गांव से लौटा (1) : पिछले दिनों गांव गया था. ढेर सारी चीजें-अनुभव-खट्टे-मीठे संस्मरण साथ लेकर दिल्ली वापस आया हूं. पर सबसे ज्यादा हतप्रभ मैं लौटते वक्त वाराणसी रेलवे स्टेशन पर हुआ. ‘गरीब रथ’ ट्रेन पकड़ने के लिए प्लेटफार्म पर पहुंचा तो गाड़ी स्टेशन पर लगने में देरी को देखते हुए प्लेटफार्म पर टहलने लगा. दो गरीब बच्चियां, जो स्टेशन पर कूड़ा-बोतल आदि बीनने का काम करती हैं, प्लेटफार्म पर एक जगह बैठे हुए आपस में बतियाने में जुटी हुईं थीं. उत्सुकता वश मैं उनके पास पहुंचा. जामुन खरीदकर खा रहा था मैं.
उनके पास गया तो उनके हाथ में दो-दो जामुन धरे और उनका हाल जानने लगा. अचानक मेरी निगाह एक बच्ची के हाथ पर गई जो एक शीशी हाथ में दबाए थी. मैंने उससे वह शीशी दिखाने को कहा तो वह उसे छिपाने लगी. मेरी उत्सुकता और बढ़ी. मैंने उससे प्यार से शीशी के बारे में पूछा तो उसने बताया कि यह पीने की चीज है. मैं पूछा कि पीने से क्या होता है तो वह बोली- इससे हम लोग यहां तेज-तेज चलने लगते हैं और इस पार से उस पार, पूरे प्लेटफार्म पर चक्कर लगाकर काम निपटा देते हैं. मैंने शीशी का दाम पूछा तो उसने 8 रुपये बताए. मैंने उसे दस का नोट थमा दिया और शीशी देने का अनुरोध किया. उसने आनाकानी की. थोड़ी डरी लग रही थी.
उन बच्चियों के दांत देखकर स्पष्ट हो रहा था कि ये गुटखा-तंबाकू भी खाती हैं. मैंने उन्हें ‘रजनीगंधा-तुलसी’ गुटखा देने का प्रलोभन दिया, जो उस वक्त मेरे पाकेट में था. दस रुपये का नोट और रजनीगंधा-तुलसी लेकर उस लड़की ने वह शीशी मुझे दे दी. शीशी पर लिखा था- ‘kores Eraz-ex diluter net 15ml’. लड़कियों ने जब रजनीगंधा में तुलसी मिलाकर आपस में बांटकर खाना शुरू किया तो तभी मैंने उनकी एक छोटी सी वीडियो बना ली. बाद में एक वीडियो और बनाया जिसमें एक महिला उन बच्चियों को कोई संदेश देते हुए कूड़ा बीनने के लिए प्लेटफार्म पर टहल रही है.
दोनों बच्चियों की उम्र बमुश्किल 10 से 14 साल के बीच में रही होगी. कपड़े-लत्ते बेहद गंदे. बातचीत चली तो एक ने बताया कि उसका कोई नहीं है. मां-पिता दोनों मर गए. कोलकाता में वह रहती थी. कोरेक्स उन्हें कौन देता है, इस सवाल पर उसने बताया कि प्लेटफार्म नंबर एक पर एक भैया देते हैं. दूसरी लड़की ने बताया कि उसकी मां भी यहीं कूड़ा बीनती है. इन लड़कियों पर ढेर सारे लोगों की नजर पड़ती होगी. लेकिन किसी को भी ये सुध नहीं कि इनका पुनर्वास किया जाए. इन्हें पढ़ाया लिखाया जाए.
सरकारी योजनाओं की बंदरबांट और लूट के इस दौर में हाशिए पर खड़े लोगों के बच्चे अभावों के कारण नशेड़ी, बिगड़ैल, अपराधी बन जाते हों तो इसे त्रासदी ही कहेंगे. अच्छे कपड़े पहने और खाए-अघाए लोगों की प्लेटफार्म पर भीड़ को देखकर लगता रहा कि समानता की हम चाहें जितनी बातें कर ले, जब कुछ करने की बात आती है तो न सिर्फ सरकारें बल्कि हम लोग भी नजरें बचा कर आगे बढ़ जाने में ही भलाई समझते हैं. दुर्दांत गरीबी की ट्रेजडी के तेजी से पसरने और माल कल्चर के खाए-अघाए लोगों में सामाजिक मसलों पर संवेदनहीनता के लगातार बढ़ने से आने वाले कल में कोरस स्प्रिट पीते बच्चे-बच्चियों की तादाद ज्यादा हो सकती है.
