Ashok Kumar Pandey : वे गांधी की हत्या करते हैं,वे बाबरी ढहा देते हैं, वे दंगों में बढ़ चढ़ के हिस्सेदारी करते हैं, वे उज्जैन में पीट पीट कर प्रोफ़ेसर की जान ले लेते हैं, वे कभी किसी लेखक पर हमला करते हैं कभी पेंटर पर, वे बनारस में अपने विरोधी पर हमला करते हैं, लखनऊ में अपने विरोधी की प्रेस कांफ्रेंस में गुंडे भेजकर हमला करवाते हैं….
वे आपकी शराफत का फायदा उठाते हैं. यूनिवर्सिटी के अपने राजनीतिक अनुभव से जानता हूँ कि वे तब तक ही हमला करेंगे जब तक उन्हें वापस हमले का डर न होगा. पुस्तक मेले में सुभाष गाताडे की किताब पर उन्होंने हंगामा मचाया तो हम तैयार थे कि एक पड़ी तो चार मारेंगे, इसलिए वे शोर मचा के रह गए.
"आप" में युवाओं की कोई कमी नहीं, गांधीवाद का मामला सिर्फ डंडे खाने के लिए नहीं है. पलट कर जवाब देना शुरू कीजिए, ये दिखाई भी नहीं देंगे.
ये हिटलर की नहीं जिया उल हक़ की औलादें हैं.
जिया उल हक़ की हिदुस्तानी औलादों को, एक धक्का और दो!
साहित्यकार अशोक कुमार पांडेय के फेसबुक वॉल से.