Mayank Saxena : ये मुद्दा मैं फिर से उठा रहा हूं कि आखिर कैसे अभिषेक मनु सिघवी को दिल्ली हाईकोर्ट से इतनी आसानी से राहत दे दी गई, आखिर अदालत / जज की मंशा पर सवाल क्यों न खड़े किए जाएं…कुछ सहज जिज्ञासाएं…
1. सीडी के प्रसारण पर रोक लगाते वक्त अदालत ने सिंघवी से क्यों नहीं पूछा कि सीडी पर आखिर रोक क्यों लगाई जाए?
2. अदालत ने चैनल से क्यों नहीं पूछा कि आखिर वो सीडी क्यों प्रसारित करना चाहता है?
3. क्या उस सीडी को कंटेंट और डॉक्टर्ड किए जाने की शंका के निवारण के लिए फॉरेंसिक लैब में नहीं भेजा जाना चाहिए था?
4. कहीं ये यौन शोषण का मामला तो नहीं, इसकी जांच के लिए क्यों नहीं कुछ किया गया?
5. क्या अदालत को एक बार सीडी का कंटेंट सुनना नहीं चाहिए था?
6. क्यों ड्राइवर से ये नहीं पूछा गया कि आखिर ये सीडी उसने क्यों बनाई और इसको चैनल को प्रसारण के लिए क्यों दिया गया?
7. अगर ड्राइवर के खिलाफ केस दर्ज हुआ था और सीडी में महिला वकील को जज बनाने का वैदै नहीं किया गया, तो ड्राइवर के खिलाफ सिंघवी की निजता के उल्लंघन के साथ साथ उनकी अश्लील फिल्म शूट करने (पोर्नोग्राफिक एक्ट) और उसके बाद उन्हें ब्लैकमेल करने का मामला दर्ज क्यों नहीं किया गया?
8. पिछले प्वाइंट में पूछे गए सवाल के साथ कि जब ये साफ साफ एक आपराधिक मामला बन रहा था, तो कैसे आउट ऑफ कोर्ट सेटेलमेंट को अदालत मान्यता दे सकती है….ये कैसे हो सकता है कि मैं किसी का कत्ल कर दूं और फिर उसके परिवार से आउट ऑफ कोर्ट सेटेलमेंट कर लूं।
9. किसी भी कंटेंट के प्रसारण पर रोक के स्टे में अगले आदेश और सुनवाई तक रोक होती है, 13 अप्रैल को जारी हुए दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश में कहीं अगली तारीख का ज़िक्र नहीं है, और तो और उसके बाद सीधे अदालत आउट ऑफ कोर्ट सेटेलमेंट को मान्यता दे देती है…क्या ये कानूनी है?
10. क्या ये सच है कि वाकई सिंघवी के बड़े वकील होने और जजों तक उनके रसूख का फायदा इस केस में उनको मिला?
ये सब दोबारा से शेयर कर रहा हूं क्योंकि बड़ी चालाकी से सचिन के सांसद हो जाने के बहाने इस मुद्दे का दबाया जा रहा है… बाकी तहलका टीम को बधाई, लक्ष्मण को कारावास पहुंचाने के लिए….
युवा पत्रकार मयंक सक्सेना के फेसबुक वॉल से साभार.
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