आइए, इन दोनों वीडियो को यहां देखें. ये मोबाइल से लिए गए हैं, सो इनकी क्वालिटी को नजरअंदाज करें-
aditya
June 13, 2010 at 6:48 am
bhai yahi to india ka hal hai, kisi ko khud se fursat ho to inki khabar le.yahi hai india ka asli roop.
अभिषेक
June 13, 2010 at 11:49 am
ये लड़कियां कोरेक्स नहीं, कोरस डायल्यूटर पीती हैं यशवंत भाई। कोरेक्स तो खांसी की दवाई भर है। ये लड़कियां जो पीती हैं वह शुद्ध स्प्रिट है जो टाइप करते समय अशुद्धियों पर लगाए जाने वाले व्हाइटनर को डाइल्यूट (पतला) करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। कुछ ही दिनों में काल के गाल में समा जाएंगी यह जहर पी कर।
sanjay sen sagar
June 13, 2010 at 5:43 pm
हाँ यशवंत जी किसी को भी ये सुध नहीं कि इनका पुनर्वास किया जाए…
सब हमारी तरह ही है इनका वीडियो बना अपना काम निकाल कर चल देते है..यह तो चलता ही रहता है…
संजय सेन सागर
जय हिन्दुस्तान – जय यंगिस्तान
विकास मिश्र
June 13, 2010 at 6:09 pm
यशवंत भाई
हकीकत केवल इतनी नहीं है कि ये लड़कियां कोरेक्स पीती हैं और कचरा बीनती हैं। बड़ी हकीकत तो यह है कि शाम का धुंधलका जब काली रात के रूप में गहराता है तब नशे में चूर कर दी गर्इं इन लड़कियों की बोटियां नोचने वाले गिद्ध रेलवे प्लेटफॉर्म के सुदूर कोने में खूब मंडराया करते हैं। केवल वाराणसी ही नहीं, पटना से लेकर मुंबई तक हालात ऐसे ही हैं। जबलपुर स्टेशन पर ऐसे ही एक रैकेट पर मैंने स्टोरी भी करवाई थी और तब इस हकीकत से रूबरू हुआ था कि इन लड़कियों को नशे का इतना आदि बना दिया जाता है कि इसके बदले वे अपना शरीर भी बेचने को तैयार हो जाती हैं। कोरेक्स तो प्राइमरी डोज है, बाद में इन लड़कियों को अफीम और चरस तक की लत लगा दी जाती है। रेलवे के आला अधिकारियों से लेकर जीआरपी के जवान तक को खबर होती है लेकिन कोई कुछ नहीं करता क्योंकि लड़कियां रेलवे की संपत्ति नहीं हैं कि जिन्हें कोई छेड़े तो रेलवे नाराज हो जाए। …और रही सरकार की बात तो हमारे देश की सरकार कृत्रिम गर्भाधान केंद्र से लेकर मत्स्य पालन तक के लिए विभाग खोलकर बैठी है। उसके पास इतना काम है कि ऐसी लड़कियों की सुध कौन ले?
विकास मिश्र
Ashok
June 14, 2010 at 2:46 am
संपादक जी आप बार बार कोरेक्स लिख रहे हैं और खुद ही कह रहे हैं की शीशी पर कोर्स लिखा था जो पेपर वहित्नर में मिलाया जाता है इसे अक्सर कर कपडे पर डालकर सुंघा जाता है जब की कोरेक्स खांसी की सिरप है जिसे पिया जाता है अक्सर इस तरह के बच्चे और कॉलेज छात्र भी इन दोनों चीजो को इस्तेमाल करते हैं /
chandrabhan yadav
June 14, 2010 at 3:14 am
sirji yh hal to purab ke kisi bhi station pr dekh sakte ho.bd tarika badala hoga. kisi ke hath me gutaka to kisi ke pan. jara gaur karen to tet me roti ki jagah milegi daru. roti nahi milati pr daru milna aadan hai…kabhi station pr ajma ke dekho
saideep
June 14, 2010 at 3:17 am
bhai yaswant ji -Namaskar
Desh ke jyadater station ka bura haal hai bacche kishoravastha me nase ke aadi ho rahe hai aapne iska video sarvajanik kiya state News par ise lagatar hamne dikhaya hai Lekin station manager aakhe bandh kar baite rahte hai yah police ka kaam hai kahkar itisri kar lete hai.
