Connect with us

Hi, what are you looking for?

आयोजन

संवेदनहीन विनोद बंधु के पास कोई जवाब है?

ट्रक-टैम्पो भिड़े (तीन कॉलम, पेज-3), युवा कांग्रेस का चक्का जाम (फोटो सहित 2 कॉलम, पेज-3), इसी हेडिंग के साथ एक और खबर (3 कॉलम, पेज-5), जागरुकता से जनसंख्या पर नियंत्रण संभव (फोटो सहित 2 कॉलम, पेज-4), बाबा स्वामी रामदेव के कार्यक्रम को ले बैठक (2 कॉलम), किसानों को दी खाद व कीटनाशक की जानकारी (फोटो सहित 2 कॉलम). 29 अगस्त 2010 को भागलपुर से प्रकाशित हिंदुस्तान के पूर्णिया संस्करण में ऐसी कई खबरें थीं पर वो नहीं थी जिसे देखने को हम कई साथियों ने अखबार खरीदा।

<p style="text-align: justify;">ट्रक-टैम्पो भिड़े (तीन कॉलम, पेज-3), युवा कांग्रेस का चक्का जाम (फोटो सहित 2 कॉलम, पेज-3), इसी हेडिंग के साथ एक और खबर (3 कॉलम, पेज-5), जागरुकता से जनसंख्या पर नियंत्रण संभव (फोटो सहित 2 कॉलम, पेज-4), बाबा स्वामी रामदेव के कार्यक्रम को ले बैठक (2 कॉलम), किसानों को दी खाद व कीटनाशक की जानकारी (फोटो सहित 2 कॉलम). 29 अगस्त 2010 को भागलपुर से प्रकाशित हिंदुस्तान के पूर्णिया संस्करण में ऐसी कई खबरें थीं पर वो नहीं थी जिसे देखने को हम कई साथियों ने अखबार खरीदा।</p> <p>

ट्रक-टैम्पो भिड़े (तीन कॉलम, पेज-3), युवा कांग्रेस का चक्का जाम (फोटो सहित 2 कॉलम, पेज-3), इसी हेडिंग के साथ एक और खबर (3 कॉलम, पेज-5), जागरुकता से जनसंख्या पर नियंत्रण संभव (फोटो सहित 2 कॉलम, पेज-4), बाबा स्वामी रामदेव के कार्यक्रम को ले बैठक (2 कॉलम), किसानों को दी खाद व कीटनाशक की जानकारी (फोटो सहित 2 कॉलम). 29 अगस्त 2010 को भागलपुर से प्रकाशित हिंदुस्तान के पूर्णिया संस्करण में ऐसी कई खबरें थीं पर वो नहीं थी जिसे देखने को हम कई साथियों ने अखबार खरीदा।

खबर के लिए पन्ने पलटते रहे। पर खबर नहीं दिखी। पूर्णिया में दिवंगत पत्रकार विनय तरूण को श्रद्धांजलि देने के लिए कार्यक्रम हुआ लेकिन कई पत्रकारों को वहां झांकने तक की फुर्सत नहीं मिली। अफसोस कि दैनिक जागरण समेत दूसरे स्थानीय अखबारों से भी ये खबर नदारद रही। बाकी की बात छोड़ भी दें लेकिन हिंदुस्तान की इस हरकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भले ही हिंदुस्तान के उप स्थानीय संपादक और साथी इसे कोई अपराध न माने लेकिन एक अपराध हो चुका है, भले ही किसी संविधान में उसकी कोई धारा दर्ज नहीं।

पत्रकारों की बात छोड़ भी दें लेकिन एक आम पाठक को भी उस वक्त जरूर कोफ्त होगी जब यह पता चलेगा कि वो दिवंगत पत्रकार कोई और नहीं बल्कि दैनिक हिंदुस्तान, भागलपुर में काम करने वाला एक संपादकीय साथी था। उसकी मौत संस्थान की नौकरी छो़ड़ देने या अखबार से हर तरह का नाता तोड़ देने के बाद नहीं हुई थी… वो ऑफिस पहुंचने की आपाधापी में ही 22 जून 2010 को एक ट्रेन हादसे में मारा गया। अफसोस हिंदुस्तान के संपादक विनोद बंधु समेत उनके साथ काम करने वाले तमाम साथियों ने इस युवा पत्रकार को महज दो महीने में ही बिलकुल पराया कर दिया, इतना पराया कि उनके लिए श्रद्धांजलि कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए दो पल भी न मिले। संपादक महोदय की व्यस्तता का आलम ये रहा कि उन्होंने तमाम स्रोतों से इस कार्यक्रम के आयोजन की सूचना मिलने के बावजूद किसी नुमाइंदे को भेजना जरूरी नहीं समझा।

