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जागरण आगरा के कर्मियों को होली पर प्रबंधन का झटका, अब भूल ही जाएं मजीठिया

दैनिक जागरण की आगरा यूनिट में कर्मचारियों को होली पर तोहफे की जगह एक बड़ा झटका प्रबंधन द्वारा दिया गया है। दरअसल जो लोग मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुरूप अपनी तनख्वाह में बढ़ोत्तरी की उम्मीद लगाये बैठे थे उनमे से अधिकाँश की उम्मीदें जागरण प्रबंधन द्वारा चकनाचूर कर दी गयीं। सम्पादकीय विभाग को इनपुट-आउटपुट में जागरण प्रबंधन द्वारा पहले ही बांटा जा चुका था। अब एक नया खेल यह किया गया है कि सम्पादकीय विभाग के अधिकाँश कर्मचारियों को आउटपुट में डालकर एक अलग प्रोडक्शन डिवीजन(प्रोडक्शन विभाग) बना दिया गया है और इन सभी को उसमें कार्यरत दिखा दिया गया है। इसका मुखिया बनाया गया है यूनिट के जीएम को।

दैनिक जागरण की आगरा यूनिट में कर्मचारियों को होली पर तोहफे की जगह एक बड़ा झटका प्रबंधन द्वारा दिया गया है। दरअसल जो लोग मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुरूप अपनी तनख्वाह में बढ़ोत्तरी की उम्मीद लगाये बैठे थे उनमे से अधिकाँश की उम्मीदें जागरण प्रबंधन द्वारा चकनाचूर कर दी गयीं। सम्पादकीय विभाग को इनपुट-आउटपुट में जागरण प्रबंधन द्वारा पहले ही बांटा जा चुका था। अब एक नया खेल यह किया गया है कि सम्पादकीय विभाग के अधिकाँश कर्मचारियों को आउटपुट में डालकर एक अलग प्रोडक्शन डिवीजन(प्रोडक्शन विभाग) बना दिया गया है और इन सभी को उसमें कार्यरत दिखा दिया गया है। इसका मुखिया बनाया गया है यूनिट के जीएम को।

हालाँकि मजीठिया की सिफारिशें पत्रकारों और गैरपत्रकारों दोनों के लिए है किन्तु वेतनमान में अंतर होने पर मिलने वाले लाभ में भी अंतर आयेगा। जागरण प्रबंधन द्वारा यह सब कवायद इसलिए की गयी कि ऐसा करने से इन्हें पत्रकारिता से इतर दिखाया जा सके और मजीठिया की सिफारिशों के अनुरूप देनदारी से बचा जा सके। अब चूँकि ये सभी 'प्रोडक्शन विभाग' में कार्यरत दिखाए जायेंगे ऐसे में इनका ग्रेड बदल जायेगा, वेतन में ज्यादा वृद्धि की कोई उम्मीद नहीं और बहुत संभव है कि कई कर्मचारियों वेतन में शायद कोई बदलाव भी न आये।

प्रबंधन की नियत साफ़ है कि जिसे नौकरी करनी है करे वर्ना छोड़ कर चला जाये। जीएम, समाचार संपादक भी प्रबंधन के सुर में सुर मिलाते दिखाई दे रहे है। फिलहाल कर्मचारियों में रोष व्याप्त है किन्तु बेचारे करें भी तो क्या? परिवार की खातिर सब कुछ झेल रहे हैं और चुपचाप नौकरी कर रहे हैं। असुरक्षा की भावना इन सभी के मन में है और कोई भविष्य भी नहीं दिखाई दे रहा यहाँ इन्हें। तलाश कर रहे हैं एक अदद मौके की जिससे यहाँ से छुटकारा पा सकें।

वैसे भी, किसी भी आयोग की सिफारिशें लागू करने में जागरण प्रबंधन द्वारा ऐसे ही टालमटोल किया जाता है। मजीठिया की सिफारिशें लागू करना मजबूरी है चूँकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है किन्तु उसमें भी तिकड़म भिड़ाने से ये बाज नहीं आ रहे। वे सभी जतन किये जा रहे हैं जिसके माध्यम से अपना पैसा बचाया जा सके और कर्मचारियों के हक़ पर डाका डाला जा सके। जागरण प्रबंधन की कु-ख्याति का ज्यादा बखान करने की आवश्यकता नहीं है क्यूँकी इनके बारे में सभी जानते हैं। बात करते हैं नैतिकता और जनसरोकार की, दावा करते हैं नंबर वन होने का और जिनके कारण ये उपलब्धि मिल पायी है उन्हें ही उनका हक़ देने में दम निकलती है इनकी।

 

आगरा से एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।

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