samaj ka vikrit swaroop hai dunia me desh ki chavi ka kise kyaal hai.
baagwan bachaye aise visual se jo disha ke saath dasha ka bakhan karte hai. [email protected]
Dilip Batu
June 14, 2010 at 6:46 am
यशवंतजी इस प्रकार की घटनाऐं वाकई चिंताजनक है, मध्यप्रदेष के मन्दसौर जिले के पिपलिया स्टेशन पर भी हमने पांच वर्श पूर्व भी देखी है, कि ट्रेनों में झाड़ू निकालने वाले लड़के कोरेक्स (व्हाईटनर) का इस्तेमाल करके नश करते है और इसकी हमने अच्छी स्टोरी जिला स्तरीय मीडिया में चलवाई लेकिन उसके बाद भी कोई कारगर कदम इस दषा में उठते नही दिखे, आपके द्वारा इस प्रकार की स्टोरी भड़ास4मीडिया में चलाई आप धन्यवाद के पात्र है लेकिन केवल स्टोरी पब्लिश के बजाय हमें रेल्वे प्रशसन और कोरेक्स मैन्यूफ्रेक्चर को भी हिदायत देना चाहिये कि वो अपना भी कुछ कर्त्तव्य समझे, मीडिया को बच्चों से इस नषे को दूर करवाने के लिए देश व्यापी आंदोलन की भी आवष्यकता है ।
दिलीप बाटू, ब्रेन मास्टर पिपलिया मण्डी, जिला मन्दसौर म.प्र. मोबाईल. 9329791115, 9424098225
Dilip Batu
June 14, 2010 at 6:48 am
यषवंतजी इस प्रकार की घटनाऐं वाकई चिंताजनक है, मध्यप्रदेष के मन्दसौर जिले के पिपलिया स्टेषन पर भी हमने पांच वर्श पूर्व भी देखी है, कि ट्रेनों में झाड़ू निकालने वाले लड़के कोरेक्स (व्हाईटनर) का इस्तेमाल करके नषा करते है और इसकी हमने अच्छी स्टोरी जिला स्तरीय मीडिया में चलवाई लेकिन उसके बाद भी कोई कारगर कदम इस दषा में उठते नही दिखे, आपके द्वारा इस प्रकार की स्टोरी भड़ास4मीडिया में चलाई आप धन्यवाद के पात्र है लेकिन केवल स्टोरी पब्लिष के बजाय हमें रेल्वे प्रषासन और कोरेक्स मैन्यूफ्रेक्चर को भी हिदायत देना चाहिये कि वो अपना भी कुछ कर्त्तव्य समझे, मीडिया को बच्चों से इस नषे को दूर करवाने के लिए देष व्यापी आंदोलन की भी आवष्यकता है । दिलीप बाटू, ब्रेन मास्टर पिपलिया मण्डी, जिला मन्दसौर म.प्र. मोबाईल. 9329791115, 9424098225
Shailendra Kumar Singh
June 14, 2010 at 10:30 am
apne jin chijon sj khulasa kiya hain waki me yeh bhart ki durdasa ki or
manish kumar pandey
June 15, 2010 at 7:22 am
written by manish;15june,2010 yehi har koderma me bhi dekna ko milegi lakin ise par nha toh sarkar koa dyan hai nha toa humjanta koa kya yahi badlta bharat hai manish kumar pandey
amit agarwal budaun
June 23, 2010 at 8:41 am
aaj ki yuva pidi nasha karne k naye naye tarike khoj rahi hai apne lakshya aur disha se bhatke log hi aisa karte hai yeh21th sadi ka vhabishya hai
HUSSENI
October 30, 2010 at 7:37 pm
:(: o :'(
HUSSENI
October 30, 2010 at 7:38 pm
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