28 अगस्त 2010 को पूर्णिया के बीबीएम हाईस्कूल में 100 से ज्यादा लोगों का जमावड़ा लगा। दिल्ली, पटना, रांची, जमशेदपुर, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, सहरसा, सुपौल और फारबिसगंज समेत कई जगहों से पत्रकार साथी विनय तरूण को याद करने पहुंचे। कोई 1300 किलोमीटर की यात्रा कर यहां पहुंचा तो किसी ने 300 किलोमीटर का सफर तय किया… कोई मोटरसाइकिल पर हिचकोले खाते 100-125 किलोमीटर चलकर एक सीधे-सादे सच्चे पत्रकार को श्रद्धांजलि देने पहुंचा लेकिन पता नहीं ऐसी क्या बात थी कि हिंदुस्तान के साथी एक से डेढ़ किलोमीटर का फासला भी तय नहीं कर पाए।

विनय की याद में आंसू बहते रहे लेकिन इन पत्रकारों ने कलेजा कुछ ऐसा सख्त कर लिया कि ऑफिस में चुनावी जमा खर्च का हिसाब किताब होता रहा। सबसे ज्यादा दुखद बात तो ये है कि ये सब हिंदुस्तान के भागलपुर संस्करण के उप-स्थानीय संपादक विनोद बंधु की मौजूदगी में हुआ। जी हां जिस वक्त पूर्णिया के वयोवृद्ध साहित्यकार भोलानाथ आलोक, पूर्णिया आकाशवाणी के पूर्व केंद्र निदेशक विजयनंदन प्रसाद समेत तमाम पत्रकार, बुद्धिजीवी और घर परिवार के लोग एक कमरे में युवा पत्रकार विनय तरुण की मौत का मातम मना रहे थे, उसी वक्त अपने मातहत विनय तरूण की मौत का गम भुला चुके संपादक विनोद बंधु पूर्णिया में ही मीटिंग कर रहे थे।

संपादक महोदय की संवेदनशीलता का आलम ये रहा कि सुबह 11 बजे से लेकर शाम के 5 बजे तक चलने वाले श्रद्धांजलि समारोह के तीन सत्रों में से किसी एक सत्र के लिए भी वो दो पल का वक्त नहीं निकाल पाए। जितनी देर कार्यक्रम चला, शायद उतनी देर मीटिंग भी चलती रही। अन्यथा यकीन नहीं होता कि कोई अपने साथी को इस तरह भी भुला सकता है। यकीन नहीं होता कि एक संपादक इतना कठोर हृदय भी हो सकता है। यकीन नहीं होता कि दुनिया का दर्द अखबारों के पन्ने पर उकेरने वाली बिरादरी अपने घर के अंदर बह रहे आंसुओं की धारा से इस कदर आंख मूंद सकती है।

लेखक चंद्रकिशोर जायसवाल हिंदी के ख्याति लब्ध साहित्यकार हैं. उन्होंने कथा साहित्य को अपनी कई कृतियों से धन्य किया है. आम तौर पर प्रचार से दूर रहने वाले जायसवाल जी को फणीश्रेवरनाथ रेणु का उत्तराधिकारी माना जाता है. हालांकि उनकी शैली रेणुजी की शैली से थोड़ी भिन्न है, मगर उन्होंने भी एक अंचल को केंद्र बनाकर और आम लोगों के जीवन के कष्ट और उनकी हंसी को अपनी रचना का विषय बनाकर कई अनमोल कृतियां लिखी हैं. उनकी रचनाओं में शब्दाडंबर कम और भावों की प्रधानता अधिक हैं. विनय के साथियों के आमंत्रण पर इस कार्यक्रम में उनकी भागीदारी उन्हें जानने वालों के लिये आश्चर्य का विषय है, क्योंकि आम तौर पर वे सार्वजनिक जीवन से खुद को अलग रखने और अपने एकांत में खुद को सृजन प्रक्रिया से जोड़े रखने के हिमायती माने जाते हैं. वे न सिर्फ इस कार्यक्रम में पूरे समय तक बैठे रहे बल्कि कार्यक्रम के बाद एक मसिजीवी संपादक के इस व्यवहार से इतने आहत हुए कि उन्होंने तत्काल यह प्रतिक्रिया लिखकर प्रेषित कर दी.

