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इलाहाबाद में विजय भैया जैसा कोई नहीं

: श्रद्धांजलि : मेरी विजय भैया से मुलाकात २००० में हुई. तब मैंने पत्रकारिता की दहलीज पर कदम रखा ही था. मैंने इलाहाबाद में यूनाइटेड भारत ज्वाइन किया.

<p style="text-align: justify;">: <strong>श्रद्धांजलि</strong> : मेरी विजय भैया से मुलाकात २००० में हुई. तब मैंने पत्रकारिता की दहलीज पर कदम रखा ही था. मैंने इलाहाबाद में यूनाइटेड भारत ज्वाइन किया.</p> <p>

: श्रद्धांजलि : मेरी विजय भैया से मुलाकात २००० में हुई. तब मैंने पत्रकारिता की दहलीज पर कदम रखा ही था. मैंने इलाहाबाद में यूनाइटेड भारत ज्वाइन किया.

वहां पर मुझे क्राइम बीट पर लगा दिया गया. पहले ही दिन मुझे पोस्टमार्टम हाउस रिपोर्टिंग के लिए भेजा गया. इक्तेफाक से मेरी पहले दिन स्वरुपरानी अस्पताल में विजय भैया से पहली मुलाकात हुई. उन्होंने मुझसे पूछा कि कहाँ से हो और कब ज्वाइन किया? एक बार तो मैं भी सन्न रह गया कि आखिर यह कौन साहब हैं जो मुझसे इतनी पड़ताल कर रहे हैं. बाद में जब अन्य सहयोगियों से इनका परिचय पता चला तो मैंने जाना कि यह विजय प्रताप सिंह जी हैं जो उस समय नए-नए टाइम्स ऑफ़ इंडिया अखबार में आये हैं.

उस दिन विजय भैया ने पहली ही मुलाकात में मुझसे मेरा मोबाइल नंबर माँगा और कहा कि खबरों के लिए टच में रहना. उस दिन के बाद मेरी रोज विजय भैया से फ़ोन पर खबरों को लेकर बात होने लगी. उन्होंने मुझे पूरा सहयोग देना शुरू कर दिया. कहा कि मन लगा कर काम करना. उनके बात करने का अंदाज और स्वभाव, दोनों ही मुझे भा गया. फिर हम दोनों के बीच एक अच्छी दोस्ती की शुरुआत हुई.

दोस्ती के साथ-साथ बड़े भाई और छोटे भाई का रिश्ता भी डेवलप हुआ. मैं विजय भैया को अपने बड़े भाई से भी ज्यादा मानने लगा. पिछले कई सालों में मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा. जब भी मुझे कोई परेशानी होती तो विजय भैया मेरे साथ हमेशा खड़े रहते. मेरे हर काम में मुझे उनका हमेशा सहयोग मिलता रहा. उनका हाथ मेरे सर पर हमेशा एक बड़े भाई के बराबर रहता. वह एक जिन्दादिल इंसान थे. इलाहाबाद की मीडिया में शायद ऐसा व्यक्ति मैंने कभी नहीं देखा जो किसी भी पत्रकार की मदद के लिए हरवक्त खड़ा रहता हो और किसी भी समय बुलाने पर आ जाये, चाहे रात हो या दिन.

विजय भैया का इस तरह से अलविदा कह देना मेरे लिए सबसे दुखद है, क्योंकि एक बड़े भाई का हाथ मेरे सर से हमेशा के लिए हट गया. एक ऐसा पत्रकार जिसने कभी भी अपनी जिंदगी में हारना नहीं सीखा था और दूसरों को भी एक नयी दिशा दिखाता रहा, ऐसे विजय भैया भले ही आज हमारे बीच न हों लेकिन उनकी यादें हमेशा उपस्थित रहेंगी, उनकी याद दिलाती रहेंगी. और अब ऐसा विजयी विजय कभी भी इलाहाबाद की पत्रकारिता में ढूंढ पाने पर भी शायद न मिले. विजय भैया अपने पीछे अपने परिवार को छोड़ गए हैं जिसमें उनकी पत्नी, पांच साल का बेटा यश और ८ महीने की प्यारी सी बिटिया अध्या हैं. अनुरोध है कि हम और आप दुःख की घड़ी में उनके परिवार को सहारा दें ताकि उनके परिवार को कोई तकलीफ न हो.

लेखक दीपक गंभीर इलाहाबाद के युवा व प्रतिभाशाली मीडियाकर्मी हैं.

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0 Comments

  1. Ashish Rai

    July 27, 2010 at 11:13 am

    sahi hai deepak ..vijay p singh aisey hi they allahabad ka shaayad hi koi media kermi hoga jis ki madad vijay p singh ney na ki ho..we always miss v.p singh…

  2. ASHISH TIWARI

    July 31, 2010 at 2:03 pm

    dear brother Gambhir….. really u wrote a heart touching artical on vijay bhai…… he was really a dynemic and honest KALAM KA SIPAHI…..I am lucky because i spend some time with that great personality……. why not we start a yearly award on latew v p sing for young jurenalist in allahabad…….we have to do someting memorable for that personality…….hope u will take step frst…..ashish …….ETV ALLD

  3. Deepak Gambhir

    July 31, 2010 at 7:12 pm

    Dear Ashish Bhai…! I m very happy 2 see ur cmnt..! n U r rgt…we shud start n think abt dis ..! Let me dicuss this thing wid our others collageus. I m really thankful 2 u..dat u have written a g8 cmnt on vijay bhai..! Hum sab ko unki yaadon ko jinda rakhna hoga..!

  4. bhuvnesh

    August 11, 2010 at 8:27 am

    Deepak mere dost,
    vijay bhaiya jaisa na to koi tha aur naa hi hoga kyonki aise log Bhagwan ke bheje farishte hote hain jinhe wo jaldi bula leta hai Insaan ko yah seekh dene ki ‘dekh aise bhi bande hote hain aur agar koowat hai to aisa ban kar deekha’

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