‘सारे रास्ते रोम की तरफ जाते हैं’ यह कहावत आधुनिक मानव-समाज के उस छोटे से हिस्से पर अक्षरशः लागू होती है जिसके पास दुनिया की आधी संपत्ति इकट्ठा हो गई है। विगत कुछेक दशकों में वैश्विक अर्थ-व्यवस्था के नियम-कायदों का अधिकाधिक लाभ इसी वर्ग को मिलने तथा दुनिया भर में लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने से अमीरों और गरीबों के बीच का फासला इस कदर बढ़ा है कि दुनिया की आधी आबादी के पास जितनी संपत्ति है, उतनी संपत्ति दुनिया भर के केवल 85 अमीर लोगों के पास एकत्र हो गई है।
दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक से पहले ऑक्सफैम की ‘वर्किंग फार द फ्यू’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में यह बात कही गई है। इसमें विकसित और विकासशील दोनों तरह के देशों में बढ़ती असमानता का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
ऑक्सफैम का दावा है, ‘‘अमीरों ने आर्थिक खेल के नियम अपने हित में करने तथा लोकतंत्र को कमजोर करने के इरादे से राजनीतिक रास्ता भी अख्तियार किया है।’’ दुनिया के 85 सबसे अमीर लोगों के पास जो संपत्ति है, वह दुनिया की आधी आबादी अर्थात् 3.5 अरब लोगों की संपत्ति के बराबर है।
रिपोर्ट के अनुसार, 1970 के दशक में धनवानों के मामले में टैक्स की दरें 30 देशों में से 29 में कम हुई हैं। ये वे देश हैं, जिनके बारे में आंकड़े उपलब्ध हैं। इसका मतलब है कि कई जगहों पर धनवान न केवल खूब धन ‘अर्जित’ कर रहे हैं, बल्कि उस पर कर भी कम दे रहे हैं। ऑक्सफैम के कार्यकारी निदेशक विनी बयानयिमा ने कहा कि रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि धनाढ्य लोग और कंपनियां टैक्स अधिकारियों से खरबों डॉलर छिपाती हैं। एक अनुमान के अनुसार 21,000 अरब डॉलर की विशाल धनराशि बिना रिकॉर्ड के है और यह रकम विदेशों में छिपाकर रखी गई है।
भारत में 10 साल में 10 गुना अरबपति
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशक में भारत में अरबपतियों की संख्या 10 गुना बढ़ी है। उनकी संपत्ति कर ढांचे और सरकारी तंत्र में पैठ का लाभ उठाते हुए बढ़ती जा रही है। दूसरी तरफ गरीबों पर होने वाला खर्च उल्लेखनीय रूप से कम हुआ है।
क्या कहती है रिपोर्ट
पिछले 25 साल में धन कुछ लोगों तक केंद्रित हुआ है। दुनिया के एक फीसदी परिवारों के पास इतनी संपत्ति है, जो दुनिया की करीब आधी आबादी (46 प्रतिशत) के पास मौजूद संपत्ति के बराबर है। रिपोर्ट के अनुसार 10 में से 7 लोग ऐसे देशों में रहते हैं, जहां पिछले 30 सालों के दौरान असमानता बढ़ी है। दूसरी तरफ 26 में से 24 देशों में सबसे अमीर लोगों ने अपनी आय में 1 प्रतिशत की वृद्धि की है। ये आंकड़े उन देशों के हैं, जिनके बारे में 1980 से 2012 तक के आंकड़े उपलब्ध हैं। यह चौंकाने वाला तथ्य है कि 21वीं सदी में दुनिया की आधी आबादी के पास इतनी संपत्ति नहीं है, जितनी कि सिर्फ 85 लोगों के पास है।
बफे की कमाई 3.7 करोड़ डॉलर प्रतिदिन
मशहूर अमेरिकी अरबपति वारेन बफे की संपत्ति में वर्ष 2013 में प्रतिदिन 3.7 करोड़ डॉलर की वृद्धि हुई। इससे वे गत वर्ष सबसे ज्यादा कमाई करने वाले अरबपति बन गये। शोध फर्म वैल्थ एक्स की सबसे अमीर अरबपतियों की सूची में बफे दूसरे स्थान पर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2013 में बफे की संपत्ति में 12.7 अरब डॉलर का इजाफा हुआ। इससे उनकी कुल संपत्ति बढ़कर 59.1 अरब डॉलर हो गई। वर्ष के प्रारंभ में उनकी संपत्ति 46.4 अरब डॉलर थी।
