाव संवेग खत्म होता जाता है और एक ऐसी स्थिति आती है जिसमें सही व गलत के बीच का तार्किक फासला पूरी तरह खत्म होता जाता है. वे सिर्फ स्थितियों के अनुकूल ढलते जाने को अभिशप्त हो जाते हैं, स्थितियों को बदलने के बारे में कभी सोचने की हिमाकत नहीं कर पाते. ऐसे में जेपी याद आते हैं, लोहिया याद आते हैं, गांधी याद आते हैं, कि कैसे इन साधारण जीवन स्थितियों में जीने वाले लोगों ने स्वतंत्र चिंतन के जरिए असाधारण काम किए पर हम लोग हैं कि उनसे सीखते नहीं, सिर्फ उन्हें मूर्तियों में तब्दील कर उनके चैप्टर को क्लोज कर देते हैं और खुद के दिमाग को डब्बाबंद बना लेते हैं. उन लोगों को याद कर खुद की आर्थिक फकीरी में ठाठ नजर आने लगता है और इस ठाठ में ढेर सारा आनंद व सुकून भरा होता है. मैं अब उस आलसी की तरह हो गया हूं, मुंगेरीलाल सरीखा हो गया हूं जो आंख बंद कर अचानक सोचने लगता है कि एक दिन ऐसा दिन आएगा कि सारे संकट दूर हो जाएंगे और पैसे की चिंता करने से मुक्ति मिल जाएगी.
वो वाली कहानी खूब तसल्ली देती है. वर्ल्ड बैंक वाले एक बार सड़क किनारे एक गरीब आदमी के पास पहुंचे जो रात के वक्त लुंगी से मुंह ढंककर मस्ती में सो रहा था. वर्ल्ड बैंक वालों ने उसे जगाया और कहा कि वर्ल्ड बैंक से कर्ज ले लो और कोई काम शुरू कर लो. वो आदमी बोला, उससे क्या होगा. वर्ल्ड बैंक वालों ने कहा कि पैसे आ आने लगेंगे. उस गरीब ने सोए सोए फिर पूछा, उससे क्या होगा. वर्ल्ड बैंक वालों ने कहा कि खुद का मकान बना लोगे, गाड़ी बंगला सुविधा सामान सब होगा. गरीब आदमी फिर बोला, उससे क्या होगा. वर्ल्ड बैंक वाले ने कहा, आराम से सो सकोगे. गरीब आदमी बोला- वही तो मैं कर रहा हूं, और यह करने के लिए इतना सब चक्कर काटने की क्या जरूरत क्या है, अपना पैसा व कर्जा अपने पास रखो. इतना कह कर वह गरीब पर सुखी आदमी लुंगी से मुंह ढंककर फिर सो गया. बताते हैं कि उसी दिन उन अधिकारियों ने वर्ल्ड बैंक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया क्योंकि उन्हें जीवन का दर्शन अचानक में समझ में आ गया.
दुष्यंत कुमार के कुछ कम परिचित शब्दों के गुच्छ को ताड़िए और महसूस करिए…
इस दौड धूप में क्या रख्खा आराम करो आराम करो
आराम जिंदगी की कुंजी इससे न तपेदिक होती है
आराम सुधा की एक बूंद तन का दुबलापन खोती है
आराम शब्द में राम छुपा जो भव बंधन को खेता है
आराम शब्द का ज्ञाता तो विरला ही योगी होता है
इसलिए तुम्हें समझाता हूं मेरे अनुभव से काम करो
इस दौड धूप में क्या रख्खा आराम करो आराम करो…..
और आराम करते करते जब थक जाओ तो खाओ-पियो. चपर चपर करके आवाज निकालते हुए खाओ. पालथी मारके तसल्ली से खाओ, जो मन करे, उसको खाओ, ऐसे खाओ कि आत्मा तृप्त हो जाए. मेरे प्रिय कवि वीरेन डंगवाल चार लाइनों में कितनी बड़ी बात कह देते हैं….
खाते हुए मुंह से चपचप की आवाज़ होती है?
कोई ग़म नहीं
वे जो मानते हैं बेआवाज़ जबड़े को सभ्यता
दुनिया के सबसे ख़तरनाक खाऊ लोग हैं!
