Saleem Akhter Siddiqui : राजनीति में आने से पहले आशुतोष ने अपनी मनस्थिति के बारे में आज के 'हिंदुस्तान' अखबार में लिखा है, ‘नौकरी छोड़ंगा, तो घर कैसे चलेगा? घर और कार की ईएमआई कैसे दी जाएगी? क्या सिर्फ मनीषा की बेहद मामूली तनख्वाह से घर चल पाएगा? बैंक में जमा पैसों से कुछ ही महीने घर चल सकता है। मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूं। पिताजी रिटायर हो चुके हैं। बिना सोचे-समझे राजनीति में कूदना, नौकरी छोड़ना एक बहुत ही कठिन फैसला है। पत्नी से चर्चा की। पिताजी और सास-ससुर से बात की। एकाध दोस्तों से भी पूछा। पत्नी ने जब कहा कि घर चल जाएगा, तुम चिंता मत करो, तो मन हल्का हुआ।’
अब मैं आपको अपनी सुनाता हूं। एक दिन अलसाई से सुबह चाय के साथ अखबार पढ़ते हुए मैंने अपनी शरीक-ए-हयात से कहा, सोच रहा हूं मैं भी आप ज्वाइन करलूं? पत्नी ने छूटते ही जवाब दिया, ‘घर कैसे चलेगा? लड़की बड़ी हो रही है, उसकी शादी का सोचो।’ दरअसल, मेरी पत्नी आशुतोष की पत्नी की तरह मामूली नौकरी भी नहीं करती है। कुल मिलाकर आशुतोष कहना चाहते हैं कि यदि आपके पास घर चलाने का ‘जुगाड़’ है, तो राजनीति में आओ वरना घर बैठे ही क्रांति-क्रांति चिल्लाते रहो। क्या आपको भी नहीं लगता कि क्रांति करने से ज्यादा जरूरी घर चलाना है? राजनीति भरे पेट का सौदा है?
मेरठ से प्रकाशित हिंदी दैनिक 'जनवाणी' में कार्यरत वरिष्ठ ब्लागर और पत्रकार सलीम अख्तर सिद्दीकी के फेसबुक वॉल से.