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आयोजन

‘हिंदुस्तान’ ने पूर्णिया को शर्मसार कर दिया

मेरी उम्र 78 साल है. ये उम्र मैंने अपने घर के बंद कमरों में नहीं काटी. पूर्णिया की तमाम साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से हर दिन का साबका रहा है. कचहरी चौक पर धरना-प्रदर्शन से लेकर छोटे-बड़े तमाम मंच पर सक्रिय रहा हूं.

<p style="text-align: justify;">मेरी उम्र 78 साल है. ये उम्र मैंने अपने घर के बंद कमरों में नहीं काटी. पूर्णिया की तमाम साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से हर दिन का साबका रहा है. कचहरी चौक पर धरना-प्रदर्शन से लेकर छोटे-बड़े तमाम मंच पर सक्रिय रहा हूं.</p> <p>

मेरी उम्र 78 साल है. ये उम्र मैंने अपने घर के बंद कमरों में नहीं काटी. पूर्णिया की तमाम साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से हर दिन का साबका रहा है. कचहरी चौक पर धरना-प्रदर्शन से लेकर छोटे-बड़े तमाम मंच पर सक्रिय रहा हूं.

जानता हूं कि खबरें कैसे बनती हैं और कैसे छपती हैं. ‘हिंदुस्तान’, ‘दैनिक जागरण’, ‘प्रभात खबर’, ‘राष्ट्रीय सहारा’ और ऐसे ही तमाम अखबारों में छपता रहा हूं. पत्रकारिता को लेकर खट्टे-मीठे अनुभव रहे हैं. उम्र और अनुभव का तकाजा कुछ ऐसा रहा कि कभी शाबाशी में पत्रकारों की पीठ ठोंकी तो कभी उनकी तीखी आलोचना भी की, लेकिन पिछले दिनों शहर में घटी एक घटना के बाद से बेचैन हूं, दुखी हूं, शर्मिंदा हूं- समझ नहीं आ रहा कि कैसे मन की पीड़ा व्यक्त करूं?

देश के नामी-गिरामी अखबार ‘हिंदुस्तान’ और उसके भागलपुर संस्करण के उप स्थानीय संपादक विनोद बंधु की एक करतूत ने पूरे पूर्णिया को शर्मसार कर दिया है. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है कि विनय तरुण भागलपुर ‘हिंदुस्तान’ से जुड़े थे, बावजूद इसके उनकी याद में आयोजित शोक सभा में न तो ‘हिंदुस्तान’ का कोई प्रतिनिधि आया और न ही एक लाइन खबर छपी. भागलपुर से प्रकाशित किसी भी संस्करण में विनय की इस श्रद्धांजलि सभा का जिक्र तक न था. हद तो ये है कि पूर्णिया संस्करण में भी ये खबर सिरे से गायब रही.

विभिन्न शहरों से आए पत्रकारों ने विनय तरूण की याद में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया लेकिन भागलपुर में तैनात उप स्थानीय संपादक विनोद बंधु ने इसमें शामिल होने से इंकार कर दिया. इतना ही नहीं पूर्णिया के तमाम साहित्यिक, सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़े लोगों को शर्मिंदा करते हुए विनोद बंधु पूर्णिया में मौजूद रहे और दफ्तर में ‘अनंत काल’ की मीटिंग चलती रही. ये मीटिंग आयोजन के छह घंटों तक तो शायद चली ही, उसके बाद भी इसका असर दिखता रहा. विनोद बंधु और उनके साथियों ने इतनी भी संजीदगी नहीं दिखाई कि कार्यक्रम को कवर करवा लिया जाए. दुख होता है कि हिंदुस्तान जैसे प्रतिष्ठित पत्र के किसी संस्करण की जिम्मेदारी संभाल रहा व्यक्ति इस कदर संवेदनशून्य भी हो सकता है.

ये दुख और गहरा तब हो जाता है जब उलाहने के बावजूद खबर नहीं छपती, बल्कि प्रेस रिलीज की डिमांड कर दी जाती है. दैनिक हिंदुस्तान के ब्यूरो चीफ अरुण से मैंने इस बाबत बात की तो उनका कहना था- क्या करते मीटिंग चलती रही. जब मैंने कहा कि भूल सुधार कर अगले दिन ये खबर ले सको तो ले लो, फिर भी उनका जवाब रूखा सा ही रहा. हालांकि प्रभात खबर और राष्ट्रीय सहारा ने एक दिन बाद 30 अगस्त 2010 को श्रद्धांजली सभा की खबर प्रकाशित की. इस सिलसिले में इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों को जरूर साधुवाद दूंगा कि उन्होंने पूर्णिया की थोड़ी बहुत लाज बचा ली. सहारा, ईटीवी, फर्स्ट न्यूज और कोसी आलोक ने कार्यक्रम का कवरेज कर ये जतला दिया कि संवेदना से रहित नहीं हैं पूर्णिया के पत्रकार.