तो पैसे ले लेने में सुख नहीं है. पैसे मिलने में सुख नहीं है. सारा सुख व सुकून दिमाग में है. उस काम में है जिसमें दिल लगता है. पैसे बढ़ते जाने के अनुपात में ही दुख व असंतोष भी बढ़ता जाता है. जहाज में बैठे ज्यादातर लोग अलौकिक आसमान और उड़ान के अदभुत सुख से अनजान होते हैं. उनका सारा ध्यान अगले गंतव्य पर उतरने के बाद के नफा नुकसान में लगा रहता है. और हम जैसे बिना पैसे वाले लोग जब जहाज पर बैठते हैं तो अदभुत उत्तेजना से भरे होते हैं. किसिम किसिम के ज्ञान व दर्शन कपार में उत्पन्न होकर रासायनिक क्रिया करते हुए नाना प्रकार के भावनाओं का उत्पादन करते हैं. जय हो.
इस कविता को कभी भड़ास ब्लाग पर टाइप कर प्रकाशित किया था….
कुछ असर नहीं करता
भीख मांगते बच्चे,
रंडी होती पीढ़ी,
मंडी होता मुल्क
मुझ पर कुछ भी असर नहीं करता
कुछ भी खबर नहीं करता
खुदकुशी करते किसान
खलिहान तक फैलता मसान
कोख और दूध में प्रदूषण का जहर
राखी सावंत के क्लीवेज में घुसा मीडिया
कुछ भी खबर नहीं करता
कोई गदर नहीं करता
चूतियापे की संसद
बकचोदी करते पत्रकार
तिल तिल मरती हिंदुस्तानियत
दम तोड़ती इंसानियत
फिर भी
कोई गदर नहीं करता।
लेकिन
कोई
कुछ क्यों करे
जब खुद मैं
पेट से शुरू करता हूं
और
कमर से जरा नीचे
जाकर रुक जाता हूं।
तो कोई कुछ क्यों करे।
भाषण ज्यादा हो गया. फिलहाल वीडियो पोर्टल का आनंद लें. वीडियो पोर्टल होने से मुझे ये सुविधा हो जाएगी कि लोगों के इंटरव्यू आडियो फार्म में रिकार्ड करने की जगह या डायरी पर कागज कलम से लिखने की जगह फिर उसे रिराइट करने की जगह वीडियो फार्मेट में शूट किया जाएगा और उसे साइट पर अपलोड कर पब्लिश कर दिया जाएगा. इससे लिखने, एडिट करने, फोटो लगाने जैसे ढेर सारे कामों से मुक्ति मिल जाएगी. तो आजकल आलसी हो चुके मेरे मन-मिजाज ने शार्टकट तलाश लिया है. और तो और, गायकी का जो मुझे रोग लगा है, जो दारू पीते ही फूट पड़ता है, उसे भी शांत करने का मौका यह वीडियो पोर्टल मुझे देगा. और, रोग अगर मुझे है तो वह जरूर नेशनल बनेगा और ढेर सारे संगीत रोगी मेरी तरह इस पोर्टल पर अवतरित होंगे, अगढ़ आवाज में अगढ़ लाइनें चिल्लाते हुए. सबसे बड़ी बात, देश के किसी भी नागरिक या पत्रकार के पास कोई एक्सक्लूसिव वीडियो हो तो उसे वह प्रकाशित करने के बारे में सोच सकता है. आप बताइएगा, आप क्या सोच रहे हैं, मेरी इन बातों व सोच-विचार पर.
यशवंत
एडिटर
भड़ास4मीडिया
09999330099
Abhishek sharma
November 13, 2010 at 12:49 pm
Badhaee sweekare…
Dharmesh
November 13, 2010 at 1:04 pm
हिम्मते मर्दा तो मददे ख़ुदा
पुनीत निगम
November 13, 2010 at 1:45 pm
भाई ,
बेहतरीन प्रयास ।
बधाई स्वीकारें ,
ज्यादा तो नहीं कहता पर जब कभी इस न्यू वेब मीडिया का इतिहास लिखा जायेगा तो आपका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा।
पुनीत निगम
कानपुर
नीरज भूषण
November 13, 2010 at 1:49 pm
प्रिय यशवंत भाई,
कई मित्र मिले, कई पत्रकार साथी मिले. कईयों से रोज जुड़ता भी रहता हूँ, एक काफिला बन रहा है. परन्तु आप में दम है, साहस है, जूनून है, वजन है.
अपना “भड़ास” दुनिया में मीडिया का एक गज़ब प्लेटफार्म है. आपके लीडरशीप में इसने लाखों पत्रकारों और हमारे समाज को नयी राह दिखाई है. अगर मैं आज पीटीआई डायरी लिख रहा हूँ तो यह भी आपकी प्रेरणा से; और यह टिपण्णी हिंदी में भी आपकी प्रेरणा से ही लिखी जा ही है.