वैल्थ एक्स के मुताबिक सूची में पहला स्थान माइक्रोसॉफ्ट के चेयरमैन बिल गेट्स को मिला है। बिल गेट्स की संपत्ति गत वर्ष 11.5 अरब डॉलर बढ़कर 72.6 अरब डॉलर हो गई। सूची में शीर्ष दस स्थान हासिल करने वाले अरबपतियों की संपत्ति में गत वर्ष कुल 101.8 अरब डॉलर की वृद्धि हई।
सूची में तीसरा स्थान कैसीनो कारोबारी शेल्डन एडल्सन को प्राप्त हुआ है। उनकी दौलत 11.4 डॉलर से बढ़कर 35 अरब हो गई। अमेजन के संस्थापक तथा सीईओ. जेफ बेजोस की संपत्ति 11.3 अरब डॉलर बढ़कर 34.4 अरब डॉलर हो गई। सूची में वह चौथे स्थान पर रहे। फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग 24.7 अरब डॉलर की संपत्ति के साथ पांचवे स्थान पर रहे।
वैश्विक अर्थव्यवस्था के नये प्रबंधन कौशल तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था को निरंतर कमजोर किये जाने के कारण ही जहां भारत जैसे देश में सत्ता प्रतिष्ठान पर कब्जा किये कुछ लोग गत वर्ष ग्रामीण भारत के लिए प्रतिदिन 27 रुपये को जीवनयापन का मानक मान रहे थे, तो वहीं दूसरी ओर दुनिया के दूसरे कोने में एक व्यक्ति की दैनिक आमदनी 3.7 करोड़ डॉलर थी। क्या यह विरोधाभास प्राकृतिक कारणों से उपस्थित हुआ है? नहीं कदापि नहीं। यह विशुद्ध रूप से मानव-निर्मित है।
यह स्थिति तो तब हुई जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था इतिहास के सर्वाधिक मंदी के दौर से गुजर रही थी। वहां के बैंक व अन्य वित्तीय संस्थान एक के बाद दूसरा दीवालिया हो रहे थे और संसार भर में प्रचारित किया गया जैसे वह आर्थिक संकट अमेरिका का नहीं वरन् सारी दुनिया का रहा हो। फिर ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि अमेरिका और उसकी जुंडली के सदस्य ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्टेªलिया आदि कुछ गिने-चुने देशों को छोड़कर शेष सारी दुनिया, विशेषतः तीसरी दुनिया के देश उस संकट से बड़ी सरलता से पार पा गये। दरअसल, वह वैश्विक अर्थव्यवस्था को अपनी अंगुलियों पर नचाने के अमेरिकी दंभ का ही परिणाम था।
एक कमाल देखिये, ऑक्सफैम की ‘वर्किंग फार द फ्यू’ शीर्षक उक्त रिपोर्ट के अनुसार जुआघर चलाने वाले शेल्डन एडल्सन तथा अमेजन कंपनी के जेफ बेजोस की दौलत में गत एक वर्ष के दौरान तीन गुने की वृद्धि हुई। यहां विचारणीय है कि घरेलू बाजार की दयनीय दशा के बावजूद इन्होंने इतनी दौलत कैसे इकट्ठा कर ली? कारण स्पष्ट है-दुनिया भर में शासन-प्रशासन चलाने वालों को येन-केन-प्रकारेण अपने प्रभाव में लेकर स्वार्थ सिद्ध करने की कला में महारत।
इसका अर्थ यह भी हुआ और जैसा कि उपरोक्त रिपोर्ट में कहा भी गया है, सारी दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करके सरकारी तंत्र में पैठ का लाभ उठाते हुए टैक्सों की चोरी कर अपनी तिजौरी भरी गई। दूसरी तरफ गरीबों की शिक्षा, चिकित्सा, भोजन, रहन-सहन आदि पर होने वाले खर्च में उल्लेखनीय रूप से कमी आई। कुल मिलाकर लोकतंत्र को लूटतंत्र बनने से रोका न गया तो आने वाले समय में दुनिया की तस्वीर बहुत डरावनी होगी, यह निश्चित है।
श्यामसिंह रावत का विश्लेषण. संपर्क: 09410517799