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भड़ास4मीडिया के संचालन के लिए एक लाख पैंतीस हजार रुपये की आर्थिक मदद

: और दारू की एक बोतल भी : भड़ास का जब चौथा बर्थडे था तो उस दिन तीन साथियों ने मुझे लिफाफे थमाए, कुछ वैसे जैसे बिटिया का ब्याह कर रहा होऊं. उस भीड़भाड़ भरे और थोड़े नर्वस सी मनःस्थिति में मैंने किसी से कोई बहस नहीं किया, थैंक्यू बोलकर किसी प्रोफेशनल बेगर या मुखिया, जो जैसा समझे, की तरह लिफाफे हाथ में लेकर पाकेट में रख लिया. एक युवा पत्रकार साथी ने एक पर्ची पर प्यार भरे कुछ शब्द लिखे थे जिसमें भड़ास व मेरे सपोर्ट की बात कही गई थी.

: और दारू की एक बोतल भी : भड़ास का जब चौथा बर्थडे था तो उस दिन तीन साथियों ने मुझे लिफाफे थमाए, कुछ वैसे जैसे बिटिया का ब्याह कर रहा होऊं. उस भीड़भाड़ भरे और थोड़े नर्वस सी मनःस्थिति में मैंने किसी से कोई बहस नहीं किया, थैंक्यू बोलकर किसी प्रोफेशनल बेगर या मुखिया, जो जैसा समझे, की तरह लिफाफे हाथ में लेकर पाकेट में रख लिया. एक युवा पत्रकार साथी ने एक पर्ची पर प्यार भरे कुछ शब्द लिखे थे जिसमें भड़ास व मेरे सपोर्ट की बात कही गई थी.

बीएसएफ वाले एक साथी ने जो कुछ दिया था उसे खोला तो उसमें रुपये और दारू की एक बातल निकली. बोतल देखकर मन बाग बाग हो गया क्योंकि रुपये तो गाहे बगाहे मिलते रहते हैं, बोतल की भेंट पहली दफे मिली. हां, एक बार हैदराबाद से भरत सागर जी ने हजार रुपये लिफाफे में डालकर भेजे थे कि इसका खरीदकर पी लेना, और सच में उस पैसे से दारू खरीदकर पी गया, क्योंकि उनका आदेश जो था. एक अन्य युवा व संघर्षरत पत्रकार साथी ने आर्थिक मदद दी.

एक चैनल के एंकर साथी ने पांच-पांच हजार रुपये दो बार दिए. एक बार तो पांच हजार रुपये ले लिया लेकिन दूसरी बार कुछ ज्यादा नशे में था इसलिए दूसरे पांच हजार को फाड़ दिया, साथ में अपनी पाकेट में रखे दो ढाई हजार को भी फाड़ दिया. ऐसी घटनाएं हो जाया करती हैं, जिसका पश्चाताप अगले दिन तक रहता है. पर ठीक है, जो हो जाए सब ठीक है. एक कंपनी के युवा हेड ने भड़ास4मीडिया के संचालन के लिए पिचहत्तर हजार रुपये की मदद दी. उन्होंने नाम न छापने का अनुरोध किया.

पच्चीस हजार रुपये एक ब्यूरोक्रेट ने भड़ास4मीडिया को मुहैया कराए. उनका कहना था कि वे भड़ास जैसे मंच से प्रभावित हैं और इसकी मदद करना चाहते हैं इसलिए अपनी सेलरी से बचाई गई रकम में से पच्चीस हजार रुपये दे रहे हैं. दस हजार रुपये (पांच-पांच हजार रुपये दो बार में) एक चैनल में कार्यरत मार्केटिंग हेड ने दिए. एक चैनल के एचआर हेड ने दस हजार रुपये मुहैया कराए.