Click to comment

0 Comments

  1. डॉ. धनाकर ठाकुर

    August 31, 2010 at 8:35 am

    रांची ३१ अगस्त २०१०
    २२ जून २०१० को एक रेल दुर्घटना ने एक होनहार सामाजिक कार्यकर्ता विनय तरुण को को को हमारे बीच से उठा दिया जो पेशे से एक पत्रकार था और इसलिए उसके संस्थानको उसके लिए आयोजित कार्यक्रममे भरे दिलसे लेकिन सबसे आगे आना चाहिए था.
    मैं तो यह सोचता था की उसके नाम पर दिए जानेवाले पुरस्कार की चयन मंडली का अध्यक्ष भागलपुर हिन्दुस्तानके संपादक को ही हम बनायेंगे.
    मुझे विनयने अपने पुराने संपादक से मिलाया था २६.१.२०१० को और लगा था की वे उसे चाहते भी हैं दिल से .
    एक बार मैं अभीके संपादक विनोद बंधुसे भी मिला हूँ.
    मुझे ऐसा लगता है कि युवा पत्रकार जगतमे एक अच्छे संगठन कि आवश्यकता है ,उनमे बहुतों के मनमे समाज के लिए कुछ करने कि ललक है अतः जो पुराने संपादक हैं उनमे जिनके मनमे पत्रकारिता को एक पेशा नहीं सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाने की इच्छा है उन्हें आगे आकर
    युवा साथियों का हौसला बढ़ाना चाहिए.
    मैं एक चिकित्सक हूँ पर मेडिकल पत्रिकाका १९९२ से संपादक हूँ और १९९४ से एक मैथिलि पत्रिकाका जो दोनों त्रैमासिक हैं ५०००-५००० छपती हैं; स्तम्भ लेखन भी दैनिक रांची एक्सप्रेस में १९९३-२००० के बीच किया है और इसलिए मुझे इस पेशेके लोगों से सहानुभूति सदैव रही है.
    डॉ. धनाकर ठाकुर

  2. Bhupendra Pratibaddh

    August 31, 2010 at 8:49 am

    Renu raah ke pathik Chandra Kishor ji yah Bhartendu Harishchandra, Premchand, Ganesh Shankar Vidyarthi yaa Paradkar kaal ki nahin Kalyug ke punjishahon ki patrakarita hai. patrakar missionary nahin mulazim hote hain. mulazim ke saath kaisa bartav hota hai aap jaise manishiyon se chupa nahin hai. akhir sampadak bhi to thodi unchi pithika wala mulazim hi hai. ab aap hi batayen ghora agar ghas se dosti karega to marega ki nahin? ab sampadak samvedna jataye ya settlement kare. mana ki vinod bandhu ji ne bhi kam kagaz kala nahin kiya goga, lekin bhayi umra, avasar aur waqt ka bhi kuchh takaza hota ha ki nahin! aise mein unpar tohmat chaspan karna uchit nahin thahraya ja sakta. rahi baat Vinay ke liye do ansu bahane ya shoksabha mein aane ki to (divangat Vinay se kshama prarthana ke saath ) aajkal patrakar bandhu jis tarah taraju ke mendhak bane huye hain aise mein samvedana ya sarokaar ka judna kahan tak mumkin ho pa raha hai, swayam aur sabke vichar ka vishay hai. after all Vinay ki shoksabha mein itna bada jamavada yah darshata hai ki loktantr ke jarjar ho rahe chauthe khambhe ki chinta har star par hai. dusare shabdon mein kahen to burayi ke khilaf khadi hone wali shaktiyon ko hathiyar dalna gwara nahin hai. ise hi to kahte hain reasons for hope.

  3. akhtar

    August 31, 2010 at 2:14 pm

    vinod bandhu ke pas koi jawab ho hi nahi sakta. kyoki we kewal samwedan hin hi nahi ati samwedanhin hain.

