पड़ोसी व बड़े भाई होने का जितना भी दंभ भरे भारत, तथाकथित उसके छोटे भाई ने एक बार फिर भरे बाजार में अपने बड़े भाई की इज्जत नीलाम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। सच तो यह है कि नीलामी कर वह दूर बैठा तमाशा देख खुश हो रहा है, अपने उस तथाकथित बड़े भाई की जिसे दर्द तो खूब हो रहा है, पर खुलकर बोल नहीं पा रहा है। यह कैसी मजबूरी है और अगर इसे वह कूटनीतिक मजबूरी कहता है तो फेंक डालो ऐसी कूटनीतिक मजबूरी को और आ जाओ, जैसे को तैसे की तर्ज पर सबक सिखाने को। क्योंकि उसके पड़ोसी ने वह काम किया है जिसे नजरंदाज बिल्कुल नहीं किया जा सकता है, और एक दफा अगर सोच भी लें तो पड़ोसी का इतिहास इस बात को बल देता है कि मुंहतोड़ जवाब नहीं दोगे तो फिर इनका दुस्साहस और बढ़ेगा और फिर उसकी तरफ से इससे बड़ी कार्रवाई व दुस्साहस के लिए खुद को तैयार रखो।
याद है 1999 में करगिल युद्ध की शुरुआत भी इसी तरह से हुई थी। उस समय भी पाकिस्तानी सैनिकों ने कुछ इसी तरह की दरिंदगी दिखाते हुए गश्त के लिए गए कैप्टन सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों की बेरहमी से हत्या कर दी थी। उनके क्षत-विक्षत शव बाद में भारत को सौंपे गए थे। कैप्टन कालिया के पिता अभी तक इंसाफ के लिए लड़ रहे हैं। यहां यह गौर करने वाली बात है कि तब हमने उन्हें सबक सिखाने के लिए करगिल युद्ध लड़ा और पाक को घुटने टेकने के लिए मजबूर किया। उस समय भी उनकी तरफ से ऐसी किसी भी कार्रवाई से मना किया जा रहा था, लेकिन जब दबाव डाला तो उन्होंने शहीद हुए हमारे सैनिकों के क्षत-विक्षत शव भी लौटाए। हमें वैसी ही कार्रवाई करने के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि केवल हमने ही शांति का ठेका नहीं ले रखा है।
यह तो सामान्य सी बात है कि पड़ोसी होने के नाते एक-दूसरे का फर्ज होता है कि सीमा पर शांति बनाई रखी जाए लेकिन अगर कोई इसका पालन नहीं करता है तो क्या हमें उसे मनमाने के लिए तब तक इंतजार करना चाहिए, जब तक वह हमारी बात नहीं मान लेता? चाहे इसके लिए आपके अपने लगातार शहीद हो रहे हों? कहने की बात नहीं है लेकिन कई बार नहीं चाहते हुए भी कड़े फैसले लेने पड़ते हैं ताकि मैसेज जा सके कि तुमने जो कृत्य किया है, वह मुझे नागवार गुजरा है? एसे में जवाबी कार्रवाई तो बनता है। पाकिस्तानी सैनिकों का दुस्साहस ही कहेंगे कि किस तरह वह युद्धविराम का उल्लंघन कर मंगलवार को भारतीय सीमा में घुस आए और जम्मू एवं कश्मीर के पुंछ जिले स्थित नियंत्रण रेखा के निकट एक चौकी पर तैनात दो भारतीय जवानों में से एक का सिर काट लिया तो दूसरे का गला रेतकर अपने साथ ले गए। इस नृशंस हत्या का क्या मतलब होता है? क्या जानबूझकर यह कार्रवाई नहीं की गई और अगर हमें लगता है कि जानबूझकर कार्रवाई की गई है तो फिर देर किस बात की? सब कुछ मैसेज पर निर्भर करता है और हमें इसका खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए क्योंकि कूटनीति के तहत बातचीत तो अपनी जगह है ही लेकिन जैसे को तैसा ट्रीटमेंट भी कभी-कभी और कई बार जरूरी हो जाता है? निंदा करने व कार्रवाई को भड़काऊ वाला कह देने भर से काम नहीं चलने वाला, हमें पड़ोसी के दुस्साहस का पहले करारा जवाब देना चाहिए, फिर आगे की सोचनी चाहिए। शहीद हुए सुधाकर सिंह और हेमराज 13वीं राजपूताना राइफल्स से संबद्ध थे।
बताया जाता हैं कि इस घटना के बारे में सेना ने विस्तृत रिपोर्ट रक्षा मंत्रालय के पास भेज दी है और अब गेंद सरकार के पाले में है कि वह इस पूरे मामले को किस तरह हैंडिल करती है? हालांकि सेना की तरफ से जो रिपोर्ट भेजी गई है उसमें हमले में 29 बलूच रेजीमेंट के शामिल होने की बात लिखी गई है। रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तानी सैनिक घने कोहरे का फायदा उठाते हुए सीमा पर लगे कंटीले तारों को काटकर समीवर्ती पुंछ जिले के सोना गली इलाके में बनी भारतीय चौकी पर पहुंच गए और फिर वहां इस नृशंस कार्रवाई को उनलोगों ने अंजाम दिया।
रिपोर्ट के मुताबिक यह घटना पूर्वाह्न् 11.30 बजे हुई। पाकिस्तानी सैनिकों ने दो भारतीय जवानों की हत्या कर दी और उनमें से एक के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। हालांकि पाकिस्तान ने दो भारतीय जवानों की हत्या की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया है, लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इसे झूठ करार देते हुए उसके दावे को तत्काल खारिज भी कर दिया है। अब इसके बाद की गतिविधियों पर करीब से नजर रखी जा रही है और बताया जाता है कि रक्षा मंत्रालय की तरफ से भी सेना को इस बात की हरी झंडी दे दी है कि सीमा पार से अगर इस तरह की कार्रवाई का अंदेशा उसे लगे तत्काल कार्रवाई करने से पीछे बिल्कुल न हटें। इस बीच, लेफ्टिनेंट जनरल केडी पटनायक ने घटनास्थल का दौरा कर सेना को 'सतर्क रहने को कहा है। साथ ही उन्होंने घोषणा की कि उपयुक्त समय पर समुचित कदम उठाया जाएगा।
उधर इस बात पर भी गौर किया जा रहा है कि क्या पाकिस्तानी सैनिकों के हमले की यह घटना भारत की इस अपील के तुरंत बाद सामने आई है कि पाकिस्तान यह सुनिश्चित करे कि नियंत्रण रेखा की पवित्रता हमेशा बनी रहेगी? इस घटना के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध एक बार फिर पटरी से उतरने की आशंका जताई जा रही है। याद रहे कि मंगलवार को ही पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी ने सियालकोट का दौरा कर सेना को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, गुप्त या प्रकट रूप से आने वाली रह चुनौती का डटकर मुकाबला करने के लिए तैयार रहने को कहा है। इस घटना को इस कड़ी से भी जोड़ा जा रहा है।
लेखक कुमार समीर पिछले ढाई दशक से ज्यादा समय से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं. प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक में समान पकड़ रखने वाले कुमार समीर सहारा समेत कई बड़े संस्थानों के हिस्सा रह चुके हैं.