समाजवादी पार्टी की सरकार में बिना पैसे के कोई अच्छी नौकरी छोड़िये सफाईकर्मी की नौकरी भी मिलना असम्भव है. जिन नौकरियों में इंटरव्यू की घोषणा हो गयी मान लीजिये कि पैसा लेने के लिये ही कr गयr है. ताजा मामला नक्सल प्रभावित जिले चंदौली का है जहां सफाईकर्मियों के विकलांग कोटे की बैकलाग भर्ती के लिये 5-5 लाख रूपये लेकर नौकरी दी गयी है.
चंदौली के जिलापंचायतराज अधिकारी कमल किशोर श्रीवास्तव ने चयन समिति के सदस्यों की आम राय को दरकिनार करके ऐसी सूची जारी की है जिस पर कोई भी सवाल उठा सकता है. चयनित 24 अभ्यर्थियों की जो पहली सूची जारी की गयी थी जिस पर चयन समिति 6 में से 4 सदस्यों के हस्ताक्षर थे. जिलापंचायत अधिकारी विमल किशोर ने इस सूची के 24 में से 11 सदस्यों को बदलकर नई सूची जारी कर दी जिससे खुद चयन समिति के सदस्य विकलांग कल्याण अधिकारी असहमत हैं.
कुछ अभ्यर्थियों के नाम इसलिये भी बदल दिये गये क्यूंकि बाद में रेट बढ़ गये थे. अजय कुमार नाम के एक अभ्यर्थी ने 3 लाख रूपये दिये थे इनका नाम पहली सूची में था पर दूसरी सूची में इनका नाम गायब था क्यूंकि अधिकारियों ने भर्ती के समय रेट बढ़ाकर पांच लाख कर दिया था. चयन समिति के 6 सदस्यों में से एक ने साफ कहा है कि जो सूची सर्वसम्मति से बनायी गयी थी वह जारी ना करके नई सूची जारी की गयी है. तभी उसे तब जारी किया गया जब अवकाश था.
जब से यह मामला प्रकाश में आया है तब से जिलापंचायतराज अधिकारी ने कार्यालय में आना बंद कर दिया है. जिलाधिकारी भी इस मामले में लीपापोती करके मैनेज करने में जुट गये हैं. अब देखना यह है कि ईमानदार और स्वच्छ प्रशासन का दावा करने वाले मुख्यमंत्री इस पर क्या कदम उठाते हैं और विकलांगों से लाखों की वसूली करने वाले इन भ्रष्ट अधिकारियों पर क्या कार्यवाही करते हैं.