  4. pushyamitra

    September 1, 2010 at 6:49 am

    कुछ मित्रों ने मेल के जरिये इस मसले पर अपनी प्रतिक्रिया प्रेषित की है…

    मैं यहां उनका उल्लेख कर रहा हूं…

    विकास संवाद के साथी और विकास केंद्रित पत्रकारिता के एक महत्वपूर्ण स्तंभ सचिन जैन लिखते हैं…

    शेर बचाने की पहल हो रही है,
    गिद्ध बचाने की पहल हो रही है,
    लोग पेड़ बचा रहे हैं,
    अपने आशियाने के लिए हमने जमीन का टुकड़ा भी बचाया है,
    मेरे पडोसी ने कुत्तों के लिए लिए शानदार आशियाना बनवाया है,
    अब सम्पादक बचे ही कितने हैं हमारे आस पास,
    इस प्रजाति को बचाने के लिए भी एक जतन चाहिए दोस्त…..

    यह पत्रकारिता के लिए दुखद पहलु है. ऐसा नही होना चाहिय.

    सुदीप कुमार
    पत्रिका समाचारपत्र
    भोपाल एमपी

    ख़बरों से खेलते-खेलते संवेदनाएं भी मर जाती हैं शायद, संवेदनाओं के मर जाने का मतलब आदमी का मर जाना है.
    – राकेश
    विकास संवाद, भोपाल

    kitni dukhad baat hai ki puri dunia se behtar acharan, samvedansheelta aur naitikata ki ummed karwane wale kabhi apne girebaan mein nahhi jhakte. maine vinay ji ko kabhi na dekaha na unki kahabare ya aalekh padhe… mein samajh sakti hun ki wo imaandaar, samarpit aur sachche haonge… kyoki imaandaar, samarpit aur sachche logo ke saath duniya aisa hi suluk karti hai……

    Nupur Dixit
    Sub Editor
    Patrika

    इस अद्भुत और हिला कर रख्देनेवाली कविता और सन्देश के लिए आप सभी का शुक्रिया/
    निस्संदेह तरुण का शारीर आज हमारे बिच नही है लेकिन उनके साथियों और महँ सम्पादकजी जैसे लोग तो जिन्दा शरीर की मरी हुई आत्माएं हैं और इनसे क्या उम्मीद कर सकते हैं? ये संवेदना का मामला है या नही पर इतना तो है कि यदि विनय तरुण को भुला दिया गया है तो भुलाने वालों को कौन याद रखेगा इस पर भी विचार होना चाहिए/
    आनंद जाट

  5. Aditya kumar jha

    September 2, 2010 at 3:39 am

    जयसवाल साहब सस्ती लोकप्रियता के लिये आपने जो हथकंडा अपनाया है इसके लिये आप अपने आप का पीठ कैसे थपथपायेंगे वो तो आप ही जानिये। अब सवाल यह है कि अपने आप को रेणू के उतराधिकारी बताने वाले ये साहव ये तो बतायें कि साहित्य में आजतक आपकी क्या उपलाब्धि रही है ।वो अपने इस लेख में अपनी उपलब्धि भी लिख देते तो सभी जानते कि आप कलम के कितने बङे सिपाही हैं। विनोद बंधु पर आरोप लगाने से पहले उनके व्यक्तित्व के बारे में जान लेते तो अच्छा रहता। उनको आपके प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है।

  6. shankar

    September 3, 2010 at 6:33 am

    aditya ne apna parichay de diya hai… jaiswalji ko jo saksh nahin janta use vinod bandhu jaise log mahapurush najar aayen to isme afsos karne jaisee koi baat katai nahin hai. shabash aditya.

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You May Also Like

Uncategorized

भड़ास4मीडिया डॉट कॉम तक अगर मीडिया जगत की कोई हलचल, सूचना, जानकारी पहुंचाना चाहते हैं तो आपका स्वागत है. इस पोर्टल के लिए भेजी...

टीवी

विनोद कापड़ी-साक्षी जोशी की निजी तस्वीरें व निजी मेल इनकी मेल आईडी हैक करके पब्लिक डोमेन में डालने व प्रकाशित करने के प्रकरण में...

Uncategorized

भड़ास4मीडिया का मकसद किसी भी मीडियाकर्मी या मीडिया संस्थान को नुकसान पहुंचाना कतई नहीं है। हम मीडिया के अंदर की गतिविधियों और हलचल-हालचाल को...

हलचल

: घोटाले में भागीदार रहे परवेज अहमद, जयंतो भट्टाचार्या और रितु वर्मा भी प्रेस क्लब से सस्पेंड : प्रेस क्लब आफ इंडिया के महासचिव...

Advertisement