लोक सभा चुनाव की आपाधापी के बीच प्रधानमंत्री के भूतपीर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी किताब 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर-द मेकिंग एंड अनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह' में कई सनसनीखेज़ खुलासे कर सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है। बारू ने लिखा हैं कि यूपीए के दूसरे कार्यकाल में मनमोहन सिंह एक लाचार और कमज़ोर प्रधानमंत्री रह गए थे। एक तरह से वे सोनिया गांधी की कठपुतली बन चुके थे।
संजय बारू 2004 से 2008 तक प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार रहे हैं। वे वरिष्ठ पत्रकार हैं, इकेनॉमिक्स टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया, फाइनेंशियल एक्सप्रेस में काम कर चुके है। ज़ाहिर है उनकी किताब में पत्रकारों से जुड़े कई संस्मरण होंगे ही। यही नहीं, बारू ने अपनी किताब में एनडीटीवी के प्रणय रॉय, टीओआई के समीर जैन औऱ उनकी मां इंदु जैन औऱ हिन्दुस्तान टाइम्स की शोभना भरतिया से जुड़े कुछ रोचक प्रसंगों का ज़िक्र किया है।
जब प्रणय रॉय को डांट पड़ी
मई 2005 में जब यूपीए सरकार को सत्ता में एक वर्ष पूरा होने जा रहा था मीडिया में खबरें आने लगीं कि प्रधानमंत्री सभी मंत्रियों की परफॉरमेंस की समीक्षा करेंगे।
एनडीटीवी ने 9 मई को एक खबर चला दी कि समीक्षा में प्रधानमंत्री ने विदेश मंत्री नटवर सिंह को कम नंबर दिए हैं औऱ ये संभव है कि उन्हे कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए। प्रधानमंत्री उस समय मॉस्को में थे। नटवर इस खबर से बहुत नाराज़ हुए और उन्होनें स्वास्थ्य कारणों से एक दिन की छुट्टी ले ली।
ये खबर पीएम तक मॉस्को पहुंची, तब वे अपने होटल में एक ब्रीफिंग कर रहे थे। उन्होने मुझसे एनडीटीवी की ख़बर के बारे में पता करने को कहा।
मैनें प्रणय रॉय को फोन किया औऱ उनसे बात करना ही शुरू किया था कि पीएम ने मुझसे मोबाइल ले कर प्रणय से बात खुद बात की और उन्हे एक ग़लती करने वाले छात्र की तरह डांटते हुए बोले 'ये ठीक नहीं है….तुम इस तरह रिपोर्ट नहीं कर सकते।"
उनके और प्रणय के बीच का संबंध एक प्रधानमंत्री और सीनियर मीडिया एडिटर के जैसा नहीं था, उनका संबंध बहुत हद तक एक भूतपूर्व बॉस और एक जूनियर के जैसा था। ऐसा इसलिए था क्योंकि प्रणय, वित्त मंत्रालय में बतौर आर्थिक सलाहकार डॉ. सिंह के जूनियर रह चुके थे।
कुछ देर बाद, प्रणय ने मुझे कॉल बैक किया। 'क्या तुम अभी भी उनके साथ हो?' प्रणय ने पूछा। मैं कमरे के बाहर निकला और बोला कि अब मैं अकेला हूं।
'भाई, स्कूल के बाद से मुझे आज तक ऐसी डांट नहीं पड़ी! वो प्रधानमंत्री की तरह नहीं एक हेडमास्टर की तरह बात कर रहे थे,' प्रणय ने शिकायत की।
सिद्धार्थ वरधराजन तो अमरीकी नागरिक हैं
पीएमओ के अंदर, (भूतपूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार) जेएन 'मनी' दीक्षित की कठोर कार्यशैली का टकराव मेरी लापरवाह और बेमतलब कार्यशैली से हो गया।
हमारा पहला मतभेद इस बात को लेकर हुआ कि पीएम के सरकारी जहाज में कौन उनके साथ सफर कर सकता है।
मीडिया लिस्ट में टाइम्स ऑफ इंडिया के पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन का नाम देख कर, जो बाद में द हिंदू के एडिटर भी रहे, मनी ने मुझे एक नोट भेज कर बताया कि सिद्धार्थ भारतीय नागरिक नहीं बल्की अमरीकन नागरिक हैं, और एक विदेशी नागरिक होने के नाते वो प्रधानमंत्री के जहाज में यात्रा नहीं कर सकते।
मैं सिद्धार्थ की नागरिकता के बारे में जानता था, क्योंकि ये मामला मेरे सामने आ चुका था जब मैंने उन्हे टीओआई में सहायक संपादक से रूप में लिया था।
उस समय मैंने इस बात को आगे न बढ़ाने का निर्णय लिया, औऱ न ही टीओआई की पब्लिशिंग कंपनी बेनेट, कोलमैन एंड कंपनी लि. के वाइस चेयरमैन समीर जैन, जो संपादकीय लेखकों को 'हायर' करने में खासी रुचि रखते है, ने इस पर कोई आपत्ति की।
शोभना भरतिया और इंदु जैन का लेट होना
मैंने कई महत्वपूर्ण संपादकों, पब्लिशरों औऱ टीवी एंकरों की ब्रेकफास्ट मीटिंग्स अरेन्ज कराई हैं। डॉ. सिंह सुबह जल्दी उठने के आदि हैं और अपनी ब्रेकफास्ट मीटिंग्स का समय साढ़े आठ बजे का रखते थे, देर से सोने और जागने वाले एडिटर्स औऱ टीवी एंकर्स इसका खूब विरोध करते थे पर टाइम से मीटिंग के लिए पहुंच जाते थे।
जब मैंने कुछ पब्लिशर्स को मीटिंग के लिए बुलाया तो देर से पहुंचने वालों में प्रमुख थीं हिन्दुस्तान की शोभना भरतिया क्योंकि, जैसा उन्होने मुझे बताया, उन्हे अपने बाल सुखाने में बहुत सामय लगा और इंदु जैन, टीओआई की चेयरपर्सन, क्योंकि उन्हे अपनी सुबह की पूजा खत्म करनी थी।