: ऐसे ही चलता रहे भड़ास, कभी न माने हार : भड़ास चला और खूब चला। उन लोगो का मंच बना जिनके लिए चल रहे मीडिया की मुख्य धारा में कोई जगह निकलती नहीं दिखती, खबरों के भीड़ में कोई कोना नहीं दिखता जहां वो बात, वो दुःख, वो दर्द, वो घुटन, वो साफगोई जगह पा सके जो दिल से भी निकलती है और असर भी रखती है। चीजे जो बाहर दिखती है जरूरी नहीं कि अन्दर भी वैसी हो।
भड़ास ने अपने पांच साल के सफर में इस दूरी को पाटने की कोशिश की है। कम से कम दो ही कदम सही उस रास्ते पर चलने की तो कोशिश की है जहां कथनी और करनी का अन्तर कम होता दिखता है। अब किसकी उम्र कितनी होगी या कोई कितना चलेगा इस पर कहने वाले न जाने क्या-क्या कह जाएंगे लेकिन एक सच तो ये है कि भड़ास ने अपनी राह भी बनायी और पहचान भी छोड़ी ऐसी उम्र का क्या हासिल जो बिना किसी इरादे बिना किसी प्रयोजन के बस रेंगती रहे। भड़ास के सफरनामें को देख महेश्वर का लिखा एक गीत बार-बार याद आ रहा है। …
जिन्दगी की जंग में मानो कभी न हार
जरा सा जोर लगाओ
कमर कस पांसा पलटो
गम न करो राहों में चाहे फूल मिले या खार
जरा सो जोर लगाओ
टूट गए जो स्वप्न पुराने, नए इरादे गढ़ लो
काल च्रक पर हाथ साधकर अपनी किस्मत गढ़ लो
तूफानों से हाथ मिलाओं, बढ़ो की जैसे ज्वार
जरा सा जोर लगाओ ………
भास्कर गुहा नियोगी
वाराणसी
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