लगता है दैनिक जागरण में पुराने कर्मचारियों के दिन बहुत बुरे हैं, जो पुराने कर्मचारी इस बार की छंटनी का शिकार नहीं हुए, वो शुक्र न मनाएं कि उन पर अब कभी गाज नहीं गिरेगी। दैनिक जागरण की हालत और मंशा बता रही है कि ऐसे कर्मचारियों को एक दिन देर-सबेर बाहर होना ही है। संस्थान की मंशा कथित बड़ी सैलरी वाले लोगों को बाहर कर नए सस्ते लड़कों को अंदर करना है।
सूत्रों ने बताया कि दैनिक जागरण देहरादून के वरिष्ठ लोगों को फरमान सुना दिया गया है कि अभी तो छंटनी रुक गई है, लेकिन भविष्य में कोई भी कमजोर कड़ी इसका शिकार हो सकती है। इसलिए खुद को बाटम लाइन से उपर रखने का प्रयास करें। भविष्य में छंटनी का आधार ही होगा। जब यह फरमान सुनाया गया, तब इंक्रीमेंट और प्रमोशन का कोई जिक्र नहीं किया गया। ऐसे में जागरण के सभी कर्मचारी निराश और हताश हैं। खासकर बड़ी पारिवारिक और अन्य जिम्मेदारियों वाले कर्मी समझ नहीं पा रहे हैं कि किया क्या जाए। धूमिल भविष्य को लेकर हतोत्साहित जागरण कर्मी इन दिनों कुंठा और अवसाद में हैं। वे नई पीढ़ी को पत्रकारिता खासकर जागरण में न आने को प्रेरित कर रहे हैं। उन्हें अब इस बात का इल्म हो चुका है कि उन्हें कभी भी इस्तीफा देने का फरमान सुनाया जा सकता है।
सूत्रों ने बताया कि जागरण के कुछ वरिष्ठ साथियों ने तो पत्रकारिता से इतर कार्य शुरू करने की योजना तक बना ली है। माना जा रहा है कि मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर दैनिक जागरण कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाने के अलावा ऐसे अमानवीय और ओछे हथकंडे अपना रहा है। वह कम से कम कर्मचारियों को स्टाफर रखना चाहता है। कुछ महीने पहले हर कर्मचारी से वेतन संबंधी एक फर्जी सहमति पर जबरन हस्ताक्षर करवाना भी जागरण की इस रणनीति का पहला हिस्सा था। बताते हैं कि दैनिक जागरण की देहरादून यूनिट में कर्मचारियों की छंटनी पर फिलहाल रोक लगाए जाने का फरमान भी एक सोची-समझी रणनीति के तहत ही सुनाया गया। यानी कि कर्मचारियों के दिमाग से इस समय की छंटनी से उत्पन्न भय खत्म हो जाए और भयमुक्त होकर काम करें, लेकिन खुद को संस्थान से आउट होने के लिए तैयार भी रखें। जागरण की यह नीति लाठी भी न टूटे और सांप भी मर जाए वाली उक्ति के आधार पर है, लेकिन जागरण को समझ लेना चाहिए कि उसके कर्मचारी पढ़े-लिखे हैं और अपने संस्थान की सभी चालों को भली-भांति समझते हैं।
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