विश्वास है यह विडियो का नया प्रयोग नयी ऊंचाईयां छूएगा. शुभकामना.
saleem akhter siddiqui
November 13, 2010 at 2:05 pm
lage raho yshwant bhai.
पंकज झा.
November 13, 2010 at 2:33 pm
बधाई…अद्भुत….शायद वैकल्पिक जीवन दर्शन….वैकल्पिक मीडिया के बहाने.
अरविन्द श्रीवास्तव
November 13, 2010 at 2:48 pm
एक और ’नई दुनिया ’ का स्वागत है..आपके प्रयोग को हमारा अभिवादन ..शुभकामनाएं !:-*:-*
http://khabarkosi.blogspot.com
http://janshabd.blogspot.com
8$M/*M0>6 "[>&"
November 13, 2010 at 3:35 pm
क्या कहें, सब कुछ तो आपने बक(कह) दिया…प्रयास जारी है…प्रयास जारी रहेगा.
योगराज शर्मा
November 13, 2010 at 4:34 pm
यशवंत जी, बहुत बहुत बधाई… आपके इस सार्थक प्रयास में हम आपके साथ हैं… ईश्वर इसमें सफलता दे, ज्यादा से ज्यादा लोग जुडें, सच्चाई सामने आए…
शुभकामनाएं
योगराज शर्मा
एडिटर इन चीफ
जर्नलिस्ट टुडे नेटवर्क व सीईओ, जर्नलिस्ट टुडे इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया इंस्टीट्यूट, रोहिणी, दिल्ली
मोबाइल-9899705042
arvind singh
November 13, 2010 at 5:18 pm
yashwant ji aapako sadhuwaad.sacha me bahut diler aur behad sache insaan hai aap. bina jeevat ke koi apane bare me is tarah khulakar nahi bol sakata.hakeekat me aaj ki patrakarita me naitikata aur mulya ya aadarsha jaise kitabi shabda bilkul bhi nahi rah gaye hai, chola pahankar log zola bhar rahe hai aur aap jaise nirchhal, nirvikar diya lekar adhiyaara mitane ki kasam khaye apane jivan ko dhanya kar rahe hai, sadar pranam aapako. aur kuchha nahi kah sakata. kahane ko to bahut kuchha hai lekin koi fayada nahi isliye
rajkumar sirohi
November 13, 2010 at 6:22 pm
यशवंत जी सादर नमस्कार,
आपकी यह नई शुरुआत एक और मील का पत्थर स्थापित होगी. क्योंकि आज सब जानते हैं कि जियादातर चैनलों पर वही दिखाया जाता है जो चैनल के हित में होता है, हज़ारों ऐसी स्टोरीज़ जो तूफ़ान ला सकती हैं एफ टी पी सर्वर में ही दफ़न होकर रह जाती हैं. आपकी यह पहल भारत की विकिलीक्स साबित होगी. शुभकामनाएं
यशवंत जी ठहरिये ! बात अभी खत्म नहीं हुई है शुभ कामना के साथ बस मेरी एक छोटी सी रिक्वेस्ट और है आपसे………
अगर आप अपने बच्चों से, अपने बुजुर्गों से और देश से प्यार करते हैं, तो शराब पीना छोड़ दीजिए इन सभी को लंबे समय तक आपकी ज़रूरत है.
राजकुमार सिरोही
सिरसा
anil pandey
November 13, 2010 at 7:30 pm
यशवंत जी,
पत्रकारिता को पतन की ओर धकेलने वालों को ठिकाने लगाने और उनकी लकीर से लम्बी लकीर खींचने का आपका प्रयास जरूर रंग़ लायेग़ा. आपके मजबूत इरादों को सलाम.
उपदेश सक्सेना
November 14, 2010 at 6:04 am
यशवंत जी नए प्रयोग के लिए बधाई.
इस दौड धूप में क्या रख्खा आराम करो आराम करो
आराम जिंदगी की कुंजी इससे न तपेदिक होती है
आराम सुधा की एक बूंद तन का दुबलापन खोती है… यह पंक्तियाँ दुष्यंत कुमार की नहीं बल्कि गोपाल प्रसाद व्यास की हैं.
awesh
November 14, 2010 at 9:33 am
mast
ganesh rawat
November 14, 2010 at 9:58 am
आपके नए प्रयोग की सफलता की कामना अपने कवि मित्र शिरीष मोर्य की इन पंक्तियों के साथ करना चाहता हूँ –
कुछ नया हो
उगते हुए सूरज की तरह नया
नया हो कुछ
मिटटी में फूटते हुए
अंकुर की तरह नया
कुछ नया हो
कि हम जियें
कुछ दिन और ……..
shravan shukla
November 14, 2010 at 10:28 am
Seena gadgad ho utha sir ji..aaj mujhe khud par garv hota hai ki maine yashwant ji ke darshan kar lie hai…meri nazar me aap bhagwaan hai isme koi do rai nahi hai…aur isse jyada kuch kahunga bhi nahi…lekin is prayog ke baad aap mere jaise bahuto ke dilo ke swami ban gaye hai….hame SWARNAKSHARO me aapka name darz rahega…. SEENA TAAN ke kahta hu ki aapke dikhaye rastey par hi chalunga…..dallagiri jindagi me katai nahi karunga….bas yahi sneh banaye rakhiyega…yah bhadas4media.com ek din sare duniya me media jagah ki sabse badi website banegi ..fir kisi ka kahi name na hoga bhadas4media ke aage……vedio wali suvidha ke baad to direct itne saare rastey khul ja rahe hai jiske baare me kabhi kisi ne socha bhi nahi tha….I M PROUD TO BE AN CHELA OF you….hhahaha……
AAPKA BACHCHA
SHRAVAN SHUKLA
ambujesh
November 14, 2010 at 10:38 am
bhadas ke krantikaari abhiyan ka ek aur bada kadam……badhai ho yashwant bhai
ravi
November 14, 2010 at 11:07 am
सबसे पहले तो आपको बधाई ….. नए पोर्टल के लिए ढेरो शुभकामनाये……और फिर मान गए गुरु आप को…….लोगो में पत्रकारिता का कीड़ा डालने के साथ ही फक्कड़ पत्रकार बनने का जो रास्ता आप दिखा रहे हो उससे उस भले मानुस की तो सिर्फ मन की भड़ास निकलेगी लेकिन आपका पोर्टल आपकी जेबे जरुर भर देगा…..और वह कैसे यह आप बेहतर जानते हो…….? ;D
Sanjay Gupta "Kurele"
November 14, 2010 at 4:32 pm
यशवंत भाई…
एक नई पहल के लिए बहुत बहुत बधाई…
ईश्वर इसमें सफलता दे, ज्यादा से ज्यादा लोग जुडें,
आपके माध्यम से सच लोगो के सामने आये…
शुभकामनाएं…
आपका छोटा भाई…
संजय गुप्ता “कुरेले”
( डीडीन्यूज़ व जनसंदेश न्यूज़ )
उरई ( जालौन)
मोब.- 09452729442
shailendra parashar
November 14, 2010 at 5:15 pm
प्रिये यसवंत जी
आपका हम दिल से धन्यबाद देते है की आपने हमारे जैसे सच्चे पत्रकार भाइयो के लिए लिखने की जगह दी और आगे भी साथ दे रहे है आप बस साथ देते रहिये इतिहास हम likh देंगे सर ?
SHYAM TYAGI
November 15, 2010 at 4:31 am
niceeeeeeeeee Place for video
सुरेन्द्र जोशी
November 15, 2010 at 9:11 am
बहुत बहुत बधाई…..आदरणीय यशवन्त भाई…..काफी लम्बे समय से जो कमी महससू की जा रही थी…उसे आपने इस वीडियो पोर्टल के जरिये पूरी कर दी है…वाकई कई ऐसी अहम खबरे होती है जो असल में खबर होने के बावजूद लोगो तक नही पहुंच पाती है….ऐसे में बी4एम का वीडियो पोर्टल देश और दुनिया को खबरो के साथ साथ खबरो के कई अनछुये पहलूओ से भी रूबरू करवायेगा….एक बार फिर दिल से बधाई……
सुरेन्द्र जोशी,केकडी [अजमेर] 9414004998
pankaj
November 15, 2010 at 7:35 pm
चलो अब दारू पीने के लिए नया रोजगार मिल गया।
suresh mishra
November 16, 2010 at 5:11 am
yashwant ji namaskar,
chale the to shayad akele thhe, lekin aaj aapke saath kitani fauj hai, aap ko bhi pataa nahi hoga. naye portel ke liye badhayi aur shubhkamanayen……. suresh mishra, auraiya
suresh mishra
November 16, 2010 at 5:15 am
yashawant ji namasskar, badhayi,
suresh mishra
vivek chandra
November 16, 2010 at 8:30 am
बधाई…..
Ramkishore Pawar
November 17, 2010 at 1:12 pm
Aaj Bakara ed hai
patarkar to hamesa se bakara banta chala aa raha hai
Aapako Wedo Bakara kahe Aacha nahi lagega
ab aap hi tay kare kee aap hai kis bala ka nam ….!
Ramkishore Pawar
Bakara Betul Ka