Arvind Shesh : यकीन मानिए, मैं खुशी से रो पड़ा हूं…! केरल सूर्यानेल्ली की उस बहादुर लड़की को क्रांतिकारी सलाम, जिसने अकेले अपने बेहद कमजोर पृष्ठभूमि वाले परिवार के साथ पिछले अठारह सालों में न जाने किस-किस त्रासदी का सामना किया और आखिरकार अदालत को उसके सामने झुकना पड़ा। सोलह साल की उम्र में उसका अपहरण हुआ, साठ दिनों तक चालीस से ज्यादा बर्बर मर्दों ने उसके साथ बलात्कार किया, और मरणासन्न हालत में उसके घर के बाहर फेंक दिया।
उसमें एकाध इस देश की संसद में अहम पदों पर सुशोभित रहे। सबने उसे एक तरह के नरक की जिंदगी में डाल दिया था। लगातार डराना-धमकाना, राजनीतिक दखल से फैसलों पर असर डालना। एक समय केरल हाईकोर्ट ने पैंतीस में चौंतीस को बाइज्जत बरी कर दिया था। अगर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल एक अप्रत्याशित आदेश नहीं जारी किया होता तो शायद इन चौबीस लोगों को भी वही केरल हाईकोर्ट ने फिर से कठघरे में खड़ा कर दोषी नहीं ठहराया होता। लेकिन इस बीच एक "आदरणीय" आखिर बचे रहे।
जो हो, पैंतीस में चौबीस को भी उस बर्बर अपराध का दोषी घोषित होना और सजा मिलना इस देश की न्याय व्यवस्था के उम्मीद के कोनों पर भरोसा बनाए रखने में मदद करता है। उस लड़की के लिए लड़ाई लड़ने वाली केरल सीपीएम की महिला इकाई का शुक्रिया और बधाई। लेकिन इंसाफ की यह लड़ाई और उसका ताजा नतीजा उस लड़की के संघर्ष और जीवट का सबूत है, हासिल है। इसलिए उसे याद करके मैं हमेशा अपना सिर फख़्र से थोड़ा ऊंचा कर लूंगा। वह सचमुच मेरी भी हीरोईन है…
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पत्रकार अरविंद शेष के फेसबुक वॉल से.