प्रातः स्मरणीय, आदरणीय श्री विष्णुजी सादर चरण स्पर्श! कहां से आपकी महिमा का बखान आरंभ करूं, समझ में नहीं आ रहा है। हे कमला पति, लक्ष्मी पति श्री हरि जी, सुना है आप भारतवर्ष के हिंदी भाषा के एक बड़े दैनिक समाचार पत्र में संपादकों के बड़े पद हैं और बड़े-बड़े संपादक आपको बड़ा-बड़ा प्रणाम ठोंकते हैं। आपकी इस बड़े संस्थान में बहुत चलती है, योजनाएं बनाने-बनवाने में आप महारथी हैं।
हे लक्ष्मी कांत श्री हरिजी, सुना है कि आपका वर्ण व्यवस्था पर पूरा विश्वास है और समय-समय पर इसका पालन करते हैं। आपके श्रीमुख से समय-समय पर अपने ब्राह्मणत्व होने के गर्व में शब्द फूटते रहते हैं। अपने संस्थान की एक ब्रांच में आपने अपने प्रवचनों के दौरान एक वाक्य ऐसा कहा था कि उससे न केवल आपके ब्राह्मण होने की बात पता चली, बल्कि यह भी ज्ञात हुआ कि आप कितने कोस के ब्राह्मण हैं। इसी ब्रांच में आपके श्रीमुख से क्षत्रियों के विरोध में जो वाक्य फूटा था, उसका उल्लेख जनहित और आपके हित में यहां पर करना उचित नहीं होगा। हे प्रभु, सुना है, आपकी ही तरह मैं भी ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ था, किंतु जीवन में दो-चार अवसर ही ऐसे आए, जब मुझे खुद की पहचान ब्राह्मण के रूप में देनी पड़ी–केवल कुछ फार्मों को भरने के दौरान। उस कालम में मुझे धर्म और जाति के कालम के आगे-अपना धर्म और जाति विवशता में लिखनी पड़ी थी। इसके अतिरिक्त मुझे अभी तक अपने वर्ण के उद्घाटन की आवश्यकता नहीं पड़ी।
हे शांताकारं, भुजगशयनं, पद्मनाभं सुरेशं…श्री विष्णु का कार्य तो लालन-पालन करना है तो फिर आप ब्रह्मा और शिव का कार्य क्यों करते हैं। ब्रह्मा का कार्य-उत्पन्न करना और शिवजी का का-संहार करना होता है। छी: आप जैसे समृद्धि के सागर को क्या कमी है, लेकिन सुना है कि आप किसी को निपटाने-निपटवाने में भी सिद्धहस्त हैं…! हे कमल नयन, आपको तो वैष्णव होना चाहिए, लेकिन सुना है मसाला और मदिरा में भी आपकी रुचि है। हे भव-भयहरण करने वाले श्री हरि विष्णु आपको सहिष्णु हो होना चाहिए, लेकिन सुना है गैर ब्राह्मण आपको फूटी आंख नहीं सुहाते, छी: ऐसा मत करिए महाराज। बताते हैं कि आपके साथ कुछ और भी ब्राह्मण मिलकर आपकी हां में मिलाते हैं।
हे सर्वलोकों के नाथ, सुना है कि आपके इतने बड़े संस्थान में जिस योजना के तहत दर्जनों कर्मचारियों की पीठ पर प्रहार किया गया, उस योजना में आपकी भी कुछ भूमिका है। आप तो महान हैं, सर्वज्ञाता हैं तो फिर आपसे यह बात छिपी नहीं होगी कि निकाले गए कर्मचारी क्या करने जा रहे हैं और उनके परिवार के चूल्हे की लौ किस तरह धीमी पड़ गई होगी। हे श्रीहरि, श्री राम जी ने सीता की अग्नि परीक्षा ली थी, लेकिन आपने अपने संस्थान में ज्ञान परीक्षा करवाई, परंतु उस पर कई परंतु लग गए। सुना है फेल-पास में खेल-खास का मेल हुआ, लेकिन ज्ञान के आधार पर जिसको अंक मिले, उन अंकों के ऐवज में परीक्षार्थी को फल भी नहीं मिला।
हे चतुर्भुज, सुना है आपके लोक में आपकी प्रजा बहुत दुखी है, निर्धनता है, लक्ष्मी बहुत कम देखने को मिल रही है, भाई-भतीजावाद का बोलबाला है, शोषण है, अत्याचार है, बलियां ली जा रही हैं, जबकि आप तो तंत्र के देवता नहीं हैं। कुछ करिए महाराज, सुना है आप चक्रवर्ती सम्राट हैं अपने लोक के। और बचे-खुचे छोटे रजवाड़ों को आप अपने अधीन करना चाहते हैं, लेकिन हे प्रभु, लक्ष्मी पति होते हुए भी आप कोष जरूर भरिए, लेकिन गरीब प्रजा का भी तो ख्याल रखिए। वैसे आपको ज्ञात होगा कि ऐसे संस्थानों में बड़े ओहदे वालों के सिंहासन बड़े कमजोर होते हैं, उनका कोई भरोसा नहीं रहता, कभी भी धराशायी हो जाते हैं, लेकिन आप सभी प्रजा का एक समान कल्याण करेंगे तो आपका सिंहासन छिनने के बाद एक पूंजी के रूप में आप इन गरीब, असहाय, निर्दोष लोगों की प्रार्थना तो साथ लेते जाएंगे, वरना पैसे और बददुआ के सिवा आप घर क्या ले जाएंगे। दुर्बल को न सताइए……कहीं ऐसा न हो कि देवलोक में अपना इतिहास बताते समय आपको भगवान के सामने झेंपना पड़े।
एक पत्रकार द्वारा भेजा गया पत्र.
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