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दैनिक जागरण के विज्ञापन फर्जीवाड़े पर फैसला सुरक्षित, 3 अप्रैल को आएगा आदेश

मुजफ्फरपुर। दैनिक जागरण के सरकारी विज्ञापन फर्जीवाड़ा से जुड़़े मुकदमे (परिवाद-पत्र संख्या-2638/2012) में मुजफ्फरपुर जिले के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी माननीय सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने 19 मार्च को लंबी सुनवाई के बाद संज्ञान के बिंदु पर फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायालय ने विश्वस्तरीय इस मुकदमे में फैसला की तारीख आगामी तीन अप्रैल तय कर दी है। दैनिक हिन्दुस्तान विज्ञापन घोटाला के बाद यह दूसरा बड़ा विज्ञापन घोटाले से जुड़ा मुकदमा है। अब पूरी दुनिया की निगाहें दैनिक जागरण विज्ञापन फर्जीवाड़ा मुकदमे में न्यायिक फैसले की तारीख पर टिक गई है।

मुजफ्फरपुर। दैनिक जागरण के सरकारी विज्ञापन फर्जीवाड़ा से जुड़़े मुकदमे (परिवाद-पत्र संख्या-2638/2012) में मुजफ्फरपुर जिले के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी माननीय सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने 19 मार्च को लंबी सुनवाई के बाद संज्ञान के बिंदु पर फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायालय ने विश्वस्तरीय इस मुकदमे में फैसला की तारीख आगामी तीन अप्रैल तय कर दी है। दैनिक हिन्दुस्तान विज्ञापन घोटाला के बाद यह दूसरा बड़ा विज्ञापन घोटाले से जुड़ा मुकदमा है। अब पूरी दुनिया की निगाहें दैनिक जागरण विज्ञापन फर्जीवाड़ा मुकदमे में न्यायिक फैसले की तारीख पर टिक गई है।

प्रिंट, ब्राडकास्टऔर इलेक्‍ट्रानिक मीडिया में भी इस मुकदमे के फैसले का इंतजार बेसब्री से होने लगा है। दैनिक जागरण विज्ञापन फर्जीवाड़ा मुकदमा को न्यायालय में लाने की हिम्मत दिलेर दैनिक जागरण के बर्खास्त कर्मी रमण कुमार यादव ने की है। रमण कुमार अपने साथ हुए अन्‍याय को लेकर कोर्ट तक गए। मुंगेर व्यवहार न्यायालय के वरीय अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने 19 मार्च को मुजफ्फरपुर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में रमण कुमार यादव के परिवाद-पत्र में अभियोजन के समर्थन में लगभग डेढ़ घंटों तक बहस की। बहस में सहयोग मुंगेर के वरीय अधिवक्ता बिपिन कुमार मंडल ने दी।

वरीय अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने न्यायालय को बताया कि दैनिक जागरण अखबार के प्रबंधन और संपादकीय टीम के सदस्यों ने किस प्रकार केन्द्र और राज्य सरकारों से सरकारी विज्ञापन प्राप्त करने के लिए जालसाजी और धोखाधड़ी की। अखबार ने दैनिक जागरण के पटना संस्करण की निबंधन संख्या को किस प्रकार दैनिक जागरण के मुजफ्फरपुर संस्करण की प्रिंट लाइन में वर्षों-वर्ष तक छापकार गैर-निबंधित अखबार को निबंधित अखबार घोषित कर सरकार के समक्ष पेश कर करोड़ों-करोड़ रुपया का सरकारी विज्ञापन प्रकाशित किया और सरकारी खजाने को डंके की चोट पर लूटने का काम किया।

अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने न्यायालय को बताया कि दैनिक जागरण ने किस प्रकार जालसाजी की? मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने बहस में न्यायालय को बताया कि प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की धारा 5 (2) के अन्तर्गत प्रत्येक दैनिक अखबार को जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष ‘घोषणा-पत्र‘ समर्पित करना कानूनी बाध्यता है। दैनिक जागरण के प्रबंधन ने वर्ष 2005 में 18 अप्रैल से बिहार के मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय में स्थापित नए प्रिंटिंग प्रेस से दैनिक जागरण अखबार के मुजफ्फरपुर संस्करण का मुद्रण और प्रकाशन शुरू कर दिया। प्रबंधन ने विधिवत जिलाधिकारी के समक्ष ‘घोषणा-पत्र‘ दाखिल भी कर दिया। परन्तु अखबार के प्रबंधन ने प्रेस एण्ड

श्रीकृष्‍ण प्रसाद

रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की धारा 2 (सी) का पालन नहीं किया और बिना जिला मजिस्ट्रेट के प्रमाणीकरण के बिना ही दैनिक जागरण के मुजफ्फरपुर संस्करण का मुद्रण और प्रकाशन नए प्रिंटिंग प्रेस से शुरू कर दिया।

न्यायालय को वरीय अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने सूचित किया कि ‘घोषण-पत्र‘ एक प्रकार का निबंधन प्राप्त करने के लिए ‘आवेदन-पत्र‘ मात्र है, जिसमें नए प्रिंटिंग प्रेस से मुद्रित और प्रकाशित होने वाले दैनिक अखबार के प्रकाशक, मुद्रक और संपादक का ब्योरा और नए प्रेस के स्थल की पूरी सूचना लिखी रहती है। न्यायालय को सूचित किया गया कि घोषणा-पत्र को जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष समर्पित कर देने का यह अर्थ नहीं है कि अखबार को नए प्रिंटिंग प्रेस से अखबार के मुद्रण और प्रकाशन की अनुमति मिल गई और वह अखबार अपने को निबंधित नहीं घोषित कर सकता है।

न्यायालय को अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने आगे बताया कि प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की धारा 06 के तहत ‘घोषणा-पत्र‘ के समर्पण के बाद प्रबंधन के समक्ष कानूनी बाध्यता है कि प्रबंधन जिला मजिस्ट्रेट से घोषणा-पत्र प्रमाणीकरण प्राप्त कर ले, जो इस मामले में नहीं किया गया और इस प्रकार प्रबंधन ने प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की धारा 06 का घोर उल्लंघन किया।

घोषणा-पत्र पर जिला मजिस्ट्रेट का दस्तखत और कार्यालय का मुहर होना अनिवार्य है और यह भी लिखा होना जरूरी है कि अखबार ने जो घोषणा-पत्र में सूचना दी है कि वह सूचना सत्य है। न्यायालय को श्रीकृष्ण प्रसाद ने आगे सूचित किया कि तीसरी कानूनी प्रक्रिया प्रबंधन के समक्ष यह है कि प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की धारा 19 (सी) के तहत नई दिल्ली स्थित प्रेस रजिस्‍ट्रार जिला मजिस्ट्रेट से धारा 06 के अन्तर्गत प्रमाणीकृत घोषणा-पत्र को अपने कार्यालय में प्राप्त करने के उपरांत अखबार को अखबार के निबंधन से जुड़ा प्रमाण-पत्र जारी करेगा। प्रेस -रजिस्ट्रार से ‘सर्टिफिकेट आफ रजिस्ट्रेशन‘ के जारी होने के बाद अखबार निबंधित हो जायेगा। साथ ही, दी रजिस्ट्रेशन आफ न्यूजपेपर्स (सेंट्रल) रूल, 1956 की धारा 10 (2) के अन्तर्गत प्रेस रजिस्‍ट्रार (नई दिल्ली) संबंधित अखबार को रजिस्ट्रेशन-नम्बर जारी करेगा।

न्यायालय को अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने सूचित किया कि दैनिक जागरण के प्रबंधन ने दैनिक जागरण के मुजफ्फरपुर संस्करण के मुद्रण और प्रकाशन के मामले में नई दिल्ली स्थित प्रेस रजिस्ट्रार से किसी प्रकार का ‘सर्टिफिकेट आफ रजिस्ट्रेशन‘ और ‘रजिस्ट्रेशन नम्बर‘ नहीं प्राप्त किया। इस प्रकार मुजफ्फरपुर के नए छापाखाना से मुद्रित और प्रकाशित दैनिक जागरण अखबार 18 अप्रैल, 2005 से  28 जून, 2012 तक पूरी तरह अवैध और गैरकानूनी था।

न्यायालय को बताया गया कि दैनिक जागरण ने किस प्रकार सरकार के साथ धोखाधड़ी और जालसाजी की? न्यायालय को वरीय अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने बताया कि जब दैनिक जागरण का मुजफ्फरपुर संस्करण 18 अप्रैल, 2005 से 28 जून, 2012 तक अवैध था, फिर भी दैनिक जागरण के प्रबंधन ने मुजफ्फपुर के दैनिक जागरण संस्करण की प्रिंट लाइन में दैनिक जागरण के पटना संस्करण की निबंधन संख्या- बीआईएचएचआई/2000/3097 को जालसाजी और धोखाधड़ी की नीयत से प्रकाशित किया और इस अवधि में अखबार के प्रबंधन ने केन्द्र और राज्य सरकारों से करोड़ों-करोड़ रूपया का सरकारी विज्ञापन प्रकाशित किया और सरकारी खजाने की जमकर लूट की।

सरकारी खजाने की लूट के पीछे और क्या-क्या कारण थे? : न्यायालय को वरीय अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने बताया कि केन्द्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन डीएवीपी कार्यालय नई दिल्ली में कार्य करता है। इस विभाग का काम है कि यह विभाग निबंधित और 36 माह तक नियमित प्रकाशित दैनिक अखबार को ‘विज्ञापन-दर‘ और केन्द्र सरकार के सभी विभागों का सरकारी विज्ञापन जारी करता है।

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दैनिक जागरण ने मुजफ्फरपुर के अपने बिना-निबंधित संस्करण को ‘निबंधित संस्करण‘ के रूप में पेश कर डीएवीपी कार्यालय से जालसाजी और धोखाधड़ी कर ‘विज्ञापन-दर‘ और ‘केन्द्र सरकार का विज्ञापन‘ भी प्राप्त करता रहा। इस प्रकार ने अखबार ने करोड़ों-करोड़ रुपया सरकारी खजाने से विज्ञापन मद में अवैध ढंग से प्राप्त कर लिया। श्री प्रसाद ने विद्वान मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष डीएवीपी, नई दिल्ली की विज्ञापन नीति की वेब प्रतियां भी पेश कीं।

दैनिक जागरण ने बिहार में किस प्रकार सरकारी विज्ञापन की लूट मचाई? : न्यायालय को वरीय अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने बताया कि बिहार सरकार के सरकारी विभागों से सरकारी विज्ञापन प्राप्त करने के लिए बिहार सरकार के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग (पटना) ने वर्ष 1981 और वर्ष 2008 में विज्ञापन नीति की अधिसूचना जारी कीं। दोनों अधिसूचनाओं में स्पष्ट है कि प्रेस रजिस्ट्रार से निबंधन प्रमाण पत्र प्राप्त दैनिक अखबार ही सरकारी विज्ञापन प्राप्त करने का हकदार हैं। साथ ही बिहार सरकार की विज्ञापन नीति‘ 1981 में सरकारी विज्ञापन पाने वाले हिन्दी अखबार की प्रसार संख्या 20 हजार से अधिक होना कानूनी बाध्यता है। साथ ही, बिहार सरकार की विज्ञापन नीति- 2008 में सरकारी विज्ञापन पाने वाले दैनिक हिन्दी अखबार के पास प्रसार संख्या कम से कम 45 हजार होना जरूरी है। न्यायालय को बताया गया कि मुजफ्फरपुर जिला से मुद्रित और प्रकाशित दैनिक जागरण की प्रसार संख्या केवल मुजफ्फरपुर जिला में किसी भी कीमत में 20 हजार के उपर जा ही नहीं सकती है और इस परिस्थिति में दैनिक जागरण को किसी भी कीमत में सरकारी विज्ञापन नहीं मिलेगा। वर्षों-वर्ष तक जिलावार संस्करण के मुद्रण और प्रकाशन की स्थिति में विज्ञापन नीति के तहत सरकारी विज्ञापन मिलना नहीं है, प्रबंधन ने पटना संस्करण की निबंधन संख्या और प्रसार संख्या का इस्तेमाल कर केन्द्र और राज्य सरकारों से सरकारी विज्ञापन प्राप्त किया और सरकारी राजस्व की लूट मचा दी।

श्री प्रसाद ने बिहार सरकार की विज्ञापन नीति -1981 और विज्ञापन नीति- 2008 के संबंधित नियमन से विद्वान मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी को रू-ब-रू करा दिया। विश्वस्तरीय दैनिक जागरण विज्ञापन फर्जीवाड़ा मुकदमे में कुल 17 व्यक्तियों को द्वितीय पक्ष बनाया गया है। परिवादी रमण कुमार यादव ने प्रेस एण्ड रजिस्ट्रेशन आफ बुक्स एक्ट, 1867 की  धारा 8 (बी), 12, 13, 14 और 15 और भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (बी), 420, 471 और 476 के तहत मेसर्स जागरण प्रकाशन लिमिटेड, जागरण बिल्डिंग, 2, सर्वोदय नगर, कानपुर-2085 के (1) चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक सह प्रबंध संपादक महेन्द्र मोहन गुप्ता, (2) सीईओ सह पूर्णकालिक निदेशक सह संपादक संजय गुप्ता, (3) पूर्णकालीक निदेशक धीरेन्द्र मोहन गुप्ता, (4) पूर्णकालिक निदेशक सह स्थानीय संपादक सुनील गुप्ता, (5) पूर्णकालीक निदेशक शैलेश गुप्ता, (6) स्वतंत्र निदेशक भारतजी अग्रवाल, (7) स्वतंत्र निदेशक किशोर वियानी, (8) स्वतंत्र निदेशक नरेश मोहन, (9) स्वतंत्र निदेशक आरके झुनझुनवाला, (10) स्वतंत्र निदेशक रशिद मिर्जा, (11) स्वतंत्र निदेशक शशिधर नारायण सिन्हा, (12) स्वतंत्र निदेशक विजय टंडन, (13) स्वतंत्र निदेशक विक्रम बख्शी, (14) कंपनी सचिव अमित जयसवाल, (15) महाप्रबंधक और मुद्रक आनन्द त्रिपाठी, (16) स्थानीय संपादक, मुजफ्फरपुर देवेन्द्र राय और (17) स्थानीय संपादक शैलेन्द्र दीक्षित, पटना को द्वितीय पक्ष बनाया है।

न्यायालय से द्वितीय पक्ष के सभी व्यक्तियों के विरूद्ध वर्णित धाराओं में संज्ञान लेने की प्रार्थना : वरीय अधिवक्ता श्रीकृष्ण प्रसाद ने बहस के अंत में न्यायालय से द्वितीयपक्ष के सभी व्यक्तियों के विरूद्ध वर्णित धाराओं के अन्तर्गत संज्ञान लेने की प्रार्थना की।

मुजफ्फरपुर से काशी प्रसाद की रिपोर्ट.

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