यह मत सोचना कि मैं आलोक तोमर का मित्र हूं इसलिए ऐसा कह रहा हूं, पर इसमें कोई शक नहीं कि न आलोक के बाद कोई, न आलोक के पहले कोई। हमारे संपादक प्रभाष जोशी जी ने जिस एक आदमी को जनसत्ता के जरिए खड़ा किया वह आलोक तोमर था। आलोक कोई शक्तिमान नहीं था। ऐसा भी नहीं था कि आलोक ने नए प्रतिमान खड़े हुए हों, पर फिर भी आलोक ने कुछ तो नया किया हो। उसने पत्रकारीय भाषा में लालित्य पैदा किया, उसने पत्रकारीय मर्यादा ही नहीं जन पक्षधरिता के नए प्रतिमान स्थापित किए।
मंच संचालन करते शंभूनाथ शुक्ल
आज शाम कांस्टीट्यूशन क्लब में यादों में आलोक जो कार्यक्रम हुआ उसमें जो-जो लोग आए वे यकीनन बड़े लोग थे। अशोक बाजपेयी, ओम थानवी, राजेश बादल, दीपक चौरसिया, शैलेश, आनंद प्रधान, केसी त्यागी, राजीव मिश्र, संतोष भारतीय, राहुल देव से लेकर तमाम वे लोग थे जिन्हें आलोक से प्यार था, स्नेह था। आलोक मुझसे उम्र में काफी छोटा था। पर यकीनन वह तमाम सरोकारी मामलों में मुझसे कहीं आगे था। आलोक की पत्नी Supriya Roy ने मुझे कार्यक्रम का संचालन का जिम्मा सौंपा था। मैने मना किया कि जिस कार्यक्रम में इतने बड़े और महान लोग हों, वहां मैं मतिहीन, भाषाहीन कैसे संचालन करूंगा? राहुल देव और ओम थानवी मेरे संपादक रह चुके हैं। अशोक बाजपेयी का नाम विद्वता और साहित्य में बहुत बड़ा है। मैंने उनसे अनुरोध किया कि संचालन का काम किसी और बड़े आदमी को सौंपिए पर सुप्रिया ने मना कर दिया। खैर मैंने संचालन किया और कमाल देखिए कि सबने तारीफ की, साथ में मेरी और आलोक की दोस्ती की भी। यह मेरा पहला मौका था कि मैं भाषा पर बोला और भाखा वाले अंदाज में, कि जो बहता है वही नीर है। वही भाखा है। और यह भी मेरा सौभाग्य कि इतने बड़े नामों में से किसी ने भी ऐतराज नहीं किया।
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ल की फेसबुक वॉल से साभार।