Mayank Saxena : कपिल सिब्बल के घर बाहर प्रदर्शन कर रहे असीम त्रिवेदी और उनके साथियों को पुलिस ने बेदर्दी से ज़बरन उठाकर हिरासत में ले लिया…ग़लती सिर्फ ये थी असीम और साथी काले कानून 66A के खिलाफ 7 दिन से अनशन पर हैं और केंद्रीय आईटी मंत्री कपिल सिब्बल से मिलने की मांग कर रहे थे…
सवाल ये है कि क्या जनता को अपने नेता यानी कि जनसेवक से मिलने के लिए विशेषाधिकार चाहिए होते हैं…क्या एक मंत्री से मिलने के लिए जनता को विशेष इजाज़त चाहिए…और दरवाज़े पर पहुंची जनता के लिए पुलिस और लाठी हैं…जिस तरह पिछले 6 दिन से भूखे और दिन पर दिन बीमार होते जा रहे असीम और आलोक से पुलिस ने धक्का मुक्की की, वो शर्मनाक था…आलोक दीक्षित को बाक़ायदा ज़मीन पर बुरी तरह घसीटा गया…असीम को धक्के देकर पुलिस वैन में डाला गया…
क्या क़ानून में कोई धारा है जो नागरिकों को विरोध प्रदर्शन करने से रोकती है…क्या कोई क़ानून है जो नागरिकों को मंत्री से मिलने से रोकता है…क्या कोई कानून है जो नेता से मिलने की मांग पर आपको थाने पहुंचाता है…अगर क़ानून है, तो क्या हम काले क़ानूनों वाले एक देश में जी रहे हैं…और क्या वाकई इसे जीना ही कहते हैं…
लोकतंत्र सिर्फ और सिर्फ लोगों से ही बनता है…उनकी इच्छाओं, आकांक्षाओं और उनकी आज़ादी से…जिस व्यवस्था में असहमति के लिए जगह नहीं है…उस व्यवस्था में सत्ता तो हो सकती है लेकिन लोकतंत्र नहीं है… लोकतंत्र के लिए…आवाज़ की आज़ादी के लिए…अभिव्यक्ति के अधिकार के लिए असीम के साथ आएं…कल सुबह 11 बजे अरविंद केजरीवाल असीम के समर्थन में जंतर मंतर पर होंगे…क्या आप आ रहे हैं…
हमारी चुप्पी…हमारे कल को काला कर देगी…हमारी आवाज़ें भले ही कितनी अलग अलग हों…सत्ता को चुनौती देंगी…चुनौती ही नींव हिलाती है आगे जा कर…जो समाज, अन्याय को चुनौती नहीं देता, वो इतिहास में या तो भुला दिया जाता है…या शर्म से याद किया जाता है…
असीम के आंदोलन के साथ कंधे से कंधा मिलाए युवा पत्रकार मयंक सक्सेना के फेसबुक वॉल से.