28 अगस्त 2010 को विनय की याद में तीन सत्रों का कार्यक्रम हुआ और प्रथम सत्र की अध्यक्षता की जिम्मेदारी बिना मेरी सहमति के मुझे सौंप दी गई. उन बच्चों ने मुझ पर अपना अधिकार जमाया, पूर्णिया पर अपना अधिकार जमाया, उन्हें वाकई अपने शहर और अपनी माटी से लगाव है वरना मुझसे सहमति की औपचारिकता जरूर निभाई जाती. ये विनय का भी लगाव रहा होगा कि उसके दोस्तों ने पूर्णिया में ये आयोजन रखा, वरना जो मित्र पूर्णिया में जमा हुए वो भागलपुर, जमशेदपुर, रांची, पटना या दिल्ली में भी जमा हो सकते थे. विनय के साथियों में जो ऊर्जा मैंने देखी, उनके लिए ये नामुमकिन भी नहीं है. मैं विनय के साथियों को उनकी इस भावना के लिए शाबाशी देता हूं, सलाम करता हूं.

विनय तरूण पत्रकारिता की ही नहीं वरन पूर्णिया शहर की भी संभावना था. इस शहर ने मुझे भी बहुत प्यार दिया है और ये मेरे रग-रग में बसा है. ऐसे में युवा पत्रकार विनय तरूण की शोक में हुए इस आयोजन को लेकर ‘हिंदुस्तान’ की उदासीनता को कतई माफ नहीं कर सकता. अखबार के पन्नों में खबरें कल भी छपती थीं… आज भी छपेंगी और ये सिलसिला बदस्तूर जारी रहेगा. इसके साथ ही ये सवाल भी हर दिन उठता रहेगा कि आखिर खबरों के लाल को खबरी दुनिया ने अखबार (दैनिक हिंदुस्तान) में दो पल का उसका अपना कोना क्यों नहीं दिया?

लेखक भोलानाथ आलोक पूर्णिया के चर्चित कवि और साहित्यसेवक हैं. पूर्णिया बुजुर्ग समाज के अध्यक्ष हैं. पूर्णिया जिला ट्रेड यूनियन समन्वय समिति के भी अध्यक्ष हैं. वे पूर्णिया हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष रहे हैं..

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0 Comments

  1. Harendra narayan

    September 1, 2010 at 10:03 pm

    Vinay ko bhulna mere liye sambhaw nahi hai.pahli bar uske bulawe pe july 2000 me purnia gaya tha.chaliye print nahi to news channel n Bhadas ne hame suchit kiya. Baniyo ko journalist se jinda rahne tak mat hota hai…..,ye koi nai ghatna nahi..harendra

  2. P.Singh

    September 1, 2010 at 5:49 pm

    यशवंत जी, अब जिसकी खबरें नहीं छपेंगी वह आपके न्‍यायालय में अपील कर सकता है। यह आपने बढिया तरीका इजाद किया है। यह तो छपने के लिए शोक सभा का सहारा लेने जैसा हो गया।अगर इलेक्‍ट्रानिक चैनल अन्‍य समाचार पत्रों ने छाप ही दिया तो केवल हिन्‍दुस्‍तान नहीं छापा तो दुखडा लेकर बैठ गये। और सच्‍ची श्रदाजंलि है तो उसमें नाम छपवाने की इतनी उत्‍कंठा क्‍यों है। काम करने वाला मीडिया का इंतजार नहीं करता। और आप तो कम से कम इतने बडे संस्‍थान के बारे में छापने से पहले एक बार सोच लें।

  3. xyz

    September 2, 2010 at 5:07 am

    Aap ke dard mein har wo patrakaar shariq hai, jo (aksar ) qaabil to hota hai , par ta-umra nazarandaaz kiya jata hai , yahan tak ki marne ke baad bhi !
    Par bandhu *sahab* ye na samjhein ki *KURSI* humesha sath hoti hai ! AKHBAAR AUR NEWS CHANNELS mein KURSI char din ki chaandani ban chuki hai ! Ab ye baat ya to bandhu saahab jaan-te nahi ya phir jaan kar bhi maan-te nahi , warna aisi SAMVENDANHEENTA, wo bhi apne hi ek saathi ke saath, kattayee nahi dikhaate ! par

    Nasha kuch is kadar hua unko ki khud ko bhula baithe
    Dost ke janaaze ko RAAH-CHALTI baaraat samajh baithe !

    KYA KARENGE BHOLA JI , ye Duniya hai —- DIL TOD KAR HANSTI HAI !

  4. c. mukesh

    September 3, 2010 at 6:09 pm

    unhone apni bat kahi hai p.sing, aap ne jo likha hai batamiji hai, acha na lage to mat pado,par, is tarah ke comment na karo, bo bhi kisi bujurg ke liye, chma kare mujhe bura laga aap ka tarika.

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