इन लोगों से जब रुपये लेता हूं तो सोचता हूं कि ये भड़ास से फेवर लेने के लिए पैसे दे रहे हैं या भड़ास जैसे मंच को आर्थिक सपोर्ट करने के लिए. कुछ मामलों में देने वालों के मन में यह रहता है कि वे इस थोड़े से पैसे से भड़ास व यशवंत को मैनेज कर लेंगे लेकिन उनकी धारणा तब टूट जाती है जब देने के कुछ ही दिनों बाद उनके या उनके संस्थान के खिलाफ खबर छप जाती है. भड़ास जब मेरा नहीं हुआ तो किसी का क्या होगा. भड़ास पर मेरे खिलाफ जितना कुछ छपा है, उसे पढ़ पढ़कर मैं खुद बैरागी हो गया हूं.

ऐसे में दूसरे लोगों को यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि वे पैसे देकर भड़ास को मैनेज कर लेंगे. कुछ एक मामलों में यह जरूर हुआ कि किसी खबर को लेकर किसी ने पांच दस हजार रुपयों की बात की तो मैंने कह दिया कि दस बीस हजार रुपये आप भड़ास की तरफ से ले लें और अपने अखबार या चैनल, जो भी हो उसमें भड़ास का विज्ञापन छाप दें. इसका मतलब यह भी नहीं कि यशवंत पांच दस हजार रुपये में नहीं, लाख दो लाख रुपये में मानते हैं. यह सच है कि कई ऐसे साथी हैं जो सालाना लाख रुपये से ज्यादा भड़ास को आर्थिक मदद मुहैया कराते हैं. वे चाहते भी नहीं कि इसका जिक्र वेबसाइट पर आर्थिक मदद के रूप में की जाए. और, इन्हीं लोगों के बल पर भड़ास का महीने का खर्च निकल पाता है.

अब ये न पूछिए कि ये देने वाले लोग अच्छे हैं या बुरे. सच कहूं तो मुझे लगता है कि भड़ास के खर्च का ज्यादा बड़ा हिस्सा वे लोग उठाते हैं जिन्हें नैतिक भाषा में अच्छा नहीं कहा जाएगा. इसीलिए मैं कई बार कहता भी हूं कि बुरे लोगों के पैसे से अच्छे लोगों का मंच भड़ास संचालित हो रहा है. यह कांट्राडिक्शन है. और ऐसे ही कांट्राडिक्शन से दुनिया चल रही है क्योंकि अंतरविरोध नहीं होगा तो गति नहीं होगी और गतिमान न होने की स्थिति में सड़ांध होने से कोई नहीं बचा सकता. भड़ास के संचालन की जो दुधारी तलवार है, उस पर मैं चलते हुए खुद को कई बार आइने में देखता सोचता हूं. कि, कहीं मैं उसी उगाही ब्लैकमेलिंग ओबलाइजेशन के रास्ते पर तो नहीं बढ़ रहा जिसके कारण मेनस्ट्रीम मीडिया भ्रष्ट हुआ. जवाब हां ना दोनों में आता है. और ये द्वंद्व चल रहा है. लेकिन इतना दावे से कह सकता हूं कि हम लोगों ने अपनी तरफ से किसी पर पैसे के लिए आजतक दबाव नहीं बनाया. जो खुद चला आया, उसे डोनेशन मानकर भड़ास4मीडिया के एकाउंट में जमा करा दिया गया.

साध्य साधन के पवित्रता वाली बहस पुरानी है लेकिन अपन लोगों के लिए नई लगती है. क्योंकि अपन लोग गांव के लोग हैं, जब भी कुछ नया होता है, चाहे अच्छा या बुरा, दिमाग और दिल दोनों अपनी अपनी भड़ास निकालते हैं और दोनों को सुनना पड़ता है पार्टनर, क्योंकि किसी एक पर भरोसा नहीं किया जा सकता, उसी तरह जैसे सिर्फ भड़ास पर ही लोगों को भरोसा नहीं करना चाहिए, भरोसे के कई और मंच खड़े होने चाहिए ताकि कोई ठेकेदार और चौधरी न बन सके. फिलहाल आपको बताना यही था कि हाल के दिनों कई साथियों ने मिलकर जो पैसे मुझे दिए उसका सकल योग एक लाख पैंतीस हजार रुपये होते हैं.

यशवंत सिंह

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एडिटर

भड़ास4